– दिल्ली में भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से केंद्र सरकार की झुग्गी पुनर्वास योजना के तहत बने फ्लैट बेच रहे दलाल
इंट्रो- भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों और दलालों की मिलीभगत के चलते सरकारी योजनाओं का फ़ायदा योग्य ज़रूरतमंदों को नहीं मिल पाता। और अगर मिलता भी है, तो ज़रूरतमंद की महीनों भागदौड़ और रिश्वत की बदौलत। दिल्ली में केंद्र सरकार की झुग्गी पुनर्वास योजना के तहत बने फ्लैट, जो कि नियम के अनुसार बिना किसी अड़चन के झुग्गी में रहने वालों को मिलने चाहिए; अवैध रूप से बिचौलियों (प्रॉपर्टी-दलालों) के ज़रिये भ्रष्ट अधिकारियों की शह पर फ्लैट ख़रीदने की सामर्थ्य रखने वालों को बेचे जा रहे हैं। इसके लिए उन्हें बाक़ायदा झुग्गीवासी दिखाया जा रहा है। ‘तहलका’ एसआईटी की पड़ताल से पता चला है कि कैसे ये बिचौलिये भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलकर अवैध रूप से ज़रूरतमंदों के लिए झुग्गी पुनर्वास योजना के तहत बने फ्लैट्स फ़र्ज़ी क़ाग़जात के ज़रिये समृद्ध लोगों को दिलवाकर सरकार की आँखों में धूल झोंक रहे हैं। कोई बड़ी बात नहीं, इसमें कुछ राजनीतिक हस्तियों की मिलीभगत भी हो। लेकिन यह जाँच करना सरकार और उसकी जाँच एजेंसियों का काम है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट :-
02 नवंबर, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की इन-सीटू स्लम पुनर्वास परियोजना के तहत दिल्ली के कालकाजी एक्सटेंशन में झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए 3,000 से अधिक फ्लैट्स का उद्घाटन किया था। कालकाजी एक्सटेंशन परियोजना, जिसका उद्देश्य कालकाजी के भूमिहीन शिविर, नवजीवन शिविर और जवाहर शिविर के झुग्गीवासियों का पुनर्वास करना है; की परिकल्पना सन् 2011 में की गयी थी, जिसकी आधारशिला सन् 2013 में रखी गयी थी।
पहले चरण में डीडीए ने भूमिहीन कैम्प में रहने वाले लोगों के लिए ख़ाली व्यावसायिक भूखंड पर 3,024 फ्लैट्स का निर्माण किया। हालाँकि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इन फ्लैट्स का उद्घाटन करने के ठीक दो साल बाद भ्रष्टाचारियों ने दलालों से मिलकर झुग्गीवासियों के लिए बनाये गये इन फ्लैट्स को अमीरों को बेचना शुरू कर दिया है। ये 25 वर्ग मीटर में बने 14 मंज़िला ऊँचे फ्लैट्स, जो बिक्री के लिए नहीं हैं; लाभार्थियों को केवल 1.24 लाख रुपये में प्रदान किये जाने थे। बाक़ी लागत डीडीए द्वारा ख़र्च की गयी है। इसके बावजूद बिचौलिये झुग्गी-झोंपड़ी के नक़ली पते का उपयोग करके अमीर ख़रीदारों से रिश्वत लेकर उन्हें प्रति फ्लैट 6.50 लाख रुपये के हिसाब से बेच रहे हैं, जिनमें से अधिकांश के पास पहले से ही दिल्ली में घर हैं। ‘तहलका’ जाँच से पता चला है कि झुग्गीवासियों के लिए बनी इस सोसायटी में फ्लैट दिलाने का वादा करके बिचौलिये पहले ही कई लोगों को ठग चुके हैं।
