कौन: ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के हजारों पूर्व प्रशिक्षु
कब: दिसंबर, 2015 से
कहां: जंतर मंतर, दिल्ली
क्यों
‘मैंने ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में प्रशिक्षण देश सेवा के लिए लिया था. मेरा मानना है कि सेना के लिए हथियार बनाने वाली इन फैक्ट्रियों का महत्व सीमा पर लड़ने वाले सैनिकों जितना ही है.’ ये कहना है नवनिर्मित राज्य तेलंगाना के मेंढक जिले के क्रांति कुमार का. क्रांति ने फिटर ट्रेड से मार्च 2013 में अपना प्रशिक्षण पूरा किया गया था. उनकी फैक्ट्री में सारथ टैंकर के पुर्जे बनते थे. लेकिन नौकरी न मिलने के चलते बीएससी की पढ़ाई पूरी कर चुके क्रांति वेब डिजाइनर का काम कर रहे हैं. इतने समय से दिल्ली में रहने के चलते अब वह अच्छी हिंदी भी बोलने लगे हैं. वे आगे बताते हैं, ‘अगर हम जैसे युवा इन फैक्ट्रियों में काम करके सेना के लिए गोला-बारूद समेत अन्य हथियार नहीं बनाएंगे तो हमारे सैनिक आपात स्थिति में युद्ध कैसे लड़ेंगे लेकिन अब ये सारी बातें सिर्फ सपना लगती हैं. खुली भर्ती होने के बाद से भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है. कई खुली भर्तियों पर सीबीआई जांच चल रही हैं. पुणे के देबू रोड स्थित ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में 203 लोगों का चयन खुली भर्ती के तहत किया गया था. इसमें से 41 एक ही गांव के थे. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि खुली भर्ती में किस तरह भ्रष्टाचार हो रहा है. ऐसे में हमारे सामने सिर्फ प्रदर्शन का ही रास्ता बचता है.’ क्रांति कुमार करीब पिछले डेढ़ महीने से दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों द्वारा प्रशिक्षित किए गए हजारों पूर्व प्रशिक्षुओं के साथ धरने पर बैठे हुए हैं. ये सारे लोग अप्रेंटिस (संशोधन) एक्ट-1961 की धारा-22 के तहत अप्रेंटिस भर्ती पॉलिसी लागू करने के लिए अनिश्चितकालीन धरने पर हैं. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमएसडीएस) के तहत अप्रेंटिस एक्ट-1961 की धारा 22 की उपधारा 1 में संशोधन किया. इस अधिनियम की धारा 22 में यह साफ लिखा है कि प्रत्येक नियोक्ता ऐसे प्रशिक्षु को, जिसने उसके संस्थान में प्रशिक्षुता प्रशिक्षण लिया है, ऐसे प्रशिक्षुओं को भर्ती करने के लिए अपनी स्वयं की नीति तैयार करेगा. गौरतलब है कि लोकसभा ने 14 अगस्त, 2014 और राज्यसभा ने 26 नवंबर, 2014 को अप्रेंटिस (संशोधन) एक्ट-1961 को पारित कर दिया था. यहां तक कि राष्ट्रपति ने भी इस एक्ट पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. इसके बाद इसे गजट में प्रकाशित भी किया गया, लेकिन एक्ट में संशोधन के बाद एक साल का समय गुजर चुका है, पर अब तक इस संबंध में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड कोलकाता एक्स ट्रेंड अप्रेंटिसों को नौकरी मुहैया कराने से संबंधित नीति नहीं बना सकी है. इस मामले को लेकर सारी प्रक्रिया बहुत ही धीमी गति से चल रही है और सरकार द्वारा कानून में संशोधन के बावजूद अब भी सीधी भर्तियां निकल रही हैं. ऐसे में प्रशिक्षण पूरा कर चुके क्रांति जैसे युवा रोजगार के वैकल्पिक माध्यमों से अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं. प्रदर्शन कर रहे पूर्व प्रशिक्षु सत्येंद्र सिंह कहते हैं, ‘यह पहली बार नहीं है जब खुली भर्ती का विरोध करते हुए ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के पूर्व प्रशिक्षु धरने पर बैठे हैं. हम इससे पहले पिछले साल 27 जुलाई को जंतर-मंतर पर चार दिन तक धरने पर बैठ चुके हैं. तब जल्द समाधान के आश्वासन के बाद हमने अपना धरना खत्म कर दिया था लेकिन इसके बाद भी छह माह का वक्त गुजर गया है और किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है. इसलिए अब हमें अनिश्चितकाल के लिए धरने पर बैठना पड़ा है. हम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, कौशल विकास मंत्री सभी के सामने गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक आश्वासन के अलावा कुछ और हासिल नहीं हुआ है.’ मजेदार बात यह है कि जो युवक खुली भर्ती के जरिए रोजगार हासिल करते हैं, उन्हें फैक्ट्री में दोबारा उतना ही प्रशिक्षण दिया जाता है जितना पहले प्रशिक्षुओं को दिया जा चुका है. इसके अलावा प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण के दौरान स्टाइपेंड दिया जाता था, लेकिन जिन अप्रशिक्षित लोगों को नियुक्ति दी जाती है उन्हें प्रशिक्षण के दौरान पूरी तनख्वाह दी जाती है. अब इस दौरान वे कितना गुणवत्तापूर्ण कार्य कर पाते हैं यह देखने वाली बात होगी, लेकिन एक बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि इस पूरी प्रक्रिया में सरकार के पैसे और संसाधनों की बर्बादी होती है. वैसे साल 2010 से पहले ऐसे वरिष्ठता के आधार पर ऐसे प्रशिक्षुओं को ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में नियुक्ति दी जाती थी, लेकिन साल 2010 में संप्रग सरकार के दौरान इसमें बदलाव कर दिया गया और ऐसी नियुक्तियां खुली भर्ती परीक्षा के जरिए होने लगीं. प्रदर्शन कर रहे युवाओं में से एक प्रशांत कुमार कहते हैं, ‘हमें हथियार बनाना सिखाया गया लेकिन नौकरी नहीं दी गई है. यहां प्रदर्शन कर रहे हर युवक को अलग-अलग तरह के हथियार बनाने की ट्रेनिंग दी गई है. कोई आरडीएक्स का काम जानता है तो तो कोई पिस्तौल बनाना जानता है. किसी को बारूद, किसी को गोली तो किसी को बम शेल बनाना आता है. हालांकि किसी एक को यह काम पूरी तरह नहीं आता है लेकिन सभी मिलकर इस तरह का काम कर सकते हैं. हमारे देश में निजी क्षेत्र में यह काम इतना नहीं होता है कि हमें बाहर नौकरी मिल सके. हमने अपने जीवन के दो-तीन साल ऐसे काम में लगा दिए हैं, जिसका बाहर कोई महत्व ही नहीं है. ऐसे में हमारे पास सरकार से अपनी मांगे मनवाने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है.’
