उत्तराखण्ड की तबाही की जड़ में भ्रष्टाचार
हाल के वर्षों में पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड में क़ुदरत ने बड़ी तबाही की है। जोशीमठ सबसे ताज़ा उदाहरण है, जहाँ हज़ारों मकानों में दरारें आने के बाद लोगों को सुरक्षित जगह ले जाना पड़ा है। ‘तहलका’ एसआईटी की छानबीन से ज़ाहिर होता है कि राज्य में पैसे के ज़ोर पर आपको तमाम क़ायदे-क़ानून ताक पर रख मकान या अन्य निर्माण का नक़्शा मिल जाएगा। इस भ्रष्टाचार को चिन्ताजनक मानते हुए नैनीताल, मसूरी, कर्णप्रयाग, उत्तरकाशी, गुप्तकाशी और ऋषिकेश के लोग भी अपने लिए आने वाले ख़तरे से भयभीत हैं। कुछ दलालों और अधिकारियों को रिश्वत देकर नियमों के ख़िलाफ़ वहाँ कुछ लोग अवैध निर्माण कर रहे हैं। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-
‘झील विकास प्राधिकरण (एलडीए) नैनीताल के अधिकारियों की जेब गर्म कर दो और नैनीताल ज़िले में रिसॉर्ट बनाने के लिए ज़मीन से जुड़ी तमाम मंज़ूरियाँ हासिल कर लो। भले इसके लिए आप सरकार के ज़रूरी दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हों या नहीं।’ यह दावा है करण साह का। हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के एक रियल एस्टेट एजेंट करण साह नैनीताल ज़िले के भवाली में काम कर रहा है।
करण ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि उसने ख़ुद एलडीए को रिश्वत देकर पहाड़ी में एक घर के निर्माण का नक़्शा पास करवाया था। करण ने हमें एलडीए के एक अधिकारी का नंबर भी दिया और उसके मुताबिक, जिसके ज़रिये पहाड़ी में हमारे घर के नक़्शे के अनुमोदन का काम उसे तमाम उल्लंघनों के बावजूद नक़द भुगतान करके किया जा सकता है।
जोशीमठ संकट के मद्देनज़र, जहाँ कुछ महीने पहले हज़ारों घरों में दरारें आयी हैं। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने उत्तराखण्ड के नैनीताल की यात्रा करने का फ़ैसला किया, ताकि इसका पर्दाफाश किया जा सके कि कैसे अनियोजित और अवैध निर्माण, जो विशेषज्ञ के अनुसार जोशीमठ संकट का प्रमुख कारण है; पहाड़ी राज्य में अभी भी बदस्तूर जारी है। यह सिर्फ़ जोशीमठ नहीं है, जहाँ घरों और गलियों में दरारें आ गयी हैं। विशेषज्ञ यह मानने लगे हैं कि न केवल पवित्र शहर अवैध और अनियोजित निर्माण के कारण धीरे-धीरे धँस रहा है, बल्कि नैनीताल, मसूरी, कर्णप्रयाग, उत्तरकाशी, गुप्तकाशी और ऋषिकेश भी ख़तरे में है। उत्तराखण्ड के अन्य पहाड़ी शहरों के निवासियों का भी कहना है कि वे भी इमारतों और सडक़ों में दरारों के कारण ख़तरे से घिरे हैं।
जोशीमठ की ही तरह उत्तराखण्ड के एक अन्य प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नैनीताल भी कुछ ऐसी ही स्थिति दिख रही है। नैनीताल के माल रोड पर दरारें आना ज़िला प्रशासन के लिए ख़तरे की घंटी की तरह है। लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दरारों को भर दिया और सीमेंट लगाकर दरारों की जगह को समतल कर दिया। यह पहली बार नहीं है, जब नैनीताल के माल रोड में दरारें आयी हैं। पिछले दिनों मल्लीताल इला$के में ग्रैंड होटल के पास लोअर मॉल रोड पर कई जगह दरारें देखी गयी थीं।
