अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर एक सभा के दौरान हुए हमले के कुछ ही दिन के भीतर राष्ट्रपति जो बाइडेन ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस साल के आख़िर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से अपना नाम वापस ले लिया है। इससे उप राष्ट्रपति कमला हैरिस के डेमोक्रेटिक पार्टी का उम्मीदवार होने का रास्ता खुल गया है। लम्बी ख़ामोशी के बाद आख़िर पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा ने हैरिस की उम्मीदवारी के लिए अपना समर्थन दे दिया। क्या ओबामा की ख़ामोशी के पीछे कारण यह था कि बाइडेन को रेस से बाहर कर वह अपनी पत्नी मिशेल ओबामा को राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेट उम्मीदवार बनाना चाहते थे? परदे के पीछे ऐसी चर्चा ख़ूब रही थी। अगले महीने डेमोक्रेटिक पार्टी की सभा में कमला हैरिस की उम्मीदवारी पर आधिकारिक मुहर लगने की अब पक्की संभावना है।
पेंसिल्वेनिया में एक रैली को संबोधित करते हुए जब एक हमलावर की गोली ट्रम्प के कान को छूने के बाद उनके चेहरे पर ख़ून की एक लकीर छोड़ते हुए निकल गयी, तो भले यह ट्रम्प के जीवन को संकट में डालने वाला क्षण था; लेकिन ट्रम्प ने इसे राजनीतिक रूप से भुनाने में देर नहीं की। चेहरे पर ख़ून की इस लकीर के साथ भिंची हुई मुट्ठी जब उन्होंने अपने समर्थकों की तरफ़ लहरायी, उस समय सीक्रेट सर्विस के अधिकारी ढाल बनाकर उन्हें सुरक्षित स्थान की तरफ़ ले जा रहे थे। ट्रम्प की यह तस्वीर दुनिया भर के अख़बारों और टीवी चैनलों ने बार-बार दिखायी। कोई शक नहीं कि सिर्फ़ इस एक तस्वीर ने ट्रम्प के प्रति अमेरिका में समर्थन का जबरदस्त माहौल बना दिया। लेकिन क्या यह माहौल स्थायी है? शायद नहीं।
जो बाइडेन के डिबेट्स में कमज़ोर प्रदर्शन और उनकी भूलने की आदत ने ट्रम्प को बढ़त के पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया। चिन्तित डेमोक्रेट्स यह चर्चा करने लगे कि क्या बाइडेन के साथ वह ट्रम्प को हराने की कल्पना कर सकते हैं? अधिकतर का जवाब न में था। बाइडेन को मैदान से बाहर करने की मुहिम के सबसे बड़े पैरोकार पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा थे। भले वह ट्रम्प की मज़बूती को देखते हुए बाइडेन को उम्मीदवारी से हटाने की मुहिम चला रहे थे; इसके पीछे एक मक़सद पत्नी मिशेल ओबामा के लिए पद की उम्मीदवारी की संभावना बनाना भी था। मिशेल का नाम पहले भी दो बार डेमोक्रेटिक पार्टी में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए चर्चा में रहा है। लिहाज़ा ओबामा की कोशिश आश्चर्यजनक नहीं थी। लेकिन इस बीच बाइडेन ने अचानक अपना नाम राष्ट्रपति की उम्मीदवारी से वापस ले लिया। यही नहीं, उन्होंने पद के लिए कमला हैरिस की उम्मीदवारी का समर्थन कर दिया। बाइडेन ख़ेमे में ओबामा के प्रति नाराज़गी थी। लिहाज़ा ऐसा करने से ओबामा की कोशिशों को धक्का लगा। इसके बावजूद एक हफ़्ते तक ओबामा ने हैरिस के नाम का समर्थन नहीं किया, जबकि तब तक पार्टी के ज़्यादातर बड़े नेता हैरिस के समर्थन की घोषणा कर चुके थे। लेकिन अब यह तय हो गया है कि कमला हैरिस ही डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद की उमीदवार होंगी; भले इसका अंतिम फ़ैसला आधिकारिक रूप से अगस्त के पहले हफ़्ते होने वाली पार्टी की कन्वेंशन में होगा।
