सरकारी पाइपों से धड़ल्ले से चोरी हो रहा पेट्रोल-डीजल
देश में तेल माफ़िया दशकों से तेल सम्पदा और सरकारी ख़ज़ाने को लूट रहे हैं। फलते-फूलते तेल माफ़िया पर लगाम लगाने के लिए अधूरे मन से उठाये गये सरकारी क़दम काफ़ी नहीं हैं। इन माफ़िया पर कोई ठोस कार्रवाई न होना बताता है कि तेल चोरी के मामले में कुछ तो झोल है। इसी को लेकर तहलका एसआईटी की विशेष जाँच रिपोर्ट :-
‘मैं 2001-2004 तक उत्तर भारत के इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) का सतर्कता प्रमुख था। मैंने देखा कि कैसे पेट्रोल-डीजल और हवाई ईंधन की चोरी अलग-अलग तरीक़ों से की जाती है- तेल टैंकरों से, तेल रिफाइनरियों की पाइपलाइनों से, और सरकारी वाहनों से भी। फिर चोरी किये गये तेल को या तो पेट्रोल पम्पों या छोटे या बड़े उद्योगों को बेच दिया जाता था। चोरी का यह तेल सामान्य बाज़ार में बिकने वाले तेल की तुलना में सस्ते दामों पर बेचा जाता है। यहाँ तक कि कुछ पेट्रोल पम्प भी ग्राहकों को चोरी का तेल बेचते हैं। पम्प मालिक सस्ते दामों पर तेल ख़रीदते हैं और फिर मोटा मुनाफ़ा कमाते हैं। ऑटोमोबाइल ईंधन में मिलावट भी एक बड़ी समस्या है। संक्षेप में देश में तेल माफ़िया अभी भी मौज़ूद हैं, उन पर लगाम लगाने के लिए कई उपाय किये जाने के बावजूद। यह ख़रीदारों को चोरी का तेल उपलब्ध कराकर हज़ारों करोड़ का लाभ कमाते हैं। इससे राष्ट्रीय ख़ज़ाने को मोटा चूना लगता है।’ -ये सब ‘तहलका एसआईटी’ से बात करते हुए सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती और प्रोन्नति बोर्ड के वर्तमान सदस्य आर.के. चतुर्वेदी ने कहा।
तेल माफ़िया पिछले कुछ साल में अभूतपूर्व रूप से बढ़ा है। इसने पहली बार 1980 के दशक की शुरुआत में अपना सिर उठाया। उस समय देश ईंधन की कमी के संकट से जूझ रहा था और तब भी वाहनों की बिक्री में अचानक वृद्धि हुई थी। कुछ भूमिगत संचालकों की मदद से शक्तिशाली लोगों ने एक गुट बनाया और पूरे देश में अपने धंधे के क्षेत्र का विस्तार किया। बाद में कुछ राजनेता, पुलिसकर्मी और शक्तिशाली औद्योगिक घराने भी इसमें शामिल हो गये। पिछले कुछ वर्षों में यह अवैध उद्योग गुज़रात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, असम आदि जैसे कई राज्यों में फैल गया है। एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने 2006 में तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र की यूपीए सरकार अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें देश में फैले तेल माफ़िया के बारे में विस्तार से बताया गया था। सूत्रों के मुताबिक, मौद्रिक आँकड़ों के हिसाब से तेल का अवैध उद्योग सालाना 10,000 करोड़ रुपये के आसपास है।
तेल माफ़िया की ताक़त का अंदाज़ा आईआईएम-लखनऊ की 2003 बैच के स्नातक मंजूनाथ षणमुगम की जघन्य हत्या से लगाया जा सकता है। हत्या से बड़े पैमाने पर आक्रोश फैला था, और यह राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया था। लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के एक बिक्री अधिकारी मंजूनाथ की 19 नवंबर, 2005 को हत्या एक पेट्रोल पम्प के मालिक और उसके साथी द्वारा मिलावटी ईंधन को लेकर विरोध शुरू करने के प्रतिशोध के रूप में की गयी थी। उनका शव लखीमपुर खीरी और सीतापुर ज़िले की सीमा पर एक सुनसान इलाक़े से बरामद किया गया था। मंजूनाथ ने पम्प मालिक को चेतावनी दी थी कि मिलावटी डीजल बेचने पर उसके फिलिंग स्टेशन को सील कर