पीडब्ल्यूडी ने सभी दरारों को मिट्टी और बालू से भर दिया, जो बारिश में बह गयी थी। इससे पहले भी अगस्त, 2018 में माल रोड का एक हिस्सा टूटकर झील में गिर गया था। दरार की तस्वीरें सामने आने के बाद एक बार फिर निचले माल रोड पर ख़तरा मँडराने लगा है। इसके अलावा कुछ मामूली दरारें भी देखी गयी हैं। विभाग ने इसे प्राथमिकता के आधार पर गारे, मिट्टी और बालू से भर दिया है। इस बार माल रोड पर दरारें पिछली बार से ज़्यादा लम्बी और चौड़ी हैं।
विशेषज्ञों ने 10 साल से भी पहले क्षेत्र में ज़मीन धँसने की आशंका जतायी थी। जोशीमठ शहर धँस रहा है, यह चौंकाने वाली बात नहीं; क्योंकि इसमें सुधार के लिए वहाँ कुछ नहीं किया गया। कहा जाता है कि न सिर्फ़ जोशीमठ में कई बहु-मंज़िला निर्माण हाल के वर्षों में हुए थे, बल्कि उत्तराखण्ड के सभी पहाड़ी क़स्बों में ऐसा हुआ है, जहाँ अब इमारतों और गलियों में दरारें आ रही हैं। अगस्त, 2022 में उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) की मीडिया में प्रकाशित एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ की कमज़ोर ढलान की समस्या अनियोजित निर्माण के परिणामस्वरूप बदतर हो गयी है, क्योंकि इससे इसकी वहन क्षमता पर विपरीत असर पड़ा है। भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में रिटेनिंग वॉल्स (प्रतिधारक / सुरक्षा दीवार) बनाकर कई अतिरिक्त इमारतों को खड़ा किया जा सकता है। नतीजतन, वहाँ अब कमज़ोर ढलान पर दबाव बढ़ा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि समुचित योजना के बिना बड़े पैमाने पर निर्माण परियोजनाएँ, जनसंख्या वृद्धि, पर्यटक भीड़, अवैध निर्माण और वाहनों का दबाव एक ऐसी स्थिति पैदा कर रहा है, जिससे उत्तराखण्ड में पहाड़ी शहरों को नुक़सान पहुँच रहा है।
‘तहलका’ ने उत्तर भारत के प्रसिद्ध हिल स्टेशन नैनीताल में स्थिति का जायज़ा लेने का निर्णय किया। वहाँ हर नुक्कड़ पर आपको ऐसे एजेंट मिल जाएँगे, जो दावा करते हैं कि वे नैनीताल के ज़िला स्तरीय विकास प्राधिकरण, जिसे झील विकास प्राधिकरण (एलडीए) के नाम से जाना जाता है; से तमाम ज़रूरी मंज़ूरियाँ दिलाने के बाद नैनीताल ज़िले में आपके घर या रिसॉर्ट का निर्माण करने में आपकी मदद कर सकते हैं। एलडीए अधिकारियों को कैसे रिश्वत दी जा सकती है? इसके लिए भी वे आपका ‘मार्गदर्शन’ करेंगे, जिसके बाद हम पर कोई निर्माण नियम लागू नहीं होता।
और ये सब जोशीमठ और अन्य पहाड़ी नगरों के संकट के बाद हो रहा है। इससे यह भी ज़ाहिर होता है हमने अपनी ग़लतियों से कुछ नहीं सीखा है।
इस सिलसिले में ‘तहलका’ की पहली मुलाक़ात ज़िला नैनीताल के भवाली में एक रियल एस्टेट एजेंट करण साह से हुई। करण उत्तराखण्ड के रहने वाले हैं। हमने करण से एक काल्पनिक सौदे की बात की कि हम भवाली में एक कॉटेज बनाना चाहते हैं और जोशीमठ संकट के बाद हमें एलडीए से कॉटेज निर्माण के लिए नक़्शे सहित सभी स्वीकृतियाँ चाहिए। अन्यथा यदि हम भवन निर्माण के नियमों का उल्लंघन करते हैं तो हम कठिनाई में फँस जाएँगे। इस पर करण ने भरोसा दिलाया कि रिश्वत और उसकी फीस चुकाकर एलडीए से हमारा काम करवा दिया जाएगा। इसके बाद करण ने हमें अपने जानकार एलडीए अधिकारी का नंबर दिया, जो उसके अनुसार कुछ पैसे लेकर हमारा काम कर देगा।
रिपोर्टर : अच्छा ये बता, एलडीए का नक़्शा अगर पास करवाना हो, तो ख़र्चा कितना आएगा?
