सुमित दयाल
स्वतंत्र फोटो पत्रकार
साल 2011 की बात है. मैं वृंदावन में होली की तस्वीरें उतारने के लिए जा रहा था. तभी टाईम मैग्जीन के फोटो संपादक पैट्रीक विट्टी का फोन आया. विट्टी ने बताया कि टाईम ने नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू किया है. यह इंटरव्यू दो महीने पहले ही हो गया था. यह इंटरव्यू कवर स्टोरी के रूप में छपना था सो उन्हें इसके लिए अच्छी तस्वीरें चाहिए थीं. फोटो शूट के लिए टाइम ने समय ले लिया था. उन्होंने मुझसे कहा कि आप जहां कहीं भी हो वापिस आकर, गांधीनगर निकलने की तैयारी करो. मैंने ऐसा ही किया. वृंदावन जाने की बात पीछे छूट गई और मैं गांधीनगर जाने की तैयारी करने लगा.
नरेंद्र मोदी का फोटो शूट था इसलिए उसी हिसाब से मैंने अपना कैमरा बैग तैयार किया. मोदी जी के बारे में मैं पहले से जानता तो था लेकिन फिर भी मैंने उनके बारे में, उनकी आदतों के बारे में इंटरनेट पर थोड़ी रिसर्च की. मैंने मोदी जी की कुछ तस्वीरें भी देखीं. हर शूट से पहले मैं उस व्यक्ति के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाना चाहता हूं जिसकी तस्वीरें मुझे उतारनी होती हैं.
इससे पहले मैंने सचिन तेंदुलकर को टाइम के लिए ही शूट किया था. उन्होंने मुश्किल से पांच मिनट का समय दिया था. लेकिन मैंने इसकी तैयारी दो हफ्ते तक की थी. शूट से पहले मैं खूब पढ़ता हूं. लेकिन मोदी जी वाले शूट के लिए ज्यादा समय नहीं था. जितना समय था उस हिसाब से मैंने जानकारी जुटाई.
अगले दिन मैं और मेरे साथी फोटोग्राफर दीप, दिल्ली से गांधीनगर के लिए निकल गए. जहां तक मुझे याद है. होली से एक दिन पहले की बात है. छुट्टी का माहौल था. हम सुबह-सुबह करीब साढ़े नौ बजे मुख्यमंत्री आवास पर पहुंच गए. सुरक्षा जांच के बाद हमें अंदर बिठाया गया. मैं बैठे-बैठे सोच रहा था कि पता नहीं कितना समय मिलेगा. अगर कम समय मिला तो हम कैसे जल्दी-जल्दी में बेहतर शूट कर पाएंगे? मोदी जी कितना सहयोग करेंगे और कितनी रूचि लेंगे इसे लेकर भी मेरे मन में सवाल घूम रहे थे. तभी सामने से नरेंद्र मोदी आए, उन्हें देखकर ही मुझे एक मिनट में समझ आ गया कि वे फोटो शूट के लिए ही आए हैं. वे चमक रहे थे. पूरी तरह से तैयार थे.
आते ही उन्हाेंने मुझे मेरे नाम से संबोधित किया. पूछने लगे कि कैसे आए हो? कहां ठहरे हो? फोटोग्राफी कब से कर रहे हो? पूरी बातचीत के दौरान वे बेहद सहज थे जिसकी वजह से मैं भी अपने सब्जेक्ट के साथ पूरी तरह से सहज हो गया था. इसी बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि पहले हम नाश्ता करेंगे फिर आप लोग अपना काम शुरू कीजिएगा. नाश्ते की टेबल पर भी हमारे बीच काफी बातचीत हुई. टाईम मैग्जीन के बारे में. फोटोग्राफी के बारे में. लेकिन ज्यादातर बातें राजनीतिक नहीं थीं. मुझे भी राजनीतिक बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी. नाश्ता खत्म करते-करते उन्होंने मुझसे पूछा, ‘तो सुमित क्या-क्या प्लान है? मैंने उन्हें बताया कि हम कुछ पोट्रेट्स क्लिक करेंगे. फिर कुछ ऐसी तस्वीरें क्लिक करेंगे जो उनके व्यक्तित्व के साथ न्याय कर सकें.’
