– तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मांसाहार मिलना सदियों की सनातन परंपरा को बर्बाद करने की साज़िश !
धर्म के नाम पर लोगों की आस्था से खिलवाड़ या फिर ठगी हो, तो बहुत धक्का लगता है। लेकिन अब धर्म के नाम पर लोगों की आस्था से खिलवाड़ और उनके साथ ठगी ही नहीं होती है, बल्कि लोग भगवान को भी धोखा देने से बाज़ नहीं आते हैं। आंध्र प्रदेश में तिरुमला पर्वत पर स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद वाले लड्डुओं में जिस तरह से पशुओं चर्बी और मछली के तेल का इस्तेमाल किया जा रहा था, वो न सिर्फ़ श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ है, बल्कि भगवान को भी धोखा देने जैसा है।
दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में आने वाले तिरुपति बालाजी मंदिर में आस्था से खिलवाड़ करने के इस मामले ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। इससे संत समाज और श्रद्धालुओं में आक्रोश है। लेकिन ज़्यादातर ब्राह्मण समाज और भाजपा सरकारें इस मामले पर ख़ामोशी साधे हुए हैं। इसकी वजह यह है कि आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी, भाजपा और जनसेना पार्टी की मिली-जुली सरकार है। हाल ही में केंद्र में तीसरी बार प्रधानमंत्री मोदी को अपनी सरकार बनाने के लिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने अपने 16 सांसदों का समर्थन दिया हुआ है। इसलिए मंदिर के प्रसाद में गाय और सूअर जैसे पशुओं की चर्बी और मछली का तेल होने के बाद भी किसी दोषी के ख़िलाफ़ भाजपा नेता और कार्यकर्ता हंगामा करते नज़र नहीं आये। लेकिन ऐसा कोई मामला किसी विपक्षी पार्टी की सरकार वाले राज्य में हुआ होता, तो अब तक प्रदर्शन, तोड़फोड़, एफआईआर, गिरफ़्तारियाँ और न जाने क्या-क्या हो गया होता। उस राज्य में उपद्रव हो रहा होता और सरकार गिराने की माँग की जा रही होती। लेकिन तिरुपति मंदिर में इतनी बड़ी गड़बड़ी होने के बाद भी भाजपा में कहीं से चूं तक की आवाज़ नहीं आ रही है। हालाँकि कुछ अराजक तत्त्वों ने आंध्र प्रदेश के अनंतपुर ज़िले में एक मंदिर में खड़े राम-रथ को जला दिया, जिसकी ख़बर को दबाने के आरोप लगे।
ग़ौरतलब है कि हाल ही में गुजरात के आणंद में स्थापित राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी), सेंटर फॉर एनॉलिसिस एंड लर्निंग इन लाइव स्टॉक एंड फूड (सीएएलएफ) की तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद के बारे में सामने आयी रिपोर्ट ने पूरे देश को चौंका दिया है। इस रिपोर्ट में एनडीडीबी-सीएएलएफ ने दावा किया है कि तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद वाले लड्डुओं में सूअर और गाय की चर्बी और मछली के तेल का इस्तेमाल हो रहा है। एनडीडीबी-सीएएलएफ की मंदिर के प्रसाद में पशुओं की चर्बी और मछली के तेल की पुष्टि के बाद इस पर विवाद उठ खड़ा हुआ। आंध्र सरकार पर हिंदू धर्म की आस्था को प्रभावित करने के आरोप लगने लगे। संतों-महंतों ने इसे गंभीर और श्रद्धालुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ मानते हुए कहा कि ये मंदिरों की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का कुत्सित प्रयास है, जिसमें प्रसाद को दूषित करने वाले हर दोषी के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। बता दें कि साल 2009 में स्थापित हुई एनडीडीबी-सीएएलएफ लेबोरेटरी में दूध, दूध उत्पादों से बनी सभी खाद्य सामग्रियों और पशुओं के आहार की गुणवत्ता के मापदंडों का परीक्षण किया जाता है। हालाँकि एआर डेयरी फूड्स ने कहा है कि कम्पनी ने बिना मिलावट का शुद्ध घी ही मंदिर को दिया है। जुलाई में ही कम्पनी ने टीटीडी को 16 टन घी की आपूर्ति की थी।
