गौरक्षा की आड़ में कुछ पुलिसकर्मी और तथाकथित गौरक्षक कमा रहे पैसे
हाल के वर्षों में समाज में गौरक्षकों के रूप में एक ऐसा तबक़ा सामने आया है, जिसे लेकर जनता यह मानती है कि इस तबक़े से जुड़े लोग गऊ माता की रक्षा की लड़ाई लड़ते हैं। लेकिन यह पूरी हक़ीक़त नहीं है। क्योंकि कुछ पुलिसकर्मियों और तथाकथित गौरक्षकों के लिए यह पैसा बनाने का सरल ज़रिया बन गया है। गौरक्षा के नाम पर चल रहे इस धन्धे की परतें खोलती तहलका एसआईटी की यह रिपोर्ट :-
इस रिपोर्ट की शुरुआत हम पशुओं के अवैध धंधे में लिप्त जावेद अहमद (बदला हुआ नाम) से हमारे कैमरे में रिकॉर्ड हुई बातचीत से करते हैं। जावेद ने कहा- ‘उत्तर प्रदेश में झांसी से सम्भल तक ट्रक में गायों को अवैध रूप से ले जाते समय मैं 10-12 स्थानों पर पुलिस और गौरक्षकों को 10,000 से 5,000 या 3,000 से 5,000 के बीच राशि देता था। पुलिस और गौरक्षकों को यह राशि देने के बाद दोनों हमें सुरक्षित रूप से हमारे गंतव्य तक पहुँचने के लिए सुरक्षित मार्ग दे देते थे। कभी-कभी तो गौरक्षक हमारी हिफ़ाज़त के लिए छोटी दूरी तक हमारे ट्रक के साथ यात्रा भी करते थे, ताकि उस मार्ग पर कोई अन्य गौरक्षक समूह हमें रोक न सके।’
जावेद अहमद 2010-11 में अपने साले के साथ ट्रक में अवैध रूप से गायों को झांसी से सम्भल तक ले जाता था। उसने ‘तहलका’ को बताया कि गायों की रक्षा का गौरक्षकों का दावा दिखावे भर के लिए है। वास्तव में वे गायों की रक्षा के नाम पर धंधा कर रहे हैं। गौरक्षा के नाम पर पुलिस के साथ-साथ वे (गौरक्षक) पशु तस्करों से पैसा कमाने का काम कर रहे हैं।
जावेद ने ‘तहलका’ को बताया कि गायों को ग़ैर-क़ानूनी रूप से एक शहर से दूसरे शहर ले जाने के दौरान उन्हें और उनके साले को कई बार रिश्वत देने के बावजूद पुलिस ने पकड़ा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जब भी अपने वरिष्ठों की नाराज़गी महसूस होती थी, पुलिसकर्मी अपने उच्च अधिकारियों को यह दिखाना चाहते थे कि वे गंभीरता से गौरक्षा कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई कुछ और है। वे गायों की रक्षा नहीं कर रहे हैं; गौरक्षा के नाम पर पैसा कमा रहे हैं। जावेद ने ख़ुलासा किया कि उसे कई बार अवैध रूप से गाय ले जाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया; लेकिन हर बार वह कुछ ही समय में ज़मानत पर बाहर आ गया।
जावेद ने ‘तहलका’ के सामने क़ुबूल किया कि पुलिस की तरफ़ से उसके ट्रकों को चार बार ज़ब्त करने और उसे और उसके साले को गिरफ़्तार किये जाने के बाद उसने अवैध रूप से वाहन में गाय ले जाने का धंधा बन्द कर दिया। जावेद के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के सिकंदराराऊ क़स्बे में एक ही स्थान पर चार बार उनके ट्रकों को पुलिस ने रोका था। जावेद ने कहा कि किसी मुखबिर ने, जिसे हमसे पैसा नहीं मिल रहा था; हमारे कारोबार के बारे में पुलिस के उच्च अधिकारियों को सूचना दे दी, जिसके परिणामस्वरूप हमारी गिरफ़्तारी हुई। जावेद ने बताया कि पहली बार जब उसके ट्रक को पुलिस ने रोका था, तभी उसने अपने साले से अवैध रूप से गाय ले जाने का धंधा बन्द करने को कहा था। लेकिन जल्दी और ज़्यादा पैसा कमाने की हवस उसके साले पर हावी हो गयी और उन्होंने उसकी चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर दिया और कारोबार जारी रखा। नतीजा यह हुआ कि ट्रकों को एक-दो बार नहीं, बल्कि चार बार रोका गया। वह भी एक ही जगह पर।
