– काम करने लगा दुनिया का सबसे बड़ा टेलीस्कोप
– भारत का स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष के लगा रहा चक्कर
इधर भारत का ड्रैगन कैप्सूल ग्रेस इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से अपनी दिलचस्प अंतरिक्ष यात्रा करके लौट आया है और उधर चिली के एक पहाड़ पर स्थित दुनिया के सबसे बड़े टेलीस्कोप ने काम करना शुरू कर दिया है। इधर भारत ने ठाना है कि वह अपना स्पेस स्टेशन बनाएगा। इस पर काम भी हो रहा है। इसरो के मुताबिक, साल 2035 तक क़रीब 52 टन का भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन होगा, जो धरती से क़रीब 400 किलोमीटर दूरी पर चक्कर लगाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक ऐसा राकेट बना रहा है, जो पृथ्वी की लोअर आर्बिट में 75,000 किलोग्राम तक के सैटेलाइट लॉन्च कर सकेगा। वहीं चिली में बने टेलीस्कोप का नाम ग्रैन टेलीस्कोपियो कैनेरियास रखा गया है, जो दुनिया के सबसे बड़े ऑप्टिकल से बना है।
यह टेलीस्कोप ऑब्जर्वेटरी अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन और यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के पैसे से बना है। कई साल की मेहनत के बाद बीते 23 जून, 2025 को इस सबसे बड़े टेलीस्कोप के दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल कैमरे ने ब्रह्मांड की पहली बार सबसे दूर की ख़ूबसूरत और रहस्यमयी तस्वीरें खींचीं, जिन्हें वैज्ञानिकों ने जारी किया है। इन तस्वीरों में रंग-बिरंगे नेबुला, ग्रह, उपग्रह, तारे और ब्रह्मांड में बसी ट्राइफेड और लैगून नेबुला के साथ-साथ वर्गों क्लस्टर की आकाशगंगाओं की तस्वीरें शामिल हैं। नये एस्टेरॉयड व अन्य खगोलीय पिंडों की खोज करना है। यह कैमरा वेरा सी. रुबिन ऑब्जर्वेटरी में लगाया गया है, जहाँ से ब्रह्मांड में दक्षिणी ध्रुव का अगले 10 साल तक वैज्ञानिक अध्ययन करेंगे। पिछले क़रीब चार-पाँच वर्षों से क़रीब दुनिया के सबसे बड़े 16 देशों के वैज्ञानिक संगठन यूरोपीय सदन ऑब्जर्वेटरी के सैकड़ों वैज्ञानिक और इंजीनियर हज़ारों सहयोगियों के साथ इस टेलीस्कोप को बनाने में लगे हुए हैं और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वो चिली के पहाड़ों और रेगिस्तान में रह रहे हैं। इस टेलीस्कोप को अभी पूरी तरह से काम करने में तीन साल और लगेंगे।

वैज्ञानिकों ने इसे साल 2028 तक पूरी तरह और ज़्यादा बेहतर तरीक़े से काम करने लायक बनाने की योजना बनायी है। उनका मानना है कि इस टेलीस्कोप से ब्रह्मांड की खोज में बहुत आसानी होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस टेलीस्कोप और इसमें लगे कैमरे से ज़मीन पर रहते हुए ब्रह्मांड में होने वाली अजीब-ओ-ग़रीब गतिविधियों का अध्ययन किया जा सकेगा। हैरानी की बात है कि वैज्ञानिकों ने यह टेलीस्कोप को किसी लैब में नहीं बनाया, बल्कि चिली के एक बड़े पहाड़ को काटकर उसी पर वहीं बनाया गया है। इस टेलीस्कोप का सिर्फ़ प्राइमरी लैंस ही 39.3 मीटर चौड़ा है, जो कि एक फुटबॉल ग्राउंड के बराबर होता है। यह लैंस किसी एक काँच से नहीं, बल्कि 798 हेक्सागोनल टुकड़ों से बनाया गया है। इस लैंस की पावर इतनी ज़्यादा है कि इसके ज़रिये हज़ारों बड़े-बड़े ग्रहों के समूह को आसानी से एक साथ ऐसे देखा जा सकता है, जैसे वो सब नजदीक ही हों। इस टेलीस्कोप की देखने की क्षमता इतनी ज़्यादा है कि यह इंसान की आँखों की तुलना में 100 मिलियन गुना प्रकाश एकत्र करके हब्बल टेलीस्कोप की तुलना में 16 गुना ज़्यादा स्पष्ट तस्वीर लेने में सक्षम है। इसके अलावा इस टेलीस्कोप की प्रकाश-एकत्रण क्षमता इस हब्बल टेलीस्कोप से 250 गुना ज़्यादा होगी। यह टेलीस्कोप 80 मीटर ऊँचा और 50 मीटर चौड़ा है यानी यह टेलीस्कोप एक गगनचुंबी इमारत जैसा है, जिसे कैमरे और लैंसों को ब्रह्मांड के किसी भी कोने की तरफ़ घुमाकर उसे साफ़-साफ़ देखा जा सकेगा।