‘ये फ्लैट्स झुग्गीवासियों के लिए हैं। लेकिन मैं यह दर्शाने वाले दस्तावेज़ तैयार करूँगा कि आप 2005 से पहले से झुग्गी में रह रहे थे। सरकार जाँच नहीं करेगी। इसलिए किसी को पता नहीं चलेगा कि आप झुग्गी-झोंपड़ी से नहीं हैं। एक फ्लैट के लिए हम 6.5 लाख रुपये लेते हैं। सारा भुगतान नक़द करना होता है। यह रिश्वत प्राधिकरण के भीतर ऊपर से नीचे तक बाँटी जाती है। ये फ्लैट बेचे नहीं जा सकते; लेकिन एक बार जब हम दिखा देंगे कि आप झुग्गी बस्ती से हैं, तो आपको फ्लैट मिल जाएगा।’ -‘तहलका’ रिपोर्टर को संजय कुमार पंडित नाम के एक बिचौलिये ने दावा किया।
‘मैं पहले ही एक ग्राहक से तीन लाख रुपये रिश्वत के रूप में ले चुका हूँ। मुझे 5.5 लाख रुपये और चाहिए। और फिर उसे फ्लैट के लिए आवंटन पत्र मिलेगा। अब तक मैंने इस सोसायटी में 10 फ्लैट ऐसे धनी ग्राहकों को बेचे हैं, जो झुग्गियों से नहीं हैं। लेकिन हमारे द्वारा बनाये गये नक़ली दस्तावेज़ के माध्यम से हमने ऐसा दिखाया है कि वे झुग्गी के ही रहने वाले थे।’ – यह दावा मोइनुद्दीन अल्वी नाम के एक अन्य बिचौलिये ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के सामने किया।
‘मेरे मुवक़्क़िल ने एक फ्लैट के लिए रिश्वत के रूप में 6.5 लाख रुपये की पूरी राशि का भुगतान किया है। वह एक अमीर व्यक्ति है; लेकिन मैंने फ़र्ज़ी दस्तावेज़ की मदद से यह साबित कर दिया है कि वह झुग्गी बस्ती का रहने वाला है। वह अपने फ्लैट का इंतज़ार कर रहा है। इन फ्लैट्स की सरकारी क़ीमत महज़ 1.47 लाख रुपये है। सरकारी अधिकारियों के पास इस सोसायटी में 25-30 फ्लैट्स हैं, जिन्हें वे पैसे लेकर उन अमीरों को बेच रहे हैं, जो झुग्गी बस्ती से नहीं आते हैं।’ -संजय कुमार पंडित ने आगे बताया।
दिल्ली के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) से सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी अली जान बताते हैं कि कैसे वह बिचौलियों के जाल में फँस गये। दिल्ली में अपना घर होने और झुग्गियों से कोई सम्बन्ध नहीं होने के बावजूद उन्होंने तीन लाख रुपये अग्रिम भुगतान करके 13 लाख रुपये की तय राशि में इस सोसायटी में दो फ्लैट बुक किये थे। उनसे वादा किया गया था कि उन्हें तीन महीने के भीतर दोनों फ्लैट मिल जाएँगे। हालाँकि जब समय-सीमा के बाद भी वादा किये गये फ्लैट नहीं मिले, तो अली को एहसास हुआ कि बिचौलियों ने उसे धोखा दिया है। झुग्गीवासियों के लिए फ्लैट्स की पेशकश करके लोगों को धोखा देने वाले दलालों की अधिकारियों से साँठगाँठ वाले इस भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए उन्होंने एक व्हिसल-ब्लोअर के रूप में ‘तहलका’ से संपर्क किया। ‘मैंने अपनी पत्नी और बेटी के नाम पर दो फ्लैट बुक किये और तीन लाख रुपये अग्रिम भुगतान रिश्वत के रूप में दिये। लेकिन जब निर्धारित समय के बाद फ्लैट्स की डिलीवरी नहीं हुई और बिचौलिये और पैसे माँगने लगे, तो मुझे संदेह हुआ कि मेरे साथ धोखा हुआ है। तभी मैंने इन दोषियों को बेनक़ाब करने का फैसला किया।’ – अली जान ने बताया।
