*कोचिंग सेंटर्स की मिलीभगत से पूरे भारत में फल-फूल रहे हैं डमी स्कूल !
इंट्रो – अभिभावक अपने बच्चों को कितने ही महँगे स्कूलों में पढ़ा लें; लेकिन उन्हें यह डर रहता है कि बिना कोचिंग के बच्चों के अच्छे अंक नहीं आएँगे। इसके पीछे स्कूलों द्वारा सही तरीक़े से पढ़ाई न कराने की सीधी-सी कहानी है। आज पूरे भारत में जितने भी स्कूल हैं, उनमें से ज़्यादातर स्कूलों के प्रबंधकों की कोचिंग सेंटर्स से मिलीभगत है, जिसके दम पर अब डमी स्कूल फल-फूल रहे हैं। ये डमी स्कूल अवैध रूप से विद्यार्थियों को नियमित कक्षाएँ न देकर छोटी-बड़ी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं, विशेष रूप से नीट, जेईई और दूसरी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए कोचिंग करने पर ज़ोर देते हैं। हैरानी की बात यह है कि यह सब सीबीएसई की नाक के नीचे होता है। ‘तहलका’ ने नियमों को ताक पर रखकर चल रहे कई कोचिंग सेंटर्स की ख़ुफ़िया जानकारी जुटाकर पिछले अंक में भी आवरण कथा प्रकाशित की थी, जिसके बाद कई कोचिंग सेंटर्स पर बड़ी कार्रवाई करते हुए शिक्षा विभाग ने उन्हें सील कर दिया। अब ‘तहलका’ के ख़ुफ़िया कैमरे में हमारी एसआईटी ने डमी स्कूलों और कोचिंग सेंटर्स की साँठगाँठ को लेकर जानकारी जुटायी है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट :-
भारत के बड़े कोचिंग सेंटर्स चलाने वाले ‘तहलका’ के ख़ुफ़िया कैमरे पर यह स्वीकार करते हुए क़ैद हुए हैं कि वे डमी स्कूलों (बनावटी विद्यालयों), जिन्हें नॉन-अटेंडिंग स्कूल (अनुपस्थित विद्यालय) भी कहा जाता है; में प्रवेश दिलाने के लिए इच्छुक विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों का मार्गदर्शन करते हैं। उल्लेखनीय है कि इनमें से एक संस्थान, ओटीटी प्लेटफॉर्म, अमेजॅन प्राइम पर एक वेब शृंखला के बाद भारत में एक घरेलू नाम बन गया। ये डमी स्कूल विद्यार्थियों को नियमित कक्षाएँ छोड़कर केवल और केवल नीट / जेईई जैसी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए कोचिंग पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह और अनुमति देते हैं।
इन कोचिंग सेंटरों और डमी स्कूलों के बीच गहरा सम्बन्ध है। जो अभिभावक और छात्र एनईईटी / जेईई कोचिंग के लिए इन संस्थानों से संपर्क करते हैं, उन्हें डमी स्कूलों में प्रवेश के अनुरोध के साथ-साथ संस्थानों द्वारा बिचौलियों की सहायता प्रदान की जाती है। ये बिचौलिये दिल्ली-एनसीआर में सीबीएसई-संबद्ध डमी स्कूलों की सूची जुटाकर हर हफ़्ते कोचिंग सेंटर्स के कुछ दौरे करते हैं, जहाँ इच्छुक विद्यार्थियों को प्रवेश मिल सकता है। ये बिचौलिये विद्यार्थियों को डमी स्कूलों में प्रवेश दिलाने के बदले में कोचिंग सेंटर्स को कमीशन का भुगतान करते हैं।
डमी स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया केवल 11वीं कक्षा में होती है। माता-पिता / अभिभावक और विद्यार्थी खुले तौर पर डमी स्कूलों के लिए अपनी प्राथमिकता व्यक्त करते हैं। वे अपने बच्चों को कोचिंग सेंटर्स के माध्यम से ऐसे चयनित सीबीएसई स्कूलों में दाख़िला दिलाते हैं, जहाँ उन्हें कक्षा में जाकर पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती है। यद्यपि विद्यार्थी डमी स्कूलों को भी मासिक शुल्क (मंथली फीस) देते हैं; लेकिन वे स्कूल की नियमित कक्षाओं में पढ़ने नहीं जाते हैं। इसकी जगह वे कोचिंग सेंटर्स में पढ़ाई करते हैं। ‘तहलका’ एसआईटी की पड़ताल से पता चला है कि डमी स्कूलों में इन अनुपस्थित विद्यार्थियों की उपस्थिति नियमित मासिक शुल्क के बदले में स्कूल प्रशासन द्वारा दर्ज की जाती है। विद्यार्थियों को केवल इन डमी स्कूलों की वार्षिक परीक्षा / मुख्य परीक्षाओं में ही शामिल होना होता है।
