भविष्य में पानी को लेकर मचेगा हाहाकार!

गर्मी के दिनों में देश में पानी की क़िल्लत अक्सर अख़बारों की सुर्ख़ियाँ बनती हैं और इस गंभीर मुद्दे पर सत्तारूढ़ सरकारों व विपक्षी दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप भी सुनने को मिलते हैं। जल-संकट एक गंभीर मुद्दा है। भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहाँ सबसे अधिक आबादी रहती है। विश्व बैंक के अनुसार, भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी रहती है। लेकिन लगभग चार प्रतिशत लोगों के लिए पर्याप्त जल-संसाधन हैं। भारत दुनिया में भूजल का सबसे अधिक दोहन करता है। यह मात्रा दुनिया के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े भूजल दोहनकर्ता (चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका) के संयुक्त दोहन से भी अधिक है।

भारत में भूजल का 80 प्रतिशत भाग सिंचाई में उपयोग किया जाता है। 12 प्रतिशत भाग उद्योगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है और शेष आठ प्रतिशत ही पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक देश में जल की माँग उपलब्ध आपूर्ति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र की एक नवीनतम रिपोर्ट बताती है कि भारत जल-संकट से सबसे अधिक प्रभावित होगा। भारत के 30 शहर 2050 तक गंभीर जल-संकट श्रेणी में आ जाएँगे और विश्व के 2.4 अरब लोग प्रभावित होंगे। पानी, स्वच्छता की कमी से हर साल चार लाख लोगों की जान जाती है। जल-संकट की इस तस्वीर को बड़ा करने पर पता चलता है कि विश्व जल-संकट का सामना कर रहा है। अनुमान है कि 2030 तक जल की वैश्विक माँग सतत आपूर्ति से 40 प्रतिशत अधिक हो जाएगी। यानी माँग और आपूर्ति के बीच 40 प्रतिषत का फ़ासला एक बहुत बड़ी चुनौती है।

विश्व आर्थिक मंच की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, 2040 तक हर चौथा बच्चा जल-संकट वाले क्षेत्रों में रहेगा। इससे न केवल स्वास्थ्य प्रभावित होगा, बल्कि पोषण और शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकारों से भी बच्चे वंचित रह सकते हैं। यही नहीं, 2050 तक 2.4 करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, प्राकृतिक आपदाओं, समुद्र का जल-स्तर बढ़ने जैसे कारणों से दुनिया में 1.2 अरब लोग 2050 तक पलायन को विवश हो सकते हैं। ग़ौरतलब है कि पलायन करने वाली आबादी को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जैसे-भाषा, बोली, रोज़गार, संस्कृति, बच्चों का स्कूल में दाख़िला आदि। ग्लोबल वार्मिंग व प्रदूषण से वर्ष 1900 से अब तक दुनिया भर के 20 प्रतिशत जल-स्रोत सूख गये हैं। दरअसल, जल हमारे जीवन की महत्त्वपूर्ण ज़रूरत है। भोजन हो या कपड़े अथवा हमारे द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ऊर्जा हो, उनमें पानी का उपयोग होता है। प्रकृति ने पानी के कई स्रोत मानव को दिये; लेकिन जलवायु परिवर्तन और धरती पर बढ़ती आबादी, जल भंडारण के प्रति उदासीनता, मानव द्वारा अत्यधिक दोहन आदि के चलते दुनिया जल-संकट का सामना कर रही है।’

ग्लोबल कमीशन ऑन द इकोनॉमिक्स ऑफ वाटर’ के कार्यकारी निदेशक और संस्थापक हेंक ओविक कहते हैं- ‘यह उन सभी चीज़ों को कमज़ोर कर रहा है, जिन्हें हम हासिल करना चाहते हैं। अगर हम इसे सही तरीक़े से नहीं कर पाये, तो सभी के लिए खाद्य-सुरक्षा और जीडीपी पर इसका बहुत बड़ा असर होगा।’

दरअसल, स्वास्थ्य और आजीविका को बनाये रखने, अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाने और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने के लिए सही समय पर सही गुणवत्ता वाला पर्याप्त पानी चाहिए। जल आपूर्ति की कमी को शीर्ष पाँच जोखिमों के रूप में पहचानने वाले देशों की संख्या 2024 में सात से बढ़कर 2025 में 27 हो गयी है। ग़ौरतलब है कि वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र ने सुरक्षित स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता के अधिकार को मानवाधिकार के रूप में मान्यता दी। सतत् विकास लक्ष्य-6 का लक्ष्य 2030 तक सभी के लिए स्वच्छ पानी और स्वच्छता सुनिश्चित करना है।

अहम सवाल यह है कि क्या हम यह लक्ष्य हासिल कर पाएँगे? सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए केवल पाँच साल शेष हैं; पर दुनिया के देश इन्हें हासिल करने में बहुत पीछे हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोश (आईएमएफ) ने चेतावनी दी है कि विश्व के लिए 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करना असंभव होता जा रहा है; क्योंकि वित्त-पोषण की ज़रूरतें कई देशों की वास्तविक क्षमता से कहीं अधिक हैं, जिससे व्यापक आर्थिक असंतुलन का ख़तरा बढ़ रहा है। आईएमएफ ने हाल ही में 06 जून को एक बयान में कहा था- ‘2020 से लगातार झटकों ने दीर्घकालिक संरचनात्मक चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। इससे कम आय वाले और कमज़ोर देशों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ा है। अब देखना है कि भारत समेत दुनिया भर के देश सतत् विकास लक्ष्य-6 को क्या हासिल कर पाएँगे?