युवतियों के लिए प्रेरणा बनीं सोफ़िया और व्योमिका

ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी सारी दुनिया को देने वाली भारतीय सेना की कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी और वायु सेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने भारत में न जाने कितनी युवतियों को सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित किया होगा। भारत सरकार ने इन दोनों महिला अधिकारियों के द्वारा 07 मई, 2025 को नई दिल्ली में मीडिया को पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर हमले के बारे में जानकारी देने का जो फ़ैसला लिया, उसके पीछे सशक्त भारतीय नारी का संदेश देना है। इस तरह की ब्रीफिंग में पहली बार दो महिला अधिकारियों को शामिल करने के फ़ैसले की प्रशंसा हुई और सोशल मीडिया पर लाखों लोगों ने इन दोनों महिलाओं के करियर को सर्च किया।

बहरहाल इस बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि देश में महिलाओं के लिए सेना में अधिकारी बनने की यात्रा सहज नहीं थी। यही नहीं, आज भी यह संघर्ष जारी है। इसके लिए इसी 09 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से फ़िलहाल शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के तहत सेना में भर्ती होने वाली उन 69 महिला अधिकारियों को सेवामुक्त नहीं करने का निर्देश दिया है, जिन्होंने स्थायी कमीशन (परमानेंट कमीशन यानी पीसी) नहीं दिये जाने को चुनौती दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भाटी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सेना को युवा अधिकारी चाहिए और हर साल सिर्फ़ 250 अधिकारियों को ही स्थायी कमीशन दिया जाता है।

ग़ौरतलब है कि भारतीय सेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन एक विशिष्ट अवधि के लिए सेना में सेवा करने का एक रास्ता है। इसके तहत चयनित व्यक्ति आमतौर पर 10 साल के लिए काम कर सकता है, और इस अवधि को चार साल तक बढ़ाया जा सकता है; लेकिन स्थायी कमीशन (परमानेंट कमीशन यानी पीसी) सेवानिवृत्ति तक सेना में सेवा करने की अनुमति देता है।

दरअसल 2020 में सर्वोच्च अदालत ने एक मामले में सुनवायी में एसएससी में महिलाओं की माँगों को बरक़रार रखा और सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन प्रदान किया। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि अपने पुरुष समकक्षों के साथ कंधा-से-कंधा मिलाकर काम करके देश के लिए महिला एसएससी अधिकारियों द्वारा दी गयी सेवा को स्वीकारते हुए सर्वोच्च अदालत ने उन महिला अधिकारियों की उपलब्धियों को सूचीबद्ध किया, जिन्होंने सशस्त्र बलों को गौरवान्वित किया था। उस सूची में पहला नाम सोफ़िया क़ुरैशी का था, जो उस समय लेफ्टिनेंट कर्नल थीं। इस मामले में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत अपने नोट में महिलाओं को सेना के कर्तव्य से परे आह्वान का जवाब देने के लिए शारीरिक रूप से अयोग्य बताया था। मामले की सुनवायी कर रहे तत्कालीन न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था कि किसी भी तरह के लैंगिक भेदभाव से छुटकारा पाने के लिए दो चीज़ों की आवश्यकता होती है; प्रशासिनक इच्छाशक्ति और मानसिकता में बदलाव। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारतीय थल सेना में 8,000; भारतीय वायुसेना में 1,636 और नौसेना में 748 महिला अधिकारी हैं। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने इसी साल जनवरी में पुरुष प्रधान परिवेश में सेना में लिंग तटस्थता के लिए चल रहे प्रयासों के बाबत कहा था कि महिला अधिकारी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। उन्होंने कहा था कि सशस्त्र बलों में महिलाओं की संख्या बढ़ती रहेगी, क्योंकि समाज के साथ-साथ सेना में भी लिंग-तटस्थता धीरे-धीरे बढ़ रही है। हालाँकि वर्तमान में तीनों सेनाओं में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अभी बहुत कम है, जो धीरे-धीरे बढ़ रही है। थल सेना में इस साल के अंत तक महिला अधिकारियों की संख्या बढ़कर 2037 हो जाएगी।

दरअसल महिला अधिकारियों ने 2023 के बाद से ही वायु रक्षा, सिग्नल, आयुष, इंजीनियर, ख़ुफ़िया, सेवा कोर और इसी तरह की इकाइयों की कमान सँभालनी शुरू की है। पर उन्हें अभी भी सेना की पैदल सेना, बख़्तरबंद कोर और मशीनीकृत पैदल सेना की मुख्य लड़ाकू शाखाओं में शामिल होने की अनुमति नहीं है। सेना की इन शाखाओं में उन्हें पुरुषों से कमतर ही समझा जाता है। शारीरिक व मानसिक रूप से कब उन्हें फिट समझा जाएगा? यह पता नहीं।