अली जान की मदद से ‘तहलका’ के रिपोर्टर ने दलालों के साथ पहली बैठक नोएडा में की। ‘तहलका’ रिपोर्टर को अली ने अपने फ्लैट्स के लिए अली की ओर से रिश्वत की बक़ाया राशि का भुगतान करने के लिए तैयार हुए एक व्यवसायी के रूप में पेश किया। दो बिचौलिये- संजय और अल्वी ‘तहलका’ रिपोर्टर के साथ उन्हें व्यवसायी समझकर बैठक के लिए आये। संजय ने हमारे ख़ुफ़िया कैमरे के सामने स्वीकार किया कि ये फ्लैट कालकाजी में तीन झुग्गी समूहों- नवजीवन, भूमिहीन और जवाहर शिविरों के निवासियों के पुनर्वास के लिए हैं। उसने बताया कि वह धोखे से नक़ली काग़ज़ बनवाकर अली जान को नवजीवन झुग्गी बस्ती का निवासी साबित कर देगा, जिससे उसे एक फ्लैट मिल जाएगा। संजय ने यह भी पुष्टि की कि ये फ्लैट बिक्री के लिए नहीं हैं और इन्हें बेचना अवैध है। हालाँकि उसने कुछ सरकारी अधिकारियों से अपनी साँठगाँठ का दावा किया, जिनके पास कुछ फ्लैट हैं और वे उन्हें उन चुनिंदा लोगों के समूह को बेचने के इच्छुक हैं, जिन पर उन्हें भरोसा हो। संजय ने बताया कि ‘इस तरह हम इन फ्लैट्स को एक तय क़ीमत पर बेच रहे हैं।’
संजय : ये जो झुग्गी-झोंपड़ी वाले हैं ना…।
रिपोर्टर : झुग्गी-झोंपड़ी वालों को बसाने के लिए?
संजय : हाँ; अब उनसे ज़मीन लिया जा रहा है। अब हम जानकार लोग हैं ना पीए का, हम कुछ अपने पास रखते हैं। बाहर निकाल देंगे, तो कुछ पैसा बन जाएगा। तो हम लोग उनके साथ जुड़कर के…, उन्होंने मेरे को ये बोला कि कुछ ख़ास लोग हों, उनको दिला सकते हो। क्यूँकि ये चीज़ें सबके लिए नहीं हैं।
रिपोर्टर : ये आपको किसने बोला?
संजय : जिनके थ्रू हमारा काम हो रहा है।
रिपोर्टर : xxxx के थ्रू?
संजय : हाँ; xxxx के थ्रू हमारा काम हो रहा है, तो उन्होंने बोला- सबके लिए नहीं है। कुछ ख़ास लोग हों; क्यूँकि बेचने के लिए नहीं हैं ये। लीगल तो हैं नहीं, बेचने के लिए। कुछ ख़ास लोग हों, तो उनको हम काम करा सकते हैं; तो उसी बात का पैसा है।
रिपोर्टर : अच्छा; क्यूँकि ये मकान बेचने के लिए तो होते नहीं हैं?
संजय : और अच्छी बात ये है कि इनके नाम से हो करके मिल रहा है। साबित करके दिया जा रहा है कि इनका भी वहीं खाता है।
रिपोर्टर : मतलब, इनका मकान वहाँ से तोड़ा जा रहा है?
संजय : जैसे, जो झुग्गी-झोंपड़ी तोड़ी जा रही है ना! उसमें साबित करके मिलेगा कि इनका भी है।
रिपोर्टर : मतलब, अली भाई का भी आप साबित करोगे कि झुग्गी-झोंपड़ी में इनका घर था?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : ये कैसे कर दोगे घर तो था नहीं है इनका?
संजय : नहीं था ना सर! अभी पुराना रिकॉर्ड चल रहा है। 2005 का रिकॉर्ड चल रहा है, तो वो लोग अपने रिकॉर्ड में साबित करेंगे।
रिपोर्टर : झुग्गी-झोंपड़ी कौन-सी है, जो तोड़ी गयी?