कमला हैरिस को मतदान के पहले दौर में नामांकन जीतने के लिए ज़रूरी 1,976 प्रतिनिधियों से ज़्यादा का समर्थन हासिल हुआ जिससे साफ़ दिख रहा है कि हैरिस नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रम्प को चुनौती देने के लिए तैयार हैं। वास्तव में यह रोल कॉल वोट कहलाता है। हैरिस को अगस्त में शिकागो में होने वाली डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन में अब पूरा समर्थन मिलने की पक्की संभावना दिख रही है। राष्ट्रपति पद के लिए कमला हैरिस के विरोधी के रूप में सामने आने से डोनाल्ड ट्रम्प के पक्ष में जो माहौल बना था, उसमें कमी आयी है। उम्मीदवारी लगभग पक्की होने के बाद इजरायल के गाज़ा में हमलों में मरने वाले बेक़सूर लोगों को लेकर जिस तरह कमला हैरिस ने कड़ा रुख़ दिखाया है, उससे अमेरिका में उनका समर्थन बढ़ सकता है। ट्रम्प जिस तरह जो बाइडेन की उम्र (83 साल) को लेकर सवाल उठा रहे थे, अब केवल 59 साल की हैरिस यही सवाल ट्रम्प (79) की उम्र को लेकर उठा रही हैं। ट्रम्प के कोर्ट में चल रहे मामले भी हैरिस के लिए एक मुद्दा हैं। अमेरिका में यह सवाल उठाया जा रहा है कि यदि इन मामलों में दोषी पाये जाने पर ट्रम्प को सज़ा मिलती है, तो क्या होगा? कमला के राष्ट्रपति उम्मीदवार होने से बड़ी संख्या में भारतीय भी उनके साथ जा सकते हैं।
कमला हैरिस की विदेश मामलों में जानकारी को लेकर रिपब्लिकन सवाल उठा रहे हैं। यदि व्हाइट हाउस की वेबसाइट पर कमला हैरिस के पेज को देखा जाए, तो पता चलता है कि एक उपराष्ट्रपति के तौर पर कमला हैरिस ने पिछले साढ़े तीन साल के कार्यकाल के दौरान डेढ़ दज़र्न देशों का दौरा किया। इस दौरान कमला ने 150 से ज़्यादा विदेशी नेताओं से मुलाक़ात / बैठकें कीं। रिपब्लिक के विरोध के बावजूद अमेरिका में कई लोग मानते हैं कि राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में कमला हैरिस की नीतियाँ वास्तव में अब सामने आएँगी। इनमें से कई जानकार कहते हैं कि उप राष्ट्रपति के रूप में भूमिका के विपरीत अब कमला की छवि कहीं ज़्यादा मज़बूत नेता के रूप में सामने आ सकती है। अमेरिकी चुनाव पर बाहरी देशों- रूस, चीन और भारत की नज़र है। यह माना जाता है कि रूस की प्राथमिकता अपने हित देखने की रहेगी। डोनाल्ड ट्रम्प के पिछले कार्यकाल को लेकर रूस में निराशा ही अनुभव की गयी थी। यूक्रेन में रूस के हमले के बाद ट्रम्प लगभग ख़ामोश रहे। कारण था- जो बाइडेन का राष्ट्रपति पुतिन को किलर कहना।
उधर ट्रम्प ने तो एक मौक़े पर यूक्रेन को अमेरिकी मिलिट्री मदद पर सवाल खड़े किये थे। जहाँ तक चीन की बात है, ताइवान दोनों देशों के बीच तनाव का एक बड़ा कारण रहा है। ट्रम्प जहाँ ताइवान को निशाने पर रखते रहे हैं, वहीं बाइडेन ने राष्ट्रपति के रूप में ताइवान के साथ खड़े रहने की क़सम खायी थी। हैरिस चीनी नेता शी जिनपिंग के साथ 2022 में बैंकॉक में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन में मिल चुकी हैं।
