महिला जवानों की सुरक्षा भी हो प्राथमिकता

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की पहली महिला बटालियन के गठन की मंज़ूरी दे दी है। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और लैंगिक समानता में योगदान देने वाला एक ऐतिहासिक क़दम के तौर पर देखा जा रहा है। सरकार का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना और सशस्त्र पुलिस बलों में महिलाओं को अधिक मौक़े प्रदान करना है। 10 मार्च, 1969 को सीआईएसएफ की स्थापना की गयी थी और वर्तमान में इसमें 1,88,000 सैनिक हैं, जिनमें महिला कार्मिकों की संख्या सात प्रतिशत है। अब सीआईएसएफ की पहली महिला बटालियन में महिला कर्मियों की संख्या 1,025 होगी।

सीआईएसएफ के प्रवक्ता के अनुसार, प्रशिक्षण विशेष रूप से एक बेहतरीन बटालियन बनाने के लिए डिजाइन किया जा रहा है, जो वीआईपी सुरक्षा और हवाई अड्डों, दिल्ली मेट्रो आदि की सुरक्षा में कमांडो के रूप में एक बहुमुखी भूमिका निभाने में सक्षम हो। प्रवक्ता ने यह भी कहा कि महिला बटालियन के जुड़ने से देश भर की अधिक महत्त्वाकांक्षी युवा महिलाओं को सीआईएसएफ में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। इससे सीआईएसएफ में महिलाओं को एक नयी पहचान मिलेगी।

दरअसल सरकार की ओर से केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में महिला कर्मियों की भर्ती को प्रोत्साहित करने के लिए क़दम उठाये जा रहे हैं। इन दिनों प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार करके भर्ती अभियान चलाया जा रहा है। महिलाओं को आवेदन शुल्क के भुगतान से भी  छूट दी गयी है। इसके साथ ही बलों में भर्ती के लिए महिला उम्मीदवारों के लिए शारीरिक मानक परीक्षण और शारीरिक दक्षता परीक्षण में छूट दी गयी है।

ग़ौरतलब है कि सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों- सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल, सशस्त्र सीमा बल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड और असम राइफल्स की कुल संख्या लगभग 10 लाख है और इसमें महिलाओं की तादाद महज़ 41,006 ही है। महिलाओं की कम तादाद चिन्ता का विषय है। सन् 2016 में केंद्र सरकार ने सीआरपीएफ और सीआईएसएफ में महिला कर्मियों के लिए कांस्टबेल स्तर पर 33 प्रतिशत पद और बीएसएफ, एसएसबी और आईटीबीपी में कांस्टेबल स्तर पर 14-15 प्रतिशत पद आरक्षित करने के निर्देश जारी किये थे; लेकिन इस निर्देश के बावजूद महिला कर्मियों की संख्या कम है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में लैंगिक समानता का रास्ता बहुत लंबा नज़र आता है। इसके पीछे कई कारण हैं।

भारतीय समाज की आम सोच आज भी महिलाओं को पुलिस, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की वर्दी में देखने को तैयार नज़र नहीं आती। समाज का पुरुष-प्रधान ढाँचा ऐसी वर्दी में अपने बेटों को ही देखने में सहज है। उसने महिलाओं के लिए घर से बाहर निकलकर नौकरी करने वाले कुछ क्षेत्र ही तय किये हुए हैं, जिसमें उसे लगता है कि पारिवारिक ढाँचा अधिक चरमराता नहीं है। और समाज ऐसे क्षेत्रों को सम्मान की निगाहों से भी देखता है। मसलन, अध्यापन और बैंकिंग आदि। लेकिन रात की पाली वाली नौकरी और ऐसी नौकरियाँ, जिनमें अवकाश बहुत कम मिलते हों और तबादला जल्दी होता हो, किसी भी पल दफ़्तर से बुलावा आ जाता हो, पुरुष सहकर्मियों के साथ ड्यूटी लगती हो, घर व बच्चों की देखभाल में संतुलन नहीं बैठता हो, समाज को महिलाओं के लिए अधिक नहीं भाती हैं।

दिल्ली मेट्रो में सफ़र के दौरान सीआईएसएफ की एक महिला कर्मी से बातचीत करके उनके पेशे से जुड़ी चुनौतियों को समझने की कोशिश लेखिका ने की, तो पता चला कि तेलंगाना की रहने वाली वह महिला कर्मी बीते साढ़े सात साल से दिल्ली मेट्रो में तैनात हैं। घर व नौकरी के बीच संतुलन बनाने के सवाल पर उन्होंने बड़ी मायूसी से बताया कि हमारी नौकरी सिविल क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं से बिलकुल अलग है। यही चुनौती है। हमारे काम में कोई अवकाश निश्चित नहीं है। परिवार, बच्चे प्रभावित होते हैं। कब कहाँ धकेल दिया जाए, नहीं मालूम। इसके लिए हर पल मानसिक रूप से तैयार रहना पड़ता है। शारीरिक फिटनेस पर भी फोकस रहता है।

जहाँ तक कार्यस्थल संस्कृति का सवाल है, वह कितनी महिला अनुकूल है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है। उच्च अधिकारी भी कई मर्तबा मानसिक प्रताड़ना देते हैं। इसके अलावा शारीरिक शोषण के मामले भी सामने आते रहते हैं। हाल ही में कई राज्यों से महिला जवानों के साथ रेप होना बेहद शर्मनाक है। कार्यस्थल का माहौल तो अमूमन ही महिला कर्मियों की शारीरिक बनावट पर तंज कसने वाला व उनकी गरिमा को चोट पहुँचाने वाला होता है। दरअसल पुलिस से लेकर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों तक की व्यवस्था पुरुषवाद को ही सम्मानित करती है। इसे तोड़ना एक बहुत बड़ी चुनौती है। इसके लिए एक साथ कई मोर्चों पर काम करने की ज़रूरत है।