संजय : नवजीवन कैम्प की अभी टूटेगी।
रिपोर्टर : टूटी नहीं है अभी? …टूटेगी?
संजय : हाँ; टूटेगी। आधा टूटी है। आधा टूटेगी। हो तो बहुत पहले जाता काम; लेकिन उन लोगों ने धरना डाल दिया, इस चक्कर में लेट हो गया सारा काम।
रिपोर्टर : इनका कहाँ शो करोगे आप नवजीवन में ही?
संजय : नवजीवन में।
‘तहलका’ रिपोर्टर के यह पूछे जाने पर कि वह (दलाल) उन्हें (रिपोर्टर को) फ्लैट के लिए पात्र बनाने के लिए उनको एक झुग्गी निवासी के रूप में कैसे दिखाएँगे? संजय ने कहा कि, चूंकि आप एक करदाता हैं और आपके वित्तीय लेनदेन आधिकारिक रिकॉर्ड में हैं, इसलिए वह इसके बजाय मेरे (रिपोर्टर के) भाई या बहन को ग़लत तरीक़े से पंजीकृत कर देगा। संजय ने कहा कि आपकी तरह आपके भाई या बहन कर (टैक्स) का भुगतान नहीं करते या उतना भी नहीं करते, जितना आप करते हो, जो उन्हें (मेरे भाई या बहन को) एक झुग्गी निवासी के रूप में साबित करके उनके नाम पर फ्लैट सुरक्षित करने के लिए काफ़ी है।
रिपोर्टर : आप मुझे झुग्गी-झोंपड़ी वाला कैसे बता दोगे?
संजय : आपको नहीं, आपके फैमिली मेंबर को।
रिपोर्टर : मेरे फैमिली मेंबर को भी झुग्गी-झोंपड़ी का कैसे साबित कर दोगे?
संजय : जैसे आपका घर यहाँ पे है, आपका कोई भाई है, बहन है, वो रह सकते हैं। वो तो नहीं भर रहे हैं टैक्स इतना। वो लोग इतना नहीं, जितना आप भर रहे हो टैक्स। और झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाला टैक्स नहीं पे करता है। सब कुछ पॉसिबल है सर!
‘तहलका’ रिपोर्टर ने संजय से पूछा कि अगर वह उन्हें झुग्गी बस्ती का निवासी साबित करने में असफल रहा, तो क्या होगा? और क्या मैं फ्लैट में निवेश किया गया पैसा खो दूंगा? तब संजय ने यह कहकर रिपोर्टर को आश्वस्त किया कि सरकारी अधिकारी सावधानी से काम करते हैं, इसलिए ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। उसने बताया कि अधिकारियों की संलिप्तता के कारण सोच-समझकर काम करता है, इसलिए पैसे खोने की संभावना बहुत कम होती है।
रिपोर्टर : नहीं हो पाया साबित, तो पैसे डूब गये ना?
संजय : मतलब ही नहीं होता सर! सरकारी अधिकारी जो होता है ना! कोई भी क़दम उठाता है, उसमें चार बार पहले सोचता है। ठीक है सर!
फिर संजय ने ‘रेड पेपर’ के बारे में बताया। उसके अनुसार, सरकार द्वारा जारी किया गया यह दस्तावेज़ महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि यह सोसायटी में फ्लैट के लिए पात्रता साबित करता है। उसने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि उन्हें (नक़ली ग्राहक यानी रिपोर्टर को) निश्चित रूप से फ्लैट मिलेगा; क्योंकि वे (दलाल) केवल चुनिंदा लोगों को फ्लैट बेच रहे हैं।
संजय : एक बार कोई पेन चल गया ना सरकारी अफ़सर का, तो काम होना-ही-होना है। नहीं तो ऐसा हो नहीं सकता, पहली बात। दूसरी बात, जो लाल वाला पेपर आपके पास आ गया ना सर!…।
रिपोर्टर : लाल वाला?