इसी दौरान मैंने उनसे पूछा, ‘सर, आपके पास समय कितना होगा? इसके जवाब में वे हौले से मुस्कुराए और कहा- पूरा दिन है, आपलोगों के पास. जो-जो करना चाहो करो. जैसे-जैसे कहोगे मैं वैसे-वैसे करूंगा. इस जवाब की मुझे रत्ती भर भी उम्मीद नहीं थी. मुझे लगा था कि दस-बीस मिनट से ज्यादा तो मिलेगा ही नहीं. लेकिन यहां तो मोदी जी ने हमें अपना पूरा दिन दे दिया था.
बतौर फोटोग्राफर मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई थी. मेरे ऊपर कुछ अच्छी तस्वीरें निकालने का दबाव आ गया था. जब आपको नरेंद्र मोदी जैसा व्यक्ति पूरा दिन दे देगा तो ऐसा दबाव तो बनेगा ही. खैर, थोड़ी-सी तैयारी के बाद हम मोदी जी के पोट्रेट्स क्लिक करने के लिए तैयार थे. वे हमारे सामने कुर्सी पर बैठे थे. अमूमन ऐसा होता है कि आपको सब्जेक्ट को हर शॉट के बाद बताना होता है – अब थोड़ा गंभीर पोज दीजिए. अब कुछ ऐसा पोज हो जाए जिसमें चेहरे पर मुस्कुराहट हो. खिलखिलाकर हंसते हुए भी कुछ तस्वीरें क्लिक हो जाएं. कहने का मतलब कि बतौर फोटोग्राफर को अपने सब्जेक्ट को समझाना पड़ता है. लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं करना पड़ा. मोदी कुर्सी पर बैठे. हमने उनसे कहा कि हम अभी पोट्रेट्स क्लिक करेंगे. बस. इसके अलावा मुझे उनसे कुछ कहना नहीं पड़ा. अगले पंद्रह मिनट वे हमारे सामने पोज देते रहे और मैं केवल शटर रिलीज करता रहा. यह मेरे लिए अनोखा अनुभव था. लगातार पंद्रह मिनट तक पोज करते रहना बड़ी बात होती है. मैंने अभी तक के करियर में किसी को भी इतनी सहजता से पोट्रेट्स करवाते नहीं देखा था.
इसके बाद हमने थोड़े समय के लिए ब्रेक लिया. मोदी जी अंदर कमरे में चले गए. मैं अब कुछ ‘एन्वायर्मेंटल पोट्रेट्स’ क्लिक करना चाह रहा था और इसके लिए सही जगह की तलाश में था. घर के बाहर बड़ा सा अहाता था. इसके बीच में एक छोटा-सा पेड़ था. मोर घूम रहे थे. मेरे दिमाग में आया कि मोदी जी को अहाते में एक जगह बिठा देंगे और उनके आसपास मोर घूमते रहेंगे. लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि मोर को एक जगह रोकना बहुत मुश्किल था. जब हम मोर पकड़ने की कोशिश में लगे हुए थे तभी मोदी जी भी वहां आ गए. हमने उन्हें बताया कि हम क्या करनेवाले हैं. उन्होंने अपनी सहमति दे दी. हमने कोशिश की लेकिन असफल रहे. अहाते में सुंदर-सुंदर हंस भी थे. आखिर में हमने उस फ्रेम में हंसों को शामिल कर लिया.
इसके बाद हम उनके दफ्तर में आए. हमने उनसे पूछा कि आप खाली समय में क्या करते हैं तो उन्होंने कह कि वे किताबें बहुत पढ़ते हैं. हमने फटाफट कमरे की सारी लाईट्स बंद करवाईं. खिड़की से रौशनी आ रही थी. हमने मोदी जी को खिड़की के सामने ही खड़ा करावाया और उनसे कहा कि वे अपने हाथ में ली हुई किताब को पढ़ें. कुछेक शॉट्स क्लिक करने के बाद हम रुक गए. हमें लगा कि काम लायक तस्वीरें मिल गईं हैं. लेकिन तभी हमने देखा कि वे सूफियाना अंदाज में खिड़की पर लगे झिल्लीदार पर्दे को छेड़ रहे हैं. हमने फटाफट कुछ और फ्रेम्स क्लिक किए. बाद में यही फ्रेम्स टाईम मैग्जीन में छपे.