दिया जाएगा। हत्या के दिन मंजूनाथ पम्प पर तेल की गुणवत्ता जाँचने गया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने 2009 में पेट्रोल पम्प मालिक सहित सात लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनायी थी। इसके बाद 8 जनवरी, 2023 को आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे दोषियों में से एक को जेल में उसके अच्छे आचरण के आधार पर रिहा कर दिया गया था। मंजूनाथ की मृत्यु के कुछ वर्षों बाद एक अनाम बायोपिक ‘मंजूनाथ’, जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक मज़बूत संदेश देना था; रिलीज की गयी, जिसने मीडिया का बहुत ध्यान आकर्षित किया।
लेकिन तेल माफ़िया द्वारा मारे गये मंजूनाथ अकेले नहीं हैं। मालेगाँव (महाराष्ट्र) के अतिरिक्त ज़िला कलेक्टर, यशवंत सोनवणे को 25 जनवरी, 2011 को नासिक के पास मनमाड में एक तेल मिलावट माफ़िया द्वारा कथित रूप से ज़िन्दा जला दिया गया था। हालाँकि बाद में सीबीआई जाँच से पता चला कि उनकी हत्या पिछली दुश्मनी के कारण की गयी थी और सोनवणे ने इस माफ़िया से रिश्वत की माँग की थी। इस बीच पत्रकार जे.डे. हत्याकांड में छोटा राजन और आठ अन्य को 2018 में आजीवन कारावास की सज़ा मिली। शुरू में पुलिस को संदेह था कि जे.डे. को भी तेल माफ़िया ने मार डाला था, क्योंकि पत्रकार एक ऐसी रिपोर्ट पर काम कर रहे थे, जो तेल माफ़िया, पुलिस और राजनेताओं के बीच साँठगाँठ को उजागर कर सकती थी। जे.डे. की जून, 2011 में हत्या कर दी गयी थी। ये कुछ घटनाएँ हैं, जो भारत में तेल माफ़िया की पहुँच का संकेत देती हैं।
ऑटोमोबाइल ईंधन को भूल जाइए। तेल माफ़ियाओं ने हवाई ईंधन तक को नहीं बख़्शा है। पिछले वर्षों के दौरान एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) की चोरी के भी कई मामले सामने आये हैं। हाल का मामला हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) से सम्बन्धित है। कम्पनी ने मुख्य पाइपलाइन में एक छेद पाया, जो छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, मुंबई तक विमानन टरबाइन ईंधन ले जाता है। यह संकेत देते हुए कि यह ईंधन चोरी करने का प्रयास था, एचपीसीएल की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है।
‘तहलका’ से बात करते हुए आर.के. चतुर्वेदी ने भी पुष्टि की कि तेल माफ़िया भी लम्बे समय से एविएशन टर्बाइन ईंधन की चोरी में शामिल है। ऑटोमोबाइल और एविएशन फ्यूल ही नहीं, कुकिंग ऑयल भी तेल माफ़िया गिरोहों के निशाने पर है। यूक्रेन-रूस युद्ध से सूरजमुखी तेल की क़ीमतों में तेज़ी आयी है। खाद्य तेल और खाद्यान्न की क़ीमतें भी आसमान छू रही हैं, जबकि जमाख़ोरों का मुनाफ़ा बढ़ रहा है। गुज़रात के खाद्य आपूर्ति विभाग ने जमाख़ोरों और कालाबाज़ारी करने वालों को पकडऩे के लिए छापेमारी तेज़ कर दी है।
भारत में फलते-फूलते तेल माफ़िया की रिपोर्ट्स के मद्देनज़र, ‘तहलका’ ने इस अवैध तेल व्यापार की जाँच करने का फ़ैसला किया। सच्चाई की तह तक जाने के लिए कई आरटीआई दायर की गयीं। वो सच, जिसे हर कोई जानना चाहता है कि आम आदमी से लेकर उन लोगों के परिवारों तक, जिन्हें तेल माफ़िया ने मार डाला। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के एक अधिकारी के अनुसार, पूरे भारत में अनुमानित 15,000 किलोमीटर लम्बी तेल पाइपलाइन फैली हुई हैं। सबसे पहले, इन पाइपलाइनों के माध्यम से कच्चा तेल भारत भर में फैली सम्बन्धित रिफाइनरियों तक पहुँचता है। वहाँ से विभिन्न तेल कम्पनियों के डिपो में रिफाइंड तेल की आपूर्ति के लिए पाइप लाइन का उपयोग किया जाता है। यहाँ तक कि विमानन ईंधन, वायु टरबाइन ईंधन (एटीएफ) की आपूर्ति भी इन पाइपलाइनों के माध्यम से की जाती है। तेल पाइपलाइन का नेटवर्क इतना घना है कि आम आदमी को पता ही नहीं चलेगा कि जिस ज़मीन के टुकड़े पर वह खड़ा है, उसके नीचे तेल की पाइपलाइन है। तेल ले जाने वाली इन पाइपलाइनों को स्वाभाविक रूप से अच्छी तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए। लेकिन आर.के. चतुर्वेदी के अनुसार, इन संवेदनशील तेल पाइपलाइनों की सुरक्षा के लिए अलग से कोई बल नहीं है। इन पाइपलाइनों की देखभाल के लिए केवल स्थानीय पुलिस तैनात है। नतीजा यह हुआ कि ठग दशकों से इन पाइपलाइनों में छेद कर तेल की चोरी कर रहे हैं। ‘तहलका’ के पास मौज़ूद आरटीआई के जवाब बताते हैं कि इन पाइपलाइनों से नियमित रूप से तेल की चोरी होती है और वह भी पुलिस और रिफाइनरी अधिकारियों की नाक के नीचे। आरटीआई के ज़रिये ‘तहलका’ को तेल चोरी के मामलों की लम्बी और कभी न ख़त्म होने वाली सूची मिली है। गुज़रात से लेकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार आदि तक।
तेल माफ़ियाओं ने तेल कम्पनी की किसी भी पाइपलाइन को नहीं बख़्शा है, जिसमें उन्होंने वाल्व नहीं डाला हो और तेल की चोरी नहीं की हो। उन्होंने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और ऑयल एंड नेचुरल गैस कमीशन (ओएनजीसी) की पाइपलाइनों तक से तेल चुराया है। तेल माफ़िया ने जिस बेबाक़ी से बार-बार प्रहार किया है, वह बताता है कि तेल कम्पनियों की पाइपलाइनों की सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं है। मथुरा में तेल चोरी की एक विचित्र घटना देखने को मिली। वहाँ तेल माफ़िया ने कच्चे तेल की पाइपलाइन के पास अपनी छोटी रिफाइनरी ही लगा ली। इसने पाइप लाइन से कच्चा तेल चुराया और रिफाइनरी में रिफाइंड करवाकर अपने ग्राहकों को बेच दिया। गिरफ़्तारी से पहले तक आरोपी नियमित रूप से ऐसा करता था। बाद में उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया। तेल माफ़ियाओं, राजनेताओं, रिफाइनरी अधिकारियों और पुलिस के बीच साँठगाँठ का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2020-21 में जब पूरे देश में कोरोना के कारण लॉकडाउन था, तब भी तेल माफ़िया विभिन्न रिफाइनरियों की पाइपलाइनों से चोरी करके अपने नियमित ग्राहकों को बेचते रहे। इसे बेचने से पहले देश के विभिन्न हिस्सों में तेल ले जाने वाली इन पाइपलाइनों को स्वाभाविक रूप से अच्छी तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए। लेकिन आर.के. चतुर्वेदी के अनुसार, इन संवेदनशील तेल पाइपलाइनों की सुरक्षा के लिए अलग से कोई बल नहीं है। इन पाइपलाइनों की देखभाल के लिए केवल स्थानीय पुलिस तैनात है। नतीजा यह हुआ कि ठग दशकों से इन पाइपलाइनों में छेद करके तेल की चोरी कर रहे हैं।
तेल माफ़िया पाइपलाइन से तेल की चोरी कैसे कर लेते हैं, इसे समझने के लिए हमने एक तकनीकी विशेषज्ञ से सम्पर्क किया। उन्होंने बताया कि जब कोई ईंधन, पेट्रोल या डीजल पाइपलाइन में छोड़ा जाता है, तो यह एक निश्चित दबाव के साथ निकलता है। इसकी गति बढ़ाने के लिए इसके साथ कुछ अतिरिक्त वायुदाब छोड़ा जाता है। एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि पाइपलाइन में तेल का दबाव बढ़ाने के लिए पाइपलाइन में 50 किलोग्राम प्रति सेंटीमीटर अतिरिक्त हवा का दबाव छोड़ा जाता है। यह उस गति को इंगित करता है, जिस पर तेल पाइपलाइनों के माध्यम से बहता है। पुलिस अधिकारियों और रिफाइनरी के अधिकारियों की मानें, तो अधिकांश ईंधन चोरी के मामले माफ़िया द्वारा वाल्व लगाकर पाइपलाइनों को पंचर करने के बाद हुए हैं। अब सवाल यह उठता है कि तेल माफ़िया 8-24 इंच व्यास वाली तेल की पाइपलाइनों में छेद कैसे कर रहे हैं? जिसमें तेज़ गति से तेल बह रहा है। ऐसी कोशिश करने पर धमाका होने या पाइप में आग लगने की आशंका रहती है।
