‘जेएनयू जैसी सामाजिक बनावट संविधान में भी नहीं’

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पांचजन्य ने अपने लेख में जो आरोप लगाया है कि जेएनयू नक्सली, माओवादी या आतंकियों के समर्थकों का केंद्र है, यह झूठ है. वे किस मंशा से ऐसा कह रहे हैं, यह उन्हीं को बेहतर पता होगा. संघ और भाजपा से भी जुड़े कई लोग वहां से पढ़कर निकले हैं. निर्मला सीतारमण जैसी भाजपा की वरिष्ठ नेता जेएनयू से ही हैं. भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी वहां मौजूद है. कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रत्याशी वहां के छात्रसंघ में रह चुके हैं. इस बार भी एबीवीपी का एक प्रत्याशी ज्वाइंट सेक्रेटरी पद पर केंद्रीय पैनल में चुना गया है. जेएनयू में संघ की शाखा लगती है. उन्हें बताना चाहिए कि क्या ये सभी माओवादी हैं?

मैं इस विश्वविद्यालय को 1972 से जानता हूं. 1973 में छात्रसंघ अध्यक्ष रहा. अध्यापक के रूप में कार्य करना शुरू किया तो शिक्षक संघ का अध्यक्ष भी रहा. इस कैंपस की 45 साल की कहानी मुझे मालूम है. जेएनयू देश भर के सभी विचारों का केंद्र है. वैचारिक खुलापन उस परिसर की संस्कृति है जहां पर हर धारा के मानने वाले लोग हैं. कभी भी इस विश्वविद्यालय ने किसी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधि को प्रो​त्साहित नहीं किया. उस कैंपस में पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों मौजूद हैं. देश के सभी विचारों और प्रवृत्तियों की झलक वहां मिल जाएगी. जेएनयू में वाम के अंदर भी कई धाराएं हैं. 60-70 प्रतिशत छात्रों को राजनीति से कोई वास्ता नहीं होता.

जेएनयू के शिक्षक संघ में भी सभी दलों व विचारों का प्रतिनिधित्व रहा है. वामपंथ, दक्षिणपंथ और समाजवाद को मानने वाले शिक्षक रहे हैं तो हम जैसे गांधी, लोहिया और जयप्रकाश नारायण के समर्थक भी रहे, हम सबको अपनी क्षमतानुसार विजय-पराजय मिली. आज भी वहां भाजपा समर्थक शिक्षक हैं.

पिछले सालों में भारत सरकार के प्रशासन में सचिव, विदेश ​सचिव जैसे पदों पर जेएनयू से निकले छात्रों ने सेवाएं दीं. केंद्र से लेकर राज्यों के प्रशासन और राजनीति में जेएनयू से निकले छात्र सबसे ज्यादा हैं. पूरे भारत में जेएनयू के विद्यार्थी सम्मानित नजर से देखे जाते हैं. कई विश्वविद्यालयों के कुलपति जेएनयू से निकले अध्यापक रहे. सरकार की सुरक्षा सलाहकार समिति और अन्य समितियों में रहे हैं. राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में प्रशासन, शिक्षा, मीडिया, स्वयंसेवी संगठनों और राजनीति में जेएनयू से निकले लोगों ने भागीदारी की और उल्लेखनीय योगदान दिया है. जेएनयू ने राष्ट्रनिर्माण में गौरवपूर्ण योगदान दिया है जो विकास का एक मॉडल पेश करता है.

जहां तक जेएनयू के नक्सली समर्थक होने का सवाल है, आज तक वहां के किसी भी अध्यापक को न तो गिरफ्तार किया गया, न ही कोई ऐसे गंभीर आरोप वाले मुकदमे चले. जबकि अन्य विश्वविद्यालयों में ऐसा हुआ. पिछले 45 साल में एकमात्र घटना हुई जब हवाला कांड में एक छात्र पकड़ा गया था और उसे सजा भी हुई.

एक सबसे महत्वपूर्ण बात है कि जेएनयू की जो सामाजिक बनावट है, वह संविधान तक में नहीं है. जातीय रूप से पिछड़े छात्रों के अलावा हर तरह के पिछड़े युवाओं को वहां पर लाभ मिलता है. गांव से आए बच्चों, पिछड़े-दलितों और छात्राओं को विशेष लाभ मुहैया कराया जाता है. जेएनयू जैसी व्यवस्था देश के अन्य विश्वविद्यालयों में नहीं है. जेएनयू ऐसा क्यों बन पाया, इसके कई कारण हैं. शिक्षा के क्षेत्र में तीन बड़ी बीमारियां हैं- भ्रष्टाचार, नकलबाजी और नियुक्तियों में लेनदेन व राजनीतिक हस्तक्षेप. जेएनयू की प्रवेश परीक्षा में पारदर्शिता है. यहां की संरचना ऐसी है कि नकल जैसी व्यवस्था सफल नहीं हो सकती. परीक्षा प्रणाली ऐसी है कि आपको लगता है कि आपका नंबर कम आया, या आपके साथ अन्याय हुआ है तो आप उसे चुनौती दे सकते हैं. नियुक्तियों में पारदर्शिता होने के कारण शिक्षकों से लेकर कुलपतियों तक को निर्मल प्रक्रिया अपनाई जाती है.

वैचारिक खुलापन जेएनयू की सबसे खास बात है. यह कैंपस पूरी तरह जाति और संप्रदाय से मुक्त है. यहां पर कश्मीरी, तमिल, पूर्वोत्तर सभी जगह के लोग आते हैं और अपनी बात कहते हैं. सब मसलों पर चर्चा होती है. सीरिया, ईरान, इराक से लेकर अमेरिका और पूरी दुनिया के मसलों पर वहां बहसें होती हैं.

भाजपा के मित्रों से यह पूछना पड़ेगा कि दुनिया के टॉप विश्वविद्यालयों में जेएनयू की ही गणना क्यों होती है. यह एशिया में सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक है, बाकी राज्यों के विश्वविद्यालय क्यों नहीं हैं? ऐसे विश्वविद्यालय की परंपरा की निंदा करना खुद पर सवाल खड़े करना है. जेएनयू कैंपस आरएसएस के लिए कभी बंद नहीं रहा. वहां पर असहमत लोग भी हैं. आरएसएस और भाजपा को चाहिए कि वे जेएनयू की निंदा करने की जगह अपने आप को टटोलें कि ​दलितों, महिलाओं, आदिवासियों के बारे में उनके क्या दृष्टिकोण हैं? समाज की बड़ी आबादी के बारे में उनकी सोच दोयम दर्जे की क्यों है? जेएनयू इसलिए प्रतिष्ठित है कि वहां इन सबके लिए बराबर जगह है.

(कृष्णकांत से बातचीत पर आधारित)

(लेखक जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं)