सुखबीर सिंह बादल की सज़ा और पंजाब की सियासत

पंजाब की सियासत में क़रीब एक-डेढ़ दशक से पिछले तीन साल पहले तक बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। इस सियासत ने पंजाब के राजनीतिक क़द्दावरों का समय ही ख़त्म कर दिया। इसमें सबसे बड़ा योगदान सिख धर्म के उन ज़्यादातर लोगों का है, जो अपने समाज में बुराई और भ्रष्टाचार को नहीं पनपने देना चाहते। सिख धर्म के सबसे बड़े न्याय मंच अकाल तख़्त की इसमें सबसे बड़ी भूमिका रही है। अपने धर्म के भटके हुए लोगों को सही रास्ते पर लाना इस धार्मिक न्यायालय की पहली प्राथमिकता है। श्री अकाल तख़्त साहिब अपने धर्म के उन लोगों को सज़ा का आदेश देता है, जो धर्म के ख़िलाफ़ जाकर सिख समाज को किसी प्रकार का कोई नुक़सान पहुँचाते हैं या सिख धर्म के धर्म ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करते हैं। श्री अकाल तख़्त साहिब के पंच परमेश्वर सिख धर्म के हर छोटे-बड़े व्यक्ति को एक नज़र से देखते हैं और दोषियों को बिना उनकी हैसियत देखे सज़ा सुनाते हैं। पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय ज्ञानी जैल सिंह तक को श्री अकाल तख़्त साहिब ने सज़ा सुनायी है। श्री अकाल तख़्त साहिब द्वारा दी गयी इस सज़ा में सुखबीर सिंह बादल को तनखैया क़रार दिया गया। सिख धर्म की सर्वोच्च न्यायसंस्था श्री अकाल तख़्त साहिब को यह अधिकार होता है कि अगर कोई सिख व्यक्ति धर्म के हिसाब से नहीं चलता है, तो उसे तनखैया घोषित किया जाता है, जो कि एक अपमानजनक उपाधि है। किसी को तनखैया घोषित करने के बाद कोई भी सिख उस सज़ायाफ़्ता व्यक्ति से किसी भी प्रकार का रिश्ता नहीं रखता है। यानी उस व्यक्ति और उसके परिवार का समाज से बहिष्कार कर दिया जाता है। अब तीन दशक तक पंजाब की सत्ता पर शासन करने वाले पंजाब के सबसे अमीर बादल परिवार के मुखिया और पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को भी दोषी पाते हुए अकाल तख़्त ने धार्मिक सज़ा दी। यह सज़ा ऐसे समय में दी गयी, जब सुखबीर सिंह बादल के पैर में फ्रैक्चर था और प्लास्टर चढ़ा हुआ था। अकाल तख़्त साहिब द्वारा सुनायी गयी धार्मिक सज़ा भुगतने के लिए सुखबीर सिंह बादल ने कई गुरुद्वारों में सेवा की। उन्हें कहीं टॉयलेट साफ़ करनी पड़ी, कहीं बर्तन माँजने पड़े, कहीं सफ़ाई करनी पड़ी, कहीं लंगर सेवा करनी पड़ी, तो कहीं गार्ड की तरह पहरेदारी करनी पड़ी। सभी सज़ाओं को भुगतने के बाद उन्हें संकीर्तन सरवन करने का अवसर दिया गया।

