सुरक्षित रेल यात्रा केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी

तमाम दावों के बावजूद भारत में क्यों नहीं थम रहा है ट्रेन दुर्घटनाओं का सिलसिला?

हाल ही में मानसून सत्र के दौरान रेल मंत्री पीयूष गोयल ने लगातार हो रहीं ट्रेन दुर्घटनाओं को छोटी-मोटी घटनाएँ बताया। 12 फरवरी, 2021 को भी उन्होंने कहा था कि लगभग 22 महीनों में ट्रेन दुर्घटनाओं के कारण भारत में एक भी यात्री की मौत नहीं हुई है। साल 2019 में भी उन्होंने कहा था कि भारतीय रेल यात्रा को पहले से ज़्यादा सुरक्षित किया गया है। साल 2018 में भी उन्होंने कहा था कि रेल यात्रा को पहले से ज़्यादा सुरक्षित बनाया जा रहा है। तत्कालीन रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव संसद में दिए गये बयान के मुताबिक, साल 2022 में रेलवे ने क़रीब 5,200 किलोमीटर लंबी नयी पटरियाँ बिछायीं। मंत्री ने कहा था कि मोदी सरकार में हर साल क़रीब 8,000 किलोमीटर ट्रैक को अपग्रेड किया जा रहा है। 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चलने वाली ट्रेनों को समायोजित करने के लिए अधिकांश पटरियों को अपग्रेड किया जा रहा था। पटरियों के एक बड़े हिस्से को 130 किलोमीटर प्रति घंटा तक की गति के लिए बढ़ाया जा रहा था, और एक महत्त्वपूर्ण खंड को अपग्रेड किया जा रहा है। इन पटरियों को 160 किलोमीटर प्रति घंटा तक की हाई स्पीड के लिए तैयार किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले पाँच-छ: वर्षों में तमाम ट्रेनों का, रेलवे स्टोशनों का उद्घाटन करने का रिकॉर्ड तोड़ा है। लेकिन रेलवे में सुधार के नाम पर वो नहीं हुआ, जिसकी उम्मीद थी। ट्रेन दुर्घटनाओं को लेकर उन्होंने भी आश्वासन दिया था। लेकिन किराया बढ़ गया, टिकट कैंसिलेशन चार्जेज भी ख़ूब बढ़ गये, लेकिन ट्रेन दुर्घटनाएँ नहीं रुकीं। वंदे भारत ट्रेन के पशुओं से टकराने पर डैमेज हो जाना और बारिश में इन ट्रेनों की छत का टपकना रेलवे के कामों की पोल खोलती है।

देश में लगातार ट्रेन दुर्घटनाएँ हो रही हैं। कुछ दिन पहले झारखण्ड के टाटानगर के पास चक्रधरपुर में दूसरी बार ट्रेन दुर्घटना हो गयी। इस दुर्घटना में हावड़ा से मुंबई जा रही हावड़ा-सीएसएमटी मेल के 18 डिब्बे पटरी से उतर गये है। इस हादसे में कम-से-कम दो यात्रियों की मौत हो गयी, जबकि 50 लोग घायल हो गये। इस दुर्घटना से दो दिन पहले ही इसी रूट पर एक मालगाड़ी पटरी से उतर गयी थी; लेकिन रेलवे ने इस दुर्घटना को नज़रअंदाज़ कर दिया और दो दिन बाद दूसरी दुर्घटना यात्री ट्रेन की हो गयी। 10 अगस्त के बाद दो ट्रेन दुर्घटनाएँ और हो गयीं। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, पिछले 14 महीने में देश में चार बड़ी ट्रेन दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 320 से ज़्यादा रेल यात्रियों की जान चली गयी, जबकि इससे ज़्यादा लोग घायल हुए।

