मौत का सत्संग

धर्म और अंधविश्वास के बीच की रेखा बहुत महीन होती है। कब कोई उसे लाँघ जाए, पता ही नहीं चलता। यह अचरज की ही बात है कि सनातन धर्म में हम जिन देवी-देवताओं (भगवानों) को सदियों से पूजते आ रहे हैं, उन्हें किसी ने नहीं देखा। लेकिन हमारा उनमें अटूट विश्वास है। क्योंकि वे पौराणिक कथाओं से हम तक पहुँचे हैं। उनकी शक्तियों में भी असंख्य लोगों का विश्वास है; क्योंकि ये भगवान सनातन का आधार हैं। यह सही है कि भगवान के नाम पर पाखण्ड करने वाले भी असंख्य पैदा हो गये हैं, जिनमें से कुछ तो ख़ुद ही स्वयंभू भगवान बन बैठे हैं। ईश्वर की शक्ति और इन पाखंडियों के बीच की इस महीन रेखा को न समझ पाना ही अंधविश्वास में डूब जाना है।

यह अंधविश्वास कितना गहरा है, इसका उत्तर प्रदेश में हाथरस के हादसे से मिल जाता है। इतने वर्षों तक जो सूरजपाल उर्फ़ भोले बाबा अपने दर्शन मात्र से भक्तों को संकट से उवारने की घुट्टी पिलाता रहा, वह 121 लोगों की ज़िन्दगी लील लेने वाले हादसे के तुरंत बाद भक्तों को संकट में छोड़कर ग़ायब हो गया। भक्त-तो-भक्त, प्रशासन और पुलिस ने भी अपनी आँखें बंद कर लीं और हादसे के इतने दिन बीत जाने के बाद भी उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गयी है, जो दर्शाता है कि किस तरह धर्म के नाम पर जनता को उल्लू बनाने वाले तथाकथित बाबा पैसे और जन-समर्थन के दम पर राजनेताओं और प्रशासन के प्रश्रय में फलते-फूलते और बचते हैं।

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जिस उत्तर प्रदेश में यह हादसा हुआ, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ख़ुद उसी प्रदेश के एक संन्यासी हैं। कम-से-कम वह ख़ुद तो ऐसा दावा करते ही हैं। उनके भक्त और राजनीतिक समर्थक उन्हें बुलडोज़र बाबा कहते हैं। लेकिन न इस हादसे में 121 लोगों की जान लेने के आरोपी बाबा का कुछ बिगड़ा, न उसके आश्रम पर बुलडोज़र चला। क्या संविधान की शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का यह धार्मिक पक्षपात है? क्या उनकी सरकार ने एक ऐसे बाबा, जो जातिगत कारणों से भाजपा की राजनीति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है; को अभयदान दे दिया? किसी मुस्लिम संगठन या संस्था के धार्मिक आयोजन में इतना बड़ा हादसा हुआ होता, तो क्या बाबा का बुलडोज़र अब तक ज़िम्मेदारों के यहाँ नहीं पहुँचता? योगी सरकार की पहचान ही बुलडोज़र-सरकार वाली बन गयी है। लिहाज़ा ऐसा सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या यह बुलडोज़र वहाँ थम जाता है, जहाँ योगी और भाजपा के राजनीतिक हित आड़े आ जाते हैं?

एक ऐसा ही बाबा है- गुरमीत राम रहीम सिंह। हरियाणा की जेल में बंद इस बाबा पर गंभीर आरोप हैं और दोषी सिद्ध होने के बाद सज़ा काट रहा है। लेकिन वहाँ भाजपा सरकार की बेशर्मी देखिए, जब तब उसे पेरोल दे दी जाती है। हद तो यह है कि पिछले एक साल में चुनाव के कारण उसे कम-से-कम तीन बार पेरोल दी जा चुकी है। शायद हाथरस में अपने अनियोजित सत्संग में 121 लोगों की मौत का कारण बनने वाले कथित भोले बाबा के ऊपर भी उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार की मेहरबानी इन्हीं राजनीतिक कारणों से हो!

