गेहूँ की ख़रीदारी के लक्ष्य से दूर क्रय केंद्र

योगेश

देश के ज़्यादातर राज्यों में बनी सहकारी समितियों की लेबी (क्रय केंद्र) पर 20 मई तक किसानों से गेहूँ की ख़रीद की जानी है। लोकसभा चुनावों के चलते केंद्र सरकार ने चालू विपणन वर्ष 2024-25 में गेहूँ ख़रीद को सात गुना बढ़ाकर 310 लाख टन गेहूँ ख़रीदने का लक्ष्य रखा है। लेकिन सहकारी समितियों के लेबी केंद्रों पर गेहूँ की ख़रीद करने में किसानों को कई अड़चनें आ रही हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार राज्यों से किसानों की इस मामले में शिकायतें आ रही हैं। उत्तर प्रदेश के बहेड़ी क्षेत्र के कई किसानों ने इसकी शिकायत करते हुए बताया कि लेबी पर आढ़तियों से साँठगाँठ करके उनका भी गेहूँ लिया जा रहा है और किसानों को टालने की कोशिश की जा रही है। फ़तेहगंज क्षेत्र के किसानों ने भी इस प्रकार की शिकायतें की हैं। उनका कहना है कि लेबी पर किसानों के गेहूँ में कमियाँ निकालकर उन्हें परेशान किया जा रहा है। कुछ किसानों की शिकायत है कि गेहूँ लेने में देरी की जा रही है। कई किसानों और आढ़तियों का गेहूँ देर में आने पर भी पहले लिया जा रहा है और छोटे किसानों को टाला जा रहा है। इस तरह की कई समस्याओं के चलते किसान आढ़तियों और व्यापारियों को गेहूँ बेचने को मजबूर हो रहे हैं।

केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने चालू विपणन वर्ष 2024-25 के लिए उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार राज्यों के लिए कुल गेहूँ ख़रीदी का 16 प्रतिशत गेहूँ ख़रीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। लेकिन किसानों की शिकायतें सुनकर लगता है कि ये राज्य 20 मई तक इस लक्ष्य को भले ही पा लें; लेकिन कई किसानों का गेहूँ लेबी केंद्रों पर नहीं बिक पाएगा। विपणन वर्ष 2023-24 में मार्च और अप्रैल के दौरान ही इन तीनों राज्यों ने केंद्र सरकार के निर्धारित ख़रीद लक्ष्य से काफ़ी कम केवल 6.7 लाख टन गेहूँ ख़रीदा था। इस विपणन वर्ष 2024-25 में उत्तर प्रदेश सरकार ने 60 लाख टन गेहूँ ख़रीद लक्ष्य पूरा करने के लिए लेबी केंद्रों की संख्या 10 प्रतिशत बढ़ाकर 6,400 से ज़्यादा कर दी है। इतना गेहूँ ख़रीदने के लिए राज्य सरकार को 13,650 करोड़ रुपये का भुगतान किसानों को करना होगा।

केंद्र सरकार ने इस विपणन वर्ष 2024-25 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,275 रुपये प्रति कुंतल रखा है। विपणन वर्ष 2023-24 में 2,125 रुपये प्रति कुंतल था। विपणन वर्ष 2023-24 में उत्तर प्रदेश. राजस्थान और बिहार ने केवल 6,70,000 टन गेहूँ ही ख़रीदा था। इस प्रकार गेहूँ ख़रीद में इन तीनों राज्यों का योगदान लक्ष्य से कम रहा है। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने इस बार उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार राज्यों को ख़रीद पूरी करने के निर्देश दिये हैं। अधिकारियों ने बताया है कि तीनों राज्य अपनी क्षमता से बहुत कम ख़रीदी योगदान दे रहे हैं। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने इस विपणन वर्ष में गेहूँ ख़रीद का लक्ष्य बढ़ाकर 310 लाख टन तो कर दिया है; लेकिन उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और संभवत: मध्य प्रदेश भी अपने-अपने गेहूँ ख़रीद लक्ष्य को पूरा करने में असमर्थ दिख रहे हैं। मध्य प्रदेश के सामने केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने विपणन वर्ष 2024-25 के लिए क़रीब 100 लाख टन गेहूँ ख़रीद का लक्ष्य रखा गया है, जिसके लिए मध्य प्रदेश सरकार को लगभग 22,750 करोड़ रुपये नहीं, बल्कि 24,000 करोड़ रुपये किसानों को चुकाने होंगे, क्योंकि मध्य प्रदेश के गेहूँ की क्वालिटी अच्छी मानी जाती है, जिसके चलते वहाँ के गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,400 रुपये प्रति कुंतल है।