बता दें कि भारतीय रेलवे का रूट क़रीब एक लाख किमी से ज़्यादा लंबा है, जिस पर दौड़ती यात्री ट्रेनों में हर रोज़ ढाई करोड़ से ज़्यादा यात्री सफ़र करते हैं। इस लंबे रूट पर बिछी पटरियों की हर दिन जाँच होनी चाहिए; लेकिन ऐसा नहीं होता। पटरियों का टूटना, ट्रैक ख़राब होना और उनमें लगी लोहे की कीलों की चोरी होना ट्रेन दुर्घटनाओं की सबसे बड़ी वजह है। साल 2019-20 की रेलवे सुरक्षा रिपोर्ट में सरकार ने माना है कि इस साल 70 फ़ीसदी ट्रेन दुर्घटनाएँ ट्रेनों के पटरी से उतरने से हुईं। इतनी ट्रेन दुर्घटनाएँ साल 2018-19 की दुर्घटनाओं से ज़्यादा थीं। 22 फ़ीसदी ट्रेन दुर्घटनाओं  ट्रेनों में 14 फ़ीसदी दुर्घटनाएँ आग लगने से और आठ फ़ीसदी दुर्घटनाएँ ट्रेनों में टक्कर होने से हुईं। बाक़ी आठ फ़ीसदी दुर्घटनाएँ दूसरी वजहों से हुईं। रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल कुल 33 यात्री ट्रेनें और 40 मालगाड़ियाँ पटरी से उतरीं। इनमें से 17 ट्रेनें ख़राब ट्रैक होने के चलते पटरी से उतरीं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की साल 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 के मुक़ाबले साल 2021 में 38.2 फ़ीसदी ज़्यादा ट्रेन दुर्घटनाएँ हुईं। इस साल कुल 17,993 ट्रेन दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें से अकेले महाराष्ट्र में 19.4 फ़ीसदी ट्रेन दुर्घटनाएँ हुईं। पिछले दिनों की अगर बात करें, तो 14 जून को पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी में कंजनजंगा एक्सप्रेस टुर्घटनाग्रस्त हुई। इस दुर्घटना में कंचनजंगा एक्सप्रेस पटरी पर खड़ी थी और इसी ट्रेक पर एक मालगाड़ी आकर कंचनजंगा एक्सप्रेस के आखिरी तीन कोच बुरी तरह कुचलते हुए उस पर चढ़ गयी। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, इस दुर्घटना में 8 लोगों की मौत हुई और 40 से ज़्यादा लोग घायल हुए। हालाँकि स्थानीय लोगों के दावे कुछ और कह रहे थे। पिछले साल भी इस राज्य में एक भीषण ट्रेन दुर्घटना में दो ट्रेनों के टकराने 233 लोग मारे गये थे और कई घायल हो गये थे।

मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों में हुए बड़े ट्रेन हादसों की बात करें, तो केंद्र सरकार के रेल यात्रा को सुरक्षित बनाने की हकीकत समझ में आ जाएगी। 20 नवंबर 2016 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में इंदौर-पटना एक्सप्रेस के पटरी से उतरने सें 150 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि सैकड़ों लोग इस दुर्घटना में घायल हुए। 21 जनवरी, 2017 को आंध्र प्रदेश के कुनेरू स्टेशन के नज़दीक जगदलपुर-भुवनेश्वर हीराखण्ड एक्सप्रेस केपटरी से उतरने पर 41 लोग मारे गये, जबकि इससे कहीं ज़्यादा घायल हुए। 19 अगस्त 2017 को उत्तर प्रदेश कें कथौली रेलवे स्टेशन के पास ट्रैक ख़राब होने के चलते कलिंगा-उत्कल एक्सप्रेस पटरी से उतर गयी थी। इस रेल दुर्घटना में 23 लोगों की मौत हो गयी थी और दज़र्नों लोग घायल हो गये थे। 16 अक्टूबर, 2020 को महाराष्ट्र के करमाड के पास हैदराबाद-मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस एक्सप्रेस और हजूर साहिब नानदेड़-मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस राजधानी स्पेशल के टकराने से हुई दुर्घटना में क़रीब 16 लोग मारे गये, जबकि दज़र्नों घायल हुए। 13 जनवरी, 2022 को पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार में बिकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस के 12 डिब्बे पटरी से उतरने सें नौ लोग मर गये थे और 36 घायल हुए थे। 02 जून, 2023 को ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेनें एक साथ टकराई थीं, जिससे 296 लोगों की मौत हो गयी थी और 1,200 से ज़्यादा घायल हुए थे। इस ट्रेन दुर्घटना में स्टाफ की ग़लती थी। क्योंकि इस ट्रेक पर पहले से ही एक मालगाड़ी खड़ी थी। कोरोमंडल एक्सप्रेस को पहले अप मेन लाइन पर जाना था, लेकिन ग़लती से इसे बगल की अप लूप लाइन पर ट्रेक दिखाकर भेज दिया। इससे यह यात्री ट्रेन वह पहले से वहां खड़ी मालगाड़ी से टकरा गयी और इसके 21 डिब्बे पटरी से उतर गये, जिसमें से तीन डिब्बे बग़ल की पटरी पर चल रही एक और ट्रेन एसएमवीटी बेंगलूरु-हावड़ा एक्सप्रेस के पिछले हिस्से से टकरा गये।