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बहरहाल, सिख धर्म में श्री अकाल तख़्त साहिब द्वारा किसी भी सिख धर्म के व्यक्ति को सज़ा देने की कुछ ख़ास वजहें होती हैं, जिनमें उस व्यक्ति द्वारा सिख क़ौम को किसी तरह का नुक़सान पहुँचाना, किसी किस्म का नीचता भरा काम करना और गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करना। जब कोई सिख ऐसी कोई ग़लती करता है, जिसके लिए सिख धर्म में माफ़ी नहीं है, तो श्री अकाल तख़्त साहिब के जत्थेदार और पंज सिंह साहिब उस व्यक्ति की जाने-अनजाने में की हुई उन ग़लतियों के लिए सज़ा का फ़रमान सुनाते हैं। अकाली दल, जो कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का ही हिस्सा है, उसके वरिष्ठ अकाली नेताओं के लिए भी इसी तरह की धार्मिक सज़ा, जो कि सेवा कराकर पूरी की जाती है, उसका आयोजन किया गया। श्री अकाल तख़्त साहिब द्वारा मुक़र्रर यह सज़ा एक प्रकार के पश्चाताप और माफ़ी माँगने के लिए सुनायी जाती है। इस बार तख़्तों के पंच सिंह साहिबों ने पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल और उनकी सरकार में रहे कई मंत्रियों को सज़ा का फ़रमान सुनाया था। ये सज़ा बादल सरकार में बादल परिवार और उनके क़रीबी मंत्रियों द्वारा 2007 से 2017 तक पंजाब में तत्कालीन शिरोमणि अकाली दल की सरकार के दौरान की गयी ग़लतियों के लिए सुनायी गयी। उस समय सुखबीर सिंह बादल के पिता प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री हुआ करते थे। इस सज़ा में सुखबीर सिंह बादल के अलावा पूर्व अकाली मंत्री एवं पूर्व सांसद सुखदेव सिंह ढींडसा को भी सज़ा मिली। इससे पहले डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम को भी श्री अकाल तख़्त साहिब ने सज़ा सुनाने का मन बनाया था; लेकिन बाद में डेरा प्रमुख को सिख धर्म से ही बाहर कर दिया था। बताते हैं कि उस समय अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए भी डेरा प्रमुख को माफ़ी दिलवा दी थी। हालाँकि इसके बाद अकाली दल और शिरोमणि कमेटी के नेतृत्व से सिख धर्म के लोग काफ़ी नाराज़ हुए और अंत में श्री अकाल तख़्त साहिब ने डेरा मुखी को माफ़ी देने का फ़ैसला वापस लिया।

दरअसल बादल परिवार की एक बहुत बड़ी ग़लती गुरु गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी भी है, जो साल 2015 में सुखबीर सिंह बादल ने गृह मंत्री रहते हुए की और परी बरगाड़ी मामले में न्याय नहीं किया। दरअसल, कुछ अराजक तत्त्वों ने बुर्ज जवाहर सिंह वाला (फ़रीदकोट) के गुरुद्वारा साहिब से 1 जून 2015 को श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ चुराने के मामले और फिर दोबारा अराजक तत्त्वों के द्वारा बरगाड़ी (फ़रीदकोट) के गुरुद्वारा साहिब से 12 अक्टूबर 2015 को श्री गुरु ग्रंथ साहिब के 110 अंग चुराकर बाहर फेंकने के मामले में भी अकाली दल की सरकार ने न इस मामले की जाँच की और न दोषियों को ही कोई सज़ा हुई। गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की इन दो बड़ी घटनाओं से पंजाब में हालात और भी बिगड़ गये, जिससे कोटकपूरा और बहबल कलां में भी दुखद घटनाएँ हुईं। इसके बावजूद अकाली दल की पंजाब सरकार ने सुमेध सैनी को पंजाब का डीजीपी नियुक्त कर दिया, जिसने पंजाब में फ़र्ज़ी पुलिस मुठभेड़ों को जमकर अंजाम दिया, जिसमें सबसे ज़्यादा एनकाउंटर सिख युवाओं के किये गये। इसके साथ ही पंजाब में आलम सेना का गठन करने वाले पूर्व डीजीपी इजहार आलम की पत्नी को अकाली दल ने मुख्य संसदीय सचिव बना दिया।