जो जानकारी सामने आयी है, उसमें कहा जा रहा है कि मंदिर के प्रसाद में मांसाहार की मिलावट की ख़बर से तिरुपति मंदिर में श्रद्धालुओं का आना कम हुआ है, जिससे मंदिर में आने वाला चढ़ावा काफ़ी कम हो गया है। हालाँकि अब कुछ लोग चर्बी को पशुओं से मिलने वाली वसा बता रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि फिर मंदिर की शुद्धि क्यों करायी गयी? तिरुपति बालाजी मंदिर के ट्रस्ट तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के कार्यकारी अधिकारी श्यामला राव ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंदिर के प्रसाद में पशुओं की चर्बी और मछली के तेल की मिलावट की बात की पुष्टि की थी। 23 जुलाई को भी श्यामला राव ने मीडिया से कहा था कि कार्यभार सँभालने के बाद मुख्यमंत्री ने प्रसाद की गुणवत्ता के बारे में उन्हें बताया, तो उन्होंने इस पर ध्यान दिया। उन्होंने कहा कि उस समय पाँच कम्पनियाँ मंदिर में घी की आपूर्ति करती थीं। घी की गुणवत्ता को लेकर उन्होंने कम्पनियों को चेतावनी भी दी थी, जिसके बाद चार कम्पनियों ने आपूर्ति में सुधार किया; लेकिन एक कम्पनी ने ऐसा नहीं किया, जिसे हमने ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले तमिलनाडु की एआर डेयरी फूड्स कम्पनी से घी के 10 टैंकर आये थे, जिनमें से छ: टैंकर घी का इस्तेमाल पशुओं की चर्बी और मछली के तेल की मिलावट की बात सामने आने तक हो चुका था। लेकिन संदेह होने पर बचे हुए चार टैंकरों के नमूनों को जाँच के लिए भेजा गया, जिसकी रिपोर्ट में घी में मिलावट की बात का पता चली। बता दें कि चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली नयी सरकार के गठन के बाद ही श्यामला राव को टीटीडी का कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया था।
बता दें कि मंदिर में हर रोज़ क़रीब 3,00,000 से ज़्यादा लड्डू बनाये जाते हैं, जिन्हें साइज के हिसाब से 100 रुपये से लेकर 500 रुपये तक में बेचा जाता है। इस प्रसाद को बेचकर ही मंदिर को क़रीब 500 करोड़ रुपये की सालाना कमायी होती है। पूर्व सांसद और अयोध्या हिंदू धाम वशिष्ठ भवन के वेदांती डॉ. राम विलास वेदांती ने भी प्रसाद में पशुओं की चर्बी और मछली का तेल मिलाये जाने की घटना की निंदा की। उन्होंने इस घटना को संतों को आक्रोशित करने वाला बताते हुए कहा कि यह केवल भक्तों के साथ ही नहीं, बल्कि भगवान के साथ भी विश्वासघात है। इस कुकृत्य के पीछे जो साज़िश है, उसका पर्दाफ़ाश होना चाहिए। और जो भी इस कुकृत्य का दोषी है, उसे ऐसी सज़ा दी जानी चाहिए कि कोई भी आगे से ऐसा घिनौना काम करने की हिम्मत न जुटा सके। बता दें कि अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा के समय प्रसाद के लिए तिरुपति बालाजी से ही एक लाख लड्डू आये थे।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, मंदिर कमेटी ने 12 मार्च, 2024 को एक टेंडर जारी किया था, जिसके लिए घी और अन्य सामग्री की आपूर्ति के लिए 08 मई तक अंतिम रूप दिया गया। 15 मई से घी और दूसरी सामग्री की आपूर्ति शुरू कर दी गयी। कम्पनी ने मंदिर को बाज़ार से बहुत ही सस्ता सिर्फ़ 319 रुपये किलो के हिसाब से गाय के घी की आपूर्ति की। लेकिन जाँच करने वाली कम्पनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 17 जुलाई को नमूने मिले और 23 जुलाई को जाँच पूरी करने के बाद प्रसाद में मांसाहार की मिलावट पायी गयी। जबकि तिरुपति बालाजी मंदिर जाने वाले श्रद्धालु शुद्ध शाकाहारी होते हैं, जिनमें से ज़्यादातर भक्त लहसुन-प्याज तक नहीं खाते हैं।
जाँच रिपोर्ट में कहा गया है कि घी में एस वैल्यू में सभी नमूने सभी पाँच पैमानों पर फेल रहे। घी में पशुओं की चर्बी, मछली के तेल के अलावा सोयाबीन, सूरजमुखी, रेपसीड, जैतून, नारियल, काटन सीड्स और पाम के बीजों की भी मिलावट हो रही थी। हालाँकि अभी तक साफ़ नहीं हुआ है कि मंदिर के प्रसाद में पशुओं की चर्बी और मछली के तेल की मिलावट के अलावा पाम तेलों की मिलावट भी हो रही थी या नहीं।