मध्य प्रदेश सरकार ने विपणन वर्ष 2023-24 में लगभग 56 लाख टन गेहूँ लेबी केंद्रों के माध्यम से ख़रीदा था। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ही गेहूँ ख़रीद की तारीख़ बढ़ाकर 20 मई कर दी है। इसके अलावा अन्य राज्यों के लिए भी गेहूँ ख़रीद का लक्ष्य बढ़ाया गया है। सभी राज्यों से लक्ष्य पूरा करते हुए पूरी गेहूँ ख़रीद की उम्मीद केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने जतायी है। लेकिन लेबी केंद्रों पर किसानों से हो रहे व्यवहार और उन्हें टालने की कोशिश करने वालों की नीयत गेहूँ ख़रीद का लक्ष्य पूरा करने की नहीं लगती। लेबी के ईमानदार कर्मचारी ने अपना नाम छुपाने की शर्त पर बताया कि लेबी के प्रबंधकों और दूसरे कर्मचारियों ने व्यापारियों और आढ़तियों से साँठगाँठ कर रखी है। कुछ किसान लेबी पर होने वाली समस्याओं के चलते अपना गेहूँ मंडी में बेच रहे हैं। जब लेबी पर गेहूँ नहीं बिकता है, तो किसान मजबूरी में 1,900 रुपये प्रति कुंतल से 2,000 रुपये प्रति कुंतल गेहूँ आढ़तियों और व्यापारियों को बेच देते हैं। आढ़तिए और व्यापारी उस गेहूँ पर 200 रुपये से 250 रुपये प्रति कुंतल तक कमा रहे हैं, जिसमें कुछ हिस्सेदारी लेबी प्रबंधकों ओर कर्मचारियों की भी होती है। आटा बनाकर बेचने वाले व्यापारी भी गेहूँ ख़रीद रहे हैं, जो एमएसपी या उसके आसपास का भाव भी किसानों को दे रहे हैं और नक़द पैसा दे रहे हैं। इसके चलते भी सभी किसान लेबी केंद्रों पर गेहूँ बेचने नहीं जा रहे हैं।

किसानों की शिकायत है कि सरकार ने लोकसभा चुनाव जीतने के लिए गेहूँ ख़रीद का लक्ष्य तो बढ़ा दिया; लेकिन किसानों को न तो उचित समर्थन मूल्य दिया है और न ही यह ख़रीद लक्ष्य पूरा होने वाला है। लेकिन सरकारी बाबुओं का बयान कहता है कि गेहूँ ख़रीद का लक्ष्य बड़ाने के पीछे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत गेहूँ आवंटन सुचारू रूप से चलाने की योजना है। सरकारी बयानों में कहा गया है कि केंद्र सरकार का आदेश है कि गेहूँ ख़रीदी के 48 घंटे के भीतर गेहूँ बेचने वाले किसानों के बैंक खातों में न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से पैसा भेजा जा रहा है। इससे किसानों को पैसे के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने किसानों को 48 घंटे के अंदर भुगतान करने के लिए ख़रीद केंद्र बड़ाने के अलावा मोबाइल ख़रीद केंद्र भी स्थापित किये हैं। ये मोबाइल ख़रीद केंद्र स्वयं सहायता समूहों, पंचायतों, किसान उत्पादक संगठनों की मदद से चल रहे हैं। ख़रीद केंद्रों और एजेंसियों के बीच ख़रीद और समन्वय की निगरानी के लिए दिल्ली में एफसीआई मुख्यालय में एक केंद्रीय नियंत्रण कक्ष खोला गया है। यह मुख्यालय ख़रीद केंद्रों की कई गतिविधियों पर नज़र रख रहा है, जिसमें गेहूँ ख़रीद की गति, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीद की समीक्षा और किसानों के लिए सुगमता का निरीक्षण कर रहा है।

