किसानों को कम ही लाभ पहुँचाएगा बजट

योगेश

किसानों को जिस तरह मूर्ख बनाने की कोशिश सरकारों ने की है, वो ठीक नहीं है। किसान इतने नासमझ नहीं हैं। लेकिन उन्हें खाद सब्सिडी के नाम पर, न्यूनतम समर्थन मूल्य के नाम पर, फ़सल बीमा के नाम पर ख़ूब ठगा और मूर्ख बनाया गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य भी उनको नहीं मिल रहा है। इस बार केंद्र सरकार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए आम बजट में जिस तरह का कृषि बजट पेश किया है, उसकी भले ही कुछ लोग तारीफ़ कर रहे हों; लेकिन किसानों को इस बजट में भी झाँसा ही दिया गया है। इस बजट से किसानों को बमुश्किल बहुत-ही कम लाभ पहुँचेगा। क्योंकि कृषि क्षेत्र के लिए जो 1.52 लाख करोड़ रुपये का बजट इस वर्ष के लिए दिया गया है, पहले तो बहुत कम है और इस बजट का सीधा फ़ायदा भी किसी भी हाल में किसानों को नहीं मिलने वाला। इसके साथ ही लागत मूल्य, फ़सलों का कम भाव और महँगाई के हिसाब से इस बार का कृषि बजट बहुत कम है।

इससे पिछले वित्त वर्ष 2023-24 का कृषि बजट 1.25 लाख 36 हज़ार करोड़ रुपये रखा गया था। लेकिन पिछले साल किसानों को कुछ नहीं मिला। आन्दोलन करने वाले किसानों को लाठियाँ और कई तरह की यातनाएँ ज़रूर मिलीं। लेकिन ये दोनों बजट पिछले कृषि बजट से काफ़ी कम हैं। वित्त वर्ष 2020-21 में कृषि बजट 2.83 लाख करोड़ रुपये रखा था। इसमें कृषि संबंधित 16 सूत्री योजनाओं को शामिल किया गया था। इस बजट में 1.6 लाख करोड़ रुपये विशेष रूप से कृषि, सिंचाई और कृषि संबद्ध गतिविधियों के लिए रखे गये थे। अब पूरा कृषि बजट ही 1.52 लाख करोड़ का है, जो कि इस बार कम-से-कम तीन लाख करोड़ से ज़्यादा होना चाहिए था।

इस बार के बजट में जिस तरह से केंद्रीय वित्त मंत्री ने किसानों को जितना मूर्ख बनाने की कोशिश की है, उसका उतना ही ज़्यादा महिमामंडन सरकारी समर्थक और केंद्रीय मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री योगी ने किया है। मगर किसानों का समझने की कोशिश कोई नहीं कर रहा है और न ही कोई किसानों का भला चाहता है। अगर केंद्र सरकार किसानों का भला चाहती, तो संसद में किसानों का स्वागत करती और उनकी समस्याओं को सुनती। केंद्र सरकार को किसानों की समस्याओं का समाधान करना चाहिए, जिससे उन्हें होने वाला घाटा रुक सके और वे भी ख़ुशहाल जीवन जी सकें। वित्त मंत्री ने कहा है कि केंद्र सरकार 32 फ़सलों की 109 नयी क़िस्में लाएगी। बाज़ार में हर फ़सल की नयी क़िस्में तो ऐसे ही आती रहती हैं। किसानों को नयी क़िस्मों के नाम पर हर फ़सल बुवाई के समय में ठगा जाता है। फ़सलों को बीज लगातार महँगे होते जा रहे हैं। फर्टिलाइजर बीजों के चलते ही तो किसानों की फ़सलें ख़राब होती हैं, जिन्हें ख़राब होने से बचाने के लिए किसानों को मजबूरी में कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ता है। इससे किसानों का पैसा तो बर्बाद होता ही है, फ़सलों की गुणवत्ता भी नष्ट हो जाती है।

