सड़क से खेत तक समस्या बने आवारा पशु

योगेश

पहले कभी कहा जाता था कि चूहे किसानों की फ़सलों का क़रीब 20वाँ हिस्सा चट कर जाते हैं। लेकिन अब चूहों के अलावा लगातार बढ़ते ही जा रहे आवारा पशु भी किसानों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन चुके हैं। हर राज्य में आवारा पशु फ़सलों का नुक़सान करते हैं, जिसकी ख़बरें भी नहीं आती हैं। खेत से सड़क तक घूमते ये अवारा पशु किसानों पर हमले भी कर देते हैं। यह दु:ख की बात है कि अगर कहीं कोई आवारा पशु किसी किसान पर हमला कर दे और किसान घायल हो जाए या उसकी जान भी चली जाए, तो भी एक छोटी-सी ख़बर अख़बार के किसी कोने में मुश्किल से होती है। पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने पिछले साल आवारा साँड के हमले से अगर किसी की मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिजनों को 5,00,000 रुपये का मुआवज़ा दिया जाएगा। हालाँकि लोगों पर सिर्फ़ साँड ही नहीं, दूसरे आवारा पशु भी हमला कर देते हैं। सरकार को सभी पशुओं के द्वारा हमला करने पर घायलों और मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा देना चाहिए। सरकार को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि कई मामलों में मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा मिलने में परेशानियाँ आती हैं, जो नहीं आनी चाहिए।

आवारा पशुओं द्वारा किसानों की फ़सलों का बहुत नुक़सान होता है, जो बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है ओर देश के सभी किसानों को मिलाकर लाखों रुपये का नुक़सान उनकी फ़सलों के उजाड़ के रूप में देखने को मिलता है। पशु जिन किसानों की फ़सलों को उजाड़ देते हैं, उन फ़सलों का किसानों को कोई मुआवज़ा नहीं मिलता और न ही बीमा कम्पनी इसकी भरपाई करती हैं। बीमा कम्पनियाँ किसानों के इस नुक़सान को प्राकृतिक आपदा का हिस्सा नहीं मानती हैं। कई किसानों से आवारा पशुओं के उनकी फ़सलों के नुक़सान के बारे में पूछा, तो ज़्यादातर किसानों ने इसे सबसे बड़ी समस्या बताया। कुछ किसानों ने कहा कि अब पशु हैं, बेचारे वो भी कहाँ जाएँगे। ज़्यादातर किसानों ने कहाँ कि रात को देर तक खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। दिन में भी कई बार आवारा पशु खेतों में घुस आते हैं, जिससे बहुत नुक़सान होता है। रामसिंह नाम के किसान ने बताया कि उनकी फ़सलों का पाँचवें से एक-चौथाई हिस्सा तक आवारा जानवर उजाड़ देते हैं, जो बहुत बड़ा नुक़सान है। आवारा पशुओं को भगाने के चलते हर दिन खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। अगर फ़सल को पहले की तरह बिना रखवाली के छोड़ दो, तो पूरी फ़सल का नाश हो जाएगा। रामसिंह ने बताया कि अब से 15 साल पहले तक इतने आवारा पशु नहीं थे। जबसे लोगों ने बछड़ों को छोड़ना शुरू कर दिया है, तबसे साँड बहुत हो गये हैं।

ऐसा लगता है कि भारत के किसानों की दशा प्रेमचंद की कहानी पूस की रात के हल्कू की तरह हो गयी है, जो रात भर ठंड में अपनी फ़सल की भी रखवाली करता है और उसकी फ़सल फिर भी नहीं बच पाती है। आज भी भारत के किसान सब्र करने के अलावा और कुछ भी नहीं कर पाते। रही सही कसर प्राकृतिक आपदाएँ पूरा कर देती हैं, जिसकी भरपाई भी बीमा कम्पनी राम भरोसे ही करती हैं। आवारा पशुओं से किसानों की फ़सलों की रक्षा के लिए व्यवस्था बनाने की बात हर राज्य की सरकार कह तो रही है; लेकिन धरातल पर कोई व्यवस्था नज़र नहीं आती। किसान ख़ुद अपनी फ़सलों की रखवाली कर रहे हैं। कुछ सक्षम किसानों ने अपनी फ़सलों की सुरक्षा के लिए खेतों के चारों ओर कटीला तार लगाये हैं। जो किसान तार लगाने में सक्षम नहीं हैं, वे खेतों की रखवाली और धोखे का इस्तेमाल करके पशुओं को भगाने की कोशिश करते हैं। लेकिन आवारा पशु फ़सलों का कम ज़्यादा नुक़सान कर ही देते हैं।

