दौड़ी कबड्डी की गड्डी

कहते हैं कि कबड्डी महाभारत के उस युद्ध से निकला हुआ खेल है जिसमें सात योद्धाओं का चक्रव्यूह तोड़ने की कोशिश में अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुआ था. छोटे से मैदान में सात खिलाड़ियों के चक्रव्यूह से भिड़ते एक खिलाड़ी वाला यह खेल सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप में खेला जाता रहा है. यह अलग बात है कि विश्व चैंपियन जैसे कई प्रतिष्ठित खिताबों के बावजूद भारत में कबड्डी के खिलाड़ियों की धमक इस खेल में दिलचस्पी रखने वालों के अति सीमित दायरे तक ही रही.

लेकिन अचानक ही इस खेल की जमीन फैलती दिख रही है. हाल ही में शुरू हुए कबड्डी के दो आयोजन प्रो कबड्डी लीग और वर्ल्ड कबड्डी लीग देश-दुनिया में सुर्खियां बटोर रहे हैं. क्रिकेट के बहुचर्चित आयोजन इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की तरह कबड्डी की इन लीगों में भी फ्रेंचाइजी, फिल्मी सितारों, कारोबारियों और टीवी प्रसारण के मेल का फार्मूला है और यह फॉर्मूला चलता भी दिख रहा है.

26 जुलाई से शुरू हुई प्रो कबड्डी लीग में भारत की आठ टीमें हिस्सा ले रही हैं जिनमें शिमला से लेकर सियेरा लिओन तक के खिलाड़ी हैं. लीग के दौरान कुल 60 मैच होंगे. कुल 34 दिन के इस मेले का फाइनल 31 अगस्त को मुंबई में होगा. लीग की टीमों के मालिकों में अभिनेता अभिषेक बच्चन से लेकर  फ्यूचर ग्रुप जैसे कारोबारी समूह तक शामिल हैं. इस बीच नौ अगस्त से वर्ल्ड कबड्डी लीग भी शुरू हो चुकी है. लंदन से शुरू हुए इस आयोजन के 94 मैच देश-विदेश के 16 शहरों में होंगे. अक्षय कुमार और यो यो हनी सिंह जैसी हस्तियों की टीमों से सजी इस लीग में अलग-अलग देशों के 144 खिलाड़ी भाग ले रहे हैं. इसका समापन 14 दिसंबर को भारत के मोहाली में होगा.

कबड्डी का खेल 12.5 गुणा10 मीटर के मैदान में खेला जाता है. इसके बीच में खिंची रेखा के दोनों तरफ सात-सात खिलाड़ी होते हैं. हमला करने वाले दल का एक खिलाड़ी कबड्डी-कबड्डी कहता हुआ दूसरे पाले में जाता है. उसकी कोशिश होती है कि बिना सांस तोड़े विपक्ष के अधिक से अधिक खिलाड़ियों को छुए और अपने खेमे में लौट आए. वह जितने खिलाड़ियों को छूता है उसकी टीम को उतने ही अंक मिलते हैं. अगर  विरोधियों ने उसे घेर लिया और उसकी सांस टूट गई तो वह खेल से बाहर हो जाता है. जिस दल के जितने अधिक अंक बनते हैं वही विजयी रहता है. अलग-अलग जगहों पर नियमों में थोड़ा बदलाव भी दिखता है. कबड्डी के इस खेल को दक्षिण में चेडुगुडु और पूरब में हुतूतू के नाम से भी जाना जाता है.  भारत के अलावा यह बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, मलेशिया और इंडोनेशिया में भी खेला जाता है. बांग्लादेश का तो यह राष्ट्रीय खेल ही है.

