हाथों से काम छीन रही रोबोटिक साइंस

अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर विशेष

01 मई को अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस है। इसे मज़दूर दिवस और मई दिवस भी कहते हैं। इस दिन पूरी दुनिया में मज़दूरों और शारीरिक श्रम करने वालों के लिए काम करने का दावा करने वाले बड़े-बड़े दावेदार राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इकट्ठे होंगे और सभी श्रमिकों के साथ खड़े होने का ड्रामा करके बड़ी-बड़ी बातें करेंगे। लेकिन क्या श्रमिकों, ख़ासकर मज़दूरों के लिए कोई सच में लड़ाई लड़कर उनके हितों और अधिकारों के लिए ईमानदारी से काम करता है? हक़ीक़त यह है कि मज़दूर और श्रमिक 100 साल से पहले की हज़ारों साल की ग़ुलामी से आज़ाद होकर मज़दूरी यानी तनख़्वाह भले ही पाने लगे हों; लेकिन वे असल में ग़ुलामी से आज़ाद नहीं हो सके हैं। आज भी गार्ड और कम्पनियों में काम करने वाली लेबर को 9 से 12 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है और तनख़्वाह 8 घंटे की भी नहीं मिलती है। गुजरात की कई कपड़ा मिलों में काम करने वाले गार्ड, मज़दूर और दूसरे श्रमिक मजबूरन 9 से 12 घंटे ड्यूटी करते हैं और इसके बदले में 6-7 हज़ार रुपये से लेकर 10-12 हज़ार रुपये महीने की तनख़्वाह मिलती है। ठेकेदारों के अंडर में काम करने वालों की हालत से इससे भी ख़राब है। इस शोषण के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ नहीं उठा पाता। क्योंकि अगर कोई आवाज़ उठाता है, तो उसे नौकरी छोड़नी पड़ती है और उसकी जगह उससे भी कम तनख़्वाह में काम करने के लिए कई और लोग तैयार हो जाते हैं।

आज भारत में जहाँ एक नौकरी को पाने की होड़ सैकड़ों लोगों में लग जाती है, वहीं जिन हाथों को काम मिला हुआ है, उनके हाथों से भी काम छिनने के आसार बढ़ते जा रहे हैं। भारत में हाथ से काम करने वाले मज़दूरों और श्रमिकों के हाथों से काम छीनने में जहाँ बेरोज़गारी, ग़रीबी और महँगाई है, वहीं विदेशों में इसकी वजह भारतीय श्रमिकों की घटती माँग और रोबोट के ज़रिये काम कराने के चलन का बढ़ना है। भारत में बेरोज़गारी, ग़रीबी और क़र्ज़ की वजह से हर साल 40 हज़ार से ज़्यादा मज़दूर और क़रीब 1,200 से ज़्यादा बेरोज़गार छात्र आत्महत्या कर लेते हैं। बेरोज़गारी का आलम ये है कि 16 प्रतिशत 12वीं से ज़्यादा पढ़े-लिखे युवा छोटे-छोटे काम और मज़दूरी करने को मजबूर हैं। एक तरफ़ हाथों से रोज़गार छिनने की वजह महँगाई, बेरोज़गारी, मशीनीकरण है, तो दूसरी तरफ़ अब रोबोट हाथों से काम छीनने में अहम भूमिका निभा रहा है। जानकारों के मुताबिक, दुनिया में जैसे-जैसे रोबोट की माँग बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे श्रमिकों की माँग घटती जा रही है। दुनिया के कई रेस्तरां में, घरों में और कम्पनियों में रोबोट से काम लिया जा रहा है। एआई तकनीक के बढ़ते क़दम रोबोट को बिलकुल इंसानों की तरह संवेदनशील और काम करने में इंसानों से भी ज़्यादा परफेक्ट बनाने की कोशिश में हैं।

