गलतियों में कोई सुधार नहीं
पेरिस ओलंपिक खेलों में भारत ने किसी तरह अंतिम दो मिनट में गोल कर अपना सम्मान ही नहीं बचाया बल्कि पूरे भारत की उम्मीदों को बरकरार रखा। भारत का यह गोल 59 वें मिनट में कप्तान हरमनप्रीत सिंह की स्टिक से आया। दो मैचों और 12 पेनल्टी कॉर्नर मिलने के बाद यह पहला गोल था तो सीधे ड्रैग फ्लिक से हुआ।
भारत के लिए यह मैच जीतना इसलिए भी ज़रूरी था क्योंकि उसे पूल के अंतिम दो मैच पिछले विजेता बेल्जियम और ऑस्ट्रेलिया के साथ खेलने हैं। पूल बी की छह टीमों में से ऊपर की चार टीमें क्वार्टर फ़ाइनल में प्रवेश करेंगी। टीमों की रैंकिंग और प्रदर्शन को देखते हुए बेल्जियम और ऑस्ट्रेलिया का नॉकआउट स्टेज पे जाना लगभग तय लग रहा है। तीसरी टीम भारत और चौथी टीम न्यूजीलैंड, आयरलैंड, या अर्जेंटीना में से एक होगी। अभी तक खेले मैचों में वो भारत नज़र नहीं आया जो पिछले ओलंपिक खेलों में था।
पेनल्टी कॉर्नर पर गोल नहीं : भारत ने पिछले ओलंपिक में लगभग 50 फीसद पेनल्टी कार्नर गोल में बदले थे, लेकिन इस बार बाकी टीमों ने भारत के पेनल्टी कॉर्नर की तकनीक समझ ली है। अगर अर्जेंटीना वाले मैच की बात करें तो उस टीम ने भांप लिया था की भारत कभी वेरिएशन नहीं करता और न ही ऊंचा स्कूप मारता है। हरमनप्रीत और साथी गोलकीपर के दाएं या फिर कभी बाएं हाथ की तरफ पुश करते हैं। हरमनप्रीत के पुश की गति इतनी तेज होती है की गोलकीपर उसक पूर्वानुमान लगाने के बावजूद उसे रोक नहीं पाता। इसलिए उन्हों ने एक की बजाए दो रक्षकों को आगे दौड़ने के काम पर लगाया और उनसे गोलपोस्ट का अपना बायां हिस्सा कवर करने को कहा, बाकी गोलकीपर ने सिर्फ अपना दांया भाग ही कवर करना होता था। क्योंकि भारत कोई वेरिएशन नहीं कर रहा था और न कोई स्कूप तो तो विपक्षी टीम का काम आसान हो गया। अगर आप ध्यान से देखेंगे तो जो गोल अंतिम मिनट में भारत को मिला वह भी अर्जेंटीना के रक्षक के पैर से डिफ्लेक्ट हो कर ऊंची उठी गेंद पर आया। अर्जेंटीना का गोलरक्षक इसकी अपेक्षा नहीं कर रहा था।
दो फ्रंट रनर: जिस तरह टीमें दो रक्षकों को आगे दौड़ा कर पेनल्टी कॉर्नर बचाती हैं उसका लाभ भारत ले सकता है। असल में पेनल्टी कॉर्नर के समय गोलकीपर सहित कुल पांच रक्षक गोल लाइन पर होते हैं। इनमें से गोलकीपर और एक रक्षक तो गोलरेखा पर ही रहते हैं आगे नहीं आते। दो फ्रंट रनर हैं वे डी टॉप तक पहुंच जाते हैं इस तरह डी के भीतर केवल एक डिफेंडर रह जाता है। अगर फ्रंट रनर्स को चकमा दे कर गोलपोस्ट के बीचोबीच हिट, पुश या स्कूप किया जाए तो गोल निकालना आसान हो सकता है।
इसके अलावा भारत की चिंता का विषय यह भी है कि हमारी ओर से फील्ड गोल नहीं आ रहे। सही तो यह है कि जो चार गोल भारत ने इन दो मैचों में किए उनमें एक ही फील्ड गोल है। इनमें एक गोल पेनल्टी स्ट्रोक से, एक पेनल्टी कॉर्नर के रिबाउंड से और एक सीधा पेनल्टी कॉर्नर से आया है।
हमारी किस्मत ने भी कल हमारा का साथ दिया जो अर्जेंटीना अपना पेनल्टी स्ट्रोक गोल में नहीं बदल पाया अन्यथा मैच हाथ से निकल जाता।
आयरलैंड: आज शाम 04:45 पर भारत अपना तीसरा मैच आयरलैंड से खेलने वाला है। आयरलैंड को किसी भी तरह से कम करके नहीं आंका जा सकता। उसने अपने पिछले मैच में ऑस्ट्रेलिया को नाकों चने चवबा दिए। ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम उसे बड़ी मुश्किल से हरा पाई। स्कोर रहा 2-1। ऐसा नहीं की भारत में उसे आसानी से हराने की ताकत नहीं पर समय अनुसार अपने खेल को बदलने की ज़रूरत है। आयरलैंड का खेल देखने के बाद पता लगता है की वे लोग मजबूत रक्षण के साथ जवाबी हमलों में विश्वास रखते हैं। वे मैदान के बीच से किसी हमले को रोकने के लिए भीड़ सी लगा देते हैं। उस भीड़ को काटने का तरीका है कि भारत अपने दाएं और बाएं दोनों छोर का भरपूर इस्तेमाल करे और उनकी ‘डी’ के टॉप पर फॉरवर्ड अपने लिए थोड़ी जगह बना लें क्योंकि दोनों छोर से हुए हमलों के बाद आमतौर पर माइनस की गई गेंद उसी क्षेत्र में आती है। उनके खिलाफ पेनल्टी कॉर्नर भी अधिक मिलेंगे क्योंकि भीड़ भरी रक्षपंक्ति में इसकी संभावना अधिक रहती है।
मध्य पंक्ति: भारत की हाफ लाइन को हमलों में अधिक परिपक्वता दिखानी होगी। उनकी स्टीक पासिंग के बिना हमले नहीं बन सकते। हमलों और रक्षण दोनों में उसकी बड़ी भूमिका है।
अगर भारत अपनी पूरी रणनीति से हॉकी खेल गया तो आयरलैंड को आसानी से हरा सकता है। अभी तक हमारे फॉरवर्ड पेनल्टी कॉर्नर लेने के हिसाब से डी में प्रवेश करते हैं लेकिन उन्हें फील्ड गोल की तरफ जाना होगा। भारत का बड़ा हथियार उसकी हवा में की गई पासिंग है। उसका भरपूर इस्तेमाल करना होगा।