इसके अलावा केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती यानी जैविक खेती कराएगी। लेकिन सरकार जैविक फ़सलों का सही भाव तय नहीं कर रही है। अगर किसानों को जैविक फ़सलों का उचित मूल्य मिलेगा, तो किसान जैविक खेती करने के लिए ख़ुद ही प्रोत्साहित होंगे और वे पहले की तरह दोबारा जैविक खेती करने लगेंगे। वित्त मंत्री कह रही हैं कि प्राकृतिक खेती के लिए सरकार ने पिछले बजट से इस बार 21.6 प्रतिशत बजट बढ़ाया है; लेकिन यह नहीं कह रही हैं कि यह बजट पिछले 10 वर्षों में बढ़ती महँगाई और बढ़ती कृषि लागत के हिसाब से नहीं बढ़ा है। बीते 10 वर्षों में खाद, बीज, बिजली और दूसरी कृषि लागत में तीन से चार गुना बढ़ोतरी हुई है, जबकि किसानों को न तो फ़सलों का मूल्य बीते 10 वर्षों के हिसाब से तीन से चार गुना मिला है और न ही कृषि बजट तीन से चार गुना बढ़ा है।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से एक सवाल है कि इस बजट में किसानों को सीधे तौर पर कितनी सौगातें दी गयी हैं? ख़ाली बजट को ऐसे बोल देने से जैसे दुनिया का सबसे बढ़ा बजट हो, काम नहीं चलेगा। कृषि प्रधान देश होने के बाद भी हमारे किसानों को सरकारी फ़ायदा सबसे कम मिलता है। बीमा कम्पनियाँ किसानों का मुआवज़ा हड़प जाती हैं, तो दलाल किसानों का लाभ हड़प जाते हैं। किसानों से हर जगह पर ठगी होती है। उन्हें ऐसे दुत्कारा जाता है। जैसे वे लोगों का पेट भराकर कोई गुनाह कर रहे हों। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार कृषि क्षेत्र के प्रोत्साहन के लिए एग्रीकल्चरल रिसर्च सेटअप करेगी। इससे किसानों को क्या लाभ होगा? कृषि कार्यक्रमों को बंद करके, कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि सम्बन्धी विभागों की दशा बिगाड़कर एग्रीकल्चरल रिसर्च सेटअप से किसानों को लाभ कैसे मिलेगा? क्योंकि किसानों को लाभ तब मिलेगा, जब उनके लिए गाँव-गाँव में कार्यक्रम आयोजित किये जाएँगे और उन्हें सीधे बेहतर कृषि तकनीक की ट्रेनिंग दी जाएगी।

ठीक से समझें, तो इस बजट से न तो किसानों का क़ज़र् माफ़ किया जा रहा है और न ही उनकी फ़सलों को उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का प्रावधान किया गया है। पाँच राज्यों के किसानों को क्रेडिट कार्ड देने और क्रेडिट कार्ड की संख्या बढ़ाने की केंद्र सरकार ने घोषणा की है, जिससे किसानों पर क़ज़र् ही बढ़ेगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह भी नहीं बताया कि इस वित्त वर्ष के बजट के 1.52 लाख करोड़ रुपये में से किस मद में कितने रुपये रखे जाएँगे? क्या क्रेडिट कार्ड के मद में इसी बजट में से रुपये डाले जाएँगे? अगर केंद्र सरकार ऐसा कर रही है, तो यह किसानों के साथ सीधे तौर पर धोखा होगा; क्योंकि सरकार एक तरफ़ किसानों को क़ज़र् दे रही है और उसका हिसाब रख रही है बजट में। इससे बड़ा धोखा क्या होगा?