अभी तक वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के सौरमंडल वाले हिस्से में ही अपनी उपलब्धियाँ हासिल की हैं; लेकिन वैज्ञानिक सौरमंडल के अंदर-बाहर भी झाँकना चाहते हैं, जहाँ पर किसी भी हाल में इंसानों और वैज्ञानिकों द्वारा बनाये गये सेटेलाइट्स, यानों और अन्य मशीनों को पहुँचना मुमकिन नहीं हो सका है। हालाँकि ऐसी कोशिशें वैज्ञानिकों ने लगातार की हैं, जिनमें अभी तक कोई कामयाबी हासिल नहीं हो सकी है। इसलिए वैज्ञानिकों ने अब बड़े-बड़े टेलीस्कोप बनाने शुरू किये हैं, जिससे उनके ज़रिये ब्रह्मांड की गतिविधियों का पता लगाया जा सके और यह समझा जा सके कि इंसानों का ब्रह्मांड में पहुँचने का रास्ता कैसे निकल सकता है। वैज्ञानिकों की कोशिश है कि प्राचीन किताबों में लिखे गये रहस्यों से पर्दा उठाने के साथ-साथ वे उस रहस्यमयी दुनिया की खोज भी कर सकें, जहाँ इंसान धरती की तरह रह सकें। इस कड़ी में वैज्ञानिकों ने अब तक के दुनिया के सबसे बड़े टेलीस्कोप का निर्माण कर लिया है, जो ब्रह्मांड में वहाँ भी देख सकता है, जहाँ वैज्ञानिकों के बनाये हुए यान और सेटेलाइट भी नहीं पहुँच पाते। वैज्ञानिक इस ऑब्जर्वेटरी टेलीस्कोप कैमरे से कम-से-कम 20 अरब आकाशगंगाओं की तस्वीरें लेना चाहते हैं। अब तक दुनिया में अनगिनत टेलीस्कोप बन चुके हैं; लेकिन ब्रह्मांड में झाँकने के लिए बने टेलीस्कोप बहुत कम हैं। हालाँकि टेलीस्कोप का सही इतिहास किसी को नहीं मालूम; क्योंकि इंसान ने दूर की चीज़ें देखने के लिए तारों, ग्रहों और उपग्रहों की गणना के लिए टेलीस्कोप का उपयोग प्राचीन-काल में भी किया होगा, जिसका सुबूत भारत में ब्रह्मांड की सटीक गणना से मिलता है। दिल्ली का जंतर-मंतर आज भी ब्रह्मांड की गणना का जीता-जागता सुबूत है।
फिर भी अब तक बने टेलीस्कोपों में रेडियो टेलीस्कोप, ग्रैन टेलीस्कोपियो कलारियास, केक टेलीस्कोप, ऑप्टिकल टेलीस्कोप, बीटीए-6 टेलीस्कोप, हुकर टेलीस्कोप, लेविथान टेलीस्कोप, हेल टेलीस्कोप, ग्रेगोरियन रिफ्लेक्टर टेलीस्कोप, क्रिस्टियान ह्यूजेन्स टेलीस्कोप, जेम्स वेब टेलीस्कोप, बेरिलियम टेलीस्कोप, हबल टेलीस्कोप, हॉबी-एबर्ली टेलीस्कोप, हर्शेल टेलीस्कोप, ग्रेट डोरमेट रिफ्रैक्टर टेलीस्कोप, रॉसे टेलीस्कोप आदि प्रमुख रहे हैं। लेकिन अब जो टेलीस्कोप बना है, वो भविष्य की उन इंसानी पीढ़ियों के लिए एक खिड़की होगी, जो शायद कभी इस ज़मीन से अलग ब्रह्मांड की दूसरी दुनिया में जाकर बसने में मदद करेगी। यह टेलीस्कोप विज्ञान और कला के साथ-साथ इंसानों की तरक़्क़ी का एक ऐसा जीता-जागता उदाहरण है, जो हमें आसमान में सैर करने का हौसला देता है। इसके साथ ही वैज्ञानिकों की मिलीजुली मेहनत यह बताती है कि इंसान एकजुट होकर बड़े-से-बड़े लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। क़रीब 16 देशों के वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे बड़े टेलीस्कोप को बनाकर यह साबित कर दिया है कि मिलजुलकर काम करने से ही दुनिया का भला हो सकता है। यह विशालकाय टेलीस्कोप वैज्ञानिकों की प्रयोगशाला से ज़्यादा लोगों के उज्जवल भविष्य की खोज के लिए काम करेगा। इसे चिली के अटाकामा रेगिस्तान में इसलिए बनाया गया है, जिससे टेलीस्कोप को सबसे साफ़ और स्थिर जगह मिल सके और उससे सबसे सूखे और खुले आसमान के