मृतक किसान हाज़िर हो…!

उत्तर प्रदेश पुलिस के कारनामे हर रोज़ सुनने को मिलते हैं; लेकिन इस बार शामली ज़िले की पुलिस ने वो कारनामा कर दिखाया है, जिसकी हर तरफ़ चर्चा हो रही है। और यह कारनामा है- ख़ुदकुशी करने वाले एक किसान के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करके उस पर मुक़दमा दर्ज कराने का। कहानी थोड़ी हास्यास्पद और दु:खद है। सरकार किसान के परिवार को सहायता या राहत के बजाय उस पर क़ानूनी दाँव-पेंच में उलझा रही है।

दरअसल, उत्तर प्रदेश के शामली के थाना झिंझाना क्षेत्र में एक गन्ने का भुगतान समय पर न मिलने के चलते ग्राम पुरमाफी के किसान धर्मेंद्र ने 23 फरवरी को ख़ुदकुशी कर ली। ख़ुदकुशी से पहले किसान अपने गन्ने के भुगतान के लिए चीनी मिल प्रशासन और योगी प्रशासन से कई बार गुहार लगायी थी। किसान धर्मेंद्र की पत्नी लंबे समय से बीमार चल रही है, जिसके इलाज के लिए उसे पैसों की सख़्त ज़रूरत थी। इसके अलावा किसान को अपनी बेटी की स्कूल फीस भी भरनी थी और घर के ख़र्च के लिए भी पैसे चाहिए थे। लेकिन चीनी मिल वालों ने उसका समय से भुगतान नहीं किया था। इसी के चलते किसान ने शायद कहीं से एक देशी तमंचे का इंतज़ाम करके अपने खेत में जाकर ख़ुद की कनपटी पर गोली मार ली, जिससे उसकी मौत हो गयी।

किसान की मौत के समय कुछ लोगों ने यह भी आशंका जतायी कि हो सकता है कि किसान की हत्या किसी ने कर दी हो और इसे ख़ुदकुशी साबित करने के लिए किसान के हाथ में तमंचा थमा दिया हो। हालाँकि किसान की किसी से दुश्मनी नहीं थी और उसके गाँव के लोग कह रहे हैं कि धर्मेंद्र काफ़ी दिनों से गन्ना भुगतान न होने को लेकर परेशान चल रहा था। लेकिन थाना झिंझाना की पुलिस ने किसान धर्मेंद्र की मौत या ख़ुदकुशी की गहन छानबीन करके सही वजह का पता लगाने की जगह उलटा उसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करके उस पर मुक़दमा दर्ज करा दिया है। मुख्यमंत्री योगी की चौकन्नी पुलिस के इस कारनामे से सब हैरान हैं और सवाल कर रहे हैं कि क्या अब मृतक किसान को अदालत में हाज़िर होने की आवाज़ लगायी जाएगी। और अगर किसान ने तमंचा ख़रीदकर ख़ुदकुशी कर भी ली हो, तो क्या एक मरे हुए किसान को सज़ा दी जाएगी? लोग सवाल उठा रहे हैं कि किसान के ख़िलाफ़ एफआईआर और मुक़दमा दर्ज कराने के बजाय पुलिस गन्ने का भुगतान न करने वाले अफ़सरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है?

दरअसल, प्रदेश में गन्ना किसानों के गन्ने का पिछले कई साल तक का बक़ाया भुगतान चीनी मिलें नहीं कर रही हैं। इन चीनी मिलों पर किसानों के सैकड़ों करोड़ रुपये बक़ाया हैं और हर साल गन्ने का भुगतान ये चीनी मिलें देने में देरी करती हैं, सो अलग। पेराई सत्र 2024-25 का पूरा गन्ना चीनी मिलें किसानों से फरवरी के दूसरे सप्ताह तक ही ख़रीद चुकी हैं और अभी तक किसानों का पूरा भुगतान नहीं हुआ है। सत्ता में आने से पहले भाजपा के कई बड़े नेताओं ने यह वादा किया था कि चीनी मिलें किसानों को 48 घंटे के भीतर भुगतान करेंगी; लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विपक्ष भी सिर्फ़ चुनाव आने पर ही किसानों की बात करता है, उनके साथ उनके आन्दोलन में खड़े होकर उनके हक़ की आवाज़ कभी नहीं उठाता।

विडंबना यह है कि पिछले कुछ ही दिनों में दज़र्नों किसान ख़ुदकुशी कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले में ज़मीन छिनने वाले अदालती फ़ैसले से तंग किसान वेद प्रकाश ने एसडीएम और पुलिस के सामने ख़ुद को आग लगाकर आत्महत्या कर ली। फ़तेहपुर ज़िले के जाफ़राबाद गाँव में एक 48 वर्षीय किसान भोला यादव ने पहले ज़हर खा लिया और जब लोगों ने उसे बचाना चाहा, तो उसने ख़ुद को कमरे में बंद करके फाँसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली। छत्तीसगढ़ के ही महासमुंद ज़िले के पटेवा थाना क्षेत्र में सिंघनपुर गाँव के पूरन निषाद नाम के एक किसान ने अपने ही खेत में फाँसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली। अफ़सोस इस बात का है कि किसानों की ख़ुदकुशी के इतने मामले आ रहे हैं और प्रचार यह किया जा रहा है कि किसान ख़ुशहाल हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)