करण : 1 से 1.25 लाख।
रिपोर्टर : इतना क्यूँ?
करण : आता ही है सर!
रिपोर्टर : रिश्वत कितनी होगी इसमें?
करण : रिश्वत पूछकर बताऊँगा।
रिपोर्टर : बताना, …जोशीमठ के बाद डर लगने लगा है।
करण : नहीं ऐसा नहीं है सर! …हाँ, खड़ा प्लॉट लेने में ऐसा रहता ही है।
रिपोर्टर : ये एलडीए के अंडर ही काम करते हैं?
करण : एलडीए के अंडर के ही हैं, नक़्शा पास करवा देंगे। …थोड़ा आप इनका बढिय़ा करवा देना। …ये कम में भी करवा देंगे। …इनको ख़ुश करते रहना।
करण के मुताबिक, एलडीए के अधिकारी भवन निरीक्षण के लिए आते हैं और निर्माण में किये गये सभी उल्लंघनों को नज़रअंदाज़ करके पैसा लेकर वापस चले जाते हैं। और उसके बाद पाँच महीने तक निरीक्षण के लिए नहीं लौटते हैं। करण ने कहा कि एलडीए के जिस अधिकारी का फोन नंबर उन्होंने हमें दिया है, वह सबसे भ्रष्ट व्यक्ति है। वो वह व्यक्ति है, जो एलडीए के अस्तित्व में आने से पहले ग्रामसभा के समय में बने भवन का सारा निरीक्षण करता है।
करण : आपको तो ज़्यादा पैसा लगेगा ना जाने में, इनसे डायरेक्ट करवा लीजिएगा काम…। अब जितने भी ग्राम पंचायत से बने हैं ना, ये बिल्डिंग्स का निरीक्षण ऐसे ही करते हैं। अपना पैसा लेकर चले जाते हैं, …तो 5-6 महीने तक शान्त रहता है मामला; …अब आप इनसे डायरेक्ट बात करके नक़्शा पास करवा लीजिएगा।
रिपोर्टर : अच्छा ग्राम पंचायत की जो बिल्डिंग बनी हैं। …अपार्टमेंट्स बने हैं, …उनका इंस्पेक्शन (निरीक्षण) करते हैं एलडीए वाले?
करण : हाँ, करते हैं; कुछ नहीं करते, बस पैसा लेकर चले जाते हैं।
रिपोर्टर : पैसा लेकर, मतलब रिश्वत लेकर?
करण : रिश्वत लेकर, यही तो लेकर जाते हैं ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग जी, …रिश्वत खाऊ हैं। आदमी अच्छे हैं वैसे।
रिपोर्टर : इंस्पेक्शन यही करते हैं ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग जी…?
करण : हाँ, इंस्पेक्शन यही करते हैं…।
अब करण ने हमें फिर से आश्वासन दिया कि वह एलडीए से हमारे घर के निर्माण का नक़्शा मंज़ूर करवा देगा। अपनी बात को पुख़्ता साबित करने के लिए उसने यह भी बताया कि उसने ख़ुद 1.50 लाख रुपये देकर एलडीए से एक घर का नक़्शा मंज़ूर करवाया था, जिसमें रिश्वत की रक़म भी शामिल थी।
रिपोर्टर : एलडीए से नक़्शा पास हो जाएगा?
करण : मैं करवा दूँगा, पक्का।
रिपोर्टर : रिश्वत कितनी होगी?
करण : रिश्वत वग़ैरह आप बात कर लेना।
रिपोर्टर : तूने करवाये हैं पहले?
करण : हाँ, करवाये हैं; …इनसे नहीं करवाये; जिनसे करवाये हैं, वो अब वहाँ पर हैं…ये रुद्रपुर।
रिपोर्टर : तूने करवाया है नक़्शा पास?
करण : नक़्शा करवाया है पास; जिनका करवाया था, उनके लगभग डेढ़ लगे थे (1.5 लाख)।
रिपोर्टर : रिश्वत मिलाके?
