बड़े बड़ों की बुद्धि चकराता, छोटा सा बुद्धू बक्सा

हर गुरुवार की सुबह इंद्राणी मुखर्जी का नाश्ता अपने लैपटॉप पर काम करते हुए होता है. भारत के सबसे नए टेलीविजन प्रसारण समूहों में से एक आईएनएक्स मीडिया की इस तेजतर्रार सीईओ के लिए इस दिन की शुरूआत टैम मीडिया रिसर्च कंपनी द्वारा भेजी गई टेलीविजन कार्यक्रमों की साप्ताहिक रेटिंग्स (टीआरपी) के विश्लेषण से होती है. ये रेटिंग्स इस धंधे के कुछ खिलाड़ियों के लिए अच्छी खबर लेकर आती हैं तो कई दूसरों के लिए बुरी. अच्छी टीआरपी का मतलब होता है ज्यादा विज्ञापन और फलस्वरूप ज्यादा कमाई. दरअसल अपने कॉरपोरेट क्लाइंट्स के लिए विभिन्न मनोरंजन, खेल, समाचार और दूसरे अन्य चैनलों पर कमर्शियल स्पेस खरीदने वाली मीडिया एजेंसियां इन रेटिंग्स पर ही भरोसा करती हैं. बारे में कहा जाता है कि ये दिन के अलग-अलग समय पर किसी चैनल को देख रहे दर्शकों की संख्या को दर्शाती हैं. यानी रेटिंग्स का हफ्ते भर का औसत ये तय करने के लिए काफी होता है कि दौड़ में कौन आगे है और कौन पीछे.

टेलीविजन की दुनिया में आजकल ऐसा बहुत कुछ है जो काम नहीं कर रहा. न गेम शो, न बड़े स्टार और न रटे-रटाए फार्मूले. मार्केट लीडर स्टार प्लस ने शाहरुख खान को लेकर ‘क्या आप पांचवीं पास से तेज हैं’ पेश किया था मगर इसका प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा. ऐसा ही कुछ दूसरे नए शोज के साथ भी हो रहा है. घबराहट में चैनल पुराने फॉर्मूलों का सहारा ले रहे हैं. इनमें से एक है धार्मिक कथाएं. एनडीटीवी इमेजिन नए कलेवर के साथ रामायण दिखा रहा है तो मुखर्जी भी अपने मनोरंजन चैनल नाइन एक्स पर अगले महीने महाभारत का नया स्वरूप लेकर आ रहे हैं. उन्हें यकीन है कि ये उनके लिए तुरुप का इक्का साबित होगा. ‘कहानी हमारे महाभारत की’ के नाम से आने वाले इस धारावाहिक का निर्माण सास-बहू सीरियल्स और के अक्षर से जुड़ाव के लिए मशहूर बालाजी टेलीफिल्म्स द्वारा भव्य स्तर पर किया जा रहा है. मुखर्जी कहते हैं, मैंने इस शो में अपना खून-पसीना लगा दिया है. मुझे यकीन है कि ये सफल रहेगा. आईएनएक्स से जुड़े सूत्रों की मानें तो मुखर्जी का ये ताजातरीन आत्मविश्वास उनके समूह के म्यूजिक चैनल 9एक्सएम की अप्रत्याशित सफलता का परिणाम है जिसने 55 फीसदी दर्शकों के साथ कई सालों से अगुवा रहे एमटीवी को काफी पीछे छोड़ दिया है.

आईएनएक्स को चलाने पर होने वाले 300 करोड़ रुपये सालाना खर्च को देखें तो किसी मनोरंजन चैनल के साथ बाजार में उतरना एक महंगा सौदा लगता है. भारत के कुल टीवीदर्शकों का 35 फीसदी हिस्सा भले ही हिंदी मनोरंजन वर्ग के खाते में जाता हो मगर इसमें भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है. पिछले साल लांच हुए 9एक्स और एनडीटीवी इमेजिन ने स्टार, जी और सोनी जैसे स्थापित खिलाड़ियों के लिए चिंता पैदा कर दी है. मुखर्जी के 9एक्स का कई बार सोनी को पछाड़कर तीसरे स्थान पर काबिज हो जाना यही दर्शाता है कि किसी की भी जगह सुरक्षित नहीं है.

यही वजह है कि इन चैनलों के लिए कार्यक्रम बनाने वाले प्रोडक्शन हाउसों के भी पसीने छूट रहे हैं. चैनलों पर अच्छी रेटिंग्स को बनाए रखने का दबाव होता है और वो भी इन प्रोडक्शन हाउसों पर उतना ही दबाव बना कर रखते हैं. एक वक्त था जब बालाजी टेलीफिल्म्स किसी एपीसोड की कैसेट उसके प्रसारण से कई हफ्ते पहले ही स्टार प्लस को सौंप देता था मगर अब इस कंपनी के एक प्रोड्यूसर के शब्दों मेंप्रसारण के एक दिन पहले तक हम से बदलावों के लिए कहा जाता है. दबाब वाकई में बहुत बढ़ गया है.

