2024 के इलेक्शन में मुसलमानों के वोटों की दलाली करने वाले गायब हो गए है

खालिद सलीम

यह बात किसी से ढकी छुपी नहीं है की हिंदुस्तान की सारी सेकुलर पार्टियों ने मुसलमानों को हमेशा अपना वोट बैंक समझ कर इस्तेमाल किया है यह काम इंदिरा गांधी ने शुरू किया था उन्होंने मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा हिंद को मुसलमानों के वोट को कांग्रेस के लिए ट्रांसफर करने के लिए इस्तेमाल किया इसके बाद मस्जिदों के इमामों का एक संगठन बना जिसने यह दावा किया कि वह पूरे मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि है यह संगठन इंदिरा गांधी जी के वक्त में ही बन गया था इस संगठन के अध्यक्ष मौलाना जमील इलियासी साहब से इंदिरा गांधी जी बहुत प्रभावित थी इन्हीं बातों को देखते हुए बहुत से इमामों ने अलग-अलग नाम से इमामों के संगठन खड़े कर दिए और यहीं से मुसलमानों के वोटो की दलाली का वह सिलसिला चला की हर चुनाव में चाहे वह लोकसभा के चुनाव हो चाहे प्रदेशों के विधानसभाओं के चुनाव हो सब में यह संगठन अलग-अलग सेकुलर सियासी पार्टियों के लिए अपील करते हुए और उनके लिए काम करते हुए नजर आए इनके अलावा हिंदुस्तान की बड़ी-बड़ी मस्जिदों के इमामों ने भी अपनी-अपनी पसंद की सियासी पार्टियों के लिए अपील जारी करते रहे यहां तक के 2014 से पहले के लोकसभा चुनाव में जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी ने मुसलमानों से बीजेपी के लिए वोट देने की अपील जारी कर दी थी और तो और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जो कि मुसलमानों के मज़हब के मामलात को निमटारे के लिए बनाया गया था वह भी कुछ खास पार्टियों के लिए अपील जारी करने से पीछे नहीं रहा इन मुस्लिम संगठनों के रवइयों से हिंदुओं के अंदर मुसलमानों के खिलाफ एक ऐसी लहर और नफरत सी पैदा हुई जिसने मौजूदा हिंदुस्तान में मुसलमानों के हालात को और भी खराब से खराब कर दिया और हिंदू इस बात से एकजुट होते चले गए के मुसलमान संगठन और पूरी मुस्लिम बिरादरी बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो गई है और मुसलमान कुछ सियासी पार्टियों का वोट बनकर रह गए हैं जो की हिंदुओं को नीचा दिखाना चाहते हैं अब यह अलग बात है कि इन मुस्लिम संगठनों की सियासी पार्टियों के लिए अपील जारी करने का कितना फायदा हुआ या सियासी पार्टियों को कितना नुकसान हुआ यह हम 2014 के इलेक्शन से पहले के इलेक्शन में अच्छी तरह से देख सकते हैं इन मुस्लिम संगठनों का जादू या सियासी पार्टियों के लिए वोट की अपील जारी करने और इन अपीलों के असर को खत्म करने का सहरा नरेंद्र मोदी को जाता है इसमें कोई शक नहीं है कि 2014 2019 और अब 2024 के चुनाव में मुस्लिम संगठनों का रोल खत्म सा होकर रह गया है विशेष कर 2024 के इलेक्शन में ना कोई मुस्लिम संगठन सामने आया ना किसी ने किसी पार्टी के लिए कोई अपील जारी की अलबत्ता मुसलमानों ने इस चुनाव में जिस तरह बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है और उनका वोटिंग प्रतिशत दूसरी कम्युनिटी से ज्यादा बढ़ा हुआ है उन्होंने इस चुनाव में एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ वोट किया है हालांकि 2014 और 2019 में बहुत से मुसलमानों ने बीजेपी को अपने तौर पर वोट दिया था लेकिन इस चुनाव में मुसलमानों ने एकजुट होकर हर जगह पूरे भारत में बीजेपी के खिलाफ वोट दिया है उसकी वजह यह है कि 2019 के बाद मोदी जी और उनकी सरकार ने जिस तरह से मुसलमान के खिलाफ काम किया है विशेष कर सी ए ए बिल पार्लियामेंट से मंजूर कराया गया और यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की इच्छा और मुसलमानों में के दिल में एनआरसी का जो डर पैदा हुआ उसकी वजह से उन्होंने बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर वोट किया है मुसलमान की इस एकजुट में किसी मुस्लिम संगठन का कोई भी हाथ नहीं है और उम्मीद यही है कि अब आने वाले हर चुनाव में मुसलमान अपने हितों को सामने रखते हुए ही सियासी पार्टियों को वोट देंगे

लेखक खालिद सलीम,स्तंभकार हैं, विचार व्यक्तिगत हैं