एनडीडीबी ने नमूनों की जानकारी को गोपनीय बताते हुए कहा कि नमूने भेजने वाले की जानकारी और शहर का नाम नहीं दिया गया है। नमूने कहाँ से आये हैं, इसकी जानकारी लैब के पास नहीं है। लेकिन उसने जाँच में घी में मिलावट का दावा किया है। एनडीडीबी ने तर्क दिया है कि 15 टन देशी घी के लिए गाय का क़रीब छ: लाख लीटर दूध चाहिए, जिसकी आपूर्ति को लेकर संदेह है कि कम्पनी के पास इतना ज़्यादा गाय का दूध कहाँ से आया? क्योंकि कम्पनी के पास दूध इकट्ठा करने की कोई व्यवस्था नहीं है। टीटीडी गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष और कई सदस्यों ने कहा है कि वाईसीपी और टीडीपी की सरकारों में कई बार घी की ख़राब गुणवत्ता के चलते घी के टैंकर वापस किये गये थे। कुछ लोगों का कहना है कि 319 रुपये किलो के हिसाब से गाय का घी कहीं भी नहीं मिलता है। इसलिए इसमें मिलावट करने वाली कम्पनी के साथ-साथ मंदिर ट्रस्ट की भी ग़लती है कि वह सस्ते घी के चक्कर में श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ कर रहा था।
हालाँकि विवाद रोकने की कोशिशों के बाद भी इस मामले पर राजनीति शुरू हो गयी है। विपक्षियों ने मंदिर के प्रसाद में मिलावट को हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़ और गहरी साज़िश बताते हुए कार्रवाई की माँग की है। तिरुमला की ट्रेड यूनियन के नेता सैद मुरली ने कहा है कि विरोधियों को सरकार और मंदिर प्रशासन को निशाना बनाने के लिए राजनीति नहीं करनी चाहिए। अगर इस मामले में वाक़ई ग़लती की गयी है, तो बिना किसी भेदभाव के कार्रवाई होनी चाहिए। तेलुगु देशम पार्टी के नेता ओ.वी. रमन ने कहा है कि कर्नाटक में दूसरे राज्यों से ज़्यादा गायें मौज़ूद हैं। लेकिन मंदिर ट्रस्ट ने कर्नाटक डेयरी नंदिनी से महँगा बताकर घी लेना बंद कर दिया और निजी कम्पनियों से कम मूल्य पर घी की ख़रीदारी करनी शुरू कर दी। अभी भी घी की आपूर्ति का 35 प्रतिशत घी नंदिनी डेयरी से ही मँगाया जाता है और बाक़ी 65 प्रतिशत घी की आपूर्ति निजी कम्पनियाँ करती हैं। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने कहा है कि चंद्रबाबू नायडू का 100 दिन का शासन अच्छा नहीं रहा और इससे ध्यान भटकाने के लिए उन्होंने यह मुद्दा उठाया है। हिंदू साधुओं में बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने आंध्र प्रदेश सरकार से दोषियों को फाँसी की सज़ा देने की माँग की है। तिरुपति मंदिर के बाद उत्तर प्रदेश के वृंदावन की प्रसाद की दुकानों और राजस्थान के डोंगरगढ़ के एक देवी के मंदिर परिसर की दुकानों में छापेमारी हुई, जिससे दोनों जगह के प्रसाद विक्रेताओं में हड़कंप मच गया।
इस मामले में 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पाँच याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि रिपोर्ट को देखकर प्रथम दृष्टया लग रहा है कि प्रसाद में मिलावटी सामग्री का उपयोग नहीं हुआ। हम उम्मीद करते हैं कि भगवान को तो राजनीति से दूर रखो, भक्तों की आस्था का सवाल है ये। जब आरोपों की जाँच के लिए एसआईटी बनायी गयी, तो बिना नतीजे के मीडिया में बयान देने की क्या ज़रूरत थी?
बता दें कि तिरुपति बालाजी मंदिर की अनुमानित संपत्ति क़रीब 3,00,000 करोड़ रुपये की है, जो देश की कई बड़ी कम्पनियों की कुल संपत्ति से भी कई गुना ज़्यादा है। मंदिर का क़रीब 8,496 करोड़ रुपये की क़ीमत का 11,329 किलो सोना बैंकों में जमा है। इसके अलावा बैंकों में 12,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा की एफडी भी मंदिर की है। पूरे भारत में मंदिर की कुल 960 संपत्तियाँ हैं, जिनमें से 7,123 एकड़ ज़मीन है। इस एक मंदिर में हर साल क़रीब 650 करोड़ रुपये से ज़्यादा का चढ़ावा आता है। तिरुपति बालाजी मंदिर सदियों की सनातन परंपरा का जीवंत रूप है। इसके बाद भी मंदिर में आस्था के साथ खिलवाड़ क्यों हो रहा था? और कौन लोग यह सब कर रहे थे? इसका पता लगाकर उन्हें सज़ा देने की ज़रूरत है।