पूरा शूट खत्म करते-करते आधा दिन निकल गया था. आधे दिन तक मोदी जी भी हमारे साथ लगे रहे. एक बार भी उन्होंने ऐसा कोई सिगनल नहीं दिया जिससे यह समझा जाए कि वे थक या बोर हो गए हैं. नौ बजे सुबह से लेकर दिन के दो-ढ़ाई बजे तक हमने शूट किया. काम खत्म करने के बाद हम अपने सामान की पैकिंग कर निकलने की तैयारी कर रहे थे तभी मोदी जी दोबारा आए और कहने लगे कि हम खाना यहीं खाकर जाएं. हमारे मना करने के बाद उन्होंने हमसे कहा कि गुजरात आए हो तो गुजराती खाना खाए बिना जाना मत. उन्होंने अपने सचिव से एक होटल में फोन भी करवाया. काम खत्म होने के बाद भी वे हमसे जुड़े रहे. ऐसा व्यवहार और इतना समय कोई और नहीं देता. मेरे लिए यह शूट खास था.
हालांकि यह अलग बात है कि जब इस चुनाव प्रचार के दौरान मैंने नरेंद्र मोदी के साथ यात्रा करनी चाही तो उन्होंने उस बारे में कोई जवाब नहीं दिया. हालांकि उस एक ही फोटोशूट से मुझे उनके बारे में इतना समझ आ गया कि मोदी देश के उन विरले नेताओं में से हैं जो तस्वीरों की और तस्वीर उतारने वालों की अहमियत को बहुत अच्छे से समझते हैं.
रमेश धड़के
फोटोग्राफर, राज्य सूचना विभाग, गुजरात
मैं गुजरात के सूचना विभाग में फोटोग्राफर हूं सो साहब के हर कार्यक्रम में रहा हूं. 2007 से उनके साथ हूं. यह तस्वीर 2012 या 2013 की है. साबरमती के सामने की तस्वीर है. नदी पर ‘रिवर फ्रंट’ का काम चल रहा था और साहब निर्माण कार्य का जायजा लेने आए थे. जब मैंने उन्हें इस लिबास में देखा तो देखता ही रह गया. मैंने बहुत-सी तस्वीरें निकालीं. उस दिन से पहले मैंने उन्हें कभी इस तरह के कपड़ों में नहीं देखा था. वैसे मोदी जी अपने पहनावे-ओढ़ावे को लेकर काफी जागरूक रहते हैं. लेकिन उस दिन वे पूरे के पूरे बदले हुए थे. एक फोटोग्राफर को इससे ज्यादा क्या चाहिए कि उसे जिस सब्जेक्ट की तस्वीर खींचनी है वह थोड़ा हटकर लग रहा है.
विवेक देसाई
स्वतंत्र फोटोग्राफर हैं. गुजरात में रहते हैं और अहमदाबाद में स्थित नवजीवन ट्रस्ट के कार्यकारी ट्रस्टी हैं.
गुजरात में हर साल रण उत्सव मनाते हैं. चांदनी रात में यह कार्यक्रम होता है. यह बॉर्डर वाला इलाका है. मैं 2007 से इस उत्सव का ऑफीशियल फोटोग्राफर हूं. यह फोटो साल 2011 के रण उत्सव के दौरान की है. कार्यक्रम चल रहा था तभी जिलाधिकारी ने मुझे बताया कि मोदी जी बुला रहे हैं. जब मैं उनके पास पहुंचा तो उन्होंने मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया. थोड़ी देर में कार्यक्रम खत्म हुआ और सारे लोग अपने-अपने टेंट में चले गए. अब वहां केवल मोदी जी, मैं और उनके सुरक्षाकर्मी थे. रात के दस बज रहे थे. मोदी जी ने मुझे अपने साथ लिया और हम कार्यक्रम वाली जगह से करीब आधा किलोमीटर और अंदर आ गए. सुरक्षाकर्मियों ने आपत्ति दर्ज की लेकिन उन्होंने उसे नजरअंदाज कर दिया. सामने दूर तक फैले सफेद बालू के टीले थे जो चांदनी रात में चमक रहे थे. मोदी जी ने मुझसे कहा कि मैं यहां उनकी तस्वीर निकालूं. मुझे चिंता हुई कि कम रौशनी की वजह मुझे लॉंग एक्सपोजर चाहिए और इस दौरान मोदी जी को बिल्कुल स्थिर रहना पड़ेगा. मैं यह उन्हें बता पाता उससे पहले ही उन्होंने कहा- चिंता मत करो. मैं सांस रोके खड़ा रहूंगा.