खेल चैनलों को मिला दें तो टीवी प्रसारण उद्योग के 22,000 करोड़ रुपये सालाना कारोबार (गौर करें कि हिंदी फिल्म उद्योग का वार्षिक कारोबार 9000 करोड़ रुपये का है.) का 72 फीसदी हिस्सा मनोरंजन चैनलों से आता है. वर्तमान में हिंदी के 11 मनोरंजन चैनल मैदान में हैं. जुलाई में वायाकॉम और नेटवर्क 18 का संयुक्त उपक्रम वायाकॉम 18 अपना चैनल कलर्स लांच कर रहा है. इसके साथ ही दो और नए चैनल भी जल्द ही इस बाजार में छलांग लगाने की तैयारी में हैं.

मगर इसके बावजूद ये जानना लगातार मुश्किल होता जा रहा है कि दर्शक क्या पसंद करेंगे और क्या नहीं. 90 के दशक की शुरुआत में स्टार इंडिया के लांच में अहम भूमिका निभाने वाले और विज्ञापन जगत के तजुर्बेकार रोहिंतन मालू कहते हैं, दर्शकों के सोचने का तरीका बदल गया है. आप आज शोले बनाएं और वो डूब जाएगी. मालू की राय में हिंदी मनोरंजन चैनलों में अब तक तीन चीजें सफल रही हैं—अमिताभ बच्चन का कौन बनेगा करोड़पति, के से शुरू होने वाले सास-बहू धारावाहिक और आईपीएल. वो कहते हैं, इसके अलावा सब कुछ असफल रहा है.

जानी-मानी विज्ञापन एजेंसी देंत्सू इंडिया के मुखिया संदीप गोयल कहते हैं, कोई भी विज्ञापन एजेंसी ऐसी नहीं है जिसे पांचवीं पास…की असफलता से झटका न लगा हो. वक्त आ गया है कि पुराने फॉर्मूलों को छोड़ दिया जाए. किसी शो को सिर्फ इसलिए न बनाया जाए कि वह 16 देशों में सफल रहा है. हो सकता है कि ये भारत में काम न करे जी नेटवर्क के पूर्व सीईओ गोयल कहते हैं कि मनोरंजन चैनल देखादेखी की होड़ में पड़कर स्थितियां खुद ही बिगाड़ रहे हैं. वो कहते हैं, कोई रियलिटी शो हिट हुआ नहीं कि सारे के सारे उसके पीछे पड़ जाते हैं. अब एनटीटीवी इमेजिन को रामायण से थोड़ी सफलता क्या मिल गई कि हर कोई धार्मिक कथाओं की तरफ दौड़ रहा है. चैनलों में सृजनात्मकता की नहीं बल्कि हिम्मत की कमी है.

विडबंना देखिए कि दूसरे मनोरंजन चैनलों को नकलची कहने वाले स्टार इंडिया के सीईओ उदयशंकर ने 2007 में अपना कार्यभार संभालने के बाद जब सबसे बड़ा शो लांच करने की सोची तो पांचवीं पास…को चुना जो अमेरिका स्थित फॉक्स इंटरटेनमेंट के आर यू स्मार्टर देन अ फिफ्थ ग्रेडर की नकल था. शंकर को भारत के सबसे सफल टीवी न्यूज हेड के तौर पर देखा जाता है. सात साल पहले उन्होंने आज तक लांच कर इसे हिंदी समाचार चैनल जगत का नंबर वन खिलाड़ी बना दिया था. फिर 2004 में उन्होंने स्टार न्यूज की कमान संभाली जो एनडीटीवी के अलग होने के बाद लड़खड़ा रहा था. जल्द ही उन्होंने इसको भी चोटी तक पहुंचा दिया. दोनों ही मामलों में शंकर ने नकल की बजाय नए विचारों और सूझबूझ भरी रणनीतियों के सहारे दूसरे प्रतिद्वंदियों को पटखनी दी. 

तो इसमें कोई संदेह नहीं कि जीत का जादुई मंत्र है हिम्मत और लीक से हटकर सोच. कई साल पहले स्टार की प्रोग्रामिंग को देखने के लिए मीडिया दिग्गज रूपर्ट मर्डोक जब भारत आए तो उन्हें एक शो की कुछ झलकियां दिखाईं गईं. इसका नाम था कौन बनेगा लखपति. मर्डोक ने पूछा कि एक लाख रुपये में कितने डालर होते हैं. जवाब सुनकर उन्होंने फौरन कहा कि ईनाम की राशि को बढ़ाकर एक करोड़ रुपये कर दीजिए और इस तरह शो का नाम फिर से रखा गया कौन बनेगा करोड़पति. इसके बाद तो सब इतिहास ही है. 2000 में लांच हुआ केबीसी भारतीय टेलीविजन के इतिहास में मील का पत्थर बन गया है. नेटवर्क 18 के सीईओ जुबीन ड्राइवर कहते हैं, कहानी का सबक ये है कि रेटिंग्स बढ़ाने के लिए एक स्टार जरूर लाइये मगर उसे एक अच्छी स्क्रिप्ट भी दीजिए.” जुबीन का चैनल कलर्स फियर फैक्टर पर आधारित एक शो लेकर आ रहा है. इसका नाम होगा खतरों के खिलाड़ी और इसे पेश करेंगे अक्षय कुमार. जुबीन कहते हैं, एक शो किसी मैकबर्गर की तरह होना चाहिए जिसमें भरी चीजें आपको इसे खाने को ललचा दें. ख़बर है कि वायकॉम 18 ने अक्षय कुमार के साथ एक महीने के शूट के बदले उन्हें 40 करोड़ रूपए का मेहनताना दिया है.