कुछ महीने पहले ही उत्तर प्रदेश के निर्देश पर राज्य के कृषि विभाग ने आवारा पशुओं को भगाने के लिए पशुओं को फ़सलों से दूर रखने वाली गंध के छिड़काव की बात कही थी। लेकिन प्रदेश सरकार पशुओं को फ़सलों से दूर रखने के लिए जिस हरबो लिव दवा के प्रयोग को प्रोत्साहित कर रही है, उससे दवा कम्पनी को तो फ़ायदा हो रहा है, किसानों को नहीं। इस दवा की कीमत काफ़ी है और यह खेतों में काफ़ी ज़्यादा डालनी पड़ती है। राज्य सरकार के कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हरबो लिव नाम की दवा फ़सल की गंध को छिपाकर उसे एक ख़राब गंध में बदलकर फ़सल का स्वाद भी बेहद ख़राब बना देती है। अगर इस दवा लगी फ़सल को पशु खाना भी चाहेंगे, तो खा नहीं सकेंगे। लेकिन अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि आवारा पशु सिर्फ़ फ़सल खाते ही नहीं है, बल्कि उसे पैरों से रौंदकर भी ख़राब कर देते हैं। बड़ी फ़सलों में तो वे अपना ठिकाना बना लेते हैं, जिससे फ़सलों को गिरा देते हैं और उसी में आराम करते हैं।

कृषि विभाग के अधिकारियों का दूसरा दावा है कि हरबो लिव दवा दवा से फ़सलों को कोई नुक़सान नहीं पहुँचता है, उलटा ये दवा खेतों की जैविक प्रकृति को बनाए रखती है। इसके अलावा मिटटी के जैविक गुणों को यह दवा बढ़ाती है और उसे ज़्यादा उर्वर बनाती है। हरबो लिव दवा सब्जी, दलहन, तिलहन और अन्य कई फ़सलों के लिए काफ़ी कारागर है।

इसी साल उत्तर प्रदेश दिवस के शुभारंभ के मौके पर 24 जनवरी को लखनऊ के अवध शिल्प ग्राम में आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कृषि विभाग के तीन स्टाल में से एक हरबो लिव और दूसरी कीटनाशक दवाओं की जानकारी ली। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दूसरी स्टाल पर भी कृषि से सम्बन्धित जानकारी जुटार्यी थी। उस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने ये कहा था कि हर हाल में आवारा पशुओं से किसानों की फ़सलों को बचाने का हर संभव प्रयास किया गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि आवारा पशुओं का आतंक ख़त्म नहीं हो रहा है और किसान इससे बहुत परेशान हैं। कई किसानों ने बताया कि अधिकारियों से आवारा पशुओं को रोकने की कई बार अपील की, शिकायत की; लेकिन अधिकारी किसानों की शिकायतों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं। अब तो कई किसान आवारा पशुओं के द्वारा फ़सलों के नुक़सान को सोशल मीडिया के ज़रिये बताकर मदद की गुहार लगा रहे हैं।