करण : सब मिलाके, …सिम्प्लेक्स बनवाया था उन्होंने।
यह पूछे जाने पर कि क्या निर्माण दिशानिर्देशों का पालन नहीं करने पर भी हमें एलडीए से अपने निर्माण की मंज़ूरी मिल जाएगी, करण ने कहा कि पैसे देने के बाद हमें तमाम मंज़ूरियाँ मिल जाएँगी। उसने हमें सीधे एलडीए अधिकारी से पैसे के बारे में बात करने को कहा, जिसका नंबर उसने हमें दिया है।
रिपोर्टर : अच्छा चाहे पूरी चीज़ें फुलफिल न होती हों, तब भी हो जाएगा?
करण : मतलब?
रिपोर्टर : जैसे एलडीए की कोई गाइडलाइंस हैं कि ये चीज़ें होनी चाहिए और वो अगर नहीं भी हों हमारे प्लॉट में तब भी नक़्शा पास कर देंगे?
करण : नहीं, ऐसा कुछ नहीं है; …तब भी कर देंगे। …उसमें सर ऐसा करवा देंगे, …ये ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग जी। करवा देंगे आपका सारा काम।
रिपोर्टर : ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग जी, …इनको कितना पैसा देना पड़ेगा?
करण : मैं इनको बोल दूँगा, आप बात कर लेना; करवा देंगे। क्या पता 1 लाख से कम में ही करवा दे!
रिपोर्टर : 50के – 1 लाख में? (50,000 से 1,00,000 में)
करण : हाँ, …एक बार आप बात कर लेना; …आपको ख़ुश कर दूँगा, ऐसे करके बात कर लेना।
रिपोर्टर : मैं डायरेक्ट बोल दूँ?
करण : बोल दो, अभी पहले प्लॉट की बात कर लो।
ऐसा लगता है कि जोशीमठ संकट ने उत्तराखण्ड में बेईमान सम्पत्ति एजेंटों पर बहुत कम प्रभाव डाला है। वे अपने ग्राहकों को अनियोजित और अवैध निर्माण के विभिन्न सौदे इस वादे के साथ बाज़ार में दे रहे हैं कि वे एलडीए से हमारे लिए निर्माण का सौदा करवाएँगे।
‘तहलका’ की मुलाक़ात नैनीताल ज़िले के भवाली में एक अन्य रियल एस्टेट एजेंट मोहम्मद ओसामा उर्फ़ चिराग़ से हुई। ओसामा उत्तराखण्ड की एक प्रतिष्ठित निर्माण कम्पनी के साथ बिक्री प्रमुख के रूप में काम कर रहा है। ओसामा को भी हमने एक काल्पनिक सौदा दिया और कहा कि हम नैनीताल में ज़मीन ख़रीदकर इस मशहूर पर्यटन स्थल में एक कॉटेज का निर्माण करना चाहते हैं। हमने एलडीए से निर्माण नक़्शे पास करवाने सहित सभी अनुमोदनों में उसकी मदद माँगी। ओसामा ने हमारी माँग मान ली और हमें बताया कि सभी अनुमोदन के लिए हमें रिश्वत के रूप में कितनी राशि देनी होगी।
रिपोर्टर : और एलडीए से नक़्शा पास?
ओसामा : सारी चीज़ करवा दूँगा।
रिपोर्टर : एलडीए से करवा दोगे नक़्शा पास, कितना ख़र्चा आ जाएगा उसमें?
ओसामा : फॉर एग्जांपल मानकर चलिए 1 लाख रुपये के आस-पास।
रिपोर्टर : उसमें क्या-क्या होगा?
ओसामा : ये मैं लमसम बता रहा हूँ।
रिपोर्टर : मतलब 1-1.25 लाख का रिश्वत होगी?
ओसामा : हाँ, मतलब ये आपका जाएगा पैसा।
रिपोर्टर : मतलब रिश्वत के होंगे ना?
ओसामा : हाँ, अगर जल्दी काम करवाना है।
रिपोर्टर : ये फीस है एलडीए की, या रिश्वत है?
