गाना है या सराय! संगीतकार फ्रेंच, गायक राजस्थानी लोकगीतों की आवाज, म्यूजिक अरेंजमेंट यूरोपियन लोकसंगीत वाला, और लिखाई पंजाबी से लबरेज. और जिस सराय में ये सब ठहरे, वह गोवा में. लेकिन ये सब जब सराय की बैठक के मूढ़ों पर बैठते हैं, गजब कर जाते हैं. गोवा की मधुशालाओं के मशहूर द्रव को इंसान बना जब गाकर उसे ढूंढते हैं, ‘ओ फैनी रे’, रेमो फर्नांडिस वाले गोवा से अलग एक गोवा दिल में जगह बनाता है. मुख्तियार अली गाते-गाते कई बार ऑफ-नोट होते हैं, ऑटो ट्यून के बिना उनकी आवाज सफर करती है, लेकिन यह सबकुछ फ्रेंच संगीतकार मठियास डप्ल्सी जानबूझकर करते हैं. कंप्यूटर निर्मित संगीत को इत्र की तरह हर लिखे गाने पर छिड़कने की बॉलीवुड की संस्कृति से खिलवाड़ करने का यह उनका पहला कदम है. शुरू-शुरू में दूसरे अंतरे में जब आवाज तयशुदा रस्ता छोड़ती है, आंखें चढ़ती हैं, लेकिन गाने के दो-चार दौर हो जाने के बाद रस्ता छोड़ना और रस्ते पर वापस आना मजेदार हो जाता है.
फैनी रे का एक जुड़वा भाई भी है, माही वे. एक-सी लंबाई और चेहरे के साथ, बस बाल बनाने का अंदाज अलग, इसलिए फैनी की जगह बॉलीवुड का फेवरेट लफ्ज आता है: माही वे! तीसरा इंग्लिश गीत है, फिल्म के दृश्यों के साथ शायद अच्छा लगे, यहां साधारण है.
आखिरी गीत सचिन-जिगर का है, जो इन दिनों छोटी-अजीब आवाजों को जिस तरह गानों में टांक रहे हैं, कहीं दूर इस रचनात्मकता पर उनके लिए कोई ताली ठोंक रहा है. ओपेरा का मजाक बनाने से शुरू होकर ‘शेक योर बूटिया’ मस्ती पर पागलपन का वर्क चढ़ाता है और दिव्य कुमार इन क्रियाओं के उस्ताद बनकर कभी न नाचे बंदे को भी हाथों से लहर बनाने पर मजबूर कर देते हैं. यह एलबम छोटा है पर सुनो तो ह्दय की रिक्तता कम करता है.