दैयंतपुर गाँव के प्रधान ने बताया कि इस एक गाँव की फ़सलों को नुक़सान पहुँचाने वाले आवारा पशुओं की संख्या कम से एक हजार से ज़्यादा होगी। इन पशुओं का आतंक इस कदर बढ़ गया है कि किसान दिन-रात फ़सलों की रखवाली करने को मजबूर हैं। किसानों की तरफ से हमने भी कई बार अधिकारियों से शिकायतें कीं, लेकिन कोई हल नहीं निकला। अधिकारी आश्वासन देते हैं और फिर इस समस्या को भूल जाते हैं। पहले ही कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे किसान आवारा पशुओं से बहुत परेशान हैं। अगर आवारा पशु इसी तरह बढ़ते रहे, तो किसानों को अपने खेतों को ख़ाली छोड़ना पड़ जाएगा।

उत्तर प्रदेश के हर ज़िले में आज आवारा पशुओं की मौज़ूदगी बहुत ज़्यादा है। किसानों ने बताया कि पहले तो रात को ही आवारा पशु आते थे, लेकिन अब दिन में भी फ़सलों को नुक़सान पहुँचा जाते हैं। आवारा पशु झुंड में चलते हैं, जिन्हें खेतों से भगाना काफ़ी मुश्किल होता है। कई बार आवारा पशु किसानों को भी मारने लगते हैं, जिससे उनकी जान को ख़तरा रहता है। पिछले एक साल में आवारा पशुओं द्वारा किसानों पर हमले की सैकड़ों घटनाएँ सामने आयी हैं। आवारा पशुओं के झुंड में इतने ज़्यादा पशु होते हैं कि उन्हें आसानी से खेतों से भगाया नहीं जा सकता। आवारा पशुओं के हमले के डर से किसान इन पशुओं को मार भी नहीं सकते।

पिछले दिनों सरकार ने कहा था कि उत्तर प्रदेश की गौशालाओं के बेहतर प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश गौशाला अधिनियम-1964 को पूरे राज्य में लागू किया जाएगा। अभी उत्तर प्रदेश में लगभग 500 गौशालाएँ हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत ये सभी गौशालाएँ चलती हैं। अभी राज्य में और गौशालाएँ खोलने की बात चल रही है। उत्तर प्रदेश सरकार नयी गौशालाओं की बड़ी संख्या बताकर ख़ुद की पीठ थपथपा लेती है। साथ ही ये कह देती है कि प्रदेश में गौशालाएँ बढ़ाने को लेकर सरकार काम कर रही है। लेकिन किसानों को आवारा पशुओं से राहत के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठा रही है। किसानों की माँग है कि सरकार किसी भी तरह आवारा पशुओं से किसानों को छुटकारा दिलाए।

आवारा पशुओं से निपटने के लिए किसानों को अपने स्तर पर भी कुछ कारगर क़दम उठाने पड़ेंगे। इनमें से कई उपाय बड़े ही उपयोगी हैं। किसान अपने खेतों से आवारा पशुओं को भगाने के लिए धोखे का उपयोग सदियों से करते रहे हैं; लेकिन अब उन्हें बोलने या शोर करने वाले पुतले लगाने होंगे, जिनमें रात को रंग-बिरंगी रोशनी की व्यवस्था भी हो। इसके अलावा किसान अपने पालतू पशुओं की पेशाब, गोबर, नीम, कपूर आदि का एक घोल बनाकर फ़सलों पर छिड़काव कर सकते हैं। इस घोल के छिड़काव से आवारा पशु फ़सलों को नहीं खाएँगे। इसके अलावा फ़सलों में रोग और कीट भी नहीं लगेंगे, जिससे किसानों का कीटनाशक दवाओं और आवारा पशुओं को रोकने के लिए हरबो लिव दवा और अन्य दवाओं का छिड़काव नहीं करना पड़ेगा, जिससे उनकी फ़सल तो बच ही जाएगी, पैसा भी बचेगा। इस घोल का एक और फ़ायदा यह है कि इससे मिट्टी को ताक़त और फ़सलों को पोषण मिलेगा, जिससे पैदावार अच्छी होगी। आज कई किसान इस तरह के घोल बनाकर अपनी फ़सलों को कई रोगों और आवारा पशुओं से बचा रहे हैं। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों तक को पूरे देश के किसानों को ऐसे घोल बनाकर फ़सलों में छिड़काव करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।