बहरहाल, पंजाब की राजनीति का पतन कुछ बादल परिवार की अकाली सरकार और कुछ अमरिंदर सिंह की सरकार में हुआ, बताया जाता है कि उसके पीछे पंजाब में अनैतिक गतिविधियाँ चलाने और पंजाब के ज़्यादातर युवाओं को बर्बाद करने के रास्ते खोलना था। नशे से लेकर बाहरी लोगों को पंजाब में बसाने और उन्हें नक़ली सिख बनाकर उनका ग़लत इस्तेमाल करने जैसे काम जिस प्रकार से अकाली दल सरकार में हुए, उससे सिख धर्म के लोगों का $गुस्सा अकालियों के प्रति बढ़ता चला गया। दरअसल, सिख धर्म का मुख्य मार्ग सर्वत्र की सेवा और सर्वत्र का भला वाला मार्ग है, जिसमें सबसे पहली सीख है- दुखियों की सेवा करना। सिख धर्म के लोग किसी से नफ़रत नहीं करते, बल्कि समता का भाव रखकर हर धर्म की इज़्ज़त करना गुरु ग्रंथ साहिब का हुक्म है। लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि सिख धर्म में कोई बाहरी दख़ल दे या उसकी बेअदबी करे। और पिछले कुछ दशकों में सिख धर्म के साथ ऐसा ही बर्ताव हुआ है, जिसमें आज की नयी राजनीति गुरुद्वारों में मंदिर खोजने तक जा पहुँची है।

दरअसल, पंजाब एक खेती सम्पन्न राज्य है और इस अकेले राज्य में न सिर्फ़ खेती से, बल्कि बाहर से भी बहुत पैसा आता है। सिख परंपरा के मुताबिक, सिख धर्म के लोग गुरुद्वारों में दान के अलावा दूसरों की सेवा को प्राथमिकता देते हैं। उनकी सेवा बिना किसी भेदभाव के हर धर्म के लोगों के लिए समान रूप से चलती है, यही वजह है कि गुरुद्वारों के दरवाज़े हर किसी के लिए खुले रहते हैं। सिखों के पहले धर्मगुरु गुरु नानक देव से लेकर उनके आख़िरी और 10वें धर्मगुरु गुरु गोबिंद सिंह तक सभी ने परसेवा और समाज सुधार को प्राथमिकता दी। लेकिन अकाली दल की सत्ता आने के बाद पंजाब में सिख गुरुओं की परंपरा के ख़िलाफ़ न सिर्फ़ राजनीतिक लोगों ने काम किया, बल्कि पंजाब की तरक़्क़ी को भी रोकने का काम किया। आज खेती की सबसे अच्छी ज़मीन होने और केरल के अलावा सबसे ज़्यादा विदेशी धन लाने वाला राज्य होने के बावजूद पंजाब न सिर्फ़ बड़े क़र्ज़ में डूबा हुआ है, बल्कि कई मायनों में पिछड़ा हुआ भी है, जिसके पीछे की वजह लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक लूट ही है। अकाली दल की सरकार से लेकर अमरिंदर सिंह की सरकार तक पर पंजाब की बड़ी योजनाओं में घोटालों के आरोप भी लगे, जिसमें सितंबर 2008 में बनी पंजाब की अकाली दल और भाजपा के गठबंधन वाली सरकार में अमृतसर इंप्रूवमेंट ट्रस्ट से सम्बन्धित भूमि के हस्तांतरण मामले में अनियमितताएँ सामने आयीं। हालाँकि इसके बाद अकाल दल के हाथ में पंजाब की सत्ता आज तक नहीं आ सकी और लोगों में भी अकाली दल के प्रति एक असम्मान की भावना बनी, जिसके चलते बादल परिवार का राजनीतिक स्वर्णिम काल समाप्त हुआ। 11 मार्च, 2017 को कांग्रेस पार्टी ने अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में पंजाब विधानसभा का चुनाव जीता। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद अमरिंदर सिंह ने भी अकाली दल से मिलती-जुलती राजनीति की। इससे नाराज़ पंजाब की जनता ने अमरिंदर सिंह को भी नकारना शुरू कर दिया और आख़िर में कांग्रेस ने पार्टी में उनका क़द कम करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब में पार्टी अध्यक्ष बना दिया, जिसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने क़रीब सात पन्ने का इस्तीफ़ा उस समय की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखा और पंजाब लोक कांग्रेस नाम की अपनी एक अलग पार्टी भाजपा को समर्थन देने की घोषणा करते हुए बना ली।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)