जावेद ने तहलका को बताया- ‘हम अपने ट्रक में अवैध रूप से गाय ले जाते हुए रंगे हाथ पकड़े गये। हमें क़ानूनी पचड़ों में छ:-सात लाख रुपये से अधिक ख़र्च करने पड़े, तब जाकर हमारे ट्रक मुक्त हुए और हम मामले से बरी हो पाये। इसके बाद हमने अपने गाय व्यवसाय पर पूर्ण विराम लगा दिया। फ़िलहाल हम इसे फिर शुरू करने के लिए सही वक़्त का इंतज़ार कर रहे हैं।’ गौ-तस्करी में राज्य पुलिस की संलिप्तता के बारे में जो कुछ जावेद ने ‘तहलका’ को बताया, लगभग वहीं बात प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मवेशी तस्करी मामले में पेश किये अपने आरोप-पत्र में कही थी। इसमें कहा गया था कि सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों की मदद से भारत-बांग्लादेश सीमा के पार मवेशियों की तस्करी की गयी थी। यह 204 पेज का आरोप-पत्र दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत में दायर किया गया था, जिसमें केंद्रीय जाँच एजेंसी ने आरोप लगाया है कि बीएसएफ कर्मी तस्करी में शामिल थे।
रिश्वतख़ोरी के आरोपों से जूझ रही बीएसएफ ने क़रीब ढाई साल तक पूर्वी सीमा पर पशु तस्करी में शामिल लोगों को गिरफ़्तार करने का दृढ़ प्रयास किया। जानवरों को देश के विभिन्न हिस्सों जैसे हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड और अन्य राज्यों से ले जाया जाता है। तस्कर मुख्य रूप से ट्रकों और पिकअप वैनों पर और नक़ली दस्तावेज़ों के साथ लगभग 1,500 से 2,000 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। हालाँकि सीमा पर अधिकारियों का दावा है कि उन्हें (तस्करों और पशुओं को) रास्ते में शायद ही कभी रोका या ज़ब्त किया जाता है।
केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पशु तस्करों के बारे में जो दावा कर रही है, उसमें कुछ बीएसएफ अधिकारियों और कुछ राज्य पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता है। जावेद अहमद के ज़रिये तहलका टीम पशु तस्करों की दुनिया के भीतर तक पहुँची। वहाँ उसने ‘तहलका’ के समक्ष स्वीकार किया कि वह अपने साले के साथ ट्रक में गायों को अवैध रूप से ले जाने में शामिल था।
‘तहलका’ के सामने अपने डरावने बयान में जावेद ने ख़ुलासा किया कि कैसे वह और उसका साला अपने ट्रकों में अवैध रूप से गायों को ले जाने के लिए कुछ गौरक्षकों और राज्य पुलिस अधिकारियों को पैसे दे रहे थे।
रिपोर्टर : कभी ये लोग नहीं मिले तुम्हें रास्ते में, …ये गौरक्षक ?
जावेद : ये मिल जाते थे, ये भी पैसे ले लेते हैं।
रिपोर्टर : अरे नहीं…?
जावेद : और क्या, ये तो $खामा$खा का दिखावा है; …हम ये काम करते हैं, गौ माता को बचा रहे हैं…।
रिपोर्टर : आपका कितना ख़र्चा आ जाता होगा सबको पैसे देने में, …पुलिस वालों और गौरक्षकों को?
जावेद : ये तो 3-4 लोग होते थे; कहीं 5 के, कहीं 10 के, कहीं 2 के, कहीं 3 के….। (‘के’ मतलब हज़ार)।
जावेद ने क़ुबूल किया कि ट्रकों में गायों की अवैध ढुलाई के दौरान वह कई बार पुलिस के हत्थे चढ़ा। पुलिस की यह गिरफ़्तारी एक दिखावा थी। यह संदेश देने के लिए कि वे गायों की रक्षा के लिए कुछ कर रहे हैं।
रिपोर्टर : मतलब कई बार माल पकड़ा भी जाता था क्या? पुलिस वाला स$ख्त हो गया?
