चुनाव आते हैं और हैकर्स मतदाताओं का डेटा चुराकर उसे राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को पैसे के बदले बेचने के लिए सक्रिय हो जाते हैं! मार्च में आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी को आईटी सेवाएँ प्रदान करने वाली हैदराबाद स्थित आईटी कम्पनी के ख़िलाफ़ एक ऐप के माध्यम से राज्य सरकार के डेटाबेस से 37 मिलियन मतदाताओं का डेटा चुराने की शिकायत दर्ज की गयी थी। जनवरी, 2024 में साइबर सुरक्षा फर्म, क्लाउड एसईके ने एक चौंकाने वाला ख़ुलासा किया कि भारत में 750 मिलियन टेलीकॉम उपयोगकर्ताओं का डेटा डार्कवेब पर बेचा जा रहा था। कुख्यात कोविन (CoVIN) मामले में कोविड वैक्सीन लगवाने वालों के डेटा का कथित उल्लंघन हुआ था, जिसके बाद सरकार को गहन जाँच शुरू करने के लिए मजबूर होना पड़ा। सन् 2018 को याद करें, यूके स्थित कैम्ब्रिज एनालिटिका की भूमिका तब संदेह के घेरे में आ गयी, जब व्हिसल-ब्लोअर क्रिस्टोफर वाइली ने भारत में एक राजनीतिक दल के लिए बड़े पैमाने पर काम करने के लिए यूके संसद के सामने गवाही दी।
अब ‘तहलका’ एसआईटी की पड़ताल से पता चला है कि बेईमान कम्पनियाँ और एजेंट व्यक्तिगत मतदाताओं का डेटा, जैसे- उनकी जाति, फोन नंबर और संपूर्ण प्रोफाइल चुराने के काम में लगे हुए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कई मतदाताओं को फोन कॉल (स्पैम कॉल नहीं) प्राप्त होते रहते हैं, जिनमें कॉल करने वाले व्यक्तिगत विवरण के बारे में जानते हैं और किसी विशेष राजनीतिक दल या मैदान में उम्मीदवार को बेचने की कोशिश करते हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मतदाताओं के डेटा में व्यक्तिगत विवरण के अलावा राजनीतिक संबद्धताएँ, मतदान इतिहास और राजनीतिक दलों के लिए जनसांख्यिकी भी शामिल है, ताकि मतदाताओं के व्यवहार का विश्लेषण करके उन्हें लुभाने के लिए विशिष्ट रणनीतियाँ बनायी जा सकें। थोक डेटा राजनीतिक दलों के एजेंटों को पैसे पर बेचा जाता है और यहाँ तक कि हैकर्स थोक आवाज़ें, टेक्स्ट और व्हाट्सएप संदेश भेजने का अनुबंध भी लेते हैं। ऐसी कम्पनियाँ हैं, जो राजनीतिक पीआर, अभियान प्रबंधन, डिजिटल सेवाओं और चुनाव वॉर रूम के लिए चुनाव विशेषज्ञों की सेवा प्रदान करने की आड़ में वास्तव में मतदाताओं के व्यक्तिगत डेटा को क़ीमत पर बेचती हैं।
हमारी आवरण कथा- ‘बिक रहा है मतदाताओं का डेटा’ मतदान जैसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अखंडता और नागरिकों की गोपनीयता की सुरक्षा के बारे में सवाल उठाती है। जब ‘तहलका’ की एसआईटी ने नोएडा स्थित एक डिजिटल मार्केटिंग कम्पनी में काम करने वाले ऐसे ही एक एजेंट से संपर्क किया, तो उस व्यक्ति ने दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में हमारे गुप्त कैमरे के सामने एक बैठक के दौरान दावा किया कि वह ‘सर्वोच्च न्यायाधीशों का व्यक्तिगत डेटा भी प्रदान कर सकता है। इसके अलावा उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों के जजों, वकीलों के साथ-साथ डॉक्टरों, शिक्षकों, इंजीनियरों, छात्रों और कॉर्पोरेट घरानों का डेटा भी पैसे के लिए 2024 में चल रहे आम चुनावों के लिए उपलब्ध करा सकता है।’ डेटा न केवल सरकारी वेबसाइट्स से, बल्कि बैंकों और टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं से भी लीक होता है। जैसे ही हमने पैसे के बदले मतदाता डेटा बेचने वाले विक्रेताओं की बहुत ज़रूरी गहन पड़ताल शुरू की, हमें आश्चर्य हुआ कि ऐसे कई विक्रेता अलग-अलग रेट (पैसे) के साथ मतदाताओं के व्यक्तिगत डेटा बेचने की पेशकश कर रहे हैं। लोगों की सहमति के बिना मतदाता डेटा की बिक्री नीति-निर्माताओं के लिए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा को संभावित दुरुपयोग से बचाने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करना और पारदर्शिता प्रदान करना सरकार के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए और सार्वजनिक और निजी संस्थाओं को उनकी सहमति के बिना व्यक्तियों का डेटा एकत्र करने और उपयोग करने से रोकना चाहिए।