ओसामा : रिश्वत है…। आपका कम भी हो सकती है, 50-60 हज़ार में भी काम हो सकता है।
इसके बाद ओसामा ने एक रियल एस्टेट एजेंट के रूप में अपनी उपलब्धियों का बखान किया, दुर्भाग्य से जिन्होंने उत्तराखण्ड के भीमताल में कई ज़िन्दगियों को ख़तरे में डाला होगा। उसने ख़ुलासा किया कि कैसे घूस देकर उसने एलडीए अधिकारी से एक ऐसी जगह पर आवासीय निर्माण की मंज़ूरी हासिल कर ली, जिसके ऊपर से हाईटेंशन बिजली के तार गुज़र रहे थे। उसने बताया कि उसने ढाई साल पहले एलडीए अधिकारियों को 1.20 लाख रुपये रिश्वत देकर यह डील करवायी थी। ओसामा ने ज़ोर देकर कहा कि ऐसी जगह की मंज़ूरी लगभग नामुमकिन है; लेकिन उसने फिर भी यह करवा दिया।
रिपोर्टर : आपने कराये हैं ऐसे नक़्शे पास?
ओसामा : हाँ, बहुत करवाये हैं; भीमताल में हाई टेंशन वायर जाती है ना, वो वाले भी हमने करवाये हैं।
रिपोर्टर : एलडीए से?
ओसामा : एलडीए से।
रिपोर्टर : होता नहीं है वैसे?
ओसामा : होता नहीं है; …जुगाड़ की बात है; टाइम-टाइम की बात है।
रिपोर्टर : अभी है बंदा आपका एलडीए में, …हो जाएगा सारा काम?
ओसामा : हो जाएगा।
रिपोर्टर : और कितनी रिश्वत गयी भीमताल में?
ओसामा : सर! हमने उसको दिये 1 लाख 20,000 (1.20 लाख।
रिपोर्टर : पूरे रिश्वत के?
ओसामा : पूरे रिश्वत के।
रिपोर्टर : और अगर हाईटेंशन वायर गिर गया उस पर, …फिर?
ओसामा : अब देखिए, उसने कर भी दिया काम हमारा। …बस ये है हो जाएगा, उस काम में कोई टेंशन नहीं है; 2.5 साल हो गये।
ओसामा को इस बात का कोई अफ़सोस नहीं है कि उसने इतने लोगों की जान ख़तरे में डाली है। इसके उलट उसने कहा कि इस तरह की मंज़ूरियाँ लेते हुए उसे 2.5 साल हो गये हैं, और इस दौरान कभी कुछ अप्रत्याशित नहीं हुआ है। ओसामा जैसे लोग भविष्य की बड़ी त्रासदियों की नींव रखते हैं। और उसने अपने क़ुबूलनामे में भीमताल में ऐसी ही एक नींव रखी है। लेकिन कौन जानता है कि जोशीमठ और उत्तराखण्ड के अन्य पहाड़ी क़स्बों का ओसामा कौन है? जहाँ इमारतें और सडक़ें दरारें दिखा रही हैं?
ओसामा ने ‘तहलका’ के सामने जो दूसरी स्वीकारोक्ति की, वह यह कि नैनीताल ज़िले में ऐसी कई इमारतें हैं, जिन्हें किसी प्राधिकरण की मंज़ूरी ही नहीं है; न ग्राम सभा की, न एलडीए की। ओसामा के अनुसार, ज़्यादातर दिल्ली के बाटला हाउस इला$के के लोगों ने इन पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण किया है और इसके लिए प्राधिकरण की कोई मंज़ूरी भी नहीं है। इन लोगों ने ग्राम प्रधानों को रिश्वत देकर भवनों का निर्माण कराया है। इसलिए अवैध निर्माण के ख़िलाफ़ किसी ओर से कोई विरोध नहीं हुआ। निर्माण स्थल पर ग्रामीणों को काम मिला और ग्राम प्रधान को पैसा। ओसामा ने कहा कि इससे सबने इस मामले पर आँखें मूँद लीं।
रिपोर्टर : ये एलडीए 19-20 में आया है, …तो 19 और 20 से पहले; जो ग्रामसभा के थ्रू बन गयी हैं, वो ठीक है?
ओसामा : ठीक हैं, बहुत-सी ऐसी सोसायटी हैं, जिन्होंने ग्रामसभा से भी नक़्शा नहीं पास करवाया।
रिपोर्टर : अच्छा, मतलब ग्रामसभा से भी नक़्शा पास नहीं है?
