आम चुनाव-2024 से पहले केवल कुछ सप्ताह बचे होने पर भारत के चुनाव आयोग ने कहा कि वह जिसे ‘4एम’- बाहुबल, धनबल, ग़लत सूचना और आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन, के रूप में वर्णित करता है; उससे निपटने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। हालाँकि इस बात पर अस्पष्टता बनी हुई है कि चुनाव आयोग बड़े पैमाने पर बूथ कैप्चरिंग की परेशान करने वाली वास्तविकता से कैसे निपटेगा?
‘तहलका’ की आवरण कथा ‘पैसे के लिए बूथ कैप्चरिंग’ जम्मू-कश्मीर में बूथ कैप्चरिंग और अन्य चुनावी गड़बड़ियों को उजागर करती है। ऐसा नहीं है कि बूथ कैप्चरिंग केवल जम्मू-कश्मीर तक ही सीमित है, बल्कि यह घिनौनी गाथा यह उजागर करती है कि कैसे अराजक तत्त्व पैसों के बदले मतदान केंद्रों पर क़ब्ज़ा करने के लिए सक्रिय हैं। बूथ कैप्चरिंग सहित चुनाव प्रबंधन में मँझे हुए एजेंट्स को ‘तहलका’ की विशेष जाँच टीम ने बूथ पर क़ब्ज़ा करके और वास्तविक मतदाताओं के स्थान पर फ़र्ज़ी मतदान करके धोखाधड़ी के ज़रिये उन्हें पैसा देने वाले उम्मीदवारों को जीत की गारंटी देने का वादा करते हुए कैमरे पर रिकॉर्ड किया है।
एजेंट्स दावा करते हैं कि उन्होंने अतीत में कई चुनावों में परिणामों को प्रभावित करने के लिए बाहुबल का इस्तेमाल किया है। ऐसे ही एक एजेंट ने दावा किया- ‘पैसे के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ। मैंने पिछले चुनावों में बूथ कैप्चरिंग की थी। ऐसे ऑपरेशनों की लागत हर बूथ पर अलग-अलग होती है। बूथ के आकार के आधार पर यह राशि एक लाख से दो लाख तक हो सकती है, या पाँच लाख और 10 लाख तक भी बढ़ सकती है। कश्मीर में जब उम्मीदवारों को पता चलता है कि वे चुनाव हार रहे हैं, तो वे पथराव का सहारा लेते हैं। वे युवाओं को पत्थर फेंकने के लिए नियुक्त करते हैं, जिसके बाद उनके समर्थक बूथों पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं।‘ इस ख़ुलासे के साथ ‘तहलका’ ने 4एम पर एक खोजी शृंखला शुरू की है, जिसकी शुरुआत इस संस्करण में बाहुबल पर केंद्रित है।
चुनावी बॉन्ड और भ्रष्टाचार पर हमारी दूसरी स्टोरी कॉर्पोरेट-राजनीतिक साँठगाँठ को सबसे बड़े बदले में घोटालों में से एक दूसरे रूप को उजागर करती है, जो कॉर्पोरेट व्यावसायिक घरानों से चंदा प्राप्त करने से पहले और बाद में बड़े सरकारी अनुबंधों को देने में कथित धन के लेन-देन को भी उजागर करती है। हाल ही में सीबीआई द्वारा दायर की गयी क्लोजर रिपोर्ट और नेशनल एविएशन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा विमान पट्टे पर देने में कथित अनियमितताओं में पूर्व केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री को क्लीन चिट देना संदेह पैदा करता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पूर्व नेता कुछ महीने पहले सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गये थे और अब जाँच एजेंसी को किसी भी ग़लत काम का कोई सुबूत नहीं मिला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री का यह आरोप कि 2023 में शराब नीति मामले में अनुमोदक ने ईडी द्वारा गिरफ़्तार किये जाने के बाद चुनावी बॉन्ड के माध्यम से सत्तारूढ़ दल को 55 करोड़ रुपये से अधिक दिये, जनहित में इसकी जाँच होनी चाहिए।