आर.के. चतुर्वेदी के मुताबिक, तेल माफ़िया पाइपलाइन में वाल्व लगाकर उसमें छेद करके तेल की चोरी करते हैं। रिफाइनरियों के कुछ निचले कर्मचारी या अनुबंध के आधार पर काम करने वाले कर्मचारी तेल छोडऩे के समय के बारे में माफ़िया को टिप देते हैं कि किस समय, पाइपलाइनों में डीजल बहेगा और किस समय पेट्रोल या विमानन ईंधन बहेगा। इसी सूचना के आधार पर माफ़िया पाइपलाइन से तेल की चोरी करते हैं। चतुर्वेदी के मुताबिक, एक ही पाइपलाइन से पेट्रोल और डीजल निकलने के बीच हमेशा चार से पाँच घंटे का अंतर होता है, ताकि दोनों तेल आपस में न मिलें। इस अवधि के दौरान जब पाइपलाइनों में कोई तेल नहीं बहता है, तो पाइपलाइनें बन्द कर दी जाती हैं। किसी भीतरी सूत्र के इस बीच की अवधि के बारे में माफ़िया को इत्तिला देने के बाद माफ़िया अपनी कार्यवाही शुरू कर देते हैं। वे पाइप लाइन में एक छेद करते हैं और पाइपलाइन के माध्यम से तेल के फिर से प्रवाहित होने की प्रतीक्षा करते हैं। ऐसे होती है पाइपलाइन से तेल की चोरी अन्यथा तेज़ गति से तेल प्रवाहित कर पाइप लाइन को पंक्चर करने का प्रयास एक बड़ी त्रासदी को आमंत्रण दे सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, सभी तेल पाइपलाइनों में जब दबाव के साथ तेल छोड़ा जाता है, तो उसमें एक मीटर होता है। मीटर का काम तुरन्त रिफाइनरी के अधिकारियों को रिसाव के बारे में सूचित करना और उस स्थान को इंगित करना है, जहाँ रिसाव हो रहा है। अगर ऐसा है, तो कैसे कुछ तेल माफ़िया बिना रिफाइनरी के अधिकारियों की पकड़ में आये पाइप लाइन में वाल्व लगाकर और पंक्चर कर दिनों-महीनों से तेल की चोरी कर रहे हैं? आर.के. चतुर्वेदी ने ‘तहलका’ को बताया कि माफ़िया द्वारा तेल की चोरी करने के लिए अगर किसी तेल पाइपलाइन को पंक्चर कर दिया जाता है, तो तेल का हवा का दबाव तुरन्त उससे जुड़े मीटर पर नीचे आ जाता है, जिससे रिफाइनरी के अधिकारियों को सम्भावित तेल चोरी के बारे में सतर्क किया जा सकता है।
आरटीआई के मुताबिक, देश में तेल चोरी के कई मामले दर्ज किये गये हैं। लेकिन इनमें से ज़्यादातर मामलों में रिफाइनरियों ने चोरी किये गये तेल की मात्रा के बारे में नहीं बताया गया है। कुछ मामलों में जहाँ उन्होंने मात्रा का उल्लेख किया है, तो दिये गये आँकड़े इतने कम हैं कि उन आँकड़ों पर हँसी आएगी। रिफाइनरी के अधिकारियों के मुताबिक, लाखों लीटर तेल ले जाने वाली पाइपलाइनों से चोरी हुए तेल का सही आँकड़ा पता करना बेहद मुश्किल है। लेकिन ‘तहलका’ के पास 2018 और 2020 की दो आरटीआई के जवाब हैं, जिसमें स्पष्ट रूप से पाइपलाइनों से चोरी किये गये तेल की मात्रा का उल्लेख है। यह इस बात पर सवालिया निशान खड़ा करता है कि रिफाइनरी के अन्य अधिकारी चोरी के तेल के आँकड़ों का ख़ुलासा न करने के लिए जानकारी क्यों रोक रहे हैं? और अलग-अलग कारण बता रहे हैं।