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की तरह कबड्डी की इन लीगों में भी फ्रेंचाइजी, फिल्मी सितारों, कारोबारियों और टीवी प्रसारण के मेल का फार्मूला है

लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भारतीय उपमहाद्वीप में कबड्डी को अब तक वह बुलंदी नहीं मिल पाई थी जिसका यह हकदार है. वैसे तो कबड्डी भारत की मिट्टी में बसा एक सरल खेल है. भारत इसमें पांच बार का एशियाई चैंपियन और दो बार का विश्व चैंपियन है. फिर भी यह कभी क्रिकेट, कुश्ती, मुक्केबाजी या शतंरज जैसे दर्जे को नहीं छू सका. कई मौके आए जब किसी बड़े टूर्नामेंट से टीम जीतकर आई और एयरपोर्ट पर कोई उसकी अगवानी करने तक को नहीं पहुंचा. खिलाड़ी और अधिकारी शिकायत करते रहते हैं कि कोई उन्हें तवज्जो नहीं देता. विंध्यवासिनी देवी का उदाहरण ही लें. 2012 में विश्व चैंपियन बनी भारतीय टीम कबड्डी का हिस्सा रहीं विंध्यवासिनी ने इस साल की शुरुआत में अपने पदक और प्रमाणपत्र लौटाने का ऐलान किया था. दरअसल उनके शानदार प्रदर्शन को गर्व का विषय बताते हुए झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने उन्हें दस लाख रुपये का ईनाम और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की थी. लेकिन दो साल तक दर-दर भटकने के बाद विंध्यवासिनी के हाथ खाली रहे.

कई लोग मानते हैं कि प्राथमिकताओं में कबड्डी का कहीं न होना इस खेल की उपेक्षा का अहम कारण रहा है. एक वेबसाइट से बातचीत में खेल पत्रकार जसविंदर सिद्धू कहते हैं, ‘मीडिया ने धीरे-धीरे अपना ध्यान क्रिकेट जैसे खेलों पर केंद्रित कर लिया. उसने पारंपरिक खेलों को जगह देने की जरूरत नहीं समझी क्योंकि उसे लगता था कि गांवों में न तो केबल टीवी है और न ही वहां उसके दर्शक हैं. इन खेलों के आयोजकों की ओर से भी पूरी कोशिश नहीं हुई कि कैसे खेलों को आगे ले जाया जाए. उन्हें प्रायोजक नहीं मिले. सरकारों ने भी ध्यान नहीं दिया.’

लेकिन पिछले एक दशक के दौरान तस्वीर बदली है. भारत के गांवों तक भी अब केबल टीवी की अच्छी-खासी पहुंच है. वहां दर्शक भी हैं और कबड्डी की लोकप्रियता भी. प्रो कबड्डी लीग के मैचों का प्रसारण कर रहे स्टार स्पोर्ट्स ने दावा किया है कि इस लीग के पहले मैच के लिए ही टीवी दर्शकों की संख्या 2.2 करोड़ रही. यह आंकड़ा 21 लाख दर्शकों की उस संख्या से 10 गुना ज्यादा है जो ब्राजील और क्रोएशिया के बीच हुए फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप के शुरुआती मैच के दौरान भारत में दर्ज की गई थी. ट्विटर और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों पर भी कबड्डी ट्रेंड करता रहा. आयोजन की इस सफलता को देखकर अब महिला कबड्डी लीग शुरू करने की भी चर्चाएं हो रही हैं.

kabaddiमाना जा रहा है कि कारोबारी पैकेजिंग और ग्लैमर के तड़के ने कबड्डी के इस नए उभार में अहम भूमिका निभाई है. जानकारों का एक वर्ग मानता है कि भारत में कुछ को छोड़कर बाकी खेलों के प्रति लोगों का जो रवैय्या है उसे देखते हुए यह मजबूरी है कि फिल्म या मनोरंजन जगत के सितारों को कबड्डी से जोड़ा जाए. एक साक्षात्कार में चर्चित कमेंटेटर और प्रो कबड्डी लीग करवा रही संस्था मशाल स्पोर्ट्स के प्रबंध निदेशक चारु शर्मा कहते हैं, ‘ऐसा नहीं है कि ग्लैमर के आ जाने से खेल बदल जाता है. मगर ग्लैमर के आने से यह खेल उनका भी ध्यान खींचने लगता है जिनकी पसंद में यह नहीं होता. सितारों की वजह से कुछ लोग आकर खेल देखना शुरू कर देते हैं. तो कबड्डी ऐसा क्यों न करे?’ प्रो कबड्डी लीग के मैचों का सीधा प्रसारण कर रहे मीडिया समूह स्टार इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी उदय शंकर का मानना है कि मानसिक और शारीरिक ताकत का मेल कबड्डी में हर वह खासियत है जो इसे एक लोकप्रिय खेल के रूप में उभार सकता है. वर्ल्ड कबड्डी लीग के चेयरमैन और पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के मुताबिक कबड्डी का स्तर उठाने और उसे एक पेशेवर खेल के रूप में उभारने वाला उनका आयोजन आने वाले दिनों में और भी बड़ा और बेहतर होगा.

