भारत में बढ़ते जा रहे वृद्धाश्रम

– माँ-बाप को घर से निकालने वाले बच्चों का न हो पैतृक संपत्ति में कोई अधिकार

के. रवि (दादा)

बचपन में हर बच्चे को अपने माँ-बाप से जितना प्यार होता है, उतना और किसी से नहीं होता। माँ-बाप भी अपने बच्चों पर जान न्योछाबर करते हैं और चाहते हैं कि उनका हर बच्चा एक अच्छा इंसान बनने के साथ-साथ इस क़ाबिल बने कि अपना जीवन ख़ुशहाल बना सके और बुढ़ापे में उनके सहारे की लकड़ी बन सके। लेकिन जवान होते ही बहुत-से बच्चे अपने उन्हीं देवतुल्य माँ-बाप को ठुकराकर घर से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं, जिन माँ-बाप ने अपने सपनों और इच्छाओं को मारकर बच्चों की हर इच्छा पूरी की होती है। बच्चों के पीटने और घर से भगा देने से ये बुजुर्गों के पास तीन ही रास्ते होते हैं। कई सड़कों पर भीख माँगते हैं, जिन्हें वृद्धाश्रम का सहारा मिलता है, वो वृद्धाश्रम चले जाते हैं और कुछ तो तनाव में आत्महत्या तक कर लेते हैं।

ऐसे कपूत बच्चों की वजह से देश में अंदाज़न दो से ढाई लाख बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में रहते हैं। कई ठोस रिपोर्ट देखने पर पता चलता है कि इन बुजुर्गों के साथ इनके ही बच्चों ने मारपीट और खाना न देने के मामले ज़्यादा मिले हैं। 2022 में भारत में 728 वृद्धाश्रम थे। 2016 में रजिस्टर्ड वृद्धाश्रमों की संख्या 500 के लगभग थी। सिर्फ़ छ: वर्षों में 228 वृद्धाश्रमों का बढ़ना यह बताता है कि हमारे देश के बच्चे अपनी सभ्यता और अपने संस्कार भूलते जा रहे हैं। भारत के 28 राज्यों में से एक भी राज्य ऐसा नहीं है, जहाँ एक भी वृद्धाश्रम न हो। भारत के केरल राज्य में 124 वृद्धाश्रम हैं। और  महाराष्ट्र में 49 से ज़्यादा वृद्धाश्रम हैं। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2011 में 10.4 करोड़ बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में थे। 2015 में इनकी संख्या आठ फ़ीसदी तक बढ़ गयी थी। लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक भारत में 19 फ़ीसदी वृद्धि के साथ भारत में बुजुर्गों की संख्या 31.9 करोड़ हो जाएगी।

वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों को वृद्धाश्रम भेजने वाले बच्चों में अमीर ज़्यादा होते हैं। ग़रीब बच्चे अपने माँ-बाप को कभी वृद्धाश्रम नहीं भेजते। अब तक की रिपोर्ट्स में सामने आया है कि 50 फ़ीसदी वृद्ध माताएँ और 45 फ़ीसदी वृद्ध बाप अपने ही बहू-बेटों से पिटते हैं।

क्यों न ऐसे बच्चों को संपत्ति से दूर कर दिया जाए, जो माँ-बाप को दो-जून की रोटी तक नहीं देना चाहते हैं? 2024 में केंद्र सरकार ने संपत्ति क़ानूनों में कई बड़े बदलाव करके ऐसे बच्चों को सबक़ सिखाने की कोशिश की है। इसमें पहला नियम बन गया है कि बेटों की तरह ही अब बेटियाँ भी माँ-बाप की संपत्ति में हिस्सा ले सकती हैं। नये क़ानून के मुताबिक, अब माँ-बाप की स्वयं अर्जित की गयी संपत्ति पर उनके बच्चों का कोई क़ानूनी अधिकार नहीं होगा। ऐसा करना माँ-बाप की इच्छा पर निर्भर करेगा। माँ-बाप अपनी संपत्ति सरकार को दे दें, किसी आश्रम को दान में दे दें या किसी मनचाहे व्यक्ति को दे दें; यह उनकी अपनी मज़ीर् होगी। इस नये क़ानून ने वृद्ध माँ-बाप की सेवा न करने वाले बच्चों के मन में डर रहेगा है कि कहीं उनके माँ-बाप किसी और को संपत्ति न दे दें। पर फिर भी कई बच्चे नौकरी लगने के बाद अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम जाने को मजबूर कर रहे हैं। कई ऐसे मामले सामने आये हैं, जिनमें बच्चों को अपने ही माँ-बाप को पीटते और भूख से तड़पाते हुए देखा गया है।

वैसे भी हमारे देश में रेमंड के पूर्व मालिक विजयपत सिंघानिया के पुत्र गौतम सिंघानिया ने जिस तरह अपने पिता को संपति से बेदख़ल करते हुए अदालत में खींचा, उससे गौतम सिंघानिया की पूरे देश में थू-थू हुई। हो सकता है कि इस तरह के कई मामले उजागर न हुए हों, पर सरकार को ऐसे मामलो में गंभीरता दिखते हुए स$ख्ती से और ठोस क़दम उठाकर पीड़ितों को न्याय दिलाना चाहिए। इस मामले मेरी केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार से विनती है कि वो ऐसे बच्चों को सज़ा देने का प्रावधान भी करें, जो अपने माँ-बाप को उनकी संपत्ति पर क़ब्ज़ा करके घरों से निकाल देते हैं।