संजय : रेड पेपर एक तरह से कार्ड है, जिसमें फोटो भी होता है बंदे का। गवर्नमेंट का मोहर भी होता है। xxxx का पेपर होता है। ये पेपर आ गया ना जब आपके पास, तो किसी का हो या न हो, आपका ज़रूर होगा। क्यूँकि जो भी करवा रहा है ना! उसको डर है, कल को मेरा नाम ख़राब हो सकता है। मैं तो इतना ही तसल्ली करवा सकता हूँ कि आपका काम 100 पर्सेंट होगा, इसमें दो-राय नहीं है। क्यूँकि हम लोग ज़्यादा लोगों को बेचे नहीं हैं। कुछ ख़ास लोगों को दिया है।
संजय अब लाल काग़ज़ के बारे में विस्तार से बताने लगा। उसके अनुसार, यह अधिकारियों द्वारा जारी किया जाता है और इंगित करता है कि धारक 2005 से पहले झुग्गी बस्ती का निवासी है। इसके आधार पर धारक झुग्गीवासियों के लिए बने फ्लैट के लिए पात्र है। संजय ने दावा किया कि लाल काग़ज़ की क़ीमत 35 लाख रुपये है। उसने आश्वासन दिया कि यदि फ्लैट सुरक्षित नहीं है, तो 35 लाख रुपये वापस कर दिये जाएँगे। हालाँकि ‘तहलका’ अपनी ओर से इस दस्तावेज़ की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं कर रहा है और न ही कर सकता है।
संजय : सर! रेड पेपर जो है ना! वो 2005 के बैक डेट से दिखाएगा कि आपके वहाँ सब कुछ थे; वो 35 लाख का पेपर है, अगर नहीं हुआ तो।
रिपोर्टर : वो कहाँ दिखाएगा संपत्ति हमारी?
संजय : स्लम में। उसी से और उस पेपर की वैल्यू सरकार की नज़र में 35 लाख है। अगर मान के चलो, सबको अलॉट हो गया और आपका नहीं हुआ। लाल पेपर आपके पास है, आप चले जाओ लेने। या तो 35 लाख रिटर्न करेगी सरकार या तो जहाँ पर फ्लैट होगा, अलॉट कराएँगे। मुकर नहीं सकते।
संजय ने आश्वासन दिया कि यदि फ्लैट मिल गया और जाँच हुई, तो कोई दिक़्क़त नहीं होगी। उसने बताया कि एक बार जब सरकार किसी के नाम पर फ्लैट जारी कर देती है, तो वे (अधिकारी) आगे की जाँच नहीं करेंगे। इसके अतिरिक्त संजय और अल्वी दोनों ने क़ुबूल किया कि उन्होंने अली जान से रिश्वत के रूप में तीन लाख रुपये अग्रिम रूप से लिये हैं।
रिपोर्टर : एक बात बताओ, हमने ये फ्लैट ले लिया; कल को कोई जाँच बैठ गयी, सवाल उठ गया?
संजय : सर! कोई सवाल नहीं उठेगा।
रिपोर्टर : 25-30 फ्लैट जो हैं, वो कैसे उन लोगों को बिक गये, पैसे वाले लोगों को?
संजय : ऐसा कुछ नहीं होगा सर! गवर्नमेंट एक बार इश्यू कर देगी ना आपके नाम, पूछने नहीं आएगी कि आप क्या कर रहे हो उसमें। क्यूँकि वो आपको दे रही है। पाँच साल तक मेंटेनेंस फ्री रहेगा आपका, गवर्नमेंट की तरफ़ से।
रिपोर्टर : आप बताओ, आपने कैश कितना लिया अली साहिब से?
अल्वी : तीन लाख लिया।
रिपोर्टर : पूरा तीन लाख लिया?