साल 2024 में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस की थीम जलवायु परिवर्तन के बीच कार्यस्थल सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना थी। इस साल मेहनतकश लोगों के अधिकारों का सम्मान मक़सद है। लेकिन क्या इससे दुनिया के इस वर्ग का सच में भला हो सकेगा? दुनिया भर में एक दिन के लिए किसी दिवस को मनाने भर से हालात नहीं सुधर सकते। क्योंकि ये दिवस अरबों रुपये ख़र्च करके सिर्फ़ बड़ी-बड़ी बातें करने का खोखला आधार बन चुके हैं, जिनके बहाने मज़दूर हितों की बात करने वाले बहुत-से दलालों की जेब गर्म हो जाती है। मज़दूरों पर काम करने वाली संस्थाएँ इस एक दिन में करोड़ों रुपये बनाकर फिर साल भर के लिए मज़दूरों और दूसरे श्रमिकों की समस्याओं से अनजान हो जाती हैं। दुनिया भर में करोड़ों मज़दूर संगठनों, मज़दूरों के लिए काम करने वाले एनजीओ और मज़दूरों के लिए काम करने वाली दूसरी संस्थाओं की चौखट पर उनके साथ हुए अन्याय की फ़रियाद लेकर माथा टेकने जाते हैं; लेकिन ये सब 80 प्रतिशत से ज़्यादा पीड़ित मज़दूरों और श्रमिकों को न्याय नहीं दिला पाते। उलटा मज़दूरों और श्रमिकों से न्याय की लड़ाई लड़ने के नाम पर पैसा ऐंठ लेते हैं। कई संगठनों, एनजीओ और संस्थाओं के लोग तो मज़दूरों की लड़ाई हाथ में लेकर मज़दूरों का शोषण करने वाली संस्थाओं, कम्पनियों से ही दलाली लेकर मज़दूरों को धोखा देते रहते हैं।

कार्यबल में इंसानों से ज़्यादा पॉवरफुल और लगातार बिना थके बिना तनख़्वाह के काम करने के चलते दुनिया भर में रोबोट की माँग बढ़ती जा रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और रोबोटिक साइंस की तेज़ी से हो रही प्रगति ने दुनिया भर के ह्यूमन फ्रेंडली लोगों को चिन्ता में डाल दिया है। लेकिन जो लोग इंसानों से ज़्यादा मशीनों को महत्त्व देते हैं और व्यापार भी किसी भी हाल में ज़्यादा-से-ज़्यादा लाभ कमाने का ज़रिया मानते हैं, वे लोग नयी तकनीक के इन बढ़ते आविष्कारों से बहुत ख़ुश हैं कि उन्हें रोबोट के रूप में बिना तनख़्वाह के ज़्यादा तेज़ी से काम करने वाली तकनीक एक बार में पैसा ख़र्च करने पर मिल रही है, जिसकी वजह से वे कई मज़दूरों और श्रमिकों का काम एक ही रोबोट से करा सकते हैं। हाल ही में रोबोट और एआई के सफल प्रयोगों के बाद ऐसे लोगों को भरोसा होने लगा है कि रोबोट और एआई इंसानों से ज़्यादा स्मार्ट, ज़्यादा मेहनत, ज़्यादा काम और ज़्यादा सटीक तरीक़े से काम करने के लिए इन तकनीकी यंत्रों पर भरोसा किया जा सकता है। इन लोगों का मानना है कि रोबोट और एआई से किसी भी प्रकार की बेईमानी का कोई ख़तरा नहीं है, जो इंसानों से अक्सर होता है। अमेरिका, चीन, जापान, ब्रिटेन, दुबई, क़ुवैत और दूसरे कई विकसित देशों की कई बड़ी-बड़ी कम्पनियों में रोबोट काम कर रहे हैं और उनकी क्षमता, कम लागत और काम में सफ़ाई के मामले में ज़्यादातर कम्पनियों ने संतुष्टिपूर्ण जवाब दिये हैं।

लेकिन इस सबके बावजूद रोबोट और एआई के कई बड़े ख़तरे भी हैं, जिनको लेकर लोग चिन्तित हैं। दरअसल एआई और इंटरनेट के बढ़ते उपयोग ने कम्पनियों और पूँजीपतियों को एक सेकेंड में भी बर्बाद करने की चिन्ता को बढ़ाया है। क्योंकि इससे सभी लोग और कम्पनियाँ चौबीसों घंटे अंतरराष्ट्रीय साइबर अपराधियों और ठगों के निशाने पर रहती हैं। दूसरी तरफ़ रोबोट किसी भी इंसान या चीज़ को तोड़फोड़ करके नुक़सान पहुँचा सकता है, चाहे वो रोबोट को ख़रीदने या चलाने वाला उसका मालिक ही क्यों न हो। इसी वजह से रोबोट को संवेदनशील और आज्ञाकारी बनाने की दिशा में वैज्ञानिक लगातार काम कर रहे हैं। अभी हाल ही में ऐसे कई रोबोट तैयार किये गये हैं, जो इंसानों की तरह ही प्यार, जज़्बात को महसूस कर सकें और इंसानों की तरह देख-सुनकर उनकी बातों का सही जवाब दे सकें या समस्याओं का समाधान कर सकें।

