कल तक सत्तारूढ़ होकर जिनका दिल बाग बाग था, आज उनके हाथों से सत्ता की बागडोर पूरी तरह से छूट चुकी थी. ऐसा क्यों हुआ इसकी वजह को इस चिंतन शिविर में खोजा जाना था. सब महारथी आ चुके थे सिवा आलाकमान के.
आलाकमान के सबसे विश्वासपात्र जिन्हें आदरपूर्वक सब दद्दा कहते थे, ने चिंतन शिविर की कमान अपने हाथों में ली और कुर्सी पर पोज बदलते हुए बोले, ‘हम अपनी बात पहुंचा नहीं पाए…’ यह बोल कर उन्होंने कुर्सी पर अपने बैठने के पोज को एक बार फिर बदला. चिंतन शिविर में थोड़ी देर शांति छाई रही. जो जिसके पास बैठा था, वह वहीं से अपने निकट बैठे चिंतन के लिए आए चिंतक से मिलकर चिंतन करने लगा. अर्थात एक चिंतन शिवर में कई चिंतन शिविर हो गए.
चिंतन शिविर एक- ‘झटका तो हम सबको लगा है, मगर दद्दा को कुछ ज्यादा जोर से लगा है! बेचारे ठीक से बैठ नहीं पा रहे हैं. पोज पर पोज बदले जा रहे हैं.’ ‘नहीं ऐसी बात नहीं है, उन्हें बवासीर की शिकायत है न इसलिए.’ ‘अरे कभी पता नहीं चला..’ ‘जब तक सत्ता में थे तब तक कांटों का ताज सिर पर था न!’
चिंतन शिविर दो- ‘दद्दा ने कहा, हम अपनी बात पहुंचा नहीं पाए. मैं समझ ही नहीं पा रहा हूं कि क्या बात पहुंचानी थी!’ ‘अपनी उपलब्धियों को… अच्छाइयों को… और किसको!’ ‘हूंउ, घर-घर हमारे उम्मीदवार पहुंच गए, मगर हमारी बात नहीं पहुंची! कमाल करते हो!’
चिंतन शिविर तीन- ‘विरोधियों ने जबरदस्त प्रचार किया…’ ‘उनकी मार्केटिंग अच्छी रही, यहीं हम मात खा गए.’ ‘भईया आज मार्केटिंग का ही जमाना है, मार्केटिंग अच्छी हो तो कूड़ा भी सोने के भाव बेचा जा सकता है…’ ‘मैं तो पहले ही कह रहा था कि विज्ञापन एजेंसी बदल लो, मगर मेरी किसी ने सुनी ही नहीं! अब भुगतो!’ ‘विज्ञापन एजेंसी की अक्षमता के कारण ही हमारी यह दुर्गति हुई है! पता नहीं किस अनाड़ी ने ठेका दे दिया था इसको!’ ‘कमीशन खाया होगा सालों ने!’
चिंतन शिविर चार- ‘सही कहते है ज्ञानी लोग, जनता जनार्दन होती है!’ ‘हां कहेंगे क्यों नहीं… आपकी सांसदी जो बच गई!’ ‘और तुम्हारी जमानत तक जब्त हो गई.’ ‘खूब मजा लिजिए!’ ‘बुरा मत मानो यार! नर हो न निराशा करो मन को…’ ‘नर हो न निराशा करो… कहना आसान है. क्या आपको मालूम नहीं, बिना कुर्सी के हम खर (गधा) हैंै निरा खर.’
एक बार फिर शिविर में आलाकमान के विश्वासपात्र की कंपकंपाती आवाज सुनाई दी, ‘हम अपनी बात पहुंचा नहीं पाए..’ यह सुनते ही सारे चिंतकों के मुंह हाथी की सूंढ़ की तरह लटक गए. तभी एक संदेशवाहक चिंतन शिविर में प्रकट हुआ. और प्रकट होते ही उसने एक अप्रत्याशित खबर चिंतकों को सुनाई, ‘साथियों! यहां चिंतन शिविर में आने से पहले आलाकमान ने खूब चिंतन किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए. यह विचार आते ही फौरन उन्होंने अपने आपको इस्तीफा प्रस्तुत कर दिया.’
यह खबर सुनते ही चिंतन शिवर में रोना-पीटना शुरू हो गया. कुछ अपने बाल नोचने लगे. कुछ अपने कपड़े फाड़ने लगे. दृश्य कुछ ऐसा बन पड़ा लगा कि अभी ही सारे चिंतक मारे चिंता के मर जाएंगे. स्थिति को भांपते हुए संदेशवाहक त्वरित गति से बोला, ‘धैर्य रखें! अभी आप सबके सामने मैं अपूर्ण सूचना प्रेषित कर पाया हूं. अत: आप से अनुरोध है कि कृपया आगे की सूचना सुन लें.’ सारे चिंतकों की सांसे थम गई.
संदेशवाहक उवाचा, ‘इस्तीफा देने के बाद आलाकमान ने पुन: घोर चिंतन किया और उसके पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस्तीफा देना किसी बात का हल नहीं. अत: उन्होंने अपना इस्तीफा अपने आप से वापस ले लिया.’
यह खबर सुनते ही चिंतकों की जान में जान आई और उन्होंने पुन: पूरे जी जान से चिंतन शिविर में चिंतन करना शुरू कर दिया.