दिल्ली का दर्द

दिल्ली के द्वारिका में गैंगवार के बाद रोहिणी क्षेत्र में बने सीआरपीएफ स्कूल में करवा चौथ वाले दिन बम ब्लास्ट होना इस बात का साफ़ संकेत देता है कि दिल्ली देश की राजधानी भले ही है; लेकिन पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। देश के गृहमंत्री अमित शाह को इसकी चिन्ता होनी चाहिए। सन् 2019 में अमित शाह देश के गृहमंत्री बने और अब उनका यह दूसरा कार्यकाल है। दिल्ली पुलिस, क़ानून व्यवस्था और जाँच एजेंसियाँ उनकी निगरानी में काम करती हैं। लेकिन अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद हैं कि रोहिणी के सीआरपीएफ स्कूल में धमाके के बाद अपराधी ने एक ईमेल से दिल्ली समेत देश भर के सीआरपीएफ स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी तक दे दी।

अपराधी ने अपना नाम कृतिगा देवदिया लिखते हुए ईमेल संदेश लिखा, जिसमें उसने मेथ केस में डीएमके नेता ज़ाफ़र सादिक़ की गिरफ़्तारी और उसके बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने की बात कहते हुए तमिलनाडु पुलिस के ख़ुफ़िया तंत्र के डीएमके परिवार के आंतरिक मामलों में उलझने और उसका ध्यान एम.के. स्टालिन परिवार से हटाने के लिए केंद्र सरकार के स्कूलों में और उनके आसपास इस तरह के धमाकों को ज़रूरी बताया। धमकी देने वाले ने एम.के. स्टालिन, अर्जुनदुरई राजशंकर, उनकी पत्नी नर्मदा रत्नाकुमार नाडर और इन सबके क़रीबियों को छापेमारी करके मोहरा बनाने पर रोष व्यक्त किया है। ईमेल से लगता है कि धमकी देने वाला व्यक्ति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों की अच्छी जानकारी रखता है। क्योंकि उसने लिखा है कि वीपी एनआईआईटी टेक के तौर पर अपनी भूमिका के दौरान सीसीटीएनएस अकाउंट के साथ काम करने वाले मणिक्कवसागम रामलिंगम, आईपीएस ज़फ़र सैत और के. राधाकृष्णन द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले रिमोट कंट्रोल सिस्टम्स (आरसीएस) गैलीलियो ऐप में एक गुम कड़ी है।’ उसने उदयनिधि परिवार के चिराग़ इनबन उदयनिधि के अंतरंग होने की बात कहते हुए लिखा- ‘किसी भी क़ीमत पर तमिलनाडु का पॉलिटिकल इंटेल इसे ग़लत समूह में जाने से रोकना चाहेगा। dcblore@ksp.gov.in अकाउंट महत्त्वपूर्ण जानकारी को दबा रहा है और अगले ह$फ्ते होने वाली घटनाओं का गवाह बनेगा।

दिल्ली का इतिहास बहुत पुराना है। इस महानगर को भारत की राजधानी बने 94 साल होने वाले हैं। लेकिन ऐतिहासिक घटनाएँ और किंवदंतियाँ बयान करती हैं कि इस महानगर पर शासकों की नज़र महाभारत-काल से रही है। यही कारण रहा है कि दिल्ली ने अनगिनत आक्रमण झेले हैं। बाहरी घुसपैठियों और देश के अनेक क्रूर शासकों ने दिल्ली पर शासन करने की लालसा से इसे बार-बार तबाह किया है। लेकिन इन आक्रमणों से दिल्ली की ज़्यादातर जनता पर कोई ख़ास फ़$र्क नहीं पड़ा है। यहाँ के एक बड़े तबक़े ने आक्रांताओं द्वारा फैलायी गयी तबाहियों से नुक़सान उठाने के बावजूद उनकी $गुलामी ही स्वीकार की है। दिल्ली का यह दर्द शायद ही कोई समझेगा कि इस राज्य का विकास विदेशी आक्रांताओं और कुछ भारतीय शासकों की महत्त्वाकांक्षाओं की वजह से बार-बार इतना प्रभावित हुआ है कि यह राज्य आज देश की राजधानी होने के बाद भी विकास की उस चरम सीमा तक नहीं पहुँचा है, जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी ख्याति हासिल हो सके।

अंग्रेजों की हुकूमत ख़त्म होने बाद दिल्ली पर लूट की नीयत से राजनीतिक हमले लगातार होते रहे हैं। हर राजनीतिक पार्टी के महत्त्वाकांक्षी नेता दिल्ली जीतने का सपना लेकर दिल्ली की छाती पर बैठना चाहते हैं। इसी के चलते दिल्ली के विकास में कोई एक योगदान देता है, तो दूसरा उसे तबाह करने की योजना बना लेता है। विडंबना यह है कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश होने के साथ-साथ देश की राजधानी है, जिसमें आधी सत्ता केंद्र सरकार की है, तो आधी सत्ता दिल्ली सरकार और नगर निगम की है। एनडीए की केंद्र सरकार ने उप राज्यपाल की शक्तियाँ जबसे बढ़ा दी हैं, तबसे दिल्ली के विकास में अड़चनें और ज़्यादा आ रही हैं। दिल्ली सरकार का केंद्र सरकार पर काम और दिल्ली के हिस्से का फंड रोकने के आरोप राजनीतिक चाल का हिस्सा हो सकते हैं। लेकिन यह भी तो सच है कि अपने पहले ही कार्यकाल में देश में 100 स्मार्ट सिटी बनाने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी राजधानी दिल्ली तक को विकसित नहीं करवा सके। अब वह अपने कई पुराने वादे भूलकर देश को विकसित करने का सपना दिखा रहे हैं।

2020 में दिल्ली के विधानसभा चुनावों से पहले दंगे भड़के थे। अब अगले साल दिल्ली में फिर विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसा लगता है कि इससे पहले ही दिल्ली में दहशत का माहौल बनाने की कोशिश करने वाले अपराधी इस काम में लग गये हैं। यह गृहमंत्री, उनकी पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों की नाकामी है या अपराधियों के बढ़े हुए हौंसलों का परिणाम? नहीं कहा जा सकता। लेकिन दिल्ली की सत्ता की इतनी भूख किसे है? जो दिल्ली को दहलाकर यहाँ की अवाम पर शासन करना चाह रहा है। इस पर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार, दोनों को ही न सिर्फ़ विचार करना चाहिए, बल्कि विकास का ऐसा ख़ाका खींचना चाहिए, जिसकी दुनिया भर में मिसाल दी जा सके।