कुछ जगहों पर किसानों को निजी हाथों में गेहूँ बेचने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज़्यादा अच्छा भाव मिल रहा है, जिसके चलते किसान लेबी को गेहूँ न बेचकर व्यापारियों को बेच रहे हैं। मध्य प्रदेश में इस प्रकार के मामले ज़्यादा सामने आये हैं। मध्य प्रदेश की कुछ जगहों पर किसानों को व्यापारी 2,500 से 2,600 रुपये प्रति कुंतल तक का भाव दे रहे हैं, ऐसी ख़बरें मिल रही हैं। बाज़ारों में गेहूँ का अलग-अलग भाव गेहूँ की क्वालिटी के हिसाब से मिल रहा है। अच्छा भाव लेने के लिए पढ़े-लिखे किसान ऑनलाइन कमोडिटी पर भी भाव देखकर गेहूँ बेच रहे हैं। मध्य प्रदेश में गेहूँ की सबसे कम भाव 2,200 रुपये प्रति कुंतल मिल रहा है; लेकिन ये सबसे हल्की क्वालिटी का गेहूँ है। इस राज्य में गेहूँ का औसत मूल्य 2,306.92 प्रति कुंतल मिल रहा है, जबकि सबसे उच्च बाज़ार क़ीमत 2,500 रुपये से 2,600 रुपये प्रति कुंतल किसानों को मिल रही है। किसानों को भड़काकर गेहूँ की ख़रीदी करने वालों पर कार्रवाई भी मध्य प्रदेश में होने की छिटपुट ख़बरें मिली हैं।

गेहूँ के अलावा लेबी केंद्रों पर चना, सरसों की भी ख़रीद चल रही है। चना और सरसों की ख़रीद 31 मई तक होगी। लेबी केंद्रों पर चना 5,440 रुपये प्रति कुंतल और सरसों 5,650 रुपये प्रति कुंतल की दर से ख़रीदे जा रहे हैं। इन्हें भी किसान कम न्यूनतम समर्थन मूल्य के चलते व्यापारियों को बेचना पसंद कर रहे हैं। कुछ संपन्न किसान रबी के मौसम के सभी फ़सल उत्पादों को रोककर रख रहे हैं, जिससे भाव बढ़ने पर वे उन्हें अच्छे भाव में बेच सकें। लेबी केंद्रों पर किसानों का पंजीकरण हो रहा है। लेकिन रबी की फ़सलों का उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलने के चलते किसानों में सरकारों के प्रति नाराज़गी है। किसानों का कहना है कि भाजपा ने कई राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,500 से लेकर 2,700 रुपये प्रति कुंतल निर्धारित करने का वादा किया था। उसने धान का भी कहीं 3,000 रुपये प्रति कुंतल तो कहीं 3,100 रुपये प्रति कुंतल समर्थन मूल्य देने का वादा किया था। सरकार द्वारा कम समर्थन मूल्य दिये जाने से उत्तर प्रदेश समेत सभी राज्यों में नाराज़गी है। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय को किसानों की माँग और लागत मूल्य बढ़ने के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को देना चाहिए। किसानों की दूसरी समस्याओं का भी समाधान केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को करना चाहिए। लेबी केंद्रों पर होने वाली धाँधली रोकनी चाहिए और किसानों के लिए महँगे मिलने वाले खाद, बीज और कीटनाशकों को सस्ता किया जाना चाहिए। किसानों को बारामासी घाटे से निकालने के लिए उनके साथ सरकारों को ईमानदारी से पेश आना होगा, तभी किसानों की आय दोगुनी करने का वादा पूरा हो सकेगा।