इसके अलावा 26 अगस्त, 2023 को तमिलनाडु के मदुरै रेलवे स्टेशन के पास लखनऊ से रामेश्वरम् जा रही ट्रेन में आग लगने से 10 लोगों की जलकर मौत हो गयी, जबकि दज़र्नों लोग झुलस गये। रेलवे रिपोर्ट के मुताबिक, आग निजी डिब्बे में गैस सिलेंडर होने के चलते लगी थी, जिसने बाद में कई डिब्बों को चपेट में ले लिय़ा था। 11 अक्टूबर, 2023 को बिहार के बक्सर में रघुनाथपुर स्टेशन के पास दिल्ली से कामाख्या जा रही नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस के डिब्बे पटरी से उतर गये, जिससे 4 लोग मर गये और 100 से ज़्यादा घायल हो गये। कुछ ही दिन बाद 29 अक्टूबर, 2023 को कोथावलसा मंडल के अलमंदा-कंटाकापल्ली में विशाखा से पलासा जा रही एक विशेष यात्री ट्रेन सिग्नल न मिल पाने से पटरी पर रुक गयी कुछ ही देर में पीछे आ रही एक पैसेंजर ट्रेन ने इसे पीछे से टक्कर मार दी, जिससे आठ लोगों की मौत हो गयी और दज़र्नों घायल हो गये।

भारत में यह पहली बार नहीं है, जब ट्रेन दुर्घटनाएँ हुई हों, इससे पहले भी कई भीषण ट्रेन दुर्घटनाएँ हुई हैं; लेकिन हर साल दज़र्नों ट्रेन दुर्घटनाएँ होने के बावजूद केंद्र सरकार और रेल मंत्रालय दुर्घटनाओं को रोकने में नाकाम हैं। भारत में पिछले 42 वर्षों में 31 से ज़्यादा ट्रेन दुर्घटनाएँ हुई हैं। वहीं चीन, जापान और दूसरे कई देशों में ट्रेनों की स्पीड 150 किलोमीटर प्रति घंटे से 350 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार होने के बावजूद ट्रेन दुर्घटनाएँ नहीं होती हैं। जापान की बुलेट ट्रेन से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ साल पहले भारत में बुलेट ट्रेन लाने का ऐलान किया था; लेकिन अभी तक बुलेट ट्रेन का कुछ अता-पता नहीं है।

साल 2016 में भारत के पूर्वोत्तर राज्य में आधी रात को 14 ट्रेन के डिब्बे पटरी से उतर गये। इस हादसे में 140 से ज़्यादा यात्री मारे गये, जबकि 200 यात्री घायल हो गये। उस समय के ज़िम्मेदार अधिकारियों ने कहा था कि पटरियों में फ्रेक्चर की वजह से हादसा हुआ। साल 2017 में दक्षिण भारत में देर रात ट्रेन के पटरी से उतरने से कम-से-कम 36 यात्रियों की मौत हो गयी थी और 40 अन्य घायल हो गये थे। पुरानी ट्रेन दुर्घटनाओं की बात करें, तो भारतीय रेल के इतिहास में सबसे ख़तरनाक दुर्घटना 1981 में हुई थी, जिसमें बिहार के पुल से गुज़रते हुए एक यात्री ट्रेन पटरी से उतरकर बागमती नदी में डूब गयीं। हादसे में 800 यात्री मर गये थे। कई लोगों की तो लाशें तक नहीं मिली थीं।