हिन्दुस्तान पेट्रोलियम की सन् 2018 और 13 फरवरी, 2020 की आरटीआई स्पष्ट रूप से चोरी किये गये तेल की मात्रा का संकेत देती है। आरटीआई के 13 फरवरी, 2020 के जवाब में कहा गया है कि पाइपलाइन से 1,690 लीटर एविएशन टर्बाइन फ्यूल की चोरी हुई थी, जिसकी एफआईआर चेंबूर पुलिस स्टेशन (मुंबई) में दर्ज की गयी है। इस मामले में कम्पनी ने चोरी हुए तेल का सही आँकड़ा बताया है। हालाँकि ऐसे मामले कम हैं। लेकिन ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ कम्पनियों ने सम्बन्धित थानों में दर्ज मामलों में तेल चोरी के आँकड़े का ख़ुलासा नहीं किया है, जो उनकी मंशा पर संदेह पैदा करता है। वित्तीय विशेषज्ञों की मानें, तो सीबीआई को केवल सरकारी और अर्ध-सरकारी क्षेत्रों से भ्रष्टाचार के मामले सौंपे जाते हैं, जिसमें शामिल धन एक निश्चित सीमा को पार कर चुका होता है। क्या यही वजह है कि रिफाइनरी के अधिकारी तेल चोरी की मात्रा का ख़ुलासा नहीं कर रहे हैं? क्योंकि आँकड़ों को दबाकर वे सीबीआई जाँच को टालने में सफल हो सकते थे।
मथुरा के ग्रामीणों ने एक रैकेट का पता लगाने में मदद की, जिसके माध्यम से अनुमान लगाया गया था कि करोड़ों लीटर कच्चे तेल को इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की मुख्य पाइपलाइन से गुज़रात में सलियन और उत्तर प्रदेश में सोनोथ गाँव के पास मथुरा रिफाइनरी के बीच बहाया गया था। मथुरा शहर से लगभग 45 किलोमीटर लम्बी दो इंच व्यास की 400 मीटर लम्बी पाइपलाइन का पता पुलिस ने लगाया है, जिसके ज़रिये भूमिगत मुख्य लाइन से कच्चे तेल की चोरी की जा रही थी; शायद पिछले तीन साल से। इस कच्चे तेल को माफ़िया द्वारा विकसित अस्थायी रिफाइनरी में रिफाइंड किया जाता था और रिफाइंड तेल की आपूर्ति उनके ग्राहकों को की जाती थी। ग्रामीणों ने पुलिस को बताया कि कई तेल टैंकर हर रात गाँव के बाहरी इलाक़े में एक खेत के बीच में स्थित एक अस्थायी ढाँचे में आते थे; लेकिन सुबह होते-होते पूरा इलाक़ा सुनसान नज़र आने लगता था। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने मथुरा क्षेत्र के संभवत: सबसे बड़े तेल चोरी के रैकेट का पर्दाफाश कर मुकेश ठाकुर और उसके भतीजे सुभाष के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है। आरटीआई के जवाब के मुताबिक, यह मामला अभी भी चल रहा है। लेकिन कई आरटीआई के बावजूद मथुरा पुलिस और रिफाइनरी ने अभी तक माफ़िया द्वारा चुराये गये तेल की मात्रा का ख़ुलासा नहीं किया है। उन्होंने तर्क दिया कि वे इस जानकारी को साझा नहीं कर सकते, क्योंकि मामला अदालत में लंबित है।
मथुरा के मगोर्रा थाने, जिसमें उपरोक्त मामला दर्ज किया गया था; ने एक आरटीआई में ख़ुलासा किया कि 12 अप्रैल, 2013 के मामले के बाद उनके थाने में जनवरी, 1990 से दिसंबर, 2020 के बीच तेल चोरी का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था। लेकिन इसके विपरीत इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की पानीपत रिफाइनरी के 6 जुलाई, 2021 के एक आरटीआई जवाब में कहा गया है कि 12 अप्रैल, 2013 से पहले 12 दिसंबर, 2011 को मगोर्रा थाने में तेल चोरी का एक और मामला दर्ज हुआ था।
मगोर्रा थाना 2011 की तेल चोरी का मामला क्यों छिपा रहा है? बेहतर जवाब तो मथुरा पुलिस ही दे सकती है। 12 अप्रैल, 2013 से पहले रिफाइनरी थाने के तहत 16 मार्च, 2013 को मथुरा में एक और तेल चोरी की सूचना मिली थी। अप्रैल, मई और जून 2015 में वृंदावन थाने में तीन और तेल चोरी के मामले दर्ज हुए थे। ये सभी तेल चोरी के मामले बताते हैं कि क्षेत्र में तेल माफ़िया कितना सक्रिय है।