अल्वी : नहीं; दो लाख लिया।
रिपोर्टर : दो लाख ऑनलाइन, एक लाख कैश? वैसे इस मामले में कोई ऑनलाइन देता नहीं है।
संजय : आपस की बात है, इसलिए लिया।
रिपोर्टर : देखो, अगर तीन लाख आपने इनसे लिया है, ठीक है। अगर कुछ काग़ज़-पत्री आपने दे दी होती, इन्हें एक भरोसा-सा हो जाता।
संजय : सर! उस पैसे का तो डाक्यूमेंटेशन हो गया। अब जो जाएगा, मैं इतना गारंटी कर सकता हूँ कि आप सिर्फ़ चार लाख रुपया ऑनलाइन करते हो, सिर्फ़ चार लाख ऑनलाइन में दिलवा दूँगा।
अब अल्वी और संजय ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि वे एक फ्लैट के लिए 6.5 लाख रुपये रिश्वत के तौर पर ले रहे हैं। अली ने दो फ्लैट बुक किये हैं, इसलिए उन्हें कुल 13 लाख रुपये चुकाने होंगे। लेकिन उन्होंने केवल तीन लाख रुपये का भुगतान किया है, इसलिए वे (संजय और अल्वी) अली से 10 लाख रुपये और माँग रहे हैं।
रिपोर्टर : तो इसमें हमें क्या करना है, ये बताइए?
संजय : पेमेंट चाहिए। ..इनका काम हो जाएगा।
रिपोर्टर : अभी तक कितना पेमेंट जा चुका है?
संजय : इनका पेमेंट दो चला गया है, अब पूरा पेमेंट देंगे तो..।
रिपोर्टर : कितना चला गया है?
अली : तीन लाख चला गया मेरा।
रिपोर्टर : टोटल आप कितना ले रहे हैं इनसे, एक फ्लैट का?
संजय : साढ़े छ: (6.5) के हिसाब से बताया आपको।
रिपोर्टर : साढ़े छ:। मतलब, टोटल इनको 13 लाख देना है, दो अपार्टमेंट का?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : तीन जा चुका है, 10 बचता है?
दो फ्लैट बुक करने वाले अली जान को कुल 13 लाख रुपये का भुगतान करना होगा; लेकिन उन्होंने अब तक केवल तीन लाख रुपये का भुगतान किया है। दलालों ने उनसे (अली से) कहा कि उन्हें फ्लैट सुरक्षित करने के लिए पूरा भुगतान करना होगा। जब अली की ओर से दो फ्लैट्स के लिए 13 लाख रुपये के निवेश के बाद होने वाले लाभ के बारे में दलालों से पूछा गया, तो संजय ने आश्वासन दिया कि प्रत्येक फ्लैट को बाद में 15 लाख रुपये में बेचा जा सकता है, जिससे पर्याप्त लाभ होगा। इसका तात्पर्य यह है कि संजय के मुताबिक, अभी निवेश करने से भविष्य में अच्छा लाभ हो सकता है।
रिपोर्टर : मान लीजिए, मैं इनकी तरफ़ से बाक़ी का 10 लाख रुपया दे दूँ, मेरा उसमें क्या फ़ायदा है?
संजय : जी, आपका क्या फ़ायदा? ये आप इनसे पूछिए।
रिपोर्टर : ये तो ये कहेंगे, आप उसको ज़्यादा पैसों में बेच दीजिए।
संजय : बिक ही जाएगा। वो ज़्यादा में बिक जाएगा। दो-तीन महीने रुक कर अगर 15 में भी बेचोगे, तो बिक जाएगा।
रिपोर्टर : दोनों 15 में?
संजय : नहीं, एक ही 15 लाख में।
अब संजय 10 लाख रुपये नक़द लेने पर अड़ा रहा और चेक से भुगतान लेने से इनकार कर दिया। उसने स्पष्ट किया कि पूरी राशि का भुगतान एक ही बार में किया जाना चाहिए। उसने दूसरे तरीक़े से (चेक आदि से) भुगतान की जगह नक़द भुगतान करने को प्राथमिकता देते हुए बक़ाया देने पर ज़ोर दिया।
रिपोर्टर : 10 लाख का आप पेमेंट लोगे, तो कैसे लोगे? …इंस्टॉलमेंट पर या वन टाइम?
संजय : वन टाइम।
रिपोर्टर : पूरे 10 लाख, कैश?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : चेक नहीं चलेगा?