जावेद : हाँ, पकड़े भी जाते हैं। ये पकड़वा देते हैं पुलिस से, कि तुम हमारी माता को ले जाते हो।
रिपोर्टर : आप तो कह रहे हो ये ख़ुद ले लेते थे पैसे, …ये गौरक्षक?
जावेद : ये तो ऐसा करते हैं अलग में, जहाँ ये देखा कि तदाद में ज़्यादा हैं, तो वहाँ दिखाना भी तो है कुछ। पुलिस वाले कुछ तो दिखाएँगे।
कई बार पकड़े जाने के बावजूद उसने अपने ट्रक में अवैध रूप से गाय ले जाना बन्द क्यों नहीं किया? इस सवाल के जवाब में जावेद ने बताया कि किसी मुखबिर ने पुलिस को हमारे धंधे के बारे में जानकारी दे दी थी। इसका नतीजा यह हुआ कि हमारे ट्रक को उत्तर प्रदेश में एक ही स्थान पर चार बार रोका गया। जावेद ने कहा कि उसने अपने साले को चेतावनी दी कि वह अब गाय का कारोबार आगे न बढ़ाये; क्योंकि वे पहले ही अवैध व्यापार से अच्छा पैसा कमा चुके हैं। लेकिन साले ने उसकी बात नहीं मानी और जब हमारा ट्रक चौथी बार ज़ब्त किया गया और हमें अपनी ज़मानत और अपने ट्रक की रिहाई पर बड़ी रक़म ख़र्च करनी पड़ी, तब जाकर उसके साले को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने इस धंधे पर पूर्ण विराम लगा दिया।
रिपोर्टर : फिर क्यूँ बन्द कर दिया आपने, का$फी साल काम किया है?
जावेद : चार गाडिय़ाँ पकड़ी गयीं, चार गाडिय़ों में 8 लाख रुपये लग गये।
रिपोर्टर : किसकी गाडिय़ाँ पकड़ी गयीं?
जावेद : साले की और हमारी, …मैंने उसे कहा रहने दे अब, बहुत
कमा लिये।
रिपोर्टर : किस मामले में पकड़ी गयीं?
जावेद : इसी मामले में, गाय वाले में…।
रिपोर्टर : ज़मानत हो गयी?
जावेद : हाँ, ज़मानत वग़ैरह सब हो गयी, …उस टाइम पर तो।
रिपोर्टर : कितने दिन रहे जेल में?
जावेद : 2-3 दिन।
रिपोर्टर : चार ट्रक पकड़े गये इसके, एक साथ?
जावेद : एक साथ नहीं, …अलग-अलग; आज पकड़ा गया फिर छूटा, के दूसरे चक्कर में पकड़ा गया।
रिपोर्टर : पकड़े जाने के बाद भी काम करते रहे? तब तो बन्द कर देते भाई!
जावेद : वही तो, …मैने कहा बेवकूफ़ आदमी को…जो कमाया है, वो सब चला जाएगा…।
रिपोर्टर : और वही हुआ?
जावेद : वही हुआ।
रिपोर्टर : मैं वही तो पूछ रहा हूँ; जब आप इन्हें पैसा दे रहे हो, तो पकड़े कैसे गये?
जावेद : ये सारे के सारे इलाक़े में एक ही थोड़ी ना है!
रिपोर्टर : ये सिकंदराराऊ अलीगढ़ के रास्ते में पड़ता होगा?
जावेद : हाँ।
रिपोर्टर : वहाँ पकड़े गये?