ओसामा : हाँ, मतलब आपका प्रॉपर एग्रीमेंट होना चाहिए, मोहर लगी हो, ङ्गङ्गङ्गङ्ग वैली का तो में सारा भेज दूँगा, …इसका नहीं है।
रिपोर्टर : मतलब ये ग्राम सभा से भी अप्रूव्ड नहीं है। ये मतलब किसी से भी अप्रूव्ड नहीं है, ये मतलब टोटली इल्लीगल (अवैध) हो गयी?
ओसामा : मतलब, आप ये मानकर चलिए कि आप सेफ नहीं हैं।
रिपोर्टर : अगर ये ग्रामसभा से भी अप्रूव नहीं है, तो बन कैसे गयी?
ओसामा : सर! यहाँ पर क्या है, ज़्यादातर बिल्डर बाटला हाउस के हैं।
रिपोर्टर : दिल्ली के?
ओसामा : हाँ, दिल्ली के; ज़मीन ले ली, 4-5 पार्टनर हुए मिलकर बना ली; …पहले कोई पूछता ही नहीं था, पहाड़ों पर कौन आता था; …बनाकर बेच दिया।
रिपोर्टर : ग्रामसभा के लोग ऑब्जेक्शन नहीं करते थे?
ओसामा : कोई भी नहीं करता था, उन्हें क्या है; उन्हें रोज़गार मिलता था।
रिपोर्टर : ग्रामसभा वालों को?
ओसामा : जैसे गाँव वाले होते थे, उन्हें रोज़गार मिल जाता था।
रिपोर्टर : ग्राम प्रधान को तो रोज़गार नहीं मिल रहा था।
ओसामा : पैसे दे दिये ग्राम प्रधान को, …काम स्टार्ट कर दिया, …उसे पैसे से मतलब था; काम स्टार्ट।
रिपोर्टर : ऐसी तो बहुत बिल्डिंग होंगी?
ओसामा : बहुत हैं।
रिपोर्टर : ग्रामसभा से भी अप्रूव नहीं थी?
कुछ रियल एस्टेट एजेंट पहाडिय़ों में कैसे काम कर रहे हैं। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि ओसामा ने हमें ख़रीद के लिए एक पेंटहाउस (ओसारा) दिखाया। हमारे पेंटहाउस देखने के 10 मिनट बाद ओसामा ने अपना मन बदल लिया और उसने ख़ुलासा किया कि यह पेंटहाउस अवैध निर्माण है। ज़रा कल्पना कीजिए, ओसामा हमें अवैध रूप से बना पेंटहाउस बेच रहा था। कौन जानता है, कितनी अन्य अवैध रूप से निर्मित इकाइयों को उसने अन्य ग्राहकों को बेचा होगा?
रिपोर्टर : कुछ सोसायटी ऐसी हैं, जो ग्रामसभा से भी अप्रूव नहीं हैं?
ओसामा : ये जो सामने फ्लैट बना हुआ है, ये 2010 से पहले का है।
रिपोर्टर : जो पेंटहाउस आप मुझे दिखाने ले गये थे, …अरे बाप रे! तो ये तो फिर इल्लीगल है, …मुझे क्यूँ बिकवा रहे थे आप इल्लीगल?
ओसामा : मैंने सोचा आप लेना चाह रहे हो।
रिपोर्टर : अरे नहीं भाई! क्यूँ फँसा रहे हो?
ओसामा के बाद ‘तहलका’ ने नैनीताल ज़िले के भवाली में एक और रियल एस्टेट एजेंट संजय पाठक से मुलाक़ात की। संजय दिल्ली स्थित एक रियल एस्टेट फर्म में महाप्रबंधक के रूप में काम कर रहा है, जो नैनीताल सहित उत्तर भारत के विभिन्न हिल स्टेशनों में कई रिसॉर्ट चला रहा है। संजय को भी हमने वही काल्पनिक सौदा दिया कि हम नैनीताल में एक कॉटेज ख़रीदना चाहते हैं; लेकिन एलडीए से पूरी मंज़ूरी के साथ। क्योंकि जोशीमठ के संकट के बाद प्रशासन नियम तोडऩे वालों के ख़िलाफ़ स$ख्ती कर रहा है। संजय ने हमें अपने नैनीताल रिसॉर्ट में 100 वर्ग ग़ज का प्लॉट इस आश्वासन के साथ देने की पेशकश की कि वह एलडीए से कॉटेज के निर्माण के लिए सभी ज़रूरी मंज़ूरियाँ हासिल कर लेगा। उसने हमें यह भी बताया कि सभी अनुमोदनों के लिए हमें कितनी रिश्वत देनी होगी, जो 2.50 लाख रुपये से लेकर 3 लाख रुपये तक है। उसने कहा कि अगर बिल्डर सामने आता है, तो वही राशि 3.50 लाख से 4 लाख रुपये हो जाती है। संजय ने कहा कि चूँकि यह एक व्यक्तिगत स्वीकृति होगी, इसलिए राशि कम होगी।
रिपोर्टर : अच्छा ये बताएँ, एलडीए से हम जो नक़्शा अप्रूव करवाएँगे, उसका कितना ख़र्चा आएगा?
