आज हम ऐसी सरल-सी लगने वाली बेहद कठिन बीमारी की बात करेंगे जिसे डॉक्टर ‘हाईपोनेट्रीनिया’ (खून में नमक तत्व या सोडियम की कमी) कहते हैं. सुनने में सरल-सा लगता है.
रक्त में सोडियम कम हो गया है तो नमक खिलाकर या ‘सेलाइन’ की बोतल चढ़ाकर इसे ठीक भी कर लिया जा सकता है. पर बात ऐसी तथा इतनी सरल नहीं. बीमारी इतनी छोटी भी नहीं. जानलेवा तक हो सकती है. इसकी डायग्नोसिस करना, फिर कारणों की तह तक जाकर सही निदान खोजना, फिर इलाज तय करना-यह सब बेहद जटिल काम है. जब तक शरीर की बायोकेमिस्ट्री तथा गुर्दों, हार्मोंस, रक्त प्रवाह आदि की गहन जानकारी न हो, तब तक ‘हाइपोनेट्रीमिया’ को समझना किसी डॉक्टर के लिए भी एक चुनौती ही है. यह डॉक्टरों के लिए भी कठिन विषय है. इससे जुड़े प्रश्न प्राय: इसीलिए पूछे जाते हैं ताकि परीक्षा में चिकित्सा क्षेत्र को फेल किया जा सके- कम से कम हम लोग तो अपने छात्र जीवन में ऐसा ही मानते थे. अब इसी कठिन बात को मैं अपने सामान्य पाठकों को आज किस तरह समझा पाता हूं, यह भी देखने वाली बात होगी.
कहते हैं कि पंचतत्व मिल बना शरीरा! पांच तत्वों में से एक महत्वपूर्ण तत्व जल है. हमारे शरीर का 50 से 60 प्रतिशत वजन पानी ही है. महात्मा यो-यो हनी सिंह जी यूं ही नहीं गा रहे कि ‘पानी, पानी, पानी, पानी’ – वास्तव में हम आप बस पानी ही से बने हैं. यह पानी शरीर में सब तरफ है. शरीर की हर कोशिका (सेल) में पानी भरा है. कोशिकाओं के बीच भी पानी ही है. और रक्त के साथ हमारी रक्त नलिकाओं में भी पानी ही बह रहा है. कोशिकाओं के अंदर जो पानी है, उसमें पोटेशियम तत्व घुला है. कोशिकाओं के बाहर (रक्त नलिकाओं में, और कोशिकाओं के बीच) जो पानी भरा है, उसमें मुख्यत: सोडियम घुला है. सोडियम और पोटेशियम शरीर के हर काम के लिए अत्यंत आवश्यक हैं. यहां हम बस सोडियम की ही चर्चा करेंगे वर्ना बात इतनी जटिल हो जाएगी कि आपके अलावा मुझे भी अपनी नानी याद आ जाएंगी.
रक्त में प्रवाहित हो रहा सोडियम एक निश्चित मात्रा से कम हो या बढ़ जाए तो यह स्थिति गंभीर बीमारी पैदा कर सकती है. रक्त में सोडियम 135 के स्तर से नीचे गया तो यह हाइपोनेट्रीनिया कहलाता है. पर यह कम क्यों होगा? कई बीमारियां, दवाइयां तथा स्थितियां ‘हाइपोनेट्रीमिया’ पैदा कर सकती हैं. मूल बातें दो रहेंगी. एक कि यदि किसी कारण शरीर में पानी की मात्रा तो बढ़ जाए पर नमक की मात्रा वही रहे तो पानी में नमक का घोल डाइल्यूट या पतला हो जाएगा. दूसरी बात यह हो सकती है कि शरीर से नमक निकल जाए और शरीर को नमक न मिले, बस प्यासा होने पर आदमी पानी पीता जाए- सो पानी ही मिलता रहे- तो भी रक्त में बह रहा घोल कम नमक वाला (कम सोडियम वाला) हो जाएगा. ऐसा कई बीमारियों मेंं हो सकता है खासकर बुढ़ापे में. मानसिक रोगियों में. गुर्दे की बीमारी में. कई ब्लडप्रेशर आदि की दवाइयों में भी. एक सामान्य सा उदाहरण देता हूं. मान लें कि आपको खूब दस्त हो रहे हों. उल्टी दस्त में आपके शरीर से पानी तथा साल्ट दोनों निकलते जाएंगे. इससे आपको बहुत प्यास लगेगी. या धूप में घूम-घूम कर बहुत पसीना निकल गया. प्यास है. पर इन स्थितियों में यदि केवल खूब पानी ही पीते गए साथ में यदि नमक नहीं लिया तो शरीर में बह रहे रक्त के पानी में नमक की कमी हो जाएगी. कभी डॉक्टर ने दस्त के मरीज को मात्र ग्लूकोज ही चढ़ा दिया, सेलाइन नहीं- तब भी यह स्थिति आ सकती है.
