युद्ध की तबाही से मासूमों को बचाने की ज़रूरत

इजरायल-गाज़ा के बीच युद्ध चलते दो वर्ष से अधिक हो गये हैं और इसी 19 अप्रैल को इजरायल के प्रधानमंत्री बेजामिन नेतन्याहू ने कहा कि उसके पास गाज़ा में लड़ाई जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इजरायल हमास को ख़त्म करने, बंधकों को आज़ाद कराने और यह सुनिश्चित करने से पहने युद्ध समाप्त नहीं करेगा। इधर रूस-यूक्रेन युद्ध तीन साल के बाद भी जारी है। यह युद्ध क्यों जारी है? ज़ाहिर है इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के अपने-अपने हित हैं; लेकिन युद्धग्रस्त व संघर्ष ग्रस्त इलाक़ों में बेक़ुसूर बच्चों को किस तरह निशाना बनाया जाता है, जिससे बच्चे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। 2022 तक दुनिया भर में 486 मिलियन बच्चों के सक्रिय संघर्ष क्षेत्रों में रहने का अनुमान है।

बाल अधिकारों पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ के अनुसार, 2022 में रूस के साथ पूर्ण पैमाने पर हमले के बाद हमले के पहले महीने के भीतर यूक्रेन के आधे से अधिक बच्चे विस्थापित हो गये, जबकि 500 से अधिक बच्चे मारे गये और 1,100 से अधिक घायल हुए। रूस-यूक्रेन व इजरायल-गाज़ा के बीच जारी युद्ध की तस्वीरों में अक्सर बच्चों के मरने-घायल होने वाली तस्वीरों से हमारा सामना होता रहता है। इसी 17 अप्रैल को इजरायल-गाज़ा जंग में दोनों हाथ गँवाने वाले नौ साल के बच्चे की तस्वीर ‘वर्ल्ड प्रेस फोटो ऑफ द ईयर’ चुनी गयी है। यह तस्वीर नौ वर्षीय फिलिस्तीनी बच्चे महमूद अज्जीर की है, जो युद्ध में अपने दोनों हाथ खो चुका है।

बच्चा जब अपनी माँ से मिला, तो उसका सबसे पहला सवाल था कि ‘अब मैं अपनी माँ को गले कैसे लगाऊँगा?’ बेक़ुसूर, मासूम बच्चे, जिनका राजनीति से कोई रिश्ता नहीं; जिनकी वोट के ज़रिये किसी ख़ास राजनीतिक दल को सत्ता सौंपने में हिस्सेदारी नहीं होती, उन्हें हमलों के सबसे बुरे नतीजे भुगतने पड़ते हैं। इजरायल में हमास द्वारा बंधक बनाये गये 253 लोगों में से 40 और मारे गये लोगों में लगभग 30 बच्चे थे। गाज़ा में इजरायल की नाकेबंदी को 50 से अधिक दिन हो गये हैं और वहाँ मौज़ूदा हालात ये हैं कि दवाइयों की कमी के चलते गाज़ा में क्लीनिक सुबह 10:00 बजे ही बंद करने पड़ रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वहाँ खाद्य वस्तुएँ 1,400 प्रतिशत महँगी हो गयी हैं और अधिकांश बच्चे दिन में एक बार भी भोजन नहीं कर पा रहे हैं। 95 प्रतिशत सहायता एजेंसियाँ काम बंद कर चुकी हैं। यूनिसेफ के प्रवक्ता जेम्स एल्डर का मानना है कि बच्चों के लिए दुनिया की सबसे ख़तरनाक जगह गाज़ा पट्टी है। यूनिसेफ का अनुमान है कि वहाँ 8,50,000 बच्चे उजड़ गये हैं और अपना घर खो चुके हैं।

ग़ौरतलब है कि गाज़ा की 23 लाख की आबादी में आधे बच्चे हैं, जिनका जीवन इस युद्ध में तबाह हो गया है। चालू हमलों में एकदम सही आँकड़े उपलब्ध नहीं होते; लेकिन वहाँ काम करने वाली स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ आँकड़ों को दुनिया के सामने लाने के लिए प्रयासरत रहती हैं, ताकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रमुख और संवेदनशील व मानावाधिकारों और बाल अधिकारों के उल्लघंन का मुद्दा प्रमुखता से उठाया जा सके। एक ग़ैर-लाभकारी संस्था यूरो मेडिटेनेनिया ह्ममून राइट्स मॉनिटर की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 24,000 से अधिक बच्चों ने अपने माता-पिता में से एक या दोनों को खो दिया है। बच्चे युद्ध नहीं, शान्ति चाहते हैं। लेकिन भू-राजनीतिक हितों के संरक्षण के नाम पर जब युद्ध लड़े जाते हैं, तो राजनीतिक प्रभुत्व के प्रदर्शन हेतु सरहद के पार हमले किये जाते हैं। इससे बच्चों पर क्या बीतती है? इसकी परवाह किसी को नहीं होती। कहने को तो सन् 1999 में बच्चों व सशस्त्र संघर्ष पर पहले प्रस्ताव में छ: गंभीर उल्लंघनों की पहचान की गयी थी, जो युद्ध के समय बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। जैसे-बच्चों की हत्या और उन्हें अपंग बनाना, स्कूलों या अस्पतालों पर हमले, बच्चों की अपहरण, बच्चों के बलात्कार या अन्य गंभीर यौन हिंसा, सशस्त्र बलों या सशस्त्र समूहों में बच्चों की भर्ती या इस्तेमाल। लेकिन अंतरराष्ट्रीय क़ानून की किसे परवाह है? यही नहीं, बच्चों के इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत वसीली नेबेंजिया ने इस जनवरी में कहा कि यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल, जो ख़ुद एक अमेरिकी है; ने दिसंबर में यूक्रेन में बच्चों के बारे में 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद् को जानकारी दी थी। इस परिषद् की अध्यक्षता अमेरिका कर रहा था। लेकिन जनवरी में रूस द्वारा बुलायी गयी बैठक में यूनिसेफ की तरफ़ से गाज़ा में बच्चों के मुद्दे पर कोई ठोस जानकारी नहीं दी गयी। नेबेंजिया ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यूनिसेफ के लिए गाज़ा के बच्चे यूक्रेन के बच्चों से कम महत्त्वपूर्ण हैं। हालाँकि यूनिसेफ का कहना है कि उनकी कार्यकारी निदेशक रसेल उस समय विश्व आर्थिक मंच की बैठक में भाग लेने के लिए दावोस में थीं और उन्होंने गाज़ा में बच्चों की स्थिति के बारे में कई बार सुरक्षा परिषद् को जानकारी दी है। आज युद्ध की तबाही से इन मासूमों को बचाने की ज़रूरत है। लेकिन इस मुद्दे पर अलग ही राजनीति हो रही है।