रामलीला का मंचन और वैश्विक प्रासंगिकता

चंडीगढ़। शारदीय नवरात्रों से देश में त्योहारों का सीजन शुरू हो जाता है। खासकर उत्तर भारत में रामलीला का मंचन छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक को रोमांचित करता है। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बात करें तो रामलीला धार्मिक, सांस्कृतिक उत्सव होने के साथ-साथ एक बड़ा व्यवसाय भी बन चुका है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अनुमान के अनुसार रामलीला, गरबा, डांडिया से देश भर में पचास हजार करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार होने की उम्मीद है। बावजूद इसके रामलीला के मंचन का उद्देश्य आज भी अपने रास्ते से भटका नहीं है। पंजाब राज्य का होशियारपुर शहर। हर गली-मोहल्ले और सड़कों पर रामायण के नाटकीय पात्रों की शोभायात्राएं निकल रही हैं और रामलीला देखने वालों की भीड़ नजर आती है। बच्चे और युवक अपने-अपने ढंग से लोगों का मनोरंजन करते हैं। लोगों में धार्मिक आस्था इतनी दृढ़ है कि इन पात्रों की शोभा यात्रा जहां से निकलती है वे इन्हें पूजने लगते हैं, माथा टेकते हैं। अब तो शहर में अनेक संगठन बन चुके हैं, जो हर वर्ष हनुमान और उनकी सेना के रूप बनाकर लोगों के घरों में जाते हैं। लोग भी एक बड़े आयोजन की तरह इन्हें अपने घरों पर बुला रहे हैं। अगले साल के लिए बाकायदा उनकी बुकिंग हो जाती है। सदियों से चला आ रहा रामलीला का मंचन देश के अनेक हिस्सों में अपनी जीवंतता बनाए हुए है। वजह है कि आज भी राम जैसा लोकनायक जनमानस के दिलों में बसता है और रामायण के अन्य पात्र समाज को संदेश देते हुए चलते हैं। रामलीला का मंचन जाति, धर्म या उम्र के भेदभाव के बिना पूरी आबादी को एक साथ लाता है। रामलीला की वैश्विक प्रासंगिकता ही है कि भारत के अलावा विश्व के कई देशों में इसका अलग-अलग रूपों में मंचन किया जाता है। वर्ष 2008 में यूनेस्को द्वारा रामलीला उत्सव को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया गया था।


रामलीला हिंदू संस्कृति का एक बड़ा महत्वपूर्ण और जीवंत हिस्सा है, जिसका मंचन देश के अलग-अलग शहरों, कस्बों और गांवों में होता आ रहा है। उत्तर प्रदेश के अयोध्या, बनारस, वृंदावन तो उत्तराखंड के अल्मोड़ा में, मध्य प्रदेश के सतना और बिहार के मधुबनी जैसे शहरों में रामलीला का मंचन बड़े स्तर पर किया जाता है। केवल भारत के इन हिस्सों तक ही रामलीला सीमित नहीं रही। विश्व के इन देशों इंडोनेशिया, म्यांमार, कंबोडिया, थाईलैंड, मॉरीशस, फिजी, गुयाना, मलेशिया, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम, त्रिनिदाद, टोबैगो, रूस, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और नीदरलैंड के हिंदू समाज में भी रामलीला का मंचन अलग-अलग ढंग से किया जाता है। 19वीं और 20वीं शताब्दी में जब भारत से कुछ लोग बाहर के देशों में रोजगार के लिए गए और वहां रहने लगे तो उन्होंने वहां भी अपनी संस्कृति की छठा बिखेरनी शुरू कर दी।
रामलीला का शाब्दिक अर्थ है राम का नाटक। महर्षि वाल्मीकि की रामायण से गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस के पात्रों का चरित्र चित्रण ही रामलीला के मंचन का उद्देश्य होता है। राम क्योंकि रामायण और रामचरितमानस के केंद्रीय पात्र हैं, इसलिए उनके श्रेष्ठतम लोकनायक रूप को मंंचित करके एक जीवंत संदेश दिया जाता है। उत्तराखंड के टनकपुर डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. पंकज उपरेती ने ‘कुमाऊं की रामलीला-अध्ययन एवं स्वरांकन’ विषय पर शोध किया है। उनका कहना है कि पुरुषोत्तम राम की कथा को नाट्य रूप में संपूर्ण विश्व में देखा जाता है। भारतवर्ष में ही इस कथा की मंचीय प्रस्तुति कई शैलियों में होती है। इसी की गीत नाट्य शैली उत्तराखंड की विशेषता है। खासकर कुमाऊं में रामलीला का अभिनय अपनी विशेषता के साथ किया जाता है। इस पर्वतीय प्रदेश में जिस प्रकार यहां के लोगों ने शास्त्रीयता के निकट जाकर रामलीला मंचन की परंपरा जारी की, वह लोक और शास्त्र का अद्भुत संगम है।