शिक्षकों का तर्क है कि डमी स्कूल देश में स्कूली शिक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर रहे हैं। वे सीबीएसई से स्कूलों का निरीक्षण करने और उन स्कूलों की पहचान करने का आग्रह करते हैं, जो निजी कोचिंग सेंटर्स के साथ मिले हुए हैं। कुछ लोगों ने चेतावनी दी है कि यदि यह अनुचित शिक्षा प्रणाली अनियंत्रित हो गयी, तो ज़्यादातर स्कूल भी इसका अनुसरण करेंगे, जिससे समग्र शिक्षा व्यवस्था में गिरावट आएगी और स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था चौपट होने लगेगी। एक जनहित याचिका (पीआईएल) से पता चलता है कि दिल्ली के स्कूलों में अन्य राज्यों के छात्रों को दाख़िला देने के लिए डमी स्कूलों का भी उपयोग किया जाता है, जिससे वे दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में 85 प्रतिशत कोटा के लिए पात्र हो जाते हैं। अन्य लोग परीक्षा की तैयारी के लिए डमी स्कूल पसंद करते हैं; क्योंकि यह हर दिन स्कूल और कोचिंग सेंटर, दोनों में जाने की तुलना में कम थका देने वाला होता है।
पिछले साल सितंबर में दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली में सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग वाली याचिका के जवाब में दिल्ली सरकार और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को नोटिस जारी किया था। ये स्कूल कथित तौर पर कक्षा 11 और 12 के छात्रों को डमी स्कूलों द्वारा शिक्षा देने के अवैध कारोबार में शामिल थे। सीबीएसई द्वारा डमी छात्रों को नामांकित करने के लिए दिल्ली के पाँच स्कूलों सहित 20 स्कूलों को असंबद्ध करने के बावजूद डमी स्कूलों का अवैध धंधा धड़ल्ले से फल-फूल रहा है। यह अखिल भारतीय व्यवसाय एक दशक से अधिक समय से चल रहा है। इस फलते-फूलते कारोबार का पर्दाफ़ाश करने के लिए ‘तहलका’ ने कोचिंग संस्थानों के साथ मिलकर संचालित होने वाले डमी स्कूलों की उत्सुकता से प्रतीक्षित गहन पड़ताल की। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने दिल्ली और नोएडा के कई प्रमुख कोचिंग सेंटर्स से संपर्क किया। उल्लेखनीय रूप से ये कोचिंग सेंटर्स नीट / जेईई की तैयारी कराने के लिए रिपोर्टर द्वारा काल्पनिक रूप से प्रवेश के लिए बताये गये विद्यार्थी के प्रवेश के लिए उनके अनुरोध पर सहमत हुए और रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि वे (कोचिंग सेंटर्स) दिल्ली में सीबीएसई से संबद्ध डमी स्कूल में बच्चे (काल्पनिक विद्यार्थी) को प्रवेश दिलाने की सुविधा भी देंगे।
‘हम भी नक़ली व्यवसाय में हैं। कोचिंग सेंटर्स के लिए डमी स्कूल एक बहुत-ही लाभदायक व्यवसाय है। हमें डमी स्कूल में प्रत्येक प्रवेश के लिए कमीशन के रूप में 15-20 हज़ार मिलते हैं। यह कमीशन बिचौलियों से आता है, जो डमी स्कूल और कोचिंग सेंटर्स के बीच समन्वय स्थापित करते हैं। डमी स्कूल कोचिंग उद्योग के लिए महत्त्वपूर्ण रूप से पैसा कमाने का ज़रिया हैं। वर्तमान में हमारे डमी स्कूलों में 10-12 छात्र नामांकित हैं। इन डमी छात्रों के लिए हम सुबह नहीं, बल्कि शाम को कक्षाएँ संचालित करते हैं।’ -एक संस्थान की प्रबंधक रति चौहान (बदला हुआ नाम) ने यह ‘तहलका’ के ख़ुफ़िया कैमरे के सामने बताया।
‘तहलका’ रिपोर्टर ने रति से पूर्वी दिल्ली के निर्माण विहार स्थित उसके एक सेंटर में मुलाक़ात की, जो ख़ुद को नीट / जेईई की तैयारी कराने और एक डमी स्कूल में रिपोर्टर द्वारा ख़ुद को एक अभिभावक के रूप में प्रस्तुत करने पर उनके द्वारा अपने बच्चे के रूप में बताये गये (काल्पनिक) विद्यार्थी के लिए प्रवेश दिलाने को तैयार थी। रति हमारे (काल्पनिक) बच्चे को एनईईटी / जेईई की तैयारी के लिए दाख़िला देने के लिए सहमत हो गयी और उसने डमी स्कूल व्यवसाय को कोचिंग सेंटर के लिए अत्यधिक आकर्षक बताते हुए डमी स्कूल में प्रवेश दिलाने में सहायता करने का रिपोर्टर से वादा किया। रति के मुताबिक, संस्थान में फ़िलहाल 10-12 विद्यार्थी डमी स्कूलों में नामांकित हैं। बातचीत से यह बात सामने आती है कि डमी स्कूलों की धुँधली दुनिया में विद्यार्थी और संस्थान दोनों ही धोखे के जाल में फँस गये हैं। बिचौलियों और स्कूलों के बीच सम्बन्ध सिर्फ़ मुनाफ़ा कमाने की योजना को उजागर करते हैं, जो गोपनीयता और हेरफेर पर पनपती है।
रति : हम भी डमी कराते हैं। डमी हम भी कराते हैं; …बट (परन्तु) हम प्रमोट नहीं करते। क्यूँकि बच्चा ख़राब हो जाता है। फ़ायदा है उसमें!