कई लोग हैं जो मानते हैं कि कबड्डी में प्रोफेशनल लीग शुरू होने से इस खेल को उसका जायज हक मिलेगा. खिलाड़ियों की पूछ बढ़ेगी, खेल का दायरा बढ़ेगा और ओलंपिक में इसे शामिल करवाने की मुहिम को ताकत मिलेगी. अपने एक आलेख में वरिष्ठ पत्रकार गोविंद सिंह मानते हैं कि इस तरह के आयोजनों से एक देशज खेल बड़े फलक पर स्थापित होगा. अंतरराष्ट्रीय कबड्डी फेडरेशन के अध्यक्ष जे एस गहलोत का मानना है कि कबड्डी में प्रोफेशनल लीग के आने से इस खेल को सही पहचान मिलेगी. एक वेबसाइट से बातचीत में गहलोत कहते हैं, ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अगर इस खेल को सही तरीके से हाइलाइट करेगा तो निश्चित तौर से बच्चों में इसके प्रति दिलचस्पी और बढ़ेगी. इसमें क्रिकेट के युवराज सिंह की तरह खिलाड़ियों की 14 करोड़ रुपये की बोली तो नहीं लग सकती, लेकिन 14-15 लाख रुपये की बोली लगना सही शुरुआत है.’

गहलोत राकेश कुमार की बात कर रहे हैं जिनके खाते में भारतीय कबड्डी टीम की कप्तानी, दो विश्व कप और अर्जुन पुरस्कार जैसी उपलब्धियां दर्ज हैं. हाल में उनका नाम तब सुर्खियों में आया जब प्रो कबड्डी लीग के लिए पटना फ्रेंचाइजी ने उन्हें 12.8 लाख रुपये में खरीदा.  विदेशी खिलाड़ियों में सबसे महंगी बोली ईरान के मुस्तफा नौदेही की लगी. उन्हें 6.6 लाख रुपये में पुनेरी पल्टन ने खरीदा.

मिट्टी से मैट और टीवी चैट तक आ चुकी कबड्डी में एक नई जान आती दिख रही है. खिलाड़ी इससे बहुत खुश हैं. तहलका से बातचीत में राकेश कुमार कहते हैं, ‘स्कूल के दिनों में जब हम दिल्ली और हरियाणा के लोकल टूर्नामेंटों में जाते थे तो जीतने पर प्लेट या चम्मच मिलते थे. बहुत हुआ तो टीम को एक-दो हजार रुपये मिल गए. तब हमने सोचा भी नहीं था कि एक दिन यहां पहुंचेंगे. उन दिनों तो नाते-रिश्तेदार घर वालों को समझाते थे कि िफजूल में वक्त बर्बाद कर रहा है तुम्हारा लड़का, यही खेल रह गया है क्या? लेकिन हमें तो जो मिला इसकी वजह से ही मिला. आज तो और भी खुशी होती है जब स्टेडियम फुल होता है. टीवी पर मैच आता है, लोग ऑटोग्राफ मांगते हैं और मीडिया वाले फोन करते रहते हैं.’ वे आगे कहते हैं, ‘किसने सोचा था कि एक दिन अमिताभ बच्चन या सचिन तेंदुलकर जैसे सितारे कबड्डी का मैच देख रहे होंगे.’

तो क्या मान लिया जाए कि कबड्डी का भविष्य अब सुनहरा है? इस सवाल के ठीक-ठीक जवाब के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा. हॉकी और बैडमिंटन को लेकर शुरू हुई लीगें तमाम शोर-शराबे के बावजूद फुस्स होती दिखी हैं. उम्मीद करनी चाहिए कि कबड्डी के साथ ऐसा न हो.

vikas@tehelka.com