आप पाकिस्तान पर एक किताब लिख रही हैं. यह साधारण पाकिस्तानी लोगों की कहानी है, जो समाज में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं. यह विचार दिमाग में कैसे आया?
दरअसल, यह विचार मेरे प्रकाशक की ओर से आया. भारत के बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ मलाला युसूफजई के 2014 का नोबल शांति पुरस्कार पाने के बाद पाकिस्तानी सरकार और साधारण अवाम के बीच के संबंधों में एक नया आयाम जुड़ा है. पूरे विश्व से लगातार आ रहीं नकारात्मक धारणाओं की पृष्ठभूमि में एक बहुत बड़े वर्ग के सामने पाकिस्तान की दूसरी (सकारात्मक) छवि दिखाई ही नहीं जाती. एक आम पाकिस्तानी जो एक पारंपरिक पाकिस्तानी से भिन्न है. पश्चिम और दूसरे लोगों की ओर से एक आम पाकिस्तानी की छवि प्रतिगामी, अतिवादी, धर्मांध, साफा पहननेवाले, बंदूकधारी, उदारवाद से नफरत करनेवाले मुल्ला के रूप में दर्शाई जाती है. या अगर महिला हो तो उसे सताई हुई, बुर्कानशीं और पीड़िता बताया जाता है. इसके अलावा इस क्षेत्र से आनेवाली तमाम किताबों में भी 19 करोड़ से ज्यादा की आबादीवाले पाकिस्तान की गतिशील छवि को पेश करना बंद कर दिया गया है. इनके दैनिक अस्तित्व को कुछ हजार आतंकियों की छवि से बदला जा चुका है. ये मुट्ठी-भर आतंकी नफरत के अफसाने लिखने के साथ, विभाजन को बढ़ावा देने पर तुले हुए हैं. जो भी उनकी कट्टर विचारधारा के आड़े आता है वे उन्हें तबाह कर देते हैं. इन सबके बीच अपनी कम क्षमताओं के साथ अगर मैं पाकिस्तान का नरम और सकारात्मक पक्ष पेश कर सकी तो मानूंगी कि मैंने अपने देश को एक विनम्र तोहफा दे दिया है. यह पाकिस्तान को विकृत स्वार्थों के चश्मे से देखनेवाले लोगों का मुंह बंद करने में भी सहायक होगा.
आपने कश्मीर पर किताब लिखने की योजना बनाई थी. इसके लिए आपने लाहौर से जम्मू कश्मीर की यात्रा कर तब के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का इंटरव्यू भी किया था. किन कारणों से आपकी रुचि कश्मीर के प्रति जगी थी? इसके इतर पिछले साल की शुरुआत में आपने ट्विटर पर पाकिस्तानी युवाओं से कश्मीर प्रेम की जगह अपनी देश की समस्याओं पर सोचने का आग्रह किया था.
कश्मीर पर किताब लिखने का मेरा सपना है और मैं उम्मीद करती हूं कि यह कभी न कभी जरूर पूरा होगा. मेरा इरादा सीधासा है. इस किताब का भारत-पाकिस्तान के बीच ‘क’ (कश्मीर) शब्द से उपजी जटिलताओं से कोई लेना देना नहीं. कश्मीर के अनसुलझे मुद्दे के साथ दोनों संप्रभु देशों के बीच की शत्रुता को वास्तव में मैं तूल नहीं देना चाहती. पाकिस्तान और भारत के बीच के गतिरोध ने पिछले 68 सालों से दोनों देशों के रिश्तों को रक्तरंजित कर रखा है. जहां तक मुझे
याद है कश्मीर एक खुला जख्म है. मेरी इच्छा थी कि मैं कश्मीर के लोगों से मिलूं और उनकी कहानियां सुनूं. मैं उनसे एक पाकिस्तानी के तौर पर नहीं, बल्कि एक महिला के तौर पर मिलना चाहूंगी ताकि उनकी पीड़ा को महसूस कर सकूं.