सूत्रों के मुताबिक, भारत में तेल चोरी के दो सबसे बड़े मामले उत्तर प्रदेश के मथुरा क्षेत्र से सामने आये हैं। पहला मामला जो 2013 में सामने आया था, उसमें आरोपी मुकेश ठाकुर था। सन् 2017 में दूसरे मामले में चोरी के पीछे आगरा के मनोज गोयल का हाथ होने का आरोप लगाया गया था। कहा जाता है कि यह तेल की लूट 100 करोड़ रुपये से अधिक की थी। गोयल ने कथित तौर पर कई प्रशासनिक अधिकारियों के साथ घनिष्ठ सम्बन्धों का लाभ उठाया। उनका नेटवर्क दर्ज़नों भारतीय शहरों में फैला हुआ था, जहाँ उन्होंने कथित तौर पर चोरी के तेल की आपूर्ति की। अधिकारियों के साथ उनकी साँठगाँठ ने उन्हें नाटकीय रूप से धोखाधड़ी का पता चलने से पहले लगभग दो साल तक मथुरा रिफाइनरी के आसपास बिछायी गयी पाइपलाइनों से तेल चोरी किया।
मथुरा रिफाइनरी के अधिकारियों को ख़बर मिली कि आगरा और दिल्ली-एनसीआर के कुछ पेट्रोल पम्प सामान्य दरों से एक या दो रुपये कम क़ीमत पर तेल बेच रहे हैं। रिफाइनरी के अधिकारियों द्वारा की गयी जाँच ने इस रिपोर्ट की पुष्टि की और उत्तर प्रदेश पुलिस से शिकायत के बाद मामला उत्तर प्रदेश विशेष कार्य बल (यूपीएसटीएफ) को सौंप दिया गया। एसटीएफ ने आगरा और दिल्ली-एनसीआर में अपनी जाँच के दौरान पाया कि मनोज गोयल आगरा और दिल्ली-एनसीआर के पेट्रोल पम्पों पर सस्ती दरों पर तेल की आपूर्ति कर रहा था। इसके बाद एसटीएफ ने पेट्रोल पम्पों पर तेल की आपूर्ति करने वाले तेल टैंकरों के संचालकों को दबोच लिया। तेल टैंकरों के मालिकों ने एसटीएफ को बताया कि वे रिफाइनरी से नहीं, बल्कि मथुरा की एक कॉलोनी से तेल लाकर पम्पों पर सप्लाई कर रहे थे। इस ख़ुलासे से एसटीएफ मथुरा की आरके पुरम कॉलोनी में पहुँची।
मथुरा के आरके पुरम कॉलोनी स्थित एक बंगले में एसटीएफ ने छापेमारी के बाद उस बंगले के नीचे 100 मीटर लम्बी और 10 फीट गहरी सुरंग बरामद की। यह इलाक़ा मथुरा रिफाइनरी के क़रीब था। एसटीएफ के मुताबिक, तीन महीने में सुरंग खोदी गयी थी। सुरंग में वहाँ काम कर रहे मज़दूरों को ऑक्सीजन देने के लिए एक ऑक्सीजन पाइप मिला था। सुरंग में रोशनी के लिए एक बल्ब भी मिला है। सुरंग में एसटीएफ को पंजाब के जालंधर जा रही मथुरा ऑयल रिफाइनरी की पाइप लाइन मिली। इसी पाइप लाइन के ज़रिये मनोज गोयल और उसका साथी वर्षों से चोरी कर रहे थे। मनोज गोयल पर गैंगस्टर एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था और वर्तमान में वह जेल में बन्द है। मनोज गोयल के ख़िलाफ़ मथुरा रिफाइनरी ने दर्ज कराया 3.79 लाख लीटर तेल चोरी का केस 2021 में, मनोज गोयल और सहयोगी को सीबीआई की विशेष अदालत ने धोखाधड़ी और आपराधिक साज़िश के एक अन्य मामले में दोषी ठहराया था।
बाज़ार में पेट्रोल और डीजल तो बिक गया; लेकिन चोरी करने वाले एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) कहाँ बेचे? सूत्रों के मुताबिक, जिस पाइप लाइन से मनोज गोयल ने तेल चुराया था, वह मथुरा से जालंधर तेल सप्लाई कर रहा था। इसी पाइप लाइन से एटीएफ की आपूर्ति भी हो रही थी। एटीएफ या तो एयरलाइंस, वायुसेना या फ्लाइंग क्लबों द्वारा इस्तेमाल किया गया था। अब बड़ा सवाल यह है कि मनोज गोयल ने एटीएफ किसे बेचा? सन् 2020 में दिल्ली पुलिस ने 100 लीटर एटीएफ और कुछ नक़दी के साथ कई लोगों को गिरफ़्तार किया था। पंजाब में भी इसी तरह की गिरफ़्तारियाँ की गयीं। लेकिन सवाल यह है कि इन लोगों ने एटीएफ किसे बेचा?