जावेद : वहाँ पे जैसे गाड़ी खड़ी हुई है, आगे रेलवे क्रॉसिंग है, नाले पे चढक़र देख लिया, दिख तो जाती ही हैं। …जैसे ही गेट खुला वो आ गये; पुलिस आयी, फिर वो आये; …कहाँ कि गऊ माता का सौदा कर रहे।
अब जावेद ने बताया कि कैसे गौ तस्कर राजस्थान से सडक़ों पर रहने वाले एक समुदाय से गाय मँगवा रहे थे और उन्हें उत्तर प्रदेश में सप्लाई कर रहे थे। जावेद ने बताया कि सडक़ किनारे रहने वाला यह समुदाय अवैध रूप से सडक़ों से लावारिस गायों को उठाकर तस्करों को सप्लाई कर रहा था। इसके बाद समुदाय ने सडक़ों से उठाकर 50-100 गायों का प्रबंध किया। उन्होंने तस्करों को अपने ट्रकों के साथ एक विशिष्ट स्थान पर पहुँचने के लिए कहा, ताकि गायों को उत्तर प्रदेश में उनके गंतव्य तक पहुँचाया जा सके।
रिपोर्टर : अच्छा, पिछली बार आप सिस्टम समझ रहे थे; …गाय को कहाँ से ले जाते हैं, …राजस्थान से?
जावेद : हाँ, राजस्थान से।
रिपोर्टर : कहाँ से, कैसे लाते हैं ये गाय?
जावेद : राजस्थान में ये जो हैं न लोहा कूटने वाले, रोड पर; इन्हें xxxxxxxx बोलते हैं। ये लोग इकट्ठी कर लेते हैं ढूँढ-ढूँढ के, और जंगल तो भतेरा (बहुत) है वहाँ। तो वो वहाँ से इकट्ठा करके उन्हें बाँध लिया, और वहाँ जो व्यापारी होते हैं, उनको बता दिया, …भाई कितना माल है…100-50, उस हिसाब से, रात को गाड़ी में रखवा दिया।
रिपोर्टर : वो गाय तो किसी और की होंगी, ये कैसे इकट्ठी कर लेंगे?
जावेद : ये वो तो ऐसे ही छोड़ देते, हिन्दू लोग कहते हैं गऊ माता है, रात को ऐसे ही सडक़ों पर रोड साइड बैठी रहती हैं।
रिपोर्टर : वो ऐसे ही घूमती रहती हैं, वो ये चोरी कर लेते होंगे xxxxxxxx?
जावेद : हाँ, चोरी करके, या क्या कहो; वहाँ तो घूम रही हैं लावारिस, किसी की है थोड़ी।
रिपोर्टर : तो कितनी इकट्ठा हो जाती हैं इनको रोज़?
जावेद : रोज़ 50-100…।
रिपोर्टर : रोज़ 50-100 इकट्ठी हो जाती हैं गाय?
जावेद : गाडिय़ाँ भरकर आती हैं।
रिपोर्टर : क्या बात कर रहे हो?
जावेद : हाँ।
रिपोर्टर : 10-10 गाड़ी गायों की भरकर आती हैं कहाँ-से-कहाँ तक?
जावेद : ये तो वहाँ तक जाती थी, …दिल्ली तक; …वहाँ से आगे निकल जाती थी, ….रामपुर, गाँव में।
रिपोर्टर : और ट्रक में भरी रहती थी, …बाहर से दिखती थी क्या?
जावेद : नहीं, …वो तो भरी और लगा दिया पटलियों में।
रिपोर्टर : रास्ते में पुलिस वाले नहीं रोकते थे?
जावेद : पुलिस का तो पैसे का हिसाब बना रहता है ना!
जावेद ने अवैध रूप से मवेशियों को ले जाने के अपने रास्ते के बारे में ‘तहलका’ के सामने क़ुबूल किया। उनके मुताबिक उनका रूट उत्तर प्रदेश में झांसी से सम्भल के बीच था। जावेद ने बताया कि आजकल उत्तर प्रदेश में बहुत ही चोरी-छिपे गाय की ढुलाई हो रही है। लेकिन यहाँ वध नहीं किया जाता।
रिपोर्टर : आपका पहला रूट कौन सा था?
जावेद : पहला रूट था झांसी, …झांसी से सम्भल।
रिपोर्टर : ये आपका रूट था?
जावेद : हाँ, …काम बिलकुल बन्द पड़ा हुआ है।
रिपोर्टर : कुछ तो पहचान वाले होंगे वहाँ पुराने? उनसे कर लो बात। माल जा कैसे रहा है अब?