संजय : उसमें कम-से-कम 2.5 से 3 लाख आएगा।
रिपोर्टर : 2.5 से 3 लाख, इतना क्यों सर?
संजय : नक़्शा अप्रूव करते हैं। विजिट करते हैं। कुछ रिसीप्ट्स काटते हैं। कुछ अंडर द टेबल लेते हैं…। ये तो आपका इंडिपेंडेंट होगा। इसलिए 2.5 से 3 लाख लगेगा। हमसे 3.50 से 4 लाख तक ले लेते हैं; क्योंकि बिल्डर का एक स्टैम्प आ जाता है न…।
रिपोर्टर : 3.5 से 4 लाख तक लेते हैं एलडीए के लोग, …तो किस बात का? …फीस तो उनकी कम होगी?
संजय : वो तो ठीक है सर! लेकिन ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग को भी जाता है ना सर! ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग है…; हाहाहा…।
रिपोर्टर : मतलब रिश्वत जाती है?
संजय : खुली है यहाँ पे, …ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग के टाइम पर थोड़ा डर था लोगों को कि कभी भी एंटी करप्शन में आ सकता है। यहाँ पर तो रजिस्ट्रेशन के लिए जो बैठी है लेडी (महिला), या जो बैठा है, वो बोलता है। ऊपर ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग की फोटो लगी हुई है; बोलता है कि वहाँ तक फाइल भेजूँगा।
रिपोर्टर : कहाँ तक जाता है ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग जी तक?
संजय : सभी करप्ट हैं।
रिपोर्टर : अच्छा।
संजय : कोई दूध का धुला थोड़ी है, …वो तो किसी तरह से मैनेज करके रखे गये हैं, जबकि वो डिजर्व नहीं करते।
रिपोर्टर : रजिस्ट्रार कौन है अभी एलडीए का?
संजय : एलडीए का रजिस्ट्रार तो मुझे पता लगाना पड़ेगा।
रिपोर्टर : तो नक़्शा तो आप अप्रूव करवा देंगे, ऐसा तो नहीं कि ‘इफ एंड बट’ करेंगे एलडीए के लोग?
संजय : बिलकुल भी नहीं।
जब संजय से पूछा गया कि 2.50-3 लाख रुपये में से रिश्वत की रक़म कितनी होगी? संजय ने कहा कि वह एलडीए के अधिकारियों की हमारे साथ मेज पर बातचीत करवा देगा। हम उनसे सीधे बात कर सकते हैं।
रिपोर्टर : 2.5 से 3 लाख बता रहे हैं आप; उसमें रिश्वत का कितना होगा?
संजय : अब सर! आपको आमने-सामने बैठा दूँगा, आप ख़ुद बात कर लीजिएगा।
रिपोर्टर : हाँ, ये ठीक है; कुछ कम हो जाए।
संजय ने अब क़ुबूल किया कि उसने एलडीए से अपने नैनीताल रिसॉर्ट के विभिन्न कॉटेज और अपार्टमेंट के निर्माण का नक़्शा मंज़ूर कराया था। उसने कहा कि निर्माण के सभी नियमों का पालन करने के बावजूद एलडीए के अधिकारी पैसा लेंगे। अधिकारियों के लिए इंस्पेक्शन करना जेब भरने का ज़रिया भर है। संजय ने दावा किया कि यह उनका मानक बन गया है।
रिपोर्टर : तो यहाँ करा चुके हैं आप, एलडीए से अप्रूव?