सूत्रों का कहना है कि एक तेल कम्पनी का निलंबित अधिकारी तेल माफ़िया को पाइपलाइन से तेल चोरी करने में मदद कर रहा है। कहा जाता है कि तेल पाइपलाइन में वाल्व डालकर पंचर करना विशेषज्ञ का काम होता है, जो एक प्रशिक्षित व्यक्ति ही कर सकता है। सूत्रों का कहना है कि इस निलंबित अधिकारी की मदद 4-5 लोग कर रहे हैं। पता चला है कि इसी निलंबित अधिकारी ने मथुरा रिफाइनरी की टनल से तेल चोरी करने वाली पाइप लाइन में वाल्व लगाने में मनोज गोयल की मदद की थी। कई आरटीआई के जवाब बताते हैं कि देश में अब तक बड़ी संख्या में तेल चोरी के मामले सामने आ चुके हैं।
आईओसी के जवाब के मुताबिक, 2009 से 2021 तक विभिन्न अदालतों में तेल चोरी के 22 मामले चल रहे थे। एक अन्य आरटीआई के जवाब में आईओसी ने जवाब दिया कि 2015-16 के बीच 58 मामले ऐसे थे, जिनमें तेल चोरी के लिए उनकी तेल पाइपलाइनों पर हमला किया गया था। साल 2016-17 में 10, 2017-18 में चार, 2018-19 में 38, 2019-20 में 38, 2020-21 में 27 और 2021-22 में तेल की 23 चोरी के मामले दर्ज किये गये।
ओएनजीसी को भी कई आरटीआई दायर की गयीं- 21 सितंबर 2021 को, 11 फरवरी 2022 को, 01 अप्रैल 2022 को और 23 नवंबर 2022 को। इन सभी आरटीआई में ओएनजीसी ने तेल चोरी पर कोई जानकारी नहीं दी है। 21 सितंबर, 2021 की आरटीआई के जवाब में ओएनजीसी ने इस आधार पर जानकारी देने से इनकार कर दिया कि आवेदक की जानकारी माँगने की शैली खोजी है। 11 फरवरी, 2022 को ओएनजीसी ने इसी आधार पर आवेदन $खारिज कर दिया। पहली अप्रैल 2022 को दायर आरटीआई आवेदन का जवाब देते हुए, ओएनजीसी ने कहा कि वे इस तरह के प्रश्न का उत्तर देने के लिए आरटीआई अधिनियम द्वारा बाध्य नहीं हैं। उन्होंने 23 नवंबर 2022 के आरटीआई आवेदन के मामले में भी यही जवाब दोहराया।
जब ओएनजीसी के जवाब को लेकर पहली अपील दायर की गयी, तो तत्कालीन अपीलीय अधिकारी ने 23 दिसंबर, 2022 को ओएनजीसी को 20 दिन के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया। इसके बावजूद ओएनजीसी ने यह रिपोर्ट दाख़िल किये जाने तक आवेदक को कोई जानकारी नहीं दी है।
6 सितंबर 2021 को भी एक अपील के जवाब में अपीलीय अधिकारी ने ओएनजीसी को सात दिन के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया था। लेकिन निगम ने मानने से इनकार कर दिया और कोई जानकारी नहीं दी। इस मामले में अपीलीय अधिकारी की कार्रवाई भी सुसंगत नहीं रही है। कई बार उन्होंने ओएनजीसी को सूचना देने का निर्देश दिया। कभी-कभी उन्होंने आवेदक को दूसरी अपील में जाने का निर्देश दिया, यदि वह उत्तर के साथ ठीक नहीं है।
