परीक्षा के संचालन में सुधार का समय

राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) ने 21 अगस्त से 04 सितंबर के बीच विश्वविद्यालय अनुदान आयोग-राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा 2024 जून सत्र की परीक्षा, संयुक्त सीएसआईआर यूजीसी नेट 25 से 27 जुलाई तक, एनसीईटी की परीक्षा 10 जुलाई को निर्धारित की है। परीक्षाओं की नयी तारीख़ें मिलना, एक समिति का गठन और नीट जैसी महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं के संचालन में हुई अनियमितताओं की जाँच का ज़िम्मा सीबीआई को सौंपे जाने के बीच एनटीए के महानिदेशक पद से सुबोध कुमार सिंह को हटाना सरकार की मंशा को दर्शाता है। नीट मेडिकल प्रवेश परीक्षा, जिसमें रिकॉर्ड 24 लाख उम्मीदवार उपस्थित हुए; अब सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न एजेंसियों की जाँच के दायरे में है। यूजीसी-नेट परीक्षा आयोजित होने के एक दिन बाद उसे रद्द करना केंद्र के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी है, जिसने माना है कि परीक्षा की अखंडता से समझौता किया गया है। हालिया फ़ैसले विपक्ष द्वारा संसद में इस सर्वोपरि मुद्दे को बार-बार उठाने के बाद आये हैं।

हमारी एसआईटी द्वारा की गयी ‘तहलका’ की इस बार की आवरण कथा ‘परीक्षा माफ़िया का जाल’ से पता चलता है कि कैसे एक व्यापक नेटवर्क परीक्षा प्रणाली की अखण्डता से समझौता कर रहा है, जिससे चुनिंदा केंद्रों के कई उम्मीदवार असामान्य रूप से उच्च अंक प्राप्त कर रहे हैं। सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम-2024, जिसे पेपर लीक विरोधी क़ानून के रूप में भी जाना जाता है; लागू हो गया है। लेकिन क्या यह पर्याप्त है? प्रश्न-पत्रों का बार-बार लीक होना जनता का विश्वास बहाल करने के लिए पूर्ण सुधार की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के बढ़ते उपयोग के बीच ख़तरा और भी बढ़ गया है। एनटीए की स्थापना 2017 में हुई थी। लेकिन इतने वर्षों के बाद भी एजेंसी यूपीएससी की तर्ज पर एक फुलप्रूफ प्रणाली विकसित करने में विफल रही है, जो सुरक्षा को शामिल किये बिना सिविल सेवा परीक्षा, एनडीए की परीक्षा और अन्य समान रूप से प्रतिष्ठित परीक्षाओं का संचालन करती है।

तो ग़लत क्या है? आवश्यकता है कि सज़ा को तीन साल से बढ़ाकर कम-से-कम 10 साल किया जाए, फास्ट ट्रैक अदालतों में समयबद्ध फ़ैसले दिये जाएँ, किसी भी पेपर लीक घोटाले में शामिल कोचिंग संस्थानों को काली सूची में डालना चाहिए, नक़ल में शामिल प्रतियोगियों को भविष्य की सभी परीक्षाओं से वंचित करना चाहिए और राजनीतिक संबद्धता के आधार पर परीक्षण निकायों के सदस्यों को नियुक्त करने की प्रथा को बंद करना चाहिए।

सभी प्रकार के राजनेताओं और सभी हितधारकों को एक साथ बैठकर समाधान खोजने के लिए विचार-मंथन करने की आवश्यकता है। क्योंकि यह देश के भविष्य का सवाल है। एनटीए या इसी तरह के संस्थानों को ख़त्म करना समाधान नहीं है; बल्कि अपर्याप्तताओं को ठीक करना है। दरअसल एनटीए की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान है। परीक्षाओं को रद्द करने और स्थगित करने से प्रतियोगियों और उनके परिवारों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति पर भारी असर पड़ सकता है। इस मुद्दे पर देशव्यापी बहस की ज़रूरत है। क्योंकि शिक्षा और बेरोज़गारी के मुद्दे केंद्र में हैं और विश्वास की कमी को पूरा किया जाना चाहिए, ताकि विद्यार्थी और उनके परिवार ख़ुद को ठगा हुआ महसूस न करें।