आगे वित्त मंत्री ने कहा कि प्राकृतिक खेती का सर्टिफिकेशन किया जाएगा। सर्टिफिकेशन से किसानों को कौन-सा भारत रत्न मिल जाएगा? इस पागलपन की जगह सरकार प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को सम्मानित करे, तो उनमें उत्साह बढ़े। वित्त मंत्री कह रही हैं कि देश में 10,000 बायो रिसर्च सेंटर बनाये जाएँगे। बायो रिसर्च सेंटर बनाने का क्या लाभ, जब तक कि बायोगैस को पुनर्जीवित नहीं किया गया है? सरकार को किसानों को बायो गैस और जैविक ईंधन, जैविक खाद के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए। यह तो पुराने और सफल प्रयोग हैं, इन्हें सिर्फ़ पुनर्जीवित करने की ज़रूरत है। लेकिन इसे बढ़ाने के लिए सरकार को पशुपालन बढ़ाने पर ज़ोर देना चाहिए, जिससे बायोगैस, बायो ईंधन और जैविक खाद में बढ़ोतरी हो। लेकिन एक तरफ़ केंद्र सरकार किसानों को पुरानी तकनीक नये लिफ़ा$फे में रखकर परोसना चाहती है और दूसरी ओर सरकार उर्वरक खाद, फर्टिलाइजर बीज और कीटनाशक बनाने वाली कम्पनियों को लाभ पहुँचा रही है। उन्हें बहुत बड़ी सब्सिडी दे रही है। इसके बदले में कम्पनियाँ ईमानदारी का चोला ओढ़े मंत्रियों को क्या लाभ पहुँचाती हैं? इसकी जाँच हो, तो घोटाले ही निकलकर सामने आएँगे।

वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए मदद देगी, जिसे ग्राम पंचायतों के ज़रिये लागू किया जाएगा। क्या यह मदद किसानों को सीधे धन देकर की जाएगी? क्या किसानों को इस मदद के लिए जैविक खाद, जैविक बीज आदि मुफ़्त में बाँटे जाएँगे? ऐसा कुछ नहीं है, तो किसानों को क्या दिया जाएगा? प्राकृतिक खेती करने की बात रही, तो किसान इसमें सक्षम हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि सब्ज़ियों की सप्लाई चेन पर ज़ोर दिया जाएगा। लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि किसानों को सब्ज़ियों का उचित मूल्य दिया जाएगा। किसानों के हाथों से सस्ते में छीनी जाने वाली सब्ज़ियाँ बाज़ार में आठ से 15 गुनी महँगी बिकती हैं। टमाटर का उदाहरण लें, तो किसानों को इस समय टमाटर का अधिकतम मूल्य सात-आठ रुपये किलो का मिल रहा है। बहुत अच्छा टमाटर किसानों से 10-12 रुपये किलो लिया जा रहा है। लेकिन बाज़ार में यही टमाटर 80 से 120 रुपये किलो बिक रहा है। इसमें किसानों को क्या मिल रहा है? क्या वित्त मंत्री को किसानों को सब्ज़ियों का उचित मूल्य दिलाने की बात नहीं करनी चाहिए थी? केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार 400 ज़िलों में फ़सलों का डिजिटल सर्वे कराएगी। इससे क्या लाभ होगा और किसानों को क्या मिलेगा? करोड़ों रुपये डिजिटल सर्वे में ख़र्च कर दिये जाएँगे और उसके बाद किसानों को कुछ नहीं मिलेगा। इससे अच्छा होता कि इतने रुपये से सरकार किसानों का क़ज़र् माफ़ करती।

वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार जलवायु के अनुकूल बीज विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र, विशेषज्ञों को बजट देगी। क्या किसानों को बीज सँभालना नहीं आता? ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार बीज संरक्षण के नाम पर बजट में से काफ़ी बड़ा हिस्सा अपने चहेते लोगों को बाँटना चाहती है। अगर किसानों को ही उसे लाभ पहुँचाना है, तो किसानों को सीधे लाभ क्यों नहीं देती? सरकार किसानों को दिये गये क्रेडिट कार्ड पर तीन लाख तक का क़ज़र् चार प्रतिशत ब्याज दर पर देती है। सरकार को क्रेडिट कार्ड पर एक प्रतिशत वार्षिक ब्याज लेना चाहिए और एक साल के लिए बिना ब्याज के 3,00,000 रुपये देने चाहिए, जिससे ग़रीब और मध्यम वर्गीय किसान इसका सदुपयोग करके अपनी हालत सुधार सकें। वित्त मंत्री ने कहा कि कृषि बजट में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए कोई योजना नहीं है। वित्त मंत्री बताएँगी कि क्या इस बार का कृषि बजट निराशाजनक और दिशाहीन नहीं है? जिस बजट से किसानों को सीधे कोई लाभ नहीं मिलेगा, वो बजट किसानों के किस काम का?