क़र्ज़ लिए बिना क़ज़र्दार हो रही जनता

– महाराष्ट्र सरकार पर क़र्ज़ को विभाजित करें, तो हर व्यक्ति पर है 62,000 से अधिक की देनदारी

देश पर जब क़र्ज़ बढ़ता है, तो देश के हर नागरिक पर क़र्ज़ बढ़ता है। इसी तरह अगर किसी राज्य पर क़र्ज़ बढ़ता है, तो उस राज्य के हर नागरिक पर भी क़र्ज़ बढ़ता रहता है। इसी साल के शुरू में सामने आयीं रिपोर्ट्स के अनुसार, सितंबर, 2023 तक देश पर कुल अंतरराष्ट्रीय क़र्ज़ 205 लाख करोड़ रुपये हो गया था, जो लगातार बढ़ रहा है। ऐसे ही राज्यों पर भी क़र्ज़ बढ़ रहा है। जनवरी-मार्च 2024 तिमाही में राज्यों के अपने उधारी कैलेंडर में भारतीय रिजर्व बैंक ने देश के सभी राज्य द्वारा इस अवधि में 4.13 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ लेने की बात कही थी। रिजर्व बैंक के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में अप्रैल से अक्टूबर के बीच राज्यों ने बाज़ार से कुल 2.58 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ लिया था। महाराष्ट्र पर उसकी कुल जीडीपी का 17.9 फ़ीसदी क़र्ज़ था। इसी तरह अपनी-अपनी जीडीपी का गुजरात पर उसकी का 19 फ़ीसदी, छत्तीसगढ़ पर 26.2 फ़ीसदी, हरियाणा पर 29.4 फ़ीसदी, मध्य प्रदेश पर 31.3 फ़ीसदी, झारखण्ड पर 33 फ़ीसदी, उत्तर प्रदेश पर 34.9 फ़ीसदी, बिहार पर 38.6 फ़ीसदी, राजस्थान पर 39.8 फ़ीसदी, पंजाब पर 53.5 फ़ीसदी क़र्ज़ है। इस तरह देश के सभी राज्य क़र्ज़ में डूबे हैं।

समर्थन नामक एक एनजीओ की रिपोर्ट पर भरोसा करें, तो आज की तारीख़ में महाराष्ट्र का हर व्यक्ति क़र्ज़ में डूबा हुआ है। यह क़र्ज़ किसी ने व्यक्तिगत तौर पर नहीं लिया है, बल्कि यह सब सरकार का किया-धरा है। राज्य का राजस्व और राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से हर व्यक्ति 62,941 रुपये के क़र्ज़ तले डूबा हुआ है। हालाँकि यह क़र्ज़ कई राज्यों की अपेक्षा काफ़ी कम है; लेकिन महाराष्ट्र जैसे कमाऊ राज्य पर, जिसके केंद्र में मुंबई, पुणे जैसे दौलतमंद शहर हैं; इतना क़र्ज़ होना अचम्भित करता है।

एक तरफ़ राज्य पर क़र्ज़ का बोझ और दूसरी तरफ़ राजस्व घाटा इस क़र्ज़ के बोझ को और बढ़ा रहा है। यह राजस्व घाटा शिंदे सरकार की चिंताओं को और बढ़ा रहा है। राज्य की वर्तमान सकल आय और राज्य पर 7.11 लाख करोड़ के क़र्ज़ के बोझ को देखते हुए एनजीओ समर्थन के निष्कर्ष में कहा गया है कि राज्य में प्रत्येक व्यक्ति पर ब्याज सहित 62,941 रुपये का क़र्ज़ है। इसमें यह भी कहा गया है कि इससे वित्तीय संतुलन डगमगाने का भय है। दूसरी तरफ़ सामाजिक सेवाओं के ख़र्च पर भी कैंची चलायी गयी है।

विधानमंडल के मानसून सत्र में वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए राज्य का बजट पेश किया गया। इस बजट की पृष्ठभूमि में एनजीओ समर्थन ने ‘समर्थन बजट अध्ययन केंद्र’ के ज़रिये बजट पर विश्लेषण किया। इसमें एक ओर इस बजट की प्रमुख विशेषताओं का ज़िक्र है, तो दूसरी ओर ख़ामियों की तरफ़ भी इशारा किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि राज्य में पूँजीगत व्यय में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। राज्य का राजस्व घाटा 20,051 करोड़ रुपये है, जबकि राजकोषीय घाटा 1,10,355 करोड़ रुपये है। राज्य की आय, राजस्व और राजकोषीय घाटे पर टिप्पणी करते हुए समर्थन का कहना है कि वेतन, पेंशन, ब्याज पर ख़र्च में लगातार बढ़ोतरी के कारण राजस्व का घाटा बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप, पूँजीगत व्यय को आवश्यक सीमा तक नहीं बढ़ाया जा सका; जो एक चिंता का विषय है। जून, 2022 में राज्य में शिंदे-फडणवीस सरकार सत्ता में आयी। इसके बाद साल 2024-25 में राज्य पर ब्याज समेत कुल क़र्ज़ का बोझ 7,82,991 करोड़ रुपये हो गया है। राज्य की सकल आय 40,67,071 करोड़ रुपये है। इसमें कहा गया है कि राज्य क़र्ज़ और सकल राज्य आय का कुल अनुपात 18.35 प्रतिशत है। इसमें कहा गया है कि राज्य की सकल आय में क़र्ज़ का अनुपात राज्य की वित्तीय स्थिति का संकेतक माना जाता है। साल 2016-17 में जब राज्य में महायुति की सरकार आयी थी, तब राज्य पर कुल 3,64,819 करोड़ रुपये का क़र्ज़ था। उस समय राज्य की सकल आय 31,98,185 करोड़ थी। कुल सरकारी क़र्ज़ का सकल आय से अनुपात 16.60 फ़ीसदी था। अब सकल आय बढ़ने पर भी क़र्ज़ बढ़ रहा है।