अंजलि भाटिया
नई दिल्ली : मुंबई की जीवनरेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेनों में सफर अब पहले से ज्यादा सुरक्षित होने जा रहा है। हाल ही में लोकल ट्रेन से गिरने की घटनाओं में चार यात्रियों की मौत के बाद रेलवे ने बड़ा फैसला लिया है। नॉन-एसी लोकल ट्रेनों को अब नई तकनीक और डिजाइन के साथ तैयार किया जाएगा। पहली ट्रेन जनवरी 2026 में मुंबई की पटरियों पर दौड़ने लगेगी।
रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुंबई उपनगरीय रेल सेवा पर अत्याधिक दबाव के चलते हर रोज एक दर्जन से अधिक यात्रियों की मौत हो जाती है। इसके समाधान के लिए पूर्व में नॉन एसी ट्रेनों में ऑटोमैटिक दरवाजे लगाने का प्रावधान किया गया था। लेकिन इसका ट्रॉयल सफल नहीं रहा। रेल यात्रियों में वेंटिलेशन की कमी और घुटन होने की शिकायत की। कई यात्री बेहोशी होने की स्थिति में पहुंच गए। मुंबई की घटना के बाद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) चैन्नई के इंजीनियरों व शीर्ष अधिकारियों से बैठकर इसका समधान ढूढ निकाल है।
अधिकारी ने बताया कि उपनगरीय रेल सेवा के लिए अब नई तकनीक की नॉन एसी ट्रेनें बनाई जाएंगी। उनमें वेंटिलेशन की इस समस्या को तीन बड़े डिज़ाइन बदलावों से हल किया जाएगा। पहला दरवाज़ों में लूवर (छिद्रयुक्त झरोखे) लगाए जाएंगे ताकि हवा आसानी से आर-पार होगी। दूसरा कोच की छत पर वेंटिलेशन यूनिट्स लगाई जाएंगी जो कोच में ताज़ी हवा पहुंचाएंगी।
तीसरा कोचों के बीच वेस्टिब्यूल होंगे जिससे यात्री एक डिब्बे से दूसरे में जा सकें और भीड़ अपने आप संतुलित हो सके। इससे रेल यात्री कोच के पायदान पर लटकर सफर नहीं करेंगे। अधिकारी का दावा है कि पहली नई डिजाइन की कोच जनवरी 2026 में पटरी पर दौड़ने लगेगी। इसके सफल ट्रॉयल के पश्चात नई डिजाइन लोकल ट्रेनों का उत्पादन शुरू हो जाएगा। इसके अलावा मुंबई में वर्तमान मे दौड़ रही नॉन एसी 3202 लोकल ट्रेनों में नई डिजाइन में परिवर्तित करने की योजना है।
रेलवे विशेषज्ञों का कहना है नॉन-एसी लोकल ट्रेनों में ऑटोमैटिक दरवाजे लगाने से ट्रेनों की गति पर असर पड़ेगा। वर्तमान में लोकल ट्रेनें स्टेशन पर सिर्फ 15–20 सेकंड रुकती हैं, इतने में यात्री चढ़-उतर जाते हैं। लेकिन ऑटोमैटिक दरवाजों को बंद होने में 50–60 सेकंड तक लगते हैं। अगर किसी एक कोच का दरवाजा नहीं बंद हुआ, तो पूरी ट्रेन नहीं चल पाएगी।सभी स्टेशनों पर इतना समय लगाने पर पीछे की ट्रेनें प्रभावित होंगी और पूरा संचालन धीमा पड़ सकता है। साथ ही, ऑटोमैटिक दरवाजों के कारण एक कोच में यात्री क्षमता भी कम हो जाएगी।