एक आरटीआई के जवाब में आईओसी ने सन् 2015 से सन् 2018 के बीच तेल चोरी की घटनाओं की जानकारी दी है। सन् 2015 की तरह तेल चोरी के 25 मामले सामने आये। लेकिन आईओसी ने सिर्फ़ नौ मामलों में चोरी हुए तेल की मात्रा का ख़ुलासा किया। इसी तरह सन् 2016 में तेल चोरी के चार मामलों में से सिर्फ़ दो मामलों में ही कितना तेल चोरी हुआ, इसकी जानकारी दी गयी। सन् 2017 में तेल चोरी के नौ मामलों में से सिर्फ़ तीन में चोरी हुए तेल की मात्रा की जानकारी दी गयी थी। इसी तरह सन् 2018 में तेल चोरी के सात मामलों में से केवल दो में चोरी हुए तेल की मात्रा का पता चला। यह पूछे जाने पर कि इन तेल माफ़ियाओं को इन तेल पाइपलाइनों के बारे में कैसे पता चला? आर.के. चतुर्वेदी ने कहा कि ये माफ़िया गिरोह इलाक़े की रेकी करते हैं। वे क्षेत्र के लोगों और तेल कम्पनियों और रिफाइनरियों और पुलिस के निचले स्तर के अधिकारियों से जानकारी प्राप्त करते हैं।
अगर उन्हें सूचना मिलती है कि किसी कृषि भूमि के नीचे से तेल की पाइपलाइन गुज़र रही है। वे उस खेत की ज़मीन के मालिक के पास जाते हैं और उस ज़मीन को खेती के लिए किराये पर ले लेते हैं। चतुर्वेदी आगे कहते हैं कि उसके बाद वे भूमि के एक छोटे से हिस्से पर एक अस्थायी संरचना विकसित करते हैं, ताकि पता लगने से बचा जा सके। और उस ढाँचे से वे तेल पाइपलाइन तक पहुँचने के लिए ज़मीन खोदते हैं। इसके बाद वे पाइप लाइन में वाल्व लगाते हैं, उसमें छेद कर देते हैं और तेल चुरा लेते हैं। भारत में सबसे बड़ा तेल पाइपलाइन नेटवर्क इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन का है। इसलिए ‘तहलका’ ने तेल चोरी पर रिपोर्ट के लिए उनका पक्ष लेने का फ़ैसला किया। हमने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के पाइपलाइन डिवीजन के वरिष्ठ रखरखाव प्रबंधक श्रेयस वर्मा से सम्पर्क किया। पहले तो उन्होंने तेल चोरी के बारे में हमारे सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया; लेकिन बाद में वह हमारे प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तैयार हो गये। उन्हें ईमेल किया गया। लेकिन जब हमें सवाल ईमेल करने के दो दिन बाद भी जवाब नहीं मिला, तो हमने फिर से उनसे फोन पर सम्पर्क किया। उन्होंने कहा कि हमारे ईमेल को वरिष्ठ अधिकारियों को जवाब के लिए भेजा गया था। लेकिन ख़बर लिखे जाने तक ‘तहलका’ को इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के अधिकारियों की ओर से हमारे ईमेल का कोई जवाब नहीं मिला।
तेल माफ़ियाओं का ख़त्मा क्यों नहीं हो पा रहा है? आख़िर कब तक आम नागरिकों को सिस्टम की सफ़ाई के लिए इंतज़ार करना पड़ेगा? मिलावट रहित ईंधन आपका अधिकार है। हमें यह संदेश देना होगा कि इतने ईमानदार अधिकारियों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं गयी। अपनी कारों और बाइकों से बाहर निकलो, और माँग करो कि तुम्हें शिकायत पुस्तिकाएँ दी जाएँ; और उनमें लिखो कि तुम क्या सोचते हो और महसूस करते हो? आज ही। आज के युग में जब पिज्जा डिलीवरी कम्पनियाँ भी कई तरह के तरीक़ों से अपने डिलीवरी स्टाफ को ट्रैक कर सकती हैं और करती हैं। तो तेल कम्पनियाँ और प्रभारी मंत्रालय हमें यह आश्वासन क्यों नहीं दे सकते कि तेल की चोरी या तेल में मिलावट नहीं होगी। समय एकजुट होकर खड़े होने और इसकी माँग करने का है।