‘द ग्लोबल एनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ द रामायण’ में विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी अखिलेश मिश्रा लिखते हैं कि रामायण और राम कथा वैदिक चिंतनधारा और मानव जीवन के बहुपक्षीय दार्शनिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यावहारिक मूल्य की उदात्त परंपरा का संगम है। जिन नैतिक मूल्यों के लिए भारत युगों-युगों से श्रद्धा का पात्र रहा है, रामायण उसका अक्षय अक्षुण्ण भंडार है। राम का चरित्र मानवीय मर्यादा, भारतीयता का देदीप्यमान मूर्तिमान रूप है। जिनके शत्रु भी उनकी प्रशंसा करने पर बाध्य हो जाते थे। राम किसी एक क्षेत्र, एक भाषा, एक धर्मावलंबी, एक कला रूप का वर्णन विषय नहीं है। भारत और विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में राम कथा उपलब्ध है। अनेक देशों में राम साहित्य अनेक विधाओं में लिखा गया है। 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में दिए गए भाषण का एक अंश देखिए, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि राम की सर्वव्यापकता भारत की विविधता में एकता का जीवन चरित है। तमिल में कम्ब रामायण, तेलुगु में रघुनाथ रामायण, उड़िया में दाण्डी रामायण तो कन्नड़ में कुमुदेंदु रामायण है। कश्मीर में रामावतार चरित मिलेगा। मलयालम में रामचरितम तो बंगाल में कृति वास रामायण, जबकि गुरु गोविंद सिंह ने तो गोविंद रामायण लिखी। अलग-अलग जगह पर राम भिन्न-भिन्न रूपों में मिलेंगे। दुनिया में कितने ही देश राम नाम का बंदन करते हैं। विश्व की सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या जिस देश में है वह इंडोनेशिया। हमारे देश की तरह काकाबिन रामायण, स्वर्णदीप रामायण, योगेश्वर रामायण जैसी कई अनोखी रामायण हैं। राम आज भी वहां पूज्यनीय हैं। कंबोडिया में रंगकेर, लाओस में फ्रा लक फ्रा, मलेशिया में हिकायत सेरीराम, थाईलैंड में रामकेर रामायण है। ईरान तथा चीन में भी राम के प्रसंग तथा राम कथा का विवरण मिलेगा।
क्यों प्रासंगिक है रामलीला का मंचन
रामायण अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए महत्वपूर्ण दिशा- निर्देश प्रदान करती है। रामायण के विषय राजधर्म, शासनकला, खुफिया जानकारी एकत्र करने, कूटनीति और युद्ध की नैतिकता के बारे में जानकारी देते हैं, जिसमें सुशासन, नैतिक व्यवहार और एक स्थायी व्यवस्था बनाए रखने की दृष्टि शामिल है। राम-भरत संवाद राज्य की सद्भावना और स्थिरता बनाए रखने, लोगों की भलाई और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर जोर देता है। राम ने एक राजा के लिए आवश्यक गुणों को अपनाने और अवगुणों से बचने का निर्देश किया है। राजसी कर्तव्यों के निर्वहन के लिए आचार संहिता का भी उल्लेख किया है। उनमें विश्वास, झूठ, क्रोध, व्याकुलता, टाल-मटोल,विद्वानों की अवहेलना, आलस्य,पांच इंद्रियों का पीछा करना, अर्थ के प्रति एकनिष्ठ भक्ति, उन लोगों की सलाह लेना जो उद्देश्य नहीं जानते, तय की गई परियोजनाओं को शुरू करने में विफलता, रहस्यों की रक्षा करने में विफलता, शुभ संकेतों का पालन करने में विफलता और सभी के लिए अपनी सीट से उठने के लिए तैयार रहना आदि शामिल है।