के.रवि (दादा)
भारत में सिर्फ़ 10 प्रतिशत लोग ही ऐसे होंगे, जिनके पास अथाह पैसा है। ज़ेहन में एक ही सवाल उठता है कि इन चंद अमीरों के पास इतना पैसा आया कहाँ से? इस बात का ही एक प्रतिशत ख़ुलासा विदेशी रिचर्स कम्पनी हिंडनबर्ग की हाल ही में आयी रिपोर्ट करती है, जिसमें अडानी समूह के द्वारा सेबी की चेयरपर्सन माधवी बुच से मिलीभगत करके अरबों रुपये के हेरफेर की घटना सामने आयी है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट इतनी चौंकाने वाली है कि केंद्र सरकार पर भी इसकी आँच आने लगी है। प्रधानमंत्री इस मामले में पहले ही बदनाम हैं कि अडानी उनके मित्र हैं और वह उन्हीं के लिए काम करते हैं। ऐसे आरोपों के बीच कोई सफ़ाई भी नहीं आती। अडानी भी कुछ नहीं बोलते और प्रधानमंत्री भी कुछ नहीं बोलते।
पिछले साल की ही बात है, हिंडनबर्ग कम्पनी ने एक रिपोर्ट जारी करके कहा था कि फेक कम्पनियों के ज़रिये करोड़ों रुपये का घोटाला-घपला हुआ है। इसके बाद अडानी ग्रुप की कम्पनियों को क़रीब 150 अरब डॉलर का नुक़सान हो गया था। अडानी ग्रुप के शेयर तीन महीने तक बुरी तरह लुड़कते रहे थे और 10 दिन के अंदर अडानी दुनिया के 20 टॉप अमीरों की लिस्ट से बाहर हो गये थे। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आते ही पहले ही महीने में अडानी ग्रुप को क़रीब 80 बिलियन डॉलर से ज़्यादा का नुक़सान हो गया था। अभी इसकी जाँच का मामला साफ़ नहीं हुआ था कि हिंडनबर्ग की एक और रिपोर्ट आ गयी, और अब एक सप्ताह से पहले एक और रिपोर्ट सामने आ गयी है।
हैरानी की बात है कि 03 जनवरी, 2024 को देश के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने अडानी ग्रुप पर लगे आरोपों की जाँच के लिए सेबी को इसकी जाँच तीन महीने में करके रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। लेकिन अब हिंडनबर्ग का आरोप है कि अडानी और सेबी की प्रमुख माधवी बुच ही मिलकर खेल कर रहे हैं और शेयर मार्केट में लगा लोगों का पैसा लूटने का ये काम सेबी के ज़रिये चल रहा था; जो कि छोटी-छोटी बचत करके वो कुछ फ़ायदा कमाने के लिए लगाते हैं। ऐसा लगता है कि सेबी प्रमुख ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी गंभीरता से नहीं लिया। सेबी ख़ुद अडानी ग्रुप के घपले के 26 मामलों की जाँच कर रहा था, जिसमें 24 मामलों की जाँच हो चुकी है; लेकिन दो मामलों पर अभी जाँच रिपोर्ट आनी है। इसे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना और सेबी प्रमुख के पद का दुरुपयोग करना ही कहा जाना चाहिए।
अब 10 अगस्त को हिंडनबर्ग ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच के पास अडानी की ओर से इस्तेमाल किये जाने वाले ऑफशोर फंडों में हिस्सेदारी का आरोप लगाया है। हालाँकि सेबी प्रमुख माधवी बुच ने हिंडनबर्ग के आरोपों को नकार दिया है। अडानी ग्रुप ने भी अपने ख़िलाफ़ हिंडनबर्ग के आरोपों को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया है। लेकिन अब यह मामला एक गहरी निष्पक्ष जाँच का हिस्सा बन चुका है। हिंडनबर्ग के आरोप दुर्भावनापूर्ण और शरारती हैं। लेकिन हिंडनबर्ग कम्पनी ने दावा किया है कि इस घोटाले के उसके पास बहुत सारे सुबूत हैं, जिन्हें वो बारी-बारी से जारी करेगी। हिंडनबर्ग ने इस रिपोर्ट में खुला चैलेंजिंग दावा किया है कि अडानी ग्रुप के द्वारा इस्तेमाल विदेशी फंडों में सेबी प्रमुख माधबी बुच की भी हिस्सेदारी है। अब अडानी ग्रुप को लेकर अमेरिकी शॉर्ट सेलर कम्पनी हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों का मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। देखना होगा कि इस बार सुप्रीम कोर्ट का इस मामले पर क्या फ़ैसला आता है?
लेकिन हिंडनवर्ग की ख़ुफ़िया जाँच न सिर्फ़ अडानी ग्रुप द्वारा शेयर मार्केट में किये जा रहे घोटालों की हक़ीक़त बताती है, बल्कि दूसरी कई बड़ी कम्पनियों की तरफ़ भी शक की सुई घुमाती है। सेंसेक्स में कम्पनियों को पता होता है कि उनके शेयर कैसे बढ़ाये जाएँगे और कैसे कमज़ोर किये जाएँगे। जब अचानक शेयर बाज़ार उछलता है, तब भी कुछ बड़े पूँजीपतियों के शेयर महँगे करने होते हैं। जब शेयर बाज़ार गिरता है, तब भी इसका फ़ायदा पूँजीपति ही उठाते हैं और घाटा होता है उसे, जो शेयर होल्डर थोड़ी-सी बचत को पैसा बढ़ने की उम्मीद लेकर ख़ून-पसीने की कमायी को शेयर बाज़ार में लगा देते हैं। इस तरह के जनता और सरकार को फँसाकर धनवान बने कई पूँजीपतियों पर हमने अपनी गहरी नज़र रखी हुई है, जिनमें से ज़्यादातर मुम्बई, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गोवा, दिल्ली और गुजरात के धनी व्यापारी हैं।