मान लें कि ‘हाइपोनेट्रीमिया’ हो ही गया तो मरीज को क्या-क्या होगा? हाइपोनेट्रीमिया के कारण मुख्यत: मस्तिष्क की कोशिकाओं में सूजन आने लगती है. इसीलिए ऐसे मरीज को मुख्यत: न्यूरोजिकल लक्षण प्रकट होते हैं. सिर दर्द, जी मितलाने और थकान से बात शुरू होगी. यदि डॉक्टर ने सही कारण नहीं पकड़ा तो धीरे-धीरे मरीज होश खोने लगेगा. उनींदा रहेगा. फिर पूरा बेहोश भी हो सकता है. उसे मिर्गी जैसे दौरे तक आ सकते हैं जो दिमागी सूजन बेहद बढ़ जाने के द्योतक हैं. यदि इस स्टेज पर भी डॉक्टर को बात नहीं समझ आई और वह बेहोशी को स्ट्रोक, लकवा आदि मानकर चलता चला गया तो मरीज की मृत्यु तक हो सकती है. देखने में छोटी सी सोडियम की इत्ती-सी कमी जान ले सकती है.
हां, यदि समय पर सही डायग्नोसिस बन गई तो पूरा इलाज संभव है. पर मुसीबत यह है कि यह बीमारी प्राय: बड़े ही धीमे धीमे, बिना अन्य किसी चेतावनी के आती है. एक बूढ़ा आदमी कुछ समय से थका थका, सोया सा रहता है- और हम मानते है कि यह सब तो बुढ़ापे में होता ही रहता है. डॉक्टर भी यह मान लेते हैं. (हाइपोथायरायड) के मरीज, डिप्रेशन आदि मानसिक बीमारी के रोगी- यूं ही थके, सोये रहते हैं. वे कब हाइपोनेट्रीमिया में चले गए, पता ही नहीं चलता.
ब्लडप्रेशर में दी जाने वाली कुछ बेहद पापुलर दवाइयां भी धीरे-धीरे हाइपोनेट्रीमिया पैदा कर सकती हैं. डॉक्टर यदि अलर्ट नहीं है तो वह ये दवाइयां जारी रखेगा तथा हाइपोनेट्रीमिया जानलेवा हद तक बढ़ जाएगा. हाइपोनेट्रीमिया का खतरा दुतरफा है, बल्कि तितरफा- एक तो यह कि प्राय: आमजन को इसकी बिल्कुल खबर नहीं है, फिर रक्त में सोडियम लेवल की सटीक तथा विश्वसनीय जांच की व्यवस्था वाली पैथलेब केवल बड़े शहरों में हैं, और तीसरी सबसे खतरनाक बात यह कि प्राय: डॉक्टरों को भी इसकी डायग्नोसिस तथा सही-सही इलाज का सही-सही पता नहीं है. यह मात्र खाने में नमक बढ़ाने से, सेलाइन चढ़ाने से या कोई फैंसी दवा देने से ठीक नहीं हो जाएगी.
फिर क्या करें?
बस, याद रखें कि यदि मरीज बिना किसी जायज कारण के बेहोश-सा, या बेहोश ही हो रहा है, तो यह भी एक कारण हो सकता है. डॉक्टर यदि हाइपोनेट्रीमिया की डायग्नोसिस बोले तो उसकी गंभीरता को समझें. डॉक्टर को ही शेष सब समझने दें. अच्छा डॉक्टर चुनकर सब उस पर छोड़ दें.
भगवान भला करेगा. भगवान के पास और कोई चारा नहीं. न ही आपके पास.