मातृ-शिशु की मृत्यु दर घटाना एक बड़ी चुनौती

विश्व आबादी आठ अरब से अधिक है, इस आबादी का स्वास्थ्य भी एक अहम विषय है और इस मुद्दे पर विश्व भर का ध्यान आकर्षित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रत्येक 07 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाता है। इसकी शुरुआत 1950 को हुई थी। 2025 विश्व स्वास्थ्य दिवस का थीम स्वस्थ शुरुआत, आशा-पूर्ण भविष्य है। इसके तहत मातृ एवं नवजात शिशु स्वास्थ्य पर एक साल तक चलने वाले अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान में सरकारों और स्वास्थ्य समुदाय से आग्रह किया गया है कि वे रोके जा सकने वाली मातृ एवं नवजात शिशुओं की मृत्यु को रोकने के लिए कोशिशें तेज़ करें और महिलाओं के दीर्घकालिक स्वास्थ्य एवं कल्याण को प्राथमिकता दें।

ग़ौरतलब है कि दुनिया भर में वर्ष 2023 में 2.60 लाख महिलाओं की मौत प्रसव सम्बन्धी जटिलताओं के कारण हुई। और हर साल 20 लाख से अधिक बच्चे अपने जीवन के पहले महीने ही मर जाते हैं और लगभग 20 लाख बच्चे मृत पैदा होते हैं। चिन्ता की बात यह है कि सतत विकास लक्ष्य 3.1 (वर्ष 2030 तक वैश्विक मातृ मृत्यु दर को प्रति लाख जीवित जन्मों पर 70 से नीचे लाना है।) की सूची में निर्धारित मातृ स्वास्थय लक्ष्य को हासिल करना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। मातृ स्वास्थ्य में सुधार लाने के लक्ष्य को पूरा करने में पाँच में से चार देश पीछे चल रहे हैं। तीन में से एक देश नवजात मृत्यु दर को कम करने के लक्ष्य को पूरा करने में पिछड़ जाएगा।

इसी 07 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस पर मातृ मृत्यु दर में प्रवत्ति नामक एक रिपोर्ट जारी की गयी। इसके अनुसार, 2000-2023 के दौरान मातृत्व मौतों (गर्भावस्था या प्रसव के दौरान या उसके 42 दिनों के भीतर मौत होना) में 40 प्रतिशत की कमी आयी है; लेकिन 2016 के बाद से इस मामले में सुधार की रफ़्तार धीमी हो गयी है। यह चिन्ता का विषय है। इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में दुनिया भर में 2.60 लाख महिलाओं की मौत मातृत्व मौत के रूप में दर्ज की गयी, जो कि लगभग हर दो मिनट में एक मातृत्व मौत के समान है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2023 में 19,000 गर्भवती महिलाओं की मौत हुई। भारत में हर रोज़ 52 मातृ मृत्यु हो रही हैं। 2023 के मातृ मृत्यु दर के आँकड़ों पर निगाह डालें तो सबसे अधिक 75,000 मौतें नाइजीरिया में हुईं यानी दुनिया में यह भागीदारी 28.7 प्रतिशत। इसके बाद भारत है, जहाँ यह संख्या 19,000 है यानी 7.2 प्रतिशत। इसके बाद कांगो व पाकिस्तान का नंबर आता है। दुनिया की 47 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं की मौत इन चार देशों में दर्ज की गयीं। बेशक भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने मातृ मृत्यु दर के मामले में भारत (145 करोड़) की तुलना नाइजीरिया (23.26 करोड़) से करने पर चिन्ता व्यक्त की है तथा यह स्पष्ट किया कि जनसंख्या के आकार को समायोजित किये बिना निरपेक्ष संख्याओं का उपयोग किये जाने से भारत की सापेक्षिक प्रगति का त्रुटिपूर्ण चित्रण हो सकता है। भारत की मातृ मृत्यु दर में वर्श 2000-2020 में कमी आयी है; लेकिन भारत के कई ऐसे राज्य हैं, जहाँ यह दर अधिक चिन्ता का विषय है। ऐसे राज्यों में असम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, और बिहार हैं। अब विश्व की सबसे बड़ी पाँचवी अर्थव्यवस्था के सामने एक प्रमुख चुनौती सतत विकास लक्ष्य 3.1 को हासिल करना है। भारत में दुर्गम इलाक़ों में जच्चा व बच्चा को सही समय पर स्वास्थ्य सुविधाएँ सरलता से उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे इलाक़ों से गर्भवती महिलाओं को सही समय पर उचित चिकित्सा सेवाएँ न मिलने के चलते मरने की ख़बरें आती रहती हैं।

वर्ष 2000 से भारत में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में 61 प्रतिशत व पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 70 प्रतिशत की कमी आयी है; पर इसके बावजूद यहाँ के बच्चों का वज़न व लंबाई तय मानकों से कम है, जो कि चिन्ता का विषय है। इसकी एक प्रमुख वजह कुपोषण है। दरअसल, आर्थिक असमानता समाज के ग़रीब, वंचित तबक़े को सबसे अधिक प्रभावित करती है। सरकार का दायित्व है कि वह स्वास्थ्य बजट को अधिक रक़म आवंटित करे; लेकिन भारत सरकार कुल बजट का दो प्रतिशत के आसपास ही स्वास्थ्य के लिए आवंटित करती है। हालाँकि सरकारी बजट में ही समाज की सेहत को अधिक गंभीरता से लेने वाली प्रवृत्ति नहीं झलकती, तो इसे क्या समझना चाहिए? हाल ही में इटली के हज़ारों लोगों ने अपनी सरकार द्वारा हथियारों पर अधिक ख़र्च करने का विरोध करने के लिए सड़कों पर नारे लगाते नज़र आये। उनकी माँग हथियारों पर ख़र्च करने की बजाय स्वास्थ्य सेवाओं का बजट बढ़ाने की थी, ताकि उनके देश के लोग बेहतर एवं स्वस्थ ज़िन्दगी जी सकें। ऐसा प्रदर्शन एक मिसाल है।