संजय : ये एक, ऊपर के दो; …कॉर्नर में जो कॉटेज बन रहा है तीन, पीछे जो अपार्टमेंट बन रहा है चार, …ऐसे हैं बहुत सारे; …चल ही रहा है काम।
रिपोर्टर : ये सब एलडीए से अप्रूव है?
संजय : सारा, सारा; …मैंने एलडीए की कॉपी भी भेजी थी।
रिपोर्टर : अच्छा नॉर्मल वे में वो करते नहीं होंगे?
संजय : सर! उनको आपकी रजिस्ट्री चाहिए, नक़्शा चाहिए, आपके पैन और आधार चाहिए।
रिपोर्टर : नहीं, …आपके सारे डाक्यूमेंट्स ओके हैं; …तब भी वो रिश्वत लेंगे?
संजय : कुछ-न-कुछ पोर्शन तो लेंगे…।
रिपोर्टर : बिना उसके नहीं करेंगे?
संजय : वो तो सर! एक स्टैंडर्ड है। …आप आमने-सामने बैठ लो; …सब करवा दूँगा। क्योंकि हमारा एक इंजीनियर ही करवाता है। …ही विल वर्क आउट; …मैं सर सामने इसलिए नहीं आता कि मेरे पॉलिटिकल कनेक्शन बहुत हैं। …मुझे फिर हर जगह काम करना है; …तो स्टेट गवर्नमेंट्स (राज्य सरकारें) हर जगह अलग-अलग हैं।
संजय ने हमें आश्वासन दिया कि चूँकि एलडीए अधिकारी हमसे पैसे लेगा, वे (अधिकारी) हमारे द्वारा नैनीताल में हमारे कॉटेज के निर्माण में किये गये सभी उल्लंघनों की ओर आँखें मूँद लेंगे।
संजय : जब आप प्लॉट लेंगे, तब तक मैं सर इसमें रिटेनिंग वॉल लगवा दूँगा। प्लॉट ऐसा कर दूँगा कि वो आ कर देखेंगे, उनको तो बस प्लॉट तैयार दिखना चाहिए।
रिपोर्टर : फिर चाहे उसमें कोई भी कमी हो, वो मना नहीं करेंगे?
संजय : कमी? पैसा ले रहे हैं, तो किस बात की कमी!
रिपोर्टर : हाँ, पैसा ले रहे हैं…।
उत्तराखण्ड की 2013 की त्रासदी आज भी हमारी स्मृति में ताज़ा है; जब केदारनाथ, रामबाड़ा और गौरीकुंड में अचानक आयी बाढ़ ने बस्तियों को मिटा दिया और ज़िन्दगियों को तबाह कर दिया। इस त्रासदी ने 5,700 से ज़्यादा लोगों की ज़िन्दगी लील ली थी। आज दुनिया जोशीमठ में इसका दोहराव देख रही है, जहाँ इस साल जनवरी में कुल 561 प्रतिष्ठान ज़मीन दरकने से तहस-नहस हो गये और अब यह इलाक़ा संकट में घिरा है। दूसरे पहाड़ी शहरों में भी घरों और सडक़ों में भी दरारें आ गयी हैं।
ऐसा लगता है कि हमने 2013 की त्रासदी से कोई सबक़ नहीं सीखा और न ही जोशीमठ से संकट ने हमें समझदार बनाया है। जैसा कि विशेषज्ञ कहते हैं कि अनियोजित, अवैध और भारी निर्माण सभी प्राकृतिक आपदाओं के बड़े कारणों में एक है, जो पहाड़ी राज्य में अब तक देखा गया है।
‘तहलका’ की रिपोर्ट ने यह ख़ुलासा करती है कि कैसे उत्तराखण्ड के नगरों में अब भी भू-माफ़िया की मदद से अवैध और अनियोजित निर्माण जारी हैं, जो प्रशासन और मालिकों के बीच बिचौलियों के रूप में काम कर रहे हैं और तमाम नियमों की धज्जियाँ उड़ाकर प्रलोभन के बदले लोगों की निर्माण नक़्शे और अन्य मंज़ूरियाँ दिलाने में मदद कर रहे हैं।