संजय : नहीं सर! चेक नहीं चलेगा।
इस बिंदु पर मोइनुद्दीन अल्वी ने टिप्पणी की कि हालाँकि ये गतिविधियाँ अवैध हैं; लेकिन इन्हें अक्सर ईमानदार और पारदर्शी तरीक़े से किया जाता है। संजय ने कहा कि फ्लैट कुछ सरकारी अधिकारियों की सहायता से बेचे जा रहे हैं, जिनके बिना वे इस काम को पूरा नहीं कर पाएँगे।
अल्वी : एक बात मैंने भी कहनी है आपसे, …ये जो दो नंबर का काम है, ये बड़ी ईमानदारी से होता है।
रिपोर्टर : नहीं, ईमानदारी से होता है। लेकिन कई बार दो नंबर में भी बेईमानी हो जाती है।
संजय : नहीं; एक बात जानते हैं? हर व्यक्ति को अपनी नौकरी का डर होता है।
रिपोर्टर : तो आपकी तो किसी की नौकरी नहीं है?
अल्वी : हमारी किसी की नहीं है, मगर जिनके लिए हम काम करा रहे हैं, उनकी तो है।
रिपोर्टर : xxxx वालों की?
संजय : ऑब्वियसली सर!
रिपोर्टर : ये xxxx ने बनवाया है?
संजय : उनके इन्वॉल्वमेंट के बग़ैर हम कैसे करा सकते हैं?
अब अल्वी ने ख़ुलासा किया कि उन्होंने (संजय और अल्वी ने) इसी सोसायटी में 10 फ्लैट्स बेचे हैं। दलालों के दावों को सत्यापित करने के लिए ‘तहलका’ रिपोर्टर ने संजय से कहा कि वह उन अन्य ग्राहकों से उन्हें मिलवाये, जिन्हें उनके फ्लैट के आवंटन पत्र प्राप्त हुए हैं। जवाब में संजय ने रिपोर्टर को बाद की बैठक में मोहम्मद जमील से मिलवाया और दावा किया कि जमील ने एक फ्लैट के लिए 6.50 लाख रुपये की पूरी राशि का भुगतान किया था; लेकिन अभी भी फ्लैट के मिलने का इंतज़ार कर रहा है।
रिपोर्टर : कितने फ्लैट ऐसे आपने दिलवा दिये?
अल्वी : मेरे ख़याल में दस एक करवा दिये।
संजय : मैं जमील भाई को डायरेक्ट मिलवा दूँगा, आपको; …उसका लाल पेपर भी देख सकते हैं आप। और इनका भी लाल पेपर आ जाएगा, जमील भाई का और इनका सबका इकट्ठा आएगा; …फ्लैट इकट्ठा आएगा।
रिपोर्टर : जमील भाई का नहीं आया अभी?
संजय : पेपर आ जाएगा, फ्लैट नहीं मिला।
रिपोर्टर : उनसे कितना पैसा लिया?
संजय : उनसे पूरा पैसा हो गया।
रिपोर्टर : एक ही लिया है?
संजय : क्या चीज़?
रिपोर्टर : एक ही फ्लैट लिया है? पैसा कितना?
संजय : साढ़े छ: (6.5 लाख)।
रिपोर्टर : साढ़े छ:, पूरा?
अब संजय ने अपने लिए एक फ्लैट सुरक्षित करने के लिए मोहम्मद जमील को झुग्गी निवासी के रूप में धोखाधड़ी से सूचीबद्ध करने की बात स्वीकार की। उसने आगे ख़ुलासा किया कि जमील ने झुग्गी में न रहने के बावजूद प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक और फ्लैट हासिल किया था। यह फ्लैट प्राप्त करने के लिए निवास की शर्तें पूरी न होने पर भी हेरफेर किया गया।
रिपोर्टर : एक इसमें और ले लिया है उन्होंने, पीएम आवास में।
संजय : हाँ; एक और ले लिया है।
रिपोर्टर : झुग्गी में नहीं रहते वो?
संजय : झुग्गी में कहाँ रहेंगे वो…!