इस हादसे के बाद बाबा के प्रबंधकों के हाथों प्रताड़ित होने वाले कई लोग अब खुलकर सामने आ रहे हैं। और जो ख़ुलासे वे कर रहे हैं, वो निश्चित ही चौंकाने वाले हैं। इनमें से एक यह भी है कि बाबा के आश्रम जाने वाले कुछ लोग हाल के वर्षों में अचानक ग़ायब हो गये। इनमें एक महावीर के परिजन अब खुलकर सामने आये हैं। इसे लेकर उन्होंने दन्नाहार थाने में बाक़ायदा शिकायत दर्ज करायी है। हाथरस की घटना के अब तक जो तथ्य सामने आये हैं, उनसे साफ़ ज़ाहिर होता है कि 121 लोगों की ज़िन्दगी लेने वाले इस हादसे के लिए बाबा के आश्रम के प्रबंधक (आयोजक) और योगी सरकार का प्रशासन, दोनों ज़िम्मेदार हैं। इतनी बड़ी तादाद में लोगों को एक ऐसी जगह क्यों इकट्ठा होने दिया गया, जहाँ उचित व्यवस्था ही नहीं थी? आयोजकों के ख़िलाफ़ एफआईआर हुई, बाबा को छोड़ दिया गया। क्यों? किसी को नहीं मालूम।

पुलिस की सफ़ाई है कि सत्संग की मंज़ूरी बाबा के नाम से नहीं ली गयी थी। अभी तक जो जानकारी सामने आयी है, उससे साफ़ पता चलता है कि सत्संग में न तो इतनी संख्या में लोगों के लिए इंतज़ाम था, न सुरक्षा की व्ववस्था थी और न ही आयोजकों में से कोई ज़िम्मेदारी से वहाँ यह सब कर रहा था। अस्पतालों के अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि हादसे के बाद जब घायलों को उनके यहाँ लाया जाने लगा, तो उनके इलाज का कोई त्वरित इंतज़ाम वहाँ नहीं था। कई की मौत हो चुकी थी। ज़ाहिर है भक्तों / लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया गया। ख़ुद को भगवान कहने वाला उनका बाबा उन्हें संकट में छोड़कर ग़ायब हो चुका था।

उत्तर प्रदेश सरकार ने जो एसआईटी इस हादसे की जाँच के लिए बनायी, उसने अपनी रिपोर्ट में कई महत्त्वपूर्ण बातें कहने के अलावा यह भी कहा कि हादसे के पीछे किसी साज़िश से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन बहुत से जानकार मानते हैं कि ऐसा बाबा को बचाने के लिए किया जा जा रहा है। साज़िश की आड़ लेने की कोशिश हो रही है। जानकारी के मुताबिक, भीड़ के बीच भगदड़ के बाद कुचल रहे लोगों को रोकने और घायल लोगों के घटनास्थल पर छूटे कपड़ों, जूतों-चप्पलों आदि को उठाकर बाबा के लोगों ने पास के खेतों में उगी फ़सल के बीच फेंककर सुबूतों मिटाने का धत्कर्म किया। इस तरह बाबा के भक्तों की मौत आयोजकों और बाबा के सेवादारों की घोर लापरवाही के कारण हुई। बाबा के कार्यक्रम के आयोजकों और सेवादारों का यह कुकृत्य भारतीय न्याय संहिता-2023 की धारा-105 / 110 / 126(2) / 223 / 238 के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।

घटना के बाद घायलों को जब हाथरस, अलीगढ़, एटा के अस्पतालों में इलाज के लिए ले जाया गया, तो उनकी संख्या इतनी ज़्यादा थी कि वहाँ इंतज़ाम बहुत कम पड़ गये और शायद कुछ लोग, जिन्हें बचाया जा सकता था; नहीं बचाया जा सका। आरोप है कि बाबा के सत्संग के आयोजकों ने वहाँ जुटने वाली भीड़ की संख्या को छिपाया। इंतज़ाम से कहीं ज़्यादा लोगों को वहाँ आने दिया गया। सत्संग स्थल पर अनुमति में ट्रैफिक-नियंत्रण के लिए प्रशासनिक दिशा-निर्देशों में से ज़्यादातर का आयोजकों ने उल्लंघन किया। हाथरस घटना में गंभीर धाराओं में दर्ज हुई एफआईआर में इनमें से ज़्यादातर आरोपों का ज़िक्र है। एसआईटी और पुलिस की प्रारंभिक जाँच के आधार पर बाबा के मुख्य सेवादार देव प्रकाश मधुकर सहित कई अज्ञात आयोजकों, सेवादारों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया।