पार जाकर ब्रह्मांड में बनी आकाशगंगाओं को साफ़-साफ़ देखा जा सके। इसलिए इस टेलीस्कोप को अटाकामा की सबसे ऊँचे क़रीब 3,000 मीटर ऊँचे सेरो अमेज़न पहाड़ पर बनाया गया है। इस पहाड़ पर हवा पतली और प्रदूषण रहित है। इस पहाड़ को टेलीस्कोप बनाने लायक बनाने के लिए सबसे पहले समतल किया गया, जिसके लिए बम ब्लास्ट करके पहले पहाड़ के ऊपरी हिस्से को तोड़ा गया और फिर बड़ी-बड़ी मशीनें से उसे ऊपर से समतल किया गया। टेलीस्कोप का वजन क़रीब 5,000 टन है, जिसकी देखरेख और संचालन के लिए वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की एक बड़ी टीम अब इसी टेलीस्कोप के पास ज़िन्दगी बिताएगी।
इस टेलीस्कोप को बनाने के लिए अटाकामा की इतनी ऊँची और उबड़ खाबड़ पहाड़ियों पर भारी-भारी मशीनें और टेलीस्कोप में लगने वाली सामग्री ले जाकर इतनी सटीक इंजीनियरिंग को ब्रह्मांड के अध्ययन करने लायक दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा टेलीस्कोप बनाना अपने आप में एक चुनौती थी; लेकिन वैज्ञानिकों ने इसके सफलतापूर्वक बनाकर यह साबित कर दिया कि विज्ञान विकास के नये आयाम गढ़ रहा है। वैज्ञानिकों ने यह चमत्कार पहली बार किया है कि किसी ऊँचे पहाड़ पर पहाड़ जैसी टेलीस्कोप मशीन खड़ी कर दी, जो अच्छी तरह काम भी कर रही है। इस टेलीस्कोप को बनाने में वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और टेक्नीशियनों के अलावा हज़ारों कर्मचारियों और मज़दूरों का भी बड़ा योगदान रहा है। दावा किया जा रहा है कि इस टेलीस्कोप का हर हिस्सा किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह टेलीस्कोप धरती से ही ब्रह्मांड में लाखों किलोमीटर दूर की गतिविधियों की एक अच्छे डिजिटल फ़िल्म कैमरे से 10 गुना ज़्यादा स्पष्ट बिलकुल नासा के हबल स्पेस टेलीस्कोप की तरह तस्वीर लेने में सक्षम है।
टेलीस्कोप की एडाप्टिव ऑप्टिक्स टेक्नोलॉजी से वायुमंडल की हलचल को रियल टाइम में ठीक किया जा सकता है, जिससे ब्रह्मांड की बिलकुल साफ़ एचडी तस्वीर दिखेगी; लेकिन इस टेलीस्कोप का मक़सद सिर्फ़ ब्रह्मांड की अकल्पनीय तस्वीरें लेना ही नहीं है, बल्कि ब्रह्मांड के सबसे रहस्यों को सुलझाकर उन अनसुलझे सवालों के जवाब खोजना है, जो सदियों से लोगों को हैरान किये हुए हैं। जैसे कि ब्रह्मांड कितना बड़ा है? ब्रह्मांड में क्या होता है? ब्लैक होल्स कैसे बनते-बिगड़ते हैं? क्या ब्रह्मांड में और भी सौर मंडल हैं? क्या ब्रह्मांड में कहीं और भी ज़िन्दगी जीने के संसाधन हैं? क्या ब्रह्मांड में आग, हवा और पानी जैसे तत्त्व और कहीं भी मौज़ूद हैं? अगर किसी ग्रह पर ज़िन्दगी के लक्षण होंगे, तो शायद पहली झलक इस टेलीस्कोप के ज़रिये देखी जा सके। ब्रह्मांड एक ऐसा रहस्य है, जिसे कोई पूरा नहीं समझ पाया। लेकिन वैज्ञानिक इसे समझने की कोशिशों में लगातार लगे हैं। हालाँकि वैज्ञानिक अभी तक ज़मीन के ही सभी रहस्यों को नहीं समझ सके हैं। लेकिन लंबे समय से ब्रह्मांड के रहस्यों की खोज में भी उन्हें काफ़ी सफलता मिल चुकी है। वैज्ञानिक जैसे-जैसे नये-नये ज़्यादा उपयोगी उपकरण बनाते जा रहे हैं, वैसे-वैसे ब्रह्मांड के रहस्यों से पर्दा उठता जा रहा है। वैज्ञानिकों की ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने की कोशिशों के पीछे इंसानी ज़िन्दगी को बेहतर-से-बेहतर और सुविधाजनक बनाने का मक़सद है। आज एक तरफ़ जहाँ चंद बड़े लोग अपने फ़ायदे के लिए इंसानों की हत्या करने पर आमादा हैं, वहीं वैज्ञानिक ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजकर मौत को भी रोकना चाहते हैं। हालाँकि इसकी कि