मेरा विचार था कि मैं मुस्लिम, हिन्दू, सिख और दूसरे लोगों से बात करूं और वर्तमान लड़ाई के चलते पीड़ित कश्मीरियों की कहानियों को एक साथ रख सकूं. ये कहानियां मुसलमानों की हो सकती हैं, जो नारकीय जीवन जी रहे हैं, या फिर कश्मीरी पंडितों की कहानी हो सकती है जिन्हें निशाना बनाया गया, सताने के साथ जान से मार दिया गया. उन्हें अपना ही घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. यह उनकी कहानी भी हो सकती है जो आजादी चाहते हैं. उन महिला-पुरुषों की कहानी हो सकती थी जो आतंकवाद और भारतीय सेना के अत्याचार से पीड़ित हैं.
यह किताब सभी कश्मीरियों के बारे में होगी. न तो यह किसी मुस्लिम लेखक की ओर से उसके साथी मुसलमानों का दर्द साझा करेगी और न ही किसी हिन्दू के नजरिये से कश्मीरी पंडितों के विस्थापन को बताएगी. मेरी इच्छा उन सभी लोगों, जो खुद को कश्मीरी कहते हैं, के दर्द को बताना है. मैंने उमर अब्दुल्ला का इंटरव्यू किया क्योंकि मेरी इच्छा एक कश्मीरी राजनेता, जिनका परिवार कश्मीर के राजनीतिक इतिहास में असर रखता है, के विचारों को अपने पाकिस्तानी पाठकों के सामने रखने की थी. मेरे सवालों के प्रति उनके स्पष्ट और ईमानदार जवाब से मुझे कश्मीर के बारे ने उनके नए दृष्टिकोण के बारे में पता चला. इससे इस बात की उम्मीद भी बंधी कि एक ऐसा सूत्र विकसित किया जा सकता है जो सभी पक्षों के लिए स्वीकार्य साबित होगा.
पाकिस्तान के कश्मीर दिवस के अवसर पर पांच फरवरी 2014 को मैंने ट्वीट किया था. यह कुछ धार्मिक संगठनों के संदर्भ में था जो देश में कश्मीर और कश्मीरियों के प्रति अपनी अमर निष्ठा दर्शाने के लिए पाकिस्तान में बड़ी-बड़ी रैलियां और प्रदर्शनों का आयोजन करते हैं. जबकि उसी देश में तालिबान की नृशंसता पर ये चुप्पी साधे हुए हैं. जमीन के एक टुकड़े को दुखद रूप से ‘पाकिस्तान अधिकृत’ और ‘भारत अधिकृत’ कश्मीर के तौर पर जाना जाता है. जिसके चलते कई दशकों से पाकिस्तान और भारत के बीच गतिरोध बरकरार है. इस संदर्भ में मेरे इस ट्वीट का मतलब कश्मीर के लोगों की पीड़ा को कम करके आंकना नहीं था.
कांग्रेस सांसद शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की रहस्यमय मौत के बाद आपका नाम व्यापक तौर पर भारतीय मीडिया में उछाला गया था. भारतीय मीडिया ने आप पर शशि थरूर के साथ संबंध होने का आरोप लगाया था. इस बीच आपने कश्मीर का मुद्दा उठाया ताकि भारतीयों के बीच आपकी नई छवि बन सके?
मेरे लेखों और ट्वीट में भारत के प्रति मेरा अनुराग हमेशा पारदर्शी रहा है. एक साधारण पाकिस्तानी के दृष्टिकोण और विचारों को मैंने आगे लाने की कोशिश की थी, जो भारत आधारित अपनी कथित नीतियों के आगे जाते हुए अपने देश को देखने की इच्छा रखती है. आम भारतीयों के बीच पाकिस्तान के प्रति अपर्याप्त और विकृत सूचनाएं उपलब्ध हैं, जो अपने पड़ोसी देश के बारे में मन में नफरत रखता है. कुछ ऐसी ही सोच पाकिस्तान के तमाम लोगों की भारत के प्रति है.
दशकों से पाकिस्तान-भारत के बीच गतिरोध कायम है. मेरे ट्वीट का मतलब कश्मीरियों की पीड़ा कम करके आंकना नहीं था
अगर तकरीबन 140 शब्दों के ट्वीट से बिना एक-दूसरे का विनाश सोचे तीन या चार पाकिस्तानी और भारतीयों के बीच बातचीत कायम करने में मैं कामयाब हो सकी तो इसे सही दिशा में सही कदम के रूप में देखूंगी, क्योंकि मैं काफी आशावादी हूं. अगर दस मिनट के लिए मैं किसी टीवी शो में नजर आती हूं तो यह भी मुझे पाकिस्तान का पक्ष रखने की अनुमति देता है, लेकिन इसे भारत के साथ घृणा और शत्रुता को बढ़ावा देने के लिए गलत तरीके के राष्ट्रवाद से जोड़कर देखा गया.