रिपोर्टर : क्या फ़ायदा है मैम?
रति : आप जब भी चेक देंगे, वो स्कूल के नाम का चेक देंगे; …जितनी उनकी फीस होगी। हमारा 15 थाउजेंड या 20 थाउजेंड (हज़ार) मीडिएटर (बिचौलिये) का होता है।
रिपोर्टर : अच्छा; स्कूल आपको कमीशन देगा?
रति : स्कूल नहीं, जो मीडिएटर होगा; जिसको जिसके थ्रू हम कराएँगे। हमारे बीच में दो सोर्स होते हैं, …स्कूल के जो- मीडिएटर्स।
रिपोर्टर : मिडिलमैन?
रति : जो पब्लिक डीलिंग करते हैं। …जैसे आप स्कूल जाते हैं, कोऑर्डिनेटर होता है; आप सीधा प्रिंसिपल से नहीं मिल सकते। यू हैव टू मीट कोऑर्डिनेटर। सिम्पली हमें भी स्कूल से मिलने के लिए कोऑर्डिनेटर को सपोर्ट करना पड़ता है। उससे मिलते हैं, वो सारा सेटअप स्कूल से करवाता है। ऐंड देन इंस्टीट्यूट को बहुत फ़ायदा है डमी से। पैसा बहुत अच्छा आता है डमी से। वो कॉस्टली भी होता है।
रिपोर्टर : अभी कितने बच्चे होंगे डमी में?
रति : हम डमी भी देते हैं, तो ईवनिंग (शाम) में; …मॉर्निंग (सुबह) में कोई डमी क्लास नहीं देंगे। ईवनिंग ही देंगे; …सेम।
रिपोर्टर : अभी कितने बच्चे हैं?
रति : आप मानोगे नहीं! क़रीब 10-12 बच्चे हैं अभी।
‘हमारे पास कोचिंग सेंटर्स से जुड़े डमी स्कूलों की एक सूची है, जो सभी सीबीएसई से संबद्ध हैं और शाहदरा, लोनी और रोहिणी में स्थित हैं। छात्रों को दो साल में एक बार भी स्कूल जाने की ज़रूरत नहीं है, यही कारण है कि वे डमी स्कूल पसंद करते हैं।’ -रति ने ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर को बताया। निम्नलिखित बातचीत के आदान-प्रदान में डमी स्कूलों की छायादार दुनिया को उजागर किया गया है, जिससे यह उजागर होता है कि ये संस्थान भारतीय शिक्षा प्रणाली में कितनी गहराई तक घुसे हुए हैं। यह उस चिन्ताजनक सहजता को उजागर करता है, जिसके जाल में फँसकर विद्यार्थी पारंपरिक स्कूली शिक्षा को दरकिनार कर देते हैं।
रिपोर्टर : और अगर हम डमी के लिए जाते हैं नेक्स्ट ईयर (अगले साल), तो आपके कौन-कौन से स्कूल हैं डमी वाले?
रति : वो सब मैं आपको लिस्टिंग कर दूँगी।
रिपोर्टर : सब सीबीएसई के हैं?
रति : सीबीएसई एफिलिएटेड (संबद्ध) ही होते हैं। …गवर्नमेंट का नही होता है।
रिपोर्टर : आस-पास मिल जाएँगे स्कूल्स कहीं?
रति : सर! ये मुश्किल होता है। शाहदरा में एक है। लोनी के पास है। फिर रोहिणी में हैं दो-तीन स्कूल्स। क्यूँकि बच्चों को जाना तो होता नहीं, पूरे दो साल में एक बार भी नहीं जाता।
रिपोर्टर : एक बार भी नहीं?
