हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया ‘गर्मी की छुट्टियों’ का एलबम है. एलबम के सभी गाने, उनको लिखनेवाले, गानेवाले, संगीत देनेवाले, गानों का इंपोर्ट-एक्सपोर्ट करनेवाले, सब, गर्मी की छुट्टियों में हरहरे-छरहरे होने गए हैं, जिनके जीवन में गर्मियों की छुट्टियां इतनी लंबी नहीं हैं, उनकी गर्मियां बासी बोरियत की नक्काशी से सजे इन गीतों संग छोड़कर.
एलबम में शादी वाले गीत हैं, पार्टी वाले गीत, पब वाले गीत और कुछ उधार के गीत, अर्थात गुनगुनाए जा सकने वाले गीतों की फरमाइश करने वालों को घुड़की देकर भगाने वाले गीत. चौपाई-दोहे की जगह ले चुके हमारे आज के सुसंस्कारवान ‘रैप’ से सजे-संवरे इन गीतों में से तीन शारिब-तोशी के हैं जिनमें से दो वे उधार लाए हैं. महंगी मधुशालाओं में दो साल से बजने वाले ‘सेटरडे सेटरडे’ में वैसे का वैसा ही पुराना संगीत दुबारा ‘क्रिएट’ करने का श्रेय उन्होंने खुद को इसका संगीतकार कह कर दिया है, लेकिन गीत आज भी पहले-सा ही बेहूदा और शोर-प्रिय है. अगली उधारी में भी खुद को श्रेय देते शारिब-तोशी इस बार कुफ्र नहीं करते, अरिजित सिंह करते हैं, जब वे राहत फतेह अली खान का गाया ‘मैं तैनू समझावा’ चार साल बाद दुबारा खुद गाते हैं और काफी अरसे बाद हद साधारण लगते हैं. श्रेया घोषाल भी.
अपने हिस्से के तीन गीतों में से सचिन-जिगर दो में अपने पुराने-बुरे गीतों की याद दिलाते हैं, जिसमें से ‘डी से डांस’ बलम पिचकारी की तरह शुरू होकर उन सैकड़ों गीतों-सा हो जाता है जो साल गुजरने पर राख होते हैं. आखिरी गीत, शादी वाला ‘डेंगड़ डेंगड़’, लोक गीत के टच-अप के साथ, सुनने लायक है, सिर्फ इसलिए क्योंकि और कुछ भी इस एलबम में सुनने लायक नहीं है और इसलिए भी क्योंकि लंबे वक्त बाद थोड़े-से उदित नारायण को सुनकर अच्छा लगता है.