जावेद : माल जा रहा है ऐसे ही चोरी-छुपे, …माल कट नहीं रहा है
इस तरफ़।
जावेद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के सामने क़ुबूल किया कि वह अपने समय में 52-53 गायों को अपने ट्रक में ले जाता था। और अपने रूट पर 10-12 प्वाइंट पर गौरक्षकों को पैसे देता था। उसके बाद गौरक्षक उसके गायों से भरे ट्रक को सुरक्षा के साथ एक विशेष गंतव्य तक ले जाते थे।
रिपोर्टर : आप पहले जब ट्रक लाते थे, …कितनी गाय लाते थे एक ट्रक में?
जावेद : 52-53 गाय।
रिपोर्टर : और कितनी जगह पैसा देते थे?
जावेद : कम-से-कम 10-12 जगह।
रिपोर्टर : आप पुलिस वालों को ही देते थे या इनको भी गौरक्षकों को?
जावेद : हाँ, इनको देते थे और गौरक्षकों का तो इलाक़ा होता था सेट, …एक आदमी खड़ा होता था इनका, …गाड़ी में से हाथ डाला निकाल लिया। …अब इनके ठिकाने ही तो नहीं पता। जैसे रोड पर खड़ा हुआ है, इसे पता है कि गाड़ी आ रही है, पैसे दिये और गाड़ी आगे। …ये मोटरसाइकिल से आगे तक छोडक़र आते थे।
अब जावेद ने ‘तहलका’ के सामने गायों को अवैध रूप से ले जाने के अपने रास्ते के बारे में बताया। उसके मुताबिक, वे रात क़रीब 8:30 बजे झांसी से गायों को लेकर आते थे और सुबह 6:00 बजे सम्भल पहुँच जाते थे। जावेद ने कहा कि उन्होंने कभी गाय ले जाने वाले ट्रक में यात्रा नहीं की। उस ट्रक को एक ड्राइवर चला रहा होता था, और वह ख़ुद एक अलग बोलेरो में उस ट्रक के पीछे चल रहा होता था। जावेद ने बताया कि उत्तर प्रदेश के कानपुर का एक कसाई रोज़ाना झांसी से गायों के 10-11 ट्रक भरकर लाता था।
रिपोर्टर : गाड़ी आप ही चला रहे होते थे या कोई और?
जावेद : ना-ना, गाड़ी में नहीं चलता था; गाड़ी तो ड्राइवर चलाता था।
रिपोर्टर : आप बैठे रहते थे?
जावेद : आगे-पीछे चलते थे।
रिपोर्टर : अच्छा, ट्रक के साथ अपनी गाड़ी लेकर?
जावेद : हाँ।
रिपोर्टर : कितने बजे निकलते थे आप, रात में या दिन में?
जावेद : रात में 8-8:30 बजे और सुबह 6:00 बजे पहुँच जाते थे।
रिपोर्टर : सुबह 6:00 बजे, उसी टाइम पर निकलते हैं, …और झांसी से कहाँ से उठाते थे आप?
जावेद : झांसी से पहले पड़ता है एक मोड़, …कानपुर से ये एटा-इटावा होते हुए राइट मारते थे भोवालीपुर, वहाँ से सीधा कालपी; कालपी से मोठ, मोठ से जंगल में…।
रिपोर्टर : और जंगल में किससे ख़रीदते थे?
जावेद : xxxxxxxx से, अरे सब जगह यही है।
रिपोर्टर : तो इनसे रोज़ लेते थे आप?
जावेद : डेली। …हमारा ही नहीं था, वहाँ एक तो वो था…कानपुर का कसाई, कम-से-कम 40-50 गाडिय़ाँ आती थीं।
रिपोर्टर : रोज़ गाय से भरी हुई?
जावेद : हाँ, 10-11 रोज़।
रिपोर्टर : झांसी से सम्भल, …सम्भल गढ़ है क्या इन सब चीज़ों का?
जावेद : हाँ, …असल में हाथ भी लगते हैं वहाँ पे।
रिपोर्टर : आपकी गाड़ी कितनी आती थीं रोज़?
जावेद : एक आती थी।
रिपोर्टर : डेली?