रति : कुछ नहीं, तभी तो बच्चा लेता है।
‘वास्तव में डमी स्कूल की अवधारणा भारत में काफ़ी पुरानी है। जब मैंने 2013 में देवघर, झारखण्ड से 12वीं कक्षा पूरी की, तो मेरे क्षेत्र के छात्र पहले से ही दिल्ली से डमी स्कूलों और कोचिंग का उपयोग कर रहे थे।’ -रति ने ख़ुलासा किया। रति द्वारा यहाँ बताये गये तथ्य इस बात को रेखांकित करते हैं कि डमी स्कूलों की अवधारणा। हालाँकि अवैध और अनैतिक है, इसकी जड़ें गहरी हैं। यह बातचीत इसके इतिहास पर प्रकाश डालती है, जिससे पता चलता है कि कैसे यह एक दशक से अधिक समय तक चुपचाप अस्तित्व में रहा, जिसने झारखण्ड जैसे छोटे राज्यों के शैक्षिक परिदृश्य को भी प्रभावित किया।
रिपोर्टर : ये कॉन्सेप्ट शुरू क्यूँ हुआ मैम?
रति : कॉन्सेप्ट, …ये मेरे टाइम का कॉन्सेप्ट है। बहुत पुराना; जब मैंने ट्वेल्थ (12वीं) किया है, इन 2013 आई डिड ट्वेल्थ। (2013 में मैंने 12वीं की।)
रिपोर्टर : इतना पुराना है ये?
रति : आई एम टॉकिंग अबाउट माईसेल्फ। (मैं अपने बारे में बात कर रही हूँ।)
रिपोर्टर : आई एम टॉकिंग अबाउट डमी। (मैं डमी के बारे में बात कर रहा हूँ।)
रति : बहुत पुराना है। मैं स्माल स्टेट (छोटे राज्य) से हूँ; …झारखण्ड से। उस समय मेरे फ्रेंड्स, 2013 में; …दे वेयर डूइंग कोचिंग इन डेल्ही। (वे दिल्ली में कोचिंग कर रहे थे।)
रिपोर्टर : 11 ईयर्स (साल) पहले की बात है! हमने तो अभी सुना है।
रति : यस-यस। बहुत पुराना है सर! मेरे फ्रेंड्स दिल्ली में आकर; …दे वेयर डूइंग कोचिंग इन नारायणा ऐंड ऑल, ….वहाँ भी देवघर में जहाँ से मैं हूँ। वहाँ भी सबने छोटे-छोटे स्कूल्स बनाये हैं। सबकी श$क्लें दिखती हैं, जब बोर्ड एग्जाम देना होता है।
रति के बाद हम एक अन्य प्रमुख संस्थान के कार्यालय में राबिया सदफ़ (बदला हुआ नाम) से एक फ़र्ज़ी सौदे के साथ मिले कि हम अपने बच्चे को उनके संस्थान में नीट कोचिंग के लिए प्रवेश दिलाना चाहते हैं और उसे डमी स्कूल में भी प्रवेश दिलाना चाहते हैं। ‘हाँ, हमने डमी स्कूलों के साथ गठजोड़ किया है, क्योंकि कई छात्र प्रवेश के लिए कहते हैं। हमारे संस्थान के अधिकांश छात्र डमी स्कूलों में नामांकित हैं, जो सभी सीबीएसई से संबद्ध हैं और दिल्ली और नोएडा में स्थित हैं। इन दाख़िलों की सुविधा के लिए एक दलाल नियमित रूप से हमारे कोचिंग सेंटर में आता है।’ -नोएडा में एक प्रसिद्ध कोचिंग संस्थान की सेक्टर-18 शाखा में परामर्शदाता राबिया ने हमारे अंडरकवर रिपोर्टर को बताया। राबिया ने हमें आश्वासन दिया कि वह हमारे बच्चे को डमी स्कूल में दाख़िला दिलाने के लिए हर संभव मदद करेगी। संवाद इस छायादार शैक्षिक नेटवर्क को नेविगेट करने के व्यावहारिक पहलुओं का ख़ुलासा करता है। ग़ैर-उपस्थित स्कूलों से लेकर महत्त्वपूर्ण संदर्भों तक, यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि ये संस्थान कैसे संचालित होते हैं और छात्रों के लिए विकल्प प्रदान करते हैं।
रिपोर्टर : प्रतीक जी से बात हुई थी मेरी इलेवंथ (11वीं) में एडमिशन के लिए; नॉन अटेंडिंग स्कूल। (अनुपस्थिति वाले स्कूल।)
राबिया : तो वो स्कूल जा रहे हैं ना?