नयी भारतीय न्‍याय संहिता के तहत दर्ज एफआईआर में धारा-105 (ग़ैर इरादतन हत्या) और धारा-238 (सुबूत छिपाना) भी लगायी गयी हैं। इससे ज़ाहिर होता है कि बड़े पैमाने पर लोगों के जीवन से खिलवाड़ किया गया और घोर लापरवाही की गयी। हालाँकि जिस बाबा के सत्संग में यह सब हुआ, उस कथित जगद्गुरु साकार विश्वहरि भोले बाबा पर आज तक एफआईआर दर्ज नहीं की गयी है। आयोजकों ने यह जानते हुए भी कि वहाँ लाखों की भीड़ जुटेगी, सिर्फ़ क़रीब 80,000 लोगों के शामिल होने की मंज़ूरी प्रशासन से ली थी। यह किसके कहने पर उन्होंने किया? क्या पहले भी ऐसा ही किया जाता रहा है और लोगों का जीवन ख़तरे में डाला जाता रहा है? यह गहन जाँच का विषय है। सत्संग के दौरान क़रीब ढाई लाख लोगों के जुटने से वहाँ के जीटी रोड पर यातायात ठप हो गया था।

कहा गया है कि यह भगदड़ तब हुई, जब अंधविश्वासी भक्तों ने सूरजपाल उर्फ़ भोले बाबा के प्रवचन के बाद उसके निकलने वाले मार्ग की धूल को भगवान का प्रसाद मानकर उसे समेटने की कोशिश की। इससे भीड़ में भगदड़ मच गयी। लोगों के ऊपर आने से नीचे फँसे हज़ारों लोग दबने लगे। आरोप है कि इतना कुछ होने के बीच बाबा के आयोजकों / सेवादारों ने दबती-कुचलती भीड़ को डंडों के ज़रिये जबरदस्ती रोक दिया। इससे बड़ी संख्या में लोगों का दबाव बढ़ गया और महिला, बच्चे, पुरुष कुचलते चले गये। ज़ाहिर है बाबा के ये लोग अपनी लापरवाही और बदइंतज़ामी के कारण कई लोगों की मौत का कारण बने।

घटना को लेकर राजनीति भी ख़ूब हुई। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी अकेले ऐसे राष्ट्रीय नेता रहे, जो पीड़ित परिजनों से जाकर मिले। उन्होंने योगी सरकार से पीड़ितों के लिए अधिक मुआवज़े की माँग की। ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी हाथरस गये और तमाम जानकारियाँ लीं। लेकिन सवाल तो यह है कि देश में क्यों, कैसे और किसके आशीर्वाद से इतने ढोंगी बाबा फल-फूल रहे हैं? इनमें से बहुतों पर धर्म के नाम पर पैसे इकट्ठे करने, अय्याशी करने, क़त्ल और ठगी करने जैसे गंभीर आरोप हैं। जेल में बंद आसाराम उर्फ़ आशुमल शिरमानी, सुखविंदर कौर उर्फ़ राधे माँ, सचिदानंद गिरी उर्फ़ सचिन दत्ता, गुरमीत राम रहीम (डेरा सच्चा सिरसा), ओम बाबा उर्फ़ विवेकानंद झा, निर्मल बाबा उर्फ़ निर्मलजीत सिंह, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ़ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी असीमानंद, ॐ नम: शिवाय बाबा, नारायण साईं और रामपाल से लेकर ऐसे ढोंगी बाबाओं की लंबी फ़ेहरिस्त है। इन घटनाओं से तभी बचा जा सकता है, जब धर्म में अंधे हुए पड़े लोग भगवान और ढोंगी बाबाओं के बीच अंतर को समझकर अंधविश्वास की सीमा नहीं लाँघेंगे।