जावेद : हाँ, डेली; जैसे आज यहाँ से गये, पहुँच गए वहाँ पे; फिर वहाँ से, वहाँ जाकर खड़ी कर दी ढाबे पे, खाना खाया; …फिर रात को वापसी,
8:30 बजे फोन आ जाता था…गाड़ी लगा दो।
अब जावेद ने गाय ख़रीदने का मूल्य बताया। जावेद ने बताया कि वह राजस्थान में सडक़ों पर रहने वाले समुदाय से 600-800 रुपये प्रति गाय की दर से गाय ख़रीद रहा था। इस समुदाय के लोगों के लिए गायों की कोई क़ीमत नहीं थी; क्योंकि वे उन्हें सडक़ों से उठा रहे थे। जावेद के मुताबिक, गायों से भरे एक ट्रक की क़ीमत उन्हें 50-60 हज़ार रुपये पड़ रही थी और उस भरे ट्रक को 2-2.30 लाख रुपये में बेच रहे थे।
रिपोर्टर : अच्छा, एक ट्रक की कितनी क़ीमत होती होगी; …एक ट्रक
गायों की?
जावेद : होगी कोई 2-2.30 लाख।
रिपोर्टर : और बिकती कितने की थी?
जावेद : ना! वहाँ से ख़रीदते थे तो बिकती इतने की थी, …50-60के (हज़ार) में मिल जाती थी।
रिपोर्टर : 50-60 के में मिल जाता था, पूरा ट्रक गाय का?
जावेद : हाँ, … 600-700 की पड़ती थी एक गाय।
रिपोर्टर : एक गाय! …क्या बात कर रहे हो? जो आप बता रहे हो सडक़ के किनारे बैठी रहती हैं?
जावेद : हाँ।
रिपोर्टर : इतनी सस्ती बेचते थे, …कितने की?
जावेद : 700 की, 800 की।
रिपोर्टर : हाँ, तो उनको तो फ्री की पड़ रही हैं?
जावेद : 50-60 के कौन-से कम हैं?
सम्भल में वह किसे गाय सप्लाई कर रहा था? इसके जवाब में जावेद ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश के सम्भल के कसाइयों को गाय सप्लाई कर रहा था।
रिपोर्टर : और आपकी सप्लाई किसको थी, वहाँ सम्भल में?
जावेद : सम्भल में कसाई ले जाते थे।
जावेद ने ‘तहलका’ के सामने क़ुबूल किया कि 2010-11 में गाय ढोने के अवैध कारोबार से उसने डेढ़ महीने में 8-9 लाख रुपये कमाये। जावेद के मुताबिक, गाय ट्रांसपोर्टिंग का बिजनेस ज़्यादा दिन तक नहीं चलता। इसकी उम्र 5-6 महीने तक ही होती है। उसके बाद कोई मुखबिर आपके धन्धे के बारे में पुलिस को सूचना दे देगा और आपको गिरफ़्तार कर लिया जाएगा।
रिपोर्टर : तो कितने टोटल कमाये थे आपने?
जावेद : 8-9 लाख कमा लिये थे एक-डेढ़ महीने में, …गाय की सप्लाई से।
रिपोर्टर : 8-9 लाख एक महीने में, …ये कब की बात है?
जावेद : 2010 -2011…।
रिपोर्टर : कब-से-कब तक चला है?
जावेद : ये ज़्यादा थोड़ी चलता है, …ये काम; …ज़्यादा-से-ज़्यादा 5-6 महीने…।
रिपोर्टर : अच्छा, इसका भी सीजन होता है?
जावेद : सीजन नहीं, ये होता है न निगाह में आ जाता है; …मुखबरी
हो गयी।
अब जावेद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि वह पश्चिम बंगाल और असम में ऐसे लोगों को जानता है, जो बांग्लादेश में गायों की तस्करी कर रहे हैं। उसने कहा कि वह उन्हें हमसे मिलवाएगा; लेकिन इसके लिए उसे (हमें लेकर) पश्चिम बंगाल जाना होगा।
रिपोर्टर : दूसरा यहाँ से हो सकती है क्या कोलकाता से? …बांग्लादेश जाती है जो स्मगलिंग होकर काउ (गाय), …बंगाल का…मुर्शिदाबाद का कोई आदमी हो?
जावेद : हो तो जाएगा, मगर जुगाड़ करना पड़ेगा; बंगाल में चल रहा है काम ये इस टाइम।
रिपोर्टर : बंगाल में करा दो?
जावेद : बंगाल में चल रहा है, शायद असम में भी चल रहा है; …वो ही है, …जाना पड़ेगा।
रिपोर्टर : बंगाल में है आपकी सेटिंग?