संजय ने अब ख़ुलासा किया कि फ्लैट आधिकारिक तौर पर बिक्री के लिए नहीं हैं; फिर भी सरकारी अधिकारी 25-30 फ्लैट्स पर क़ब्ज़ा किये हुए हैं और उन्हें चयनित बिचौलियों के माध्यम से बेच रहे हैं। उसने कहा कि सभी अधिकारियों में फ्लैट्स के बदले रिश्वत के रूप में मिला पैसा वितरित होता है। अब केवल कुछ ही फ्लैट बचे हैं। ज़ाहिर है इससे इन फ्लैट्स के आसपास भ्रष्टाचार और वित्तीय हेराफेरी के नेटवर्क का पता चलता है।
रिपोर्टर : अच्छा; सरकारी पैसा उसमें 1.47 है?
संजय : आरएस (रुपीज) 1.47 लाख की डीड जाती है। और डेढ़ लाख, …रुपीज 1.5 ऐसे ही लोग लेते हैं; उसका लेते हैं, जिसका ज़मीन हो।
रिपोर्टर : ये किन-किन लोगों में जाता है पैसा?
संजय : ये ऊपर से नीचे तक जाता है। इनके पास 15-20 फ्लैट बचे हैं; …ज़्यादा नहीं हैं। और वही सब वो पेमेंट ऑनलाइन करवा देंगे सारा।
रिपोर्टर : हम जैसे और भी लोग हैं लेने वाले?
संजय : नहीं सर! ये बेचने के लिए नहीं हैं।
रिपोर्टर : बेचने के लिए तो नहीं हैं, पर फिर भी बेचे जा रहे हैं ना!
संजय : सरकारी आदमी के हाथ में 25-30 फ्लैट था।
रिपोर्टर : अच्छा! 25-30 थे। सब नहीं हैं?
संजय : जिसमें से क़रीबन पाँच-छ: निकल गये हैं। 23-24 और बचे हुए हैं। ठीक है ना! …वो जैसे ही निकलेंगे, उसी का पैसा खाएँगे ये लोग।
शुरुआती रिश्वत देने के बाद अली जान को जल्द ही एहसास हुआ कि उसे दो बिचौलियों द्वारा धोखा दिया जा रहा है। नतीजतन, उसने आगे का भुगतान रोक दिया। क्योंकि उसे न तो लाल काग़ज़ मिला और न ही वह फ्लैट मिला, जिसका उनसे वादा किया गया था। इस बीच मोहम्मद जमील, जिसने अपने फ्लैट के लिए पूरी रक़म का भुगतान करने का दावा किया था; को केवल एक लाल काग़ज़ मिला; लेकिन कोई फ्लैट नहीं मिला।
जमील ने स्वीकार किया कि वह कभी झुग्गी-झोंपड़ी में नहीं रहता था, फिर भी रिश्वत देने के बाद उसे जो लाल काग़ज़ मिला, उसमें सर्वेक्षण संख्या का ग़लत संकेत दिया गया है। उसमें दिखाया गया है कि वह 2005 से पहले से झुग्गी-झोपड़ी में रहता रहा है। इस तरह संजय कुमार पंडित और मोइनुद्दीन अल्वी, दोनों बिचौलिये धनी लोगों को झुग्गीवासियों के लिए बने फ्लैट बेचकर लोगों को धोखा देने का काम कर रहे हैं।
अब दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के लिए हस्तक्षेप करते हुए झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए कालकाजी एक्सटेंशन परियोजना के आसपास बने फ्लैट्स में हो रहे कथित भ्रष्टाचार के मुद्दों को उजागर करके भ्रष्टाचारियों और दलालों को सज़ा दिलाने का समय आ गया है। क्योंकि आगे के शोषण को रोकने और प्रभावित लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए यह हस्तक्षेप आवश्यक है। मौज़ूदा समस्याएँ आवास क्षेत्र में कड़े नियमों के उल्लंघन के निरीक्षण और इसकी जवाबदेही की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर डालती हैं।