रिपोर्टर : ही विल लीव दि स्कूल। (वह स्कूल छोड़ देगा।)
राबिया : अच्छा; ही विल बी लीविंग दि स्कूल? हाँ; तो स्कूलिंग के लिए हम करवा देंगे। हाँ; डमी स्कूल्स से टाईअप है। वो हम करवा देंगे; अगर आपको लेना है।
रिपोर्टर : मुझे प्रतीक जी ने बताया- हम रेफरेंस दे देंगे आपको। …उनको डमी स्कूल्स कहते हैं।
राबिया : हाँ; डमी स्कूल्स।
रिपोर्टर : स्कूल्स कौन-कौन से हैं?
राबिया : वो तो मेरे पास नहीं हैं। एक मैम आती हैं, उनसे पूछना पड़ेगा।
रिपोर्टर : कौन-सी मैम हैं?
राबिया : उन्हीं के हैंड से है, जो हमारी मैम हैं; …रेफरेंस वाली। हमारे पास बच्चे आते हैं, तो उनको प्रोवाइड करना ही पड़ता है।
रिपोर्टर : हैं आपके पास बच्चे?
राबिया : हाँ; बहुत-से बच्चे। …मोस्टली तो नॉन-अटेंडिंग वाले ही होते हैं।
रिपोर्टर : मोस्टली नॉन-अटेंडिंग वाले हैं! ….डमी वाले?
राबिया : हाँ; अब बच्चों को लगता है स्कूल में टाइम ज़्यादा ऑक्यूपाइड (बर्बाद) हो रहा है।
रिपोर्टर : प्रतीक चौधरी क्या हैं?
राबिया : वो भी काउंसलर हैं।
रिपोर्टर : मैम! ये नॉन-अटेंडिंग स्कूल्स नोएडा के ही हैं या दिल्ली के भी हैं?
राबिया : दोनों ही रहते हैं मैम! प्रिफरेंस रहेगा आपका। आपको अगर बेनिफिट मिल रहा है, तो मिल जाता है दिल्ली का भी। …वो फोन उठा नहीं रही हैं। मैं नंबर दे दूँगी, आप बात कर लेना।
रिपोर्टर : आपके रेफरेंस से बात कर लूँ?
राबिया : हाँ।
रिपोर्टर : ये डमी स्कूल्स सीबीएसई रहेंगे?
राबिया : हाँ-हाँ; और अगर हम आपको रेफरेंस दे रहे हैं, तो डेफिनेटली एडमिशन होगा।
‘आप (बच्चे के लिए) दो साल की डमी स्कूल फीस के लिए 1.20 से 1.30 लाख रुपये का भुगतान करेंगे। आपकी (बच्चे की) उपस्थिति प्रबंधित की जाएगी और आपको कक्षा 11 में स्कूल जाने की आवश्यकता नहीं होगी। कक्षा 12 में आप केवल प्रैक्टिकल के लिए जाएँगे और अंतिम परीक्षा। आपको कक्षा 11 से 12 तक बिना परीक्षा के प्रमोट कर दिया जाएगा। बस उस जगह से एक स्कूल यूनिफॉर्म ख़रीदें, जो हम निर्दिष्ट करते हैं; जब तक आपको उपस्थित होने की आवश्यकता है।’ -राबिया ने स्वीकार किया। निम्नलिखित आदान-प्रदान से फीस, उपस्थिति आवश्यकताओं और परीक्षा प्रोटोकॉल सहित एक डमी स्कूल में नामांकन की व्यावहारिकता का पता चलता है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे ये संस्थान (डमी स्कूल) छात्रों के लिए अपरंपरागत होते हुए भी एक सुव्यवस्थित शैक्षिक मार्ग प्रदान करते हैं।
रिपोर्टर : इसका प्रोसीजर (प्रक्रिया) क्या है?
राबिया : उनका कोई 1.20 टू 1.30 लाख के बीच का फीस होगा। कौन-सा क्लास रहेगा आपका?
रिपोर्टर : इलेवंथ, ट्वैल्थ। (11वीं, 12वीं।)
राबिया : हाँ; 1.20 (लाख) रहेगा। एक लाख 20 हज़ार; …दोनों साल का। इसमें आपको स्कूल नहीं जाना पड़ेगा। अटेंडेंस मैनेज होगा। इलेवंथ में आपको जाना नहीं पड़ेगा। ट्वेल्थ में आपके प्रैक्टिकल्स होंगे। फाइल वग़ैरह सबमिट करना होगा। नंबर भी अच्छे दे देते हैं, ये प्रैक्टिकल्स में। यूनिफॉर्म कुछ लेना पड़ेगा। एग्जाम देने जाना पड़ेगा स्कूल; …वो भी आपको बता देंगे, कहाँ से कॉलेज करना है।
रिपोर्टर : फर्स्ट टर्म, सेकेंड टर्म, …सब देने जाना पड़ेगा?
