महिलाओं की राजनीतिक हिस्सेदारी बढ़ाएँ पार्टियाँ

दिल्ली में 05 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मतदाताओं को लुभाने के लिए आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस के बीच होड़ लगी हुई है। बीते कुछ दशकों में भारतीय राजनीति का परिदृश्य इस बात का गवाह है कि महिला मतदाता राजनीतिक दलों के लिए बहुत महत्त्व रखते हैं। विशेषतौर पर चुनाव से कुछ महीने पहले राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को गेम चेंजर्स के रूप में आँकने लगते हैं और उनका वोट पाने के लिए कई ऐलान करने लगते हैं। ऐसा ही परिदृश्य साफ़ तौर पर देश की राजधानी दिल्ली में दिखायी दे रहा है।

दिल्ली में कुल 1.55 करोड़ मतदाताओं में 83.89 लाख पुरुष मतदाता व 71.74 लाख महिला मतदाता हैं। इन महिला मतदाताओं के सहारे राजनीतिक दल सत्ता पाने के लिए बेताब तो हैं; लेकिन उन्हें किसी भी चुनाव में उनकी आबादी के अनुपात में राजनीतिक हिस्सेदारी उनके साथ न्याय नहीं करते। यह मुद्दा बहुत-ही अहम है और इस पर विमर्श सिर्फ़ चुनावी मौसम तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। क्योंकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने उन्हें मुफ़्त बस यात्रा का तोहफ़ा तो पिछले पाँच साल में दिया; लेकिन दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से सिर्फ़ नौ को टिकट दिया।

वहीं राजनीति में महिलाओं को 33 प्रतिशत हिस्सेदारी देने का बिल पास करने वाली ने भी 70 में सिर्फ़ नौ महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है। कांग्रेस भी महिलाओं को आगे लेकर चलने की बात करती रही है; लेकिन उसने टिकट सिर्फ़ आठ महिलाओं को ही दिये हैं। यानी सभी पार्टियों ने कुल 26 महिला उम्मीदवार ही मैदान में उतारी हैं। चुनाव लड़ने वाले कुल उम्मीदवार 210 हैं। वर्ष 2020 चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने नौ, कांग्रेस ने आठ और भाजपा ने सिर्फ़ पाँच महिलाओं को ही टिकट दिये थे। इसमें आप की नौ में से आठ महिलाओं को सफलता मिली थी, जबकि भाजपा व कांग्रेस की एक भी महिला नहीं जीत सकी। बता दें कि वर्ष 2023 में संसद व विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण वाला क़ानून पारित हो चुका है; लेकिन यह लागू नहीं हुआ है।

दिल्ली में शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और आतिशी सिंह मौज़ूदा मुख्यमंत्री हैं। कांग्रेस की शीला दीक्षित तो 15 साल तक यानी तीन बार लगातार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। भाजपा की सुषमा स्वराज भी महज़ 52 दिन की मुख्यमंत्री रहीं और अब आप की आतिशी सिंह 21 सितंबर, 2024 से मुख्यमंत्री हैं। तीनों राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी महिला मुख्यमंत्री तो बनायीं; लेकिन महिलाओं को टिकट देने में औसत 15 प्रतिशत के क़रीब ही रहता है। राजनीतिक दल बिना क़ानून के ही आगे बढ़कर टिकट बँटवारे में 30 प्रतिशत महिलाओं को भी अपना-अपना उम्मीदवार क्यों नहीं बनाते?

हर राजनीतिक दल टिकट बँटवारे के लिए स्वतंत्र है, फिर क्या कारण हैं कि महिलाओं को टिकट वितरण में पीछे रखा जाता है और उनका वोट पाने के लिए वादों और योजनाओं की झड़ी लगा देते हैं? दिल्ली में आप ने वादा किया है कि सत्ता में आने पर महिलाओं को हर महीने 2,100 रुपये देंगे तो कांग्रेस व भाजपा ने 2,500 रुपये देने का वादा किया है। भाजपा ने तो हर गर्भवती महिला को 21,000 रुपये देने का ऐलान भी अपने संकल्प-पत्र में किया है और साथ में यह भी कहा है कि विधवा पेंशन 2,500 से बढ़ाकर 3,000 रुपये कर देंगे। महिला सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीर चुनावी चर्चा नहीं हो रही। महिलाएँ क्या नक़द रक़म या अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें लाभ पहुँचाने वाली सरकारी योजनाओं से ही सशक्त होंगी? यह नज़रिया आधी दुनिया को पूरा सशक्त नहीं बनाता। उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी उन्हें मिलनी चाहिए।

दरअसल महिला मुद्दों पर काम करने वालों की सोच में महिलाओं को काम के समान अवसर देने की दिशा में सरकार को काम करने की दरकार है। आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की अधिक-से-अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ठोस प्रयास की ज़रूरत है पर चुनावी अभियानों में दूरगामी विजन का अभाव दिखता है और नक़द रक़म सरीख़े शॉर्ट टर्म समाधान पेश किये जाते हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसकी सत्ता में महिलाओं का उच्च स्तर पर प्रतिनिधित्व आँकड़ों में अधिक झलकना चाहिए व निर्णायक स्तर पर भी उसकी छाप दिखनी चाहिए। दिल्ली में 1993 से 2020 तक सभी विधानसभा चुनावों में केवल 39 महिला विधायक ही विधानसभा पहुँची। 1998 में दिल्ली विधानसभा में सर्वाधिक नौ महिला उम्मीदवार विधायक बनी थीं। 2024 आम चुनाव में 74 महिला सदस्यों ने जीत हासिल की थी यानी 13.62 प्रतिशत। 2019 में यह संख्या 78 थी। कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी ने 2024 में ही वायनाड से लोकसभा उपचुनाव में जीत हासिल की और अब लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 75 हो गयी है। दिल्ली में 2025 विधानसभा में कितनी महिलाएँ विधानसभा में पहुँचेगी, इसका पता तो 08 फरवरी को नतीजे वाले दिन ही पता चलेगा। क्या 1998 का रिकॉर्ड टूटेगा?