उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच लखनऊ में राज्यस्तरीय समारोह में जिस तरह का दुलर्भ सौहार्द नजर आया, उससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। इससे भाजपा के दो दिग्गजों के बीच रणनीतिक पुनर्संरचना की अटकलों को बल मिला है। लखनऊ में एक हाई-प्रोफाइल कार्यक्रम के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर शाह को व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित करने के लिए 9 जून को योगी खुद दिल्ली गए। ऐसा उनके 8 साल के कार्यकाल में पहली बार हुआ।
शाह ने उनकी बात मान ली और 15 जून को 60244 नए भर्ती हुए यूपी पुलिस कांस्टेबलों को नियुक्ति पत्र सौंपे। यह महज एक औपचारिक उपस्थिति से कहीं बढ़कर था। दोनों नेताओं के बीच तनाव की लंबे समय से चल रही अटकलों की पृष्ठभूमि में अचानक से यह सौहार्दपूर्ण प्रदर्शन हुआ है। वर्षों से भाजपा में शीत युद्ध की चर्चा जोरों पर है। योगी के बढ़ते कद से दिल्ली की असहजता, केंद्र के साथ महत्वपूर्ण नियुक्तियों को मंजूरी देने में उनकी अनिच्छा और पूर्णकालिक डीजीपी की नियुक्ति में उनकी 5 साल की देरी ने इस धारणा को और मजबूत किया है।
आपसी अविश्वास और असहजता की कहानियां अंतहीन हैं। कई लोग इस टकराव का कारण यह मानते हैं कि मोदी के बाद की भाजपा में शाह और योगी दोनों को मजबूत दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। वैचारिक मतभेदों और विपरीत राजनीतिक शैलियों से प्रेरित उनकी कथित प्रतिद्वंद्विता लगातार चर्चा का विषय रही है।
अब तक, उनका एक साथ दिखना मुख्य रूप से केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा आयोजित कार्यक्रमों तक ही सीमित था – जैसे फोरेंसिक संस्थान का शिलान्यास समारोह और अखिल भारतीय डीजीपी की बैठक। लेकिन इस बार पहल दिल्ली से नहीं, लखनऊ की ओर से हुई। यह एक अस्थायी दिखावा है या संबंधों में गहरा बदलाव, यह देखना बाकी है।
लेकिन एक बात स्पष्ट है – शाह-योगी के सौहार्द ने कहानी को फिर से शुरू किया है और भाजपा की भविष्य की सत्ता गतिशीलता में नई अटकलों को जन्म दिया है। यह भी चर्चा है कि यह घटनाक्रम योगी को शीर्ष नेतृत्व द्वारा लाइन में आने के लिए प्रेरित करने के बाद हुआ।