पिछले दिनों रेलवे बोर्ड के एक पूर्व अधिकारी ने ट्रेनों के पटरी से उतरने को रेलवे की सबसे बड़ी परेशानी माना था। उन्होंने कहा था कि पटरी से ट्रेन उतरने की कई वजह हैं। सबसे बड़ी वजह रेलवे ट्रैक पर मैकेनिकल फॉल्ट यानी रेलवे ट्रैक पर लगने वाले उपकरण का ख़राब हो जाना है। इसके अलावा ट्रैक का रखरखाव न होने, कोच ख़राब होने, और गाड़ी चलाने में ग़लती करने से भी ट्रेन दुर्घटनाएँ होती हैं। उन्होंने कहा कि ट्रेन दुर्घटनाएँ रोकने के लिए पटरियों की नियमित मरम्मत होती रहनी चाहिए। क्योंकि लोहे से बनी ट्रेन की पटरियाँ गर्मियों में फैलती हैं और सर्दियों में सिकुड़ती जाती हैं। इसलिए पटरियों का रखरखाव नियमित होना चाहिए। ढीले ट्रैक को कसा जाना चाहिए। स्लीपर बदलना चाहिए। ट्रैक का नियमित निरीक्षण पैदल चलकर या ट्रॉली और लोकोमोटिव से या ख़ाली इंजन से किया जाता रहना चाहिए, क्योंकि ज़रा-सी लापरवाही किसी बड़े हादसे की वजह बन सकती है। इसके अलावा पटरियों पर दरार पड़ने, ट्रेन के डिब्बों को जोड़ने वाले उपकरण के ढीला होने, ट्रेन की बोगी रखने वाले एक्सेल के टूटने से भी ट्रेन दुर्घटनाएँ होती हैं। सभी तरह की कमियाँ दूर करने का एक ही तरीक़ा है कि रेलवे लाइन पर मरम्मत काम हर दिन चलता रहे और थोड़ी भी गड़बड़ी नज़र आते ही उसे तुरंत ठीक किया जाए।

रेलवे के मुताबिक, भारत में हर दिन 12 करोड़ से ज़्यादा लोग 14,000 ट्रेनों से सफ़र करते हैं। रेल सुरक्षा में सुधार के दावों और कई प्रयासों के बावजूद हर साल दज़र्नों दुर्घटनाएँ होती हैं, जिनमें ज़्यादातर दुर्घटनाओं के बाद फिर से ग़लतियाँ दोहराने की बात सामने आती है। रेलवे स्टाफ की ग़लतियों और पुराने सिग्नलिंग उपकरणों के इस्तेमाल से दुर्घटनाओं का सिलसिला नहीं रुक पाता है। भारत में ट्रेन दुर्घटनाओं की वजह से नेहरू सरकार के दौरान रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दुर्घटना को अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी निभाने में कमी बताते हुए इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके बाद अटल बिहारी की सरकार में रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार ने भी एक ट्रेन दुर्घटना के बाद इस्तीफ़ा दे दिया था। लेकिन अब तो न रेल मंत्री इस्तीफ़ा देते हैं और न ही किसी ट्रेन दुर्घटना की ज़िम्मेदारी अपने सिर पर लेते हैं। पिछले नौ साल में मोदी सरकार ने चार रेल मंत्री बदले; लेकिन ट्रेन दुर्घटनाएँ नहीं रुकीं। साल 1947 में स्वतंत्रता के बाद बँटवारे में क़रीब 40 प्रतिशत रेलवे ट्रैक पाकिस्तान के हिस्से में चले जाने से भारत सरकार ने रेलवे लाइन बिछाने से लेकर ट्रेनों की संख्या बढ़ाने पर अरबों रुपये ख़र्च किये; लेकिन सुरक्षा के लिहाज़ से भारतीय रेलवे आज भी सवालों के घेरे में ही है।