बाइडेन की तरह हैरिस ताइवान के पक्ष में समर्थन जता चुकी हैं। एक गवर्नर के रूप में कमला हैरिस हॉन्गकॉन्ग और उइगर में मानवाधिकारों की मुखर समर्थक रही हैं। नहीं भूलना चाहिए कि 2019 में हैरिस ने रिपब्लिकन सीनेटर मार्को रुबियो के पेश किये हॉन्गकॉन्ग मानवाधिकार और लोकतंत्र अधिनियम को सह-प्रायोजित किया था। इसका मक़सद हॉन्गकॉन्ग में मानवाधिकारों को बढ़ावा देना था। बाद में उस समय के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर करके इसे क़ानून बना दिया था। उसी साल कमला ने उइगर मानवाधिकार नीति अधिनियम को पारित करने में मदद की। यह 2020 में क़ानून बन गया और इसने अमेरिका को शिनजियांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन में शामिल व्यक्तियों या संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार दिया।
जहाँ तक भारत की बात है, यह सर्वविदित है कि बाइडेन के कार्यकाल के दौरान अमेरिका-भारत के सम्बन्धों में कोई ख़ास गर्माहट नहीं दिखी है। इसका एक कारण जानकार डोनाल्ड ट्रम्प के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के झुकाव को मानते हैं। हाल में जब ट्रम्प पर हमला हुआ था, तो मोदी ने इस हमले की निंदा करते हुए उनके लिए दोस्त शब्द का इस्तेमाल किया था। यही कारण है कि भारत की नज़र अमेरिका के चुनाव पर लगी है। हाल के वर्षों में बाइडेन प्रशासन भारत में अल्पसंख्यकों, ख़ासकर मुसलमानों के प्रति मोदी प्रशासन की नीतियों को लेकर सवाल उठाता रहा है। कमला हैरिस को मानवाधिकारों के प्रति बहुत संवेदनशील नेता माना जाता है। ऐसे में जानकार मानते हैं कि ट्रम्प की जीत मोदी प्रशासन को ज़्यादा रास आएगी, बनिस्बत हैरिस के। जहाँ तक कमला के साथ डेमोक्रेटिक पार्टी में उप राष्ट्रपति पद के संभावितों की बात है, इनमें जोश शापिरो (पेंसिल्वेनिया के गवर्नर), मार्क केली (एरिजोना के सीनेटर), रॉय कूपर (उत्तरी कैरोलिना गवर्नर), एंडी बेशर (केंटकी के गवर्नर) जेबी प्रिटजकर (इलिनोइस के गवर्नर), ग्रेचेन व्हिटमर (मिशिगन के गवर्नर), परिवहन सचिव पीट बटिगिएग, टिम वाल्ज़ (मिनेसोटा के गवर्नर), सेवानिवृत्त एडमिरल विलियम मैकरेवन के अलावा मैरीलैंड के गवर्नर वेस मूर, सीनेटर एमी क्लोबुचर, कोरी बुकर और जॉर्जिया के सीनेटर राफेल वारनॉक के नाम चर्चा में हैं।
पूरी दुनिया की अमेरिकी के राष्ट्रपति चुनाव पर नज़र लगी हुई है। लेकिन सबसे शक्तिशाली और सभ्य होने का दावा करने वाले अमेरिका के चेहरे पर वहाँ चार राष्ट्रपतियों की हत्या के दाग़ भी हैं। इनमें अब्राहम लिंकन को 14 अप्रैल, 1865 को गोली मारी गयी, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी। जेम्स गारफील्ड को भी 02 जुलाई, 1881 को गोली मारी गयी और 19 सितंबर को उनकी मौत हो गयी। विलियम मैककिनले को 06 सितंबर, 1901 को गोली मारी गयी और 14 सितंबर को उनकी मौत हो गयी। और जॉन एफ. कैनेडी को 22 नवंबर, 1963 को गोली मारी, जिससे उनकी मौत हो गयी। इसके अलावा चुनाव के दौरान कई बार गोलीबारी की घटनाएँ हुई हैं, जिनमें सबसे ताज़ा घटना ट्रम्प पर गोली चलने की है। क्या दुनिया में लोकतंत्र भी बन्दूक के बंधक हो चुके हैं?