विज्ञापनादाताओं की मोटी रकम दांव पर लगी होती है लिहाजा ये स्वाभाविक ही है कि उनकी तरफ से प्रसारणकर्ताओं पर कार्यक्रम की बेहतर टीआरपी का जबर्दस्त दबाव बना रहता है. इस समय टेलीविज़न उद्योग में अंदेशों का जो माहौल है उसकी वजह ये भव्य कार्यक्रम हैं जिन्हें बड़े बड़े दावों के साथ लॉन्च किया गया पर अपने लंबे चौड़े बजट व प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जबर्दस्त प्रचार अभियानों के बावजूद वे असफल रहे

कुछ प्रसारणकर्ता स्वीकार करते हैं कि फिल्मी सितारों का फार्मूला असफल रहा है. जी टेलीफिल्म के बिजनेस हेड तरुन मेहरा कहते हैं, मैं इस बात से सहमत हूं कि एक सीमा के बाद दर्शकों के मन में उकताहट घर करने लगती है. शो में सिर्फ स्टार की मौजूदगी भर से काम नहीं चलता. इससे अनूठापन सीमित हो जाता है. मेहरा ज़ी के सफल संगीत शो सा रे गा मा पा की ओर इशारा करते हैं जिसकी खुल्लमखुल्ला नकल सभी चैनलों ने की. ज़ी चैनल के को-ऑर्डिनेटर संतोष नायर कहते हैं, दबाव बहुत ज्यादा है क्योंकि जादू की छड़ी चैनलों के पास नहीं बल्कि दर्शकों के पास है.

एंकरिंग फीस के अलावा प्रोडक्शन लागत भी बहुत ज्यादा हो गई है. चैनल वी के उपाध्यक्ष सौरभ कंवर कहते हैं, आप एक साथ कई कैमरों के साथ काम करते हैं जो लगातार चलते रहते हैं साथ ही कुशल प्रोडक्शन टीम भी होती है. इसका मतलब होता है कि पोस्ट प्रोडक्शन में भी मोटी रकम खर्च होगी।

दर्शकों को खींचने और रेटिंग राजस्व के दबाव में चैनल्स लगभग सारे हथकंडे इस्तेमाल कर रहे हैं. एनडीटीवी एमेजिन का उदाहरण लें इसने यूटीवी सॉफ्टवेयर कम्युनिकेशन के साथ अपने बहुप्रचारित कार्यक्रम रामायण के दक्षिण भारत में प्रसारण के लिए समझौता किया. यूटीवी ने सन टीवी (तमिल), जेमिनी टीवी (तेलगू) और सूर्या टीवी (मलयालम) पर इस धार्मिक सीरियल के डबिंग अधिकार हासिल करने के लिए न्यूनतम गारंटी रकम जमा की है. यूटीवी सीओओ अजित ठाकुर कहते हैं, ये बौद्धिक संपदा अधिकारों के साथ एक तरह का प्रयोग है. इस समझौते में तीन पक्ष शामिल हैं. यूटीवी ने रामायण के अधिकार हासिल किए और उसका न्यूनतम गारंटी मूल्य अदा किया. एनडीटीवी इमैजिन को अपने हिस्से की रकम मिल जाएगी, और सन टीवी को रामायण जैसा सफल कार्यक्रम मिल जाएगा वो भी बिना किसी प्रोडक्शन लागत के. इसके अतिरिक्त एनडीटीवी इमैजिन को हमारी आय से भी कुछ हिस्सा मिलेगा लेकिन तब जब हमारी आय एक निश्चित सीमा तक पहुंच जाएगी.

सितारों से भरे कई कार्यक्रम विषयवस्तु की नवीनता के अभाव के चलते विज्ञापनदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं. माइंडशेयर के एमडी आर गॉथमैन  कहते हैं, अंतत: जिन कार्यक्रमों के साथ एक निश्चित मार्केटिंग योजना होगी विज्ञापनदाता उन्हीं को तरजीह देंगे. गॉथमैन संकेत देते हैं कि जिन सास-बहू सीरियल्स की रेटिंग तीन या चार साल पहले चोटी पर हुआ करती थी आज वो गिर गई है. वो कहते हैं, अगर एक चैनल में विविधता है और उसके कार्यक्रम सहज होकर देखे जा सकते हैं तो दर्शक उसकी तरफ खिंच सकते हैं.

चैनल इस बात को भली-भांति समझते हैं.