भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा हाल ही में लोकसभा में जारी अखिल भारतीय निगरानी डेटा ने देश में खाद्य सुरक्षा के बारे में गंभीर चिन्ताएँ बढ़ा दी हैं। 2022-23 में 172,687 खाद्य नमूनों के विश्लेषण में आश्चर्यजनक रूप से 44,421 नमूने सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं पाये गये, जिसके कारण 38,053 सिविल और 4,817 आपराधिक मामले दर्ज किये गये थे।
जनहित की पत्रकारिता के लिए प्रतिबद्ध एक मीडिया संगठन के रूप में ‘तहलका’ की एसआईटी जब पहले से ही एक बड़े खुदरा घोटाले का पर्दाफ़ाश करने की तैयारी कर रही थी, तब सितंबर, 2024 में तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद के लड्डुओं में मिलावटी घी के कथित उपयोग पर विवाद खड़ा हो गया। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने दावा किया कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व वाले पिछले प्रशासन के दौरान तिरुपति मंदिर में विराजमान श्री वेंकटेश्वर भगवान को चढ़ाये जाने वाले पवित्र प्रसाद में पशु वसा सहित घटिया सामग्रियों का उपयोग किया गया था। हाल ही में बीती दीपावली के मौसम में पूरे भारत में खाद्य पदार्थों में मिलावट की ख़बरों में वृद्धि देखी गयी। यह स्थिति उपभोक्ताओं के लिए एक ख़तरनाक स्वास्थ्य-जोखिम पैदा करती है। एक परेशान करने वाली बात यह है कि अक्सर कुछ बाज़ारों में मिठाइयों के लिए कच्चा माल तैयार उत्पादों की तुलना में अधिक महँगा होता है।
‘तहलका’ की आवरण कथा- ‘स्वास्थ्य से खिलवाड़’ इस बात की पड़ताल है कि कैसे दिल्ली-एनसीआर में एक प्रमुख खुदरा श्रृंखला के फ्रेंचाइजी मालिक अनधिकृत और घटिया उत्पाद बेचकर नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, जिससे उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य ख़तरे में पड़ रहा है। इस पड़ताल से इस क्षेत्र में फ्रेंचाइजी खुदरा दुकान (रिटेल स्टोर) चलाने वाले एक उद्यमी का पता चलता है, जो इन अनैतिक गतिविधियों में लिप्त है। खुदरा श्रृंखला फलों और सब्ज़ियों के लिए भारत का सबसे बड़ा संगठित नेटवर्क है, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 400 और बेंगलूरु में 23 आउटलेट संचालित करके प्रतिदिन 1,50,000 से अधिक ग्राहकों को सेवा प्रदान करता है। केंद्र के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत एक ब्रांड के स्वामित्व वाली यह खुदरा श्रृंखला शहरी उपभोक्ताओं और किसानों को समर्थन देने के लिए शुरू की गयी थी। हालाँकि ‘तहलका’ के ख़ुफ़िया कैमरे में क़ैद हुए नोएडा के दो स्टोर के मालिक ने इस नेटवर्क के वरिष्ठ अधिकारियों की जानकारी के बिना घटिया उत्पाद बेचने की बात क़ुबूल की। उसने टिप्पणी की- ‘ईमानदारी की क़ीमत नहीं होती। लाभ कमाने के लिए बेईमानी का सहारा लेना पड़ता है।’ उसने बाहरी बाज़ारों से प्राप्त अनधिकृत वस्तुओं का स्टॉक करने की बात भी स्वीकार की और प्रति माह 1.5 लाख रुपये कमाने का दावा किया, जो कि केवल कम्पनी के अनुमोदित उत्पादों को बेचने से होने वाले कम लाभ के बिलकुल विपरीत है। उसने कहा कि छापेमारी के दौरान पकड़े जाने पर भी ज़ुर्माना न्यूनतम ही लगता है।
यह स्थिति एफएसएसएआई के मौज़ूदा उपायों की प्रभावहीनता को उजागर करती है, जिसमें यूट्यूब पर उपलब्ध डार्ट (डिटेक्ट अडल्टेरेशन विद रेपिड टेस्ट) सुरक्षा मैनुअल जैसे उपभोक्ता जागरूकता अभियान भी शामिल हैं। इन प्रयासों के बावजूद डिटर्जेंट, यूरिया, स्टार्च, ग्लूकोज और फॉर्मेलिन जैसे हानिकारक पदार्थों का उपयोग करके दूध में मिलावट जैसे मुद्दे बने रहते हैं। ऐसे में दो महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं। पहला- क्या खाद्य सुरक्षा अधिकारी इन भ्रष्टाचारों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रयास कर रहे हैं? और क्या इन स्वास्थ्य ख़तरों के सम्बन्ध में उपभोक्ताओं में पर्याप्त जागरूकता है? खाद्य सुरक्षा एजेंसियों को सक्रिय रुख़ अपनाना चाहिए। कठोर निरीक्षण करना चाहिए; और नियमों की अनदेखी करने पर सख़्त सज़ा का प्रावधान होना चाहिए। खाद्य पदार्थों में मिलावट न पकड़ पाने की विफलता न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य को कमज़ोर करती है, बल्कि उन लोगों को भी प्रोत्साहित करती है, जो खाद्य सुरक्षा से समझौता करके लाभ कमाते हैं।