राबिया : नहीं; इलेवंथ में तो कोई एग्जाम ही नहीं देना पड़ेगा। ट्वेल्थ में सिर्फ़ बोर्ड के लिए जाना पड़ेगा।
रिपोर्टर : फर्स्ट टर्म, सेकेंड टर्म, कुछ नहीं होगा? सिर्फ़ बोर्ड में जाना होगा?
राबिया : हाँ; सिर्फ़ बोर्ड में।
रिपोर्टर : इलेवंथ में फाइनल एग्जाम में नहीं जाना होगा?
राबिया : नहीं।
रिपोर्टर : पास कैसे करेगी फिर?
राबिया : एंट्री रहता है, उसमें सब डिटेल रहती है।
रिपोर्टर : अच्छा; कोई इश्यू नहीं है?
राबिया : कहीं पर भी जाते हो डमी के लिए, ऐसा ही प्रोसेस होता है।
‘निश्चिंत रहें, आपके बच्चे को बिना कोई परीक्षा दिये 12वीं कक्षा में दाख़िला दे दिया जाएगा। मैं आपको आश्वस्त कर सकती हूँ कि कोई परेशानी नहीं होगी। इन डमी स्कूल को चलाने वाले अनुभवी लोग हैं; क्योंकि वे वर्षों से ऐसा कर रहे हैं।’ -राबिया ने हमें आश्वस्त करने की कोशिश की। यह बातचीत डमी स्कूलों की सर्वव्यापकता और व्यावहारिकता को उजागर करती है, जिसमें विस्तार से बताया गया है कि वे न्यूनतम उपस्थिति के साथ प्रैक्टिकल और परीक्षाओं का प्रबंधन कैसे करते हैं। राबिया के अनुभव से पता चलता है कि यह प्रणाली एक सुस्थापित, राष्ट्रव्यापी घटना है।
राबिया : मैंने भी अपने टाइम पर जब किया था, तो हमें भी एग्जाम देने जाना पड़ता था। सिर्फ़ प्रैक्टिकल्स में जाना पड़ता है। दे देंगे क्या बनाना है। ट्वेल्थ में सिर्फ़ जाना होगा एग्जाम के लिए। …वो तो पैसा आपसे इसी बात का तो ले रहे हैं।
रिपोर्टर : अच्छा; इलेवंथ, ट्वेल्थ आपने भी डमी से की है?
राबिया : जी, सर!
रिपोर्टर : इसमें कोई इश्यू तो नहीं है बच्चे के लिए?
राबिया : नो सर!
रिपोर्टर : नहीं, ऐसा न हो सीबीएसई की तरफ़ से कुछ जाँच हो जाए?
राबिया : वैसे तो कुछ भी कभी भी हो सकता है, बट काफ़ी टाइम से ये लोग यही काम कर रहे हैं। इनका बिजनेस ही ये है। आप तो फिर भी एंड यूजर हो। कुछ होगा, तो सबसे पहले तो हम पर होगा।
रिपोर्टर : आप बिहार से हो और आपने भी डमी स्कूल से पढ़ा है। इसका मतलब ये तो ऑल इंडिया में होता है?
राबिया : हाँ-हाँ; एक्जेटली। ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ यहाँ पर होता है, ये सब जगह होता है।
रिपोर्टर : वी आर सरप्राइज्ड। (हम हैरान हैं।) हम लोगों को अभी तक डमी स्कूल के बारे में पता ही नहीं था। वो तो मेरे बेटे ने बताया कि बहुत सारे बच्चे स्कूल नहीं आते हैं। …यहाँ इंस्टीट्यूट में हैं; …आपके डमी स्कूल वाले बच्चे?