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ऐसे होती है ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में प्रशिक्षुओं की नियुक्ति
हाईस्कूल या आईटीआई की परीक्षा पास करने के बाद प्रतियोगी परीक्षा के जरिये ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में प्रशिक्षुओं की नियुक्ति होती है. आईटीआई करके आए प्रशिक्षुओं को एक साल और हाईस्कूल पास करके आने वाले प्रशिक्षुओं को तीन साल गोले, हथियारों के पार्ट्स, नाइट विजन डिवाइस, हथियार, बारूद, आरडीएक्स, टैंक और मिसाइल के पार्ट बनाने जैसे कई कार्यों से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षण पूरा करने के बाद प्रशिक्षु को राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रमाण-पत्र (नेशनल अप्रेंटिसशिप सर्टिफिकेट) परीक्षा में बैठना होता है. परीक्षा पास करने के लिए प्रशिक्षु को तीन मौके दिए जाते हैं. किसी भी प्रयास में परीक्षा उत्तीर्ण करने वालों को श्रम एवं रोजगार मंत्रालय राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रमाण-पत्र प्रदान करता है.
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देश भर में इस तरह के प्रशिक्षुओं की संख्या लगभग 8 से 10 हजार है, जिसमें ज्यादातर लोग बेरोजगार हैं. कुछ प्रशिक्षु नक्सल प्रभावित आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के हैं. यदि ऐसे प्रशिक्षु बेरोजगारी की वजह से असामाजिक तत्वों के बहकावे में आ जाएं तो सरकार के लिए एक नई समस्या खड़ी हो जाएगी. असामाजिक तत्वों को इन युवाओं को प्रशिक्षण भी नहीं देना होगा क्योंकि हमारी सरकार ने इन लोगों को प्रशिक्षण देकर बेरोजगार छोड़ दिया है. धरने पर बैठे इन प्रशिक्षुओं का मामला संसद में भी उठ चुका है. हाल ही में महाराष्ट्र के रावेर से भाजपा सांसद रक्षा खड़से ने ये मामला सदन में उठाया. इसके पहले 16 मार्च, 2015 को श्रम और रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बंडारु दत्तात्रेय ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में बताया था कि प्रशिक्षु (अप्रेंटिस) अधिनियम, 1961 में संशोधन किया गया है व इसे 22 दिसंबर, 2014 से प्रभावी किया गया है. अधिनियम में संशोधन किए जाने से पहले प्रतिष्ठानों के लिए नियमित रोजगार के लिए अपने कम से कम 50 प्रतिशत प्रशिक्षुओं को काम पर रखना अनिवार्य नहीं था. संशोधन के बाद अधििनयम में यह प्रावधान है कि हर नियोक्ता किसी ऐसे प्रशिक्षु, जिसने उसके प्रतिष्ठान में शिक्षुता प्रशिक्षण की अवधि पूरी कर ली है, की भर्ती हेतु अपनी स्वयं की नीति बनाएगा. हालांकि इसके बाद भी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है और प्रशिक्षु अब भी जंतर मंतर पर बैठे हुए हैं. कौशल विकास और उद्यमशीलता प्रशिक्षण महानिदेशालय ने सूचना के अधिकार के तहत दी जानकारी में बताया कि प्रशिक्षु अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए पहले श्रम एवं रोजगार मंत्रालय जिम्मेदार था, अब इसकी जिम्मेदारी कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्रालय के पास है. यह जानकारी 12 जून, 2015 को दी गई थी. धरने पर बैठने के बाद प्रशिक्षुओं ने 7 दिसंबर, 2015 को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री को पत्र लिखे. इसके संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय से 10 दिसंबर को उचित कार्रवाई करने संबंधी जवाब आया लेकिन इसके एक माह बाद भी स्थिति जस की तस है. प्रशिक्षुओं का धरना जारी है. रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने पांच जनवरी, 2016 को इन प्रशिक्षुओं से मिलने का वक्त दिया था लेकिन पठानकोट आतंकी हमले की वजह से यह मुलाकात भी स्थगित हो गई.