बरसों बाद इन दिनों एक बार फिर फील गुड का माहौल है, देश-विदेश में फिर इंडिया शाइन कर रहा है. चमकदार लिबास है, चमकदार नेता हैं और चमकदार बातें हैं. जनता ने जितना चाहा था उससे ज्यादा मिल रहा है, पॉलीटिकल लीडर के साथ मोटिवेशनल और स्प्रिचुअल लीडर भी मिल गया है. इस फील गुड से भला मीडिया कैसे अलग रह सकता है. प्रधानमंत्रीजी देश के बाहर थे लेकिन सक्षम संचार के इस युग में एक ऐतिहासिक चिट्ठी उन तक पहुंच गई. देश के एक बड़े अखबार के मालिक ने इस चिट्ठी के जरिए सकारात्मकता के नए आंदोलन की जानकारी प्रधानमंत्री तक पहुंचाई थी. प्रधानमंत्रीजी ने इस जानकारी को विदेश से देश के ही नहीं दुनिया के लोगों तक पहुंचाया. दुनिया को पता चला कि इस वक्त भारत में ही नहीं बल्कि भारत के मीडिया में सकारात्मकता की बयार बह रही है. इस समाचार पत्र में एक पूरा दिन ही पॉजीटिव खबरों के नाम कर दिया गया है. ये बात और है कि देश में असमय बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसान त्राहिमाम कर रहे हैं. दिल्ली में मासूमों के साथ बलात्कार का सिलसिला रुक नहीं रहा है. सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी है, नई और वैकल्पिक राजनीति की बात करनेवालों में भी कीचड़ में गिरने की होड़ मची है. और तो और दिल्ली के लुटियंस इलाके में संसद से महज दो किलोमीटर की दूरी पर हजारों की भीड़ और क्रांतिकारी नेताओं, मंत्रियों, मुख्यमंत्री की आंखों के सामने एक आदमी फांसी लगाकर खुुद को खत्म कर लेता है. बकौल मोदी जी और अग्रवाल साहब, मिट्टी डालिए इस मातमपुर्सी पर. माहौल को खुशनुमा बनाइए, अच्छे दिनों की अच्छी बातें लोगों तक पहुंचाइए. पॉजीटिव खबर चलाइए, निगेटिविटी को देश से दूर भगाइये.
करीब पंद्रह साल की पत्रकारिता और अब पत्रकारिता शिक्षण में समाचार की जितनी परिभाषाएं हमने समझी या सुनी है उनमें से पॉजीटिव और निगेटिव वाला ये गूढ़ ज्ञान हमसे न जाने कैसे छूट गया. अब तक तो यही मान कर चल रहे थे कि खबर सिर्फ खबर होती है उसे पॉजीटिव या निगेटिव कैसे कहा जा सकता है. किसी भी समाचार में सबसे प्रमुख तत्व सूचना का होता है और सूचना को निगेटिव मानकर उसे जनता तक पहुंचाने से कैसे रोका जा सकता है. जिसको नकारात्मक कहकर रोकने की वकालत की जा रही है वह नकारात्मकता की सूचना है जिसके सबके सामने आने से ही जो कुछ निगेटिव है उसको खत्म करने की कवायद और बहस समाज में शुरू होती है. पत्रकारिता के मौजूदा परिदृश्य में निश्चित रूप से कई बुराइयां हैं जिनको ठीक करना, उन पर नए सिरे से विचार करना जरूरी है लेकिन खबरों के पॉजिटिव-निगेटिव वर्गीकरण की कतई जरूरत नहीं है. मीडिया एक आईना है. उसमें नजर आनेवाले सच को किसी भी प्रकार का प्रमाण पत्र देने का काम मीडिया का नहीं है.
पत्रकारिता में एक नए प्रयोग के तौर पर राजनीति, समाज और सत्ता के सकारात्मक पहलुओं को सामने लाने को नाजायज नहीं ठहराया जा सकता. शायद विकासात्मक पत्रकारिता की अवधारणा भी यही कहती है किंतु समूची पत्रकारिता को दिशा दिखाने के नाम पर समाचार को नकारात्मक या सकारात्मक ठहराए जाने का विचार बेहद अपरिपक्व है. प्रधानमंत्री जी कथित सकारात्मक खबरों को प्रोत्साहित करने के स्थान पर मीडिया संस्थानों को सच को सच की तरह पेश करने की आजादी का भरोसा देते तो शायद अधिक फलदायी होता.