कुछ लोग जब सत्ता के सुरक्षा के कवच में आ जाते हैं, तो उन्हें दूसरों की जान लेने में बड़ा आनंद आता है। लेकिन ऐसे लोग नहीं जानते कि उनका यह शौक़ एक दिन उन्हें भी ले डूबेगा। आख़िर मौत से कौन बच सका है। जो लोग दूसरों को पीड़ा देकर यह सोचते हैं कि अगला जन्म किसने देखा है? उन्हें शायद नहीं मालूम कि ऐसे लोगों को वही पीड़ा सहने के लिए संसार में वापस आना पड़ता है, जो पीड़ा वे दूसरों को दे रहे हैं। यह बात उन लोगों को भले ही नहीं पता हो, जो लोग अपने सुख के लिए दूसरों को पीड़ा पहुँचाते हैं या वे ऐसा विश्वास न करते हों; लेकिन ऐसे ज़ालिम कड़ी सुरक्षा में रहते हुए भी हमेशा डरे हुए रहते हैं। इसलिए ये लोग धर्म और दूसरों की रक्षा के दिखावे की आड़ में अत्याचार करते हैं। ग़रीबों, किसानों को ग़रीबी से निकालने का जुमला, वन्यजीव संरक्षण और गोरक्षा जैसे मुद्दे इसके सबसे सटीक; लेकिन क्रूरतम उदाहरण हैं।
हैदराबाद में 400 एकड़ में फैले कांचा गाजीबोवली जंगल को काटने की हिम्मत करने वाले क्रूर शासकों और माफ़ियाओं ने जो दर्द उस जंगल में रहने वाले निरीह मूक प्राणियों को दिया है, उसकी जिसकी निंदा की जाए, उतनी कम है। वन्यजीवों की दुर्दशा पर तरस जिनको आया, उन्होंने इस पाप-कृत्य की निंदा की। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं अन्य विद्यालयों, महाविद्यालयों के विद्यार्थियों के अतिरिक्त आम लोगों ने इसके विरुद्ध आवाज़ उठायी। भला हो सर्वोच्च न्यायालय का, जिसने इन लोगों के विरोध एवं मूक वन्य-प्राणियों के दर्द को समझा और जंगल के कटान पर रोक लगा दी। लेकिन क्या जंगल काटने, वन्यजीवों की हत्या करने और लोगों पर अत्याचार करने वाले इस बात को समझेंगे कि वे अपराध कर रहे हैं? कैसे समझेंगे? उन्हें क़ानून या प्रकृति से सज़ा नहीं मिल रही है। दयालु लोग कहते हैं कि लोग इतने कट्टर और हिंसक कैसे हो सकते हैं? इसका भी सीधा जवाब यही है कि ऐसे लोगों को तत्काल सज़ा नहीं मिल पाती है, इसलिए वे कट्टर और हिंसक हो जाते हैं।
ऐसे लोगों में यह कट्टरता, क्रूरता और ज़्यादा सुख पाने की आकांक्षा के वेग के साथ आती है। ये लोग अपने स्वार्थ साधने के लिए सिर्फ़ मूक और असहाय प्राणियों को ही दु:ख नहीं देते। निर्बल लोगों को भी दु:ख देते हैं। देश भर में फैली अराजकता और अत्याचार की घटनाएँ इसकी गवाह हैं। निरंकुश सत्ता के मोह और सत्ता का संरक्षण के लिए जो लोग निर्दोषों पर अत्याचार कर रहे हैं, उनका ख़ून बहा रहे हैं, उन्हें डर इतना है कि अगर उनसे कोई सवाल कर दे, तो उनकी बेचैनी देखने लायक होती है। देश में कई पत्रकारों, लेखकों, समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों की हत्याएँ करवा देना या उन्हें अपराधी साबित करके प्रताड़ित करना अब देश की सत्तात्मक-प्रथा बन चुकी है। स्थिति यहाँ तक आ पहुँची है कि अब सवाल पूछने पर भी लगभग पाबंदी लग चुकी है।
आरटीआई के जवाब नहीं मिलते। संसद में सवाल पूछने पर किसी भी सांसद के ख़िलाफ़ एक पूरी जमात खड़ी हो जाती है। देश और देशवासियों के हित में बात करने वाले सत्ता पक्ष के सांसदों को तो चुभते ही हैं, संवैधानिक पदों पर बैठे सभापतियों को भी दुश्मन नज़र आते हैं। अब तो संसद में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के नाम पर केंद्र सरकार ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम-2025 (डीपीडीपी एक्ट-2025) का मसौदा भी तैयार कर लिया है। यह मसौदा डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम-2023 (डीपीडीपी एक्ट-2023) को लागू करने के लिए तैयार किया गया है, जिसके तहत देश में लोगों के व्यक्तिगत डिजिटल डेटा को संरक्षित करने के लिए बनाया गया है। लेकिन क्या इससे आम आदमी का डेटा संरक्षित हो सकेगा?
साइबर अपराधी आज आम आदमी से लेकर ख़ास लोगों तक का डेटा उड़ा रहे हैं। उनके इस कृत्य में तमाम सोशल मीडिया ऐप उनकी मदद कर रहे हैं या ख़ुद इसमें शामिल मिले हैं। लेकिन यही डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम से सत्ता में सुरक्षित बैठे लोगों के डेटा की सुरक्षा करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि इन लोगों से कोई सवाल न पूछे। इससे इन लोगों के काले कारनामों का ख़ुलासा नहीं हो सकेगा। चुनावों के ज़रिये चुने हुए लोग, संवैधानिक पदों पर आसीन लोग, अधिकारी सब सुरक्षित किये जाने की चाल है, जिससे उनके गिरेबान में कोई झाँक न सके। जो झाँकने की कोशिश करेगा, उसे सज़ा मिलेगी।
देश में लोकतंत्र का यह सबसे क्रूर स्वरूप है कि देश का एक नागरिक दूसरे नागरिक को मार सकता है। अत्याचार कर सकता है। इसकी संपत्ति छीन सकता है। भ्रष्टाचार कर सकता है। लेकिन उच्च पदों पर पहुँचे लोगों की ग़लतियों, उनके भ्रष्टाचार, उनकी निरंकुशता को लेकर कोई सवाल तक नहीं कर सकता। जानकारी नहीं माँग सकता। जाँच एजेंसियाँ भी दोहरी नीति के तहत कार्रवाई करने का निर्णय लेती हैं। ऐसे में डेटा संरक्षण का यह स्वरूप लोकतंत्र नहीं निरंकुश-तंत्र की जड़ें मज़बूत करेगा, जो निर्बल बहुसंख्यक लोगों को ग़ुलामी की बेड़ियों में जकड़ने का प्रयास है। समझिए, इस क़ानून से सुरक्षा किसकी होगी?