राबिया : हाँ-हाँ; बहुत-से एडमिशन्स होते हैं।
‘कोचिंग सेंटर आपको एक डमी स्कूल में दाख़िला दिलाएगा। जो माता-पिता जागरूक हैं, वे डमी स्कूलों को पसंद करते हैं; क्योंकि अंतत: विद्यार्थियों को प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में शामिल होना पड़ता है। पूर्वी दिल्ली के प्रीत विहार में एक प्रमुख संस्थान के प्रशासक अनूप कुमार (बदला हुआ नाम) ने बताया।’ उसने कहा- ‘स्कूल और कोचिंग संस्थान दोनों में एक ही चीज़ पढ़ने का कोई मतलब नहीं है, इसलिए वे नक़ली स्कूल चुनते हैं।’ यह तीसरा कोचिंग संस्थान था, जहाँ ‘तहलका’ के अंडरकवर टीम ने ख़ुद को एक डमी स्कूल में अपने (काल्पनिक) बच्चे के लिए प्रवेश चाहने वाले माता-पिता के रूप में दौरा किया था। (तीसरे व्यक्ति से हुई) इस बाचतीत में अनूप डमी स्कूलों की अवधारणा को समझाया कि एक समानांतर प्रणाली जहाँ छात्र प्रतिस्पर्धी परीक्षा की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अनूप ने कई शैक्षणिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने वाले छात्रों के लिए डमी स्कूलों के रणनीतिक उपयोग के बारे में बताया। उसे यह बताने में (संकोची) परेशानी भी हुई कि कैसे ये संस्थान छात्रों को नियमित स्कूली शिक्षा से विचलित हुए बिना अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देते हैं।
रिपोर्टर : अच्छा; एक मैं काफ़ी बच्चों को देख रहा हूँ। जैसे टेंथ के बाद एक सिस्टम और भी चल रहा है, …हम लोग को जानकारी नहीं है; …आपसे पता करना चाह रहा हूँ, सिंस यू आर फ्रॉम दिस फील्ड। (क्योंकि आप इस क्षेत्र से हो।) कि इलेवंथ में बच्चा गया, वो स्कूल नहीं जाता…।
अनूप : डमी स्कूल?
रिपोर्टर : डमी स्कूल? …ये क्या है?
अनूप : सर! क्लासेस हैं। इलेवंथ, ट्वेल्थ में है क्या, वही आपका नीट में है, वही जेईई में। …अब जब हम भी आपको वही पढ़ा रहे हैं, वही चीज़ आप स्कूल में पढ़ रहे हो, दोनों जगह पर अलग-अलग आपको वर्कआउट करना है, आपका फोकस नहीं हो पाता है। जो पैरेंट्स अवेयर होते हैं, वो क्या करते हैं, बेटा एक ही जगह फोकस करो। इलेवंथ, ट्वेल्थ अपना डमी स्कूल से करो। कॉम्पिटिटिव (प्रतिस्पर्धा) की तैयारी कोचिंग से करो। आपको एंड ऑफ दि डे क्या चाहिए? कम्पटीशन लेवल पर ही बैठना है। जब सिलेबस आपका क्लीयर होता है, एग्जाम देने आये, सिर्फ़ एक सर्टिफिकेशन के लिए। आख़िरकार क्या करना है, कंपटीशन देना है। फोकस रहे, इसलिए डमी स्कूल प्रेफर करते हैं।
रिपोर्टर : वो डमी स्कूल सीबीएसई एफिलिएटेड (संबद्ध) होते हैं?
अनूप : ऑब्वियसिली। (ज़ाहिर तौर पर।)
रिपोर्टर : होता है स्कूल में? एनरॉल (नामांकन) कौन कराएगा? …कोचिंग सेंटर?
अनूप : हाँ।
‘डमी स्कूल सीबीएसई की आवश्यकता के अनुसार छात्रों की उपस्थिति का प्रबंधन करता है। हमारे पास लोगों की एक टीम है जो बच्चों के लिए डमी स्कूल प्रवेश का काम सँभालती है। कक्षा 10 उत्तीर्ण करने के बाद आपका बच्चा हमारे माध्यम से एक डमी स्कूल में प्रवेश ले सकता है।’ -अनूप ने कहा। अब अनूप ने बताया कि कैसे डमी स्कूल छात्रों की उपस्थिति प्रबंधन की सुविधा प्रदान कर सकते हैं; ख़ासकर 10वीं कक्षा के बाद। वह सीबीएसई आवश्यकताओं का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए इन स्कूलों के साथ समन्वय करने में अपनी टीम की भूमिका के बारे में बताते हैं। यह प्रणाली छात्रों को उनकी प्रतियोगी परीक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक सुव्यवस्थित मार्ग प्रदान करती है।
रिपोर्टर : क्यूँकि सीबीएसई तो माँगेगा अटेंडेंस, जब बच्चा बोर्ड देगा।
अनूप : वो अटेंडेंस मैनेज करते हैं।
रिपोर्टर : कुछ स्कूल्स आपकी लिस्ट में हैं; …या सब स्कूल्स करते हैं?
अनूप : नहीं; हमारी टीम कॉर्डिनेट करती है। बता देगी।
रिपोर्टर : क्या हम अपने बच्चे का टेंथ क्लीयर कर लेता है, तो आपके साथ ये सिस्टम करवा सकते हैं?