जावेद : हाँ, हो जाएगी।
रिपोर्टर : ये गाय सप्लाई करते हैं बांग्लादेश बॉर्डर क्रॉस करके,…वो
करनी है हमें।
जावेद के मुताबिक, बांग्लादेश में गायों की आपूर्ति करने वाले गौ-तस्कर असम और पश्चिम बंगाल दोनों जगह सक्रिय हैं। दोनों जगह उनके कनेक्शन हैं। लेकिन उनसे बात करने के लिए उन्हें दोनों जगह यात्रा करनी पड़ती है।
रिपोर्टर : असम से करवा दो…?
जावेद : असम जाना पड़ेगा मुझे।
रिपोर्टर : फ़िलहाल कहाँ कनेक्शन हैं आपके?
जावेद : असम में भी, और बंगाल में भी है।
रिपोर्टर : दोनों जगह से करवा दो…?
अब जावेद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर के सामने के चौंकाने वाला ख़ुलासा किया। उसके दावे के मुताबिक, एक साल पहले जब वह सामान सप्लाई करने के लिए अपने ट्रक से असम, कर्नाटक और महाराष्ट्र गया था, तो उसने देखा कि असम, कर्नाटक और महाराष्ट्र की सडक़ किनारे ढाबों पर गोमांस परोसा जाता है। जावेद ने जिन तीन राज्यों का नाम लिया, वे उन राज्यों में से थे, जहाँ उस समय की राज्य सरकारों ने गोहत्या पर प्रतिबंध लगा रखा था।
रिपोर्टर : आख़िरी बार कहाँ xxxxxxxx?
जावेद : वहाँ असम में, गुवाहाटी में, वहाँ xxxxxxxx…।
रिपोर्टर : असम में बिक रहा है गाय का गोश्त?
जावेद : हाँ।
रिपोर्टर : कब गये थे आप?
जावेद : हो गया मुझको लगभग एक साल।
रिपोर्टर : असम में xxxxxxxx था होटल में? खुले आम बिक रहा है?
जावेद : हाँ।
रिपोर्टर : असम में तो बीजेपी की सरकार है?
जावेद : किसी की भी हो।
जावेद : वहाँ निकलकर सारी सेटिंग कर लूँगा; …गाड़ी वाले बहुत
खाते हैं ना!
रिपोर्टर : ट्रक वाले?
जावेद : हाँ, सब खाते हैं होटल में।
रिपोर्टर : ढाबों पर गाय का गोश्त?
जावेद : और क्या सब खाते हैं; …और बताऊँ तुम्हें, महाराष्ट्र में, कर्नाटक में मेवातियों के होटल खुले हुए हैं। ख़ूब मिल रहा है गाय का गोश्त, वही गिरायी उन लोगों ने, वहीं काटी जंगल में, यहाँ तो चार बोटी देते हैं, वहाँ इतनी-इतनी प्लेट (इशारा करते हुए) भरकर देते हैं।
जावेद : ये मैं… शोलापुर गया था मैं पिछले साल गाड़ी लेकर; …वहाँ पर xxxxxxxx…।
रिपोर्टर : गाय का गोश्त xxxxxxxx?
जावेद : हाँ।
रिपोर्टर : और कर्नाटक में?
जावेद : कर्नाटक में भी।
रिपोर्टर : वो कब xxxxxxxx?
जावेद : वो भी पिछले साल वहीं से आगे चले गये थे कर्नाटक।
तो यह जावेद था, जिसने ‘तहलका’ पत्रकार के सामने पशु तस्करी की दुनिया का सारा काला चिट्ठा खोलकर रख दिया। बांग्लादेश सीमा पर मवेशियों की तस्करी दुधारू गाय (नक़दी) जैसी है, जिसे कोई भी रोकना नहीं चाहता। उलटे वो ऐसा करने से डरते हैं; क्योंकि पशु तस्करी के सरगनाओं के पीछे राजनीति और अपराध से जुड़े लोगों का ताक़तवर गठजोड़ है। आख़िर यह अवैध व्यापार सैकड़ों करोड़ रुपये का है, जिसमें उच्च और ताक़तवर लोग संलिप्त हैं।