अब तो ऐसे-ऐसे रोबोट बनाये जा रहे हैं, जो हर काम कर सकें। ख़ाना बनाने और साफ-सफ़ाई करने से लेकर युद्ध करने तक में काम आ सकें। ई-कॉमर्स कम्पनियों के लिए रोबोट वरदान साबित हो रहे हैं। इन कम्पनियों में मैन्युफैक्चरिंग से लेकर ऑर्डर के मुताबिक, सामान निकालकर पैक करने और डिलीवरी देने तक में रोबोट की डिमांड बढ़ती जा रही है। लेकिन इससे दुनिया भर में श्रमिकों की माँग घटती जा रही है। हालाँकि जानकार कह रहे हैं कि इससे किसी को घबराने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि अपना स्किल डेवलप करने की ज़रूरत है। लेकिन आज दुनिया की क़रीब 8.5 अरब आबादी में अनपढ़ और ग़ैर-प्रशिक्षित श्रमिकों की संख्या 2.1 अरब से भी ज़्यादा है, तो वे क्या करें? आज के आधुनिक युग में भी भारत और दूसरे विकासशील देशों में 8.6 प्रतिशत से ज़्यादा मासूम स्कूल का मुँह नहीं देख पा रहे हैं और 16.4 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़कर मज़दूर बन रहे हैं। पैसे के अभाव में अनपढ़, कम पढ़े-लिखे और यहाँ तक कि बहुत-से ग्रेजुएट बच्चों तक को किसी हुनर का प्रशिक्षण भी नहीं मिल पाता है। प्रशिक्षण या स्किल डेवलप करने के लिए 24 प्रतिशत से ज़्यादा भारतीय बच्चे नौकरी के सहारे हैं, जहाँ वे बिलकुल निचले स्तर से कम तनख़्वाह में काम शुरू करते हैं। ऐसे में अगर रोबोट ने श्रम के क्षेत्र में क़दम रख दिया, तो उनकी नौकरी और ख़तरे में पड़ जाएगी।

जानकार ही ऐसा मान रहे हैं कि आने वाले 10 वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और बायोटेक्नोलॉजी के नाम से दस्तक दे चुकी चौथी औद्योगिक क्रांति के दौर में मशीनों और नयी तकनीक के चलते करोड़ों लोग बेरोज़गार होंगे और बहुत-से लोग नौकरियों से हाथ धो बैठेंगे। फ्यूचर ऑफ जॉब्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले पाँच साल में ही दुनिया भर में सिर्फ़ रोबोट ही 50 लाख से ज़्यादा लोगों को बेरोज़गार कर देगा। विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले निकट समय में ही दुनिया भर में 800 से ज़्यादा सेक्टर्स में रोबोट, एआई और नयी तकनीक के चलते 80 प्रतिशत नौकरियाँ लोगों के हाथों से छिन जाएँगी। एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2030 तक दुनिया में 80 करोड़ नौकरियाँ लोगों के हाथों से छिन जाएँगी। ये दावे ऐसे ही नहीं किये जा रहे हैं। लोगों के हाथों से काम मशीनीकरण ने छीना है और आगे भी छीना जाएगा; लेकिन मशीनीकरण के इस बढ़ते युग में हैंडीक्राफ्ट और शारीरिक श्रम से बनी चीज़ों की माँग भी बढ़ रही है, बशर्ते वे चीज़ें यूनिक और अच्छी गुणवत्ता वाली हों। इसलिए श्रमिक वर्ग से, ख़ासकर मज़दूरों से यही कहना पड़ेगा कि वे अपने हाथों और दिमाग़ का इस्तेमाल करके कुछ ऐसी चीज़ें बनाएँ, जिससे उन्हें आमदनी भी हो और दुनिया उनके हुनर का लोहा भी माने। तभी श्रमिक दिवस को मनाना सफल हो सकेगा।