मुझे इस बात का आश्चर्य हुआ कि फोटो उतरवाने की इच्छा के अलावा उन्हें फोटोग्राफी की बारीकियों की भी बहुत जानकारी है.
शैलेंद्र पाण्डेय
नेशनल फोटो एडिटर, राजस्थान पत्रिका
जब नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री पहली बार संसद पहुंचे तो उन्होंने संसद की चौखट को दंडवत प्रणाम करके पूरे देश को चौंका दिया. यह उसी क्षण की तस्वीर है. इसका परिणाम यह भी हुआ कि अगले दिन के सभी अखबारों में उनकी यह तस्वीर प्रमुखता से छपी.
मोदी जी के चेहरे पर हाव-भाव आसानी से दिख जाते हैं. जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस मामले में थोड़े कंजूस थे.
प्रधानमंत्री के आसपास रहने वाले सुरक्षाकर्मी फोटोग्राफर्स के फ्रेम में नहीं आते. ऐसा लगता है कि उन्हें इसके लिए निर्देश दिया गया है. वहीं गांधी परिवार के नेताओं के आसपास रहने वाले सुरक्षाकर्मी फोटोग्राफर्स की मौजूदगी को लेकर लापरवाह रहते हैं.
रवि एस सहनी
स्वतंत्र फोटो पत्रकार
यह तस्वीर लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान की है. नरेंद्र मोदी भाषण देते वक्त बीच में कुछ क्षण के लिए मौन होकर अपने हाथ की उंगलियों को जिस प्रकार घुमाते हैं, अक्सर उनकी यह भाव- भंगिमा अटल बिहारी वाजपेयी की याद दिलाती है. ऐसा जान पड़ता है कि भाषण देते वक्त मोदी अपने आप को अटल विहारी वाजपेयी के आसपास देखते हैं. इस तस्वीर में मोदी बोल रहे हैं. पूरी रौ में बोल रहे हैं लेकिन उनकी आंखे बंद हैं. आंखें बंद होने की वजह से इस तस्वीर को एक ‘खराब फ्रेम’ भी माना जा सकता था. लेकिन मैं इस फोटो को कुछ ऐसे देखता हूं- पूरे चुनाव प्रचार के दौरान, प्रधानमंत्री तक की अपनी यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी ने अपनी आलोचनाओं की तरफ से आंखें बंद रखीं लेकिन इसी दौरान वे मीडिया और विपक्षी पार्टी पर एक के बाद एक कटाक्ष करते रहे. इस फोटो को गौर से देखने पर ऐसा भी लगता है कि मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी के खास अंदाज में अपने विरोधियों से कह रहे हों- ये अच्छी बात नहीं है.
विजय पांडे
फोटो संपादक, तहलका
पिछले साल 15 सितंबर को हरियाणा के रेवाड़ी में नरेंद्र मोदी की एक सभा हुई थी. यह उसी सभा की तस्वीर है. पूर्व सैनिकों के सम्मान में होनेवाली इस सभा को नरेंद्र मोदी की पहली चुनावी सभा भी कह सकते हैं. मैदान में बहुत भीड़ थी. जैसे ही मोदी मंच पर आए, लोग काबू से बाहर हो गए. हमारे पीछे से लोगों ने बैरिकेड तोड़ दिया. एक बार तो ऐसा लगा कि आज कुचले गए. लेकिन मंच से मोदी जी के बोलने के बाद स्थिति संभल गई. उनके लिए लोगों का पागलपन उस दिन जो देखा और भोगा वह आज भी महसूस होता है.