अनूप : हाँ; बिलकुल करवा सकते हैं। अभी टेंथ पर फोकस करने दीजिए। आफ्टर दैट वी विल सिट ऐंड डिस्कस। (10वीं के बाद हम बैठकर बात कर लेंगे।)
‘यह डमी स्कूलों के लिए फ़ायदे का सौदा है। सबसे पहले उन्हें स्वचालित रूप से छात्र मिलते हैं। दूसरा, चूँकि वे उपस्थित नहीं होते हैं, इसलिए उन पर छात्रों को प्रबंधित करने का दबाव नहीं होता है। तीसरा, स्कूल 20 के बजाय 10 शिक्षकों को नियुक्त कर सकता है।’ -अनूप ने ख़ुलासा किया। शैक्षणिक संस्थानों की जटिल दुनिया में ये बातचीत ज़मीनी स्तर की वास्तविकताओं पर प्रकाश डालती है। जैसा कि अनूप ने डमी स्कूलों के सूक्ष्म लाभों के बारे में बताया, एक्सचेंज शिक्षा के विकसित परिदृश्य पर एक स्पष्ट ख़ुलासा करता है।
रिपोर्टर : अच्छा; सर! ये इसमें स्कूल का क्या फ़ायदा है? बेनिफिट है?
अनूप : स्कूल का ये फ़ायदा है, वैसे वो बच्चों के लिए भटकेंगे, ऐसे बच्चे मिल रहे हैं।
रिपोर्टर : बच्चों का प्रेशर कम होगा स्कूल पर मुझे ऐसा लगता है?
अनूप : बच्चों के प्रेशर के अलावा टीचर्स का भी। …जहाँ उन्हें 20 टीचर्स चाहिए पढ़ाने को, वहाँ 10 में ही काम चल जाएगा।
‘आपको हमारे माध्यम से एक डमी के रूप में एक प्रतिष्ठित स्कूल मिलेगा। वे उपस्थिति का प्रबंधन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि छात्र कोचिंग सेंटरों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करें। हमारे पास पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार और कड़कड़डूमा में स्कूल हैं।’ एक स्पष्ट बातचीत में अब अनूप ने अपने नेटवर्क के माध्यम से प्रतिष्ठित स्कूल खोजने की बारीकियों के बारे में ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया। यह बातचीत इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे कुछ संस्थान पारंपरिक दिखने के बावजूद प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए उत्साहित विद्यार्थियों की उपस्थिति को प्रबंधित करने के लिए स्कूल चलाने के नियमों में बदलाव करते हैं।
रिपोर्टर : ऐसे अच्छे स्कूल मिल जाएँगे आपके थ्रू (ज़रिये)?
अनूप : ऑब्वियसली सर! बहुत स्कूल हैं। xxxx पब्लिक स्कूल है, कड़कड़डूमा में।
रिपोर्टर : xxxx सीबीएसई बोर्ड है?
अनूप : xxxx वो भी अच्छा स्कूल है। आनंद विहार में है। xxxx वो भी अच्छा स्कूल है।
रिपोर्टर : वो भी डमी कराते हैं?
अनूप : प्रॉपर स्कूल्स ही होते हैं। पर वो मैनेज करते हैं, अटैंडेंस। कोई बात नहीं, नहीं आ रहा आप तैयारी करो कंपीटीटिव एग्जाम (प्रतिस्पर्धी परीक्षा) की सिंपल।
रिपोर्टर : आपके पैनल में भी हैं, हो जाएगा?
अनूप : हाँ।
‘तहलका’ की इस पड़ताल ने कोचिंग सेंटर्स और डमी स्कूलों के बीच एक चिन्ताजनक साँठगाँठ का ख़ुलासा किया है। एक गुप्त नेटवर्क को उजागर किया है, जहाँ कोचिंग सेंटर्स मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं। ये केंद्र न केवल बिचौलियों के माध्यम से विद्यार्थियों और डमी स्कूलों के बीच समझौता कराते हैं, बल्कि इस संदिग्ध गठजोड़ से लाभ भी कमाते हैं। अतिरिक्त शिक्षकों या भौतिक स्थान के ओवरहेड के बिना अतिरिक्त राजस्व अर्जित करने से स्कूलों को लाभ होता है, जबकि कोचिंग सेंटर इस तरह के लेन-देन को सुविधाजनक बनाने और विद्यार्थियों के नामांकन से अपनी अतिरिक्त आमदनी सुनिश्चित करते हैं। यह पारस्परिक रूप से मुनाफ़ाख़ोरी की योजना शैक्षिक प्रणाली के भीतर गहराई तक व्याप्त मुद्दे को रेखांकित करती है।
अब समय आ गया है कि सीबीएसई इस प्रणाली के खुले दुरुपयोग को रेखांकित करते हुए शिक्षा क्षेत्र में अखण्डता बहाल करने के लिए निर्णायक कार्रवाई करे। ‘तहलका’ के रहस्योद्घाटन में व्यापक बदलाव और कड़े नियमों की माँग की गयी है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शैक्षणिक संस्थान नैतिक मानकों से समझौता किये बिना अपने इच्छित उद्देश्य को पूरा करें।