पिछला साल काफी अप्रत्याशित और उतार-चढ़ाव भरा रहा. ट्विटर, जहां लोग मुझसे बातचीत करते हैं. इस सोशल प्लेटफॉर्म पर कुछ धर्मांधों की ओर से मुझे लगातार फंसाने की कोशिश की गई. मुझे लगता है कि जिन भारतीयों से मैं ऑनलाइन बातचीत करती हूं उनमें से सिर्फ दो फीसदी ही ऐसा कर रहे थे. ट्विटर पर जिस तरह की गर्मजोशी मुझे कुछ अजनबियों से मिली वह काफी उत्साहजनक और सादगीपूर्ण भी हैं.
वास्तव में कुछ लोगों के द्वेषपूर्ण रवैये का एक कारण है, वे मुझमें एक पाकिस्तानी को देखते हैं, जो अपने देश से प्यार करती है लेकिन इन सबके बावजूद भारत को शुभकामनाएं. कुछ या तमाम मुझे उस मामले की वजह से जानते होंगे जिसमें मेरा नाम दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से घसीटा गया. घटनास्थल पर वे मौजूद भी नहीं होंगे फिर भी वे मुझे ऐसे ही जानते हैं या होंगे. लेकिन भारतीयों से ऑनलाइन बातचीत में जिस शालीनता और विशुद्ध शिष्टता का मुझे अनुभव हुआ, वह लोगों की जन्मजात अच्छाई पर मेरा विश्वास कायम रखने के लिए काफी है. हालांकि मेरा नाम उस मामले में भारतीय मीडिया ने लगातार खींचा फिर भी यह लोगों का मेरे बारे में अंदाजा लगाने का पैमाना नहीं है. न ही यह वाकया मेरे शब्दों, एक लेख, एक ट्वीट और किसी टीवी शो से मेरे बारे में जानने से लोगों को रोक पाएगा.
इस विवाद के बाद क्या आपकी जिंदगी बदल गई? अचानक हुई इस घटना के चलते भारत और पाकिस्तान के घर-घर में आप चर्चित हो गईं. इस विवाद ने अापके निजी और सार्वजनिक जीवन को कैसे प्रभावित किया?
इसके लिए यह कहना काफी होगा… इस विवाद और मामले में निजी तौर पर मुझे खींचे जाने की इस घटना को मेरे लिए शब्दों में बयां करना संभव नहीं है. यह काफी कठिन है. एक ऐसे देश में जहां मैं सिर्फ दो बार गई हूं, वहां की मीडिया में आपके बारे में लगातार धारणाएं बनाईं और बिगाड़ी जा रहीं हैं. वह वक्त प्रतिक्रिया करने की बेचैनी की बजाय आत्मसंयम रखने की सीख देता है. अपने ईमेल के इनबॉक्स में गूगल एलर्ट खोजते वक्त मुझे एक रिमाइंडर लगातार मिलता था कि कैसे जिनसे मैं कभी नहीं मिली, उन्होंने मुझे लेकर अपना द्वैमासिक बेक्रिंग न्यूज बना दिया. यह सब नरक के जैसा था. मैं किसी के लिए भी ऐसा नहीं चाहूंगी. एक साधारण इंसान होना और इस ज्ञान के साथ जीना कि आपका नाम घर-घर में चर्चित है, वह भी उस वजह से जो आपके खिलाफ हो. यह किसी अग्निपरीक्षा की तरह है. पिछला एक साल बहुत अविश्वसनीय रहा. मेरे परिवार, दोस्तों और सोशल मीडिया पर पूरी तरह से अजनबी लोगों से मिला समर्थन मुझे उत्साहित करनेवाला था. लोग आपके पास आते हैं, आपसे मिलते हैं और आप चुपचाप बैठे रहते हो. तब आपके पास कहने के लिए कुछ ज्यादा नहीं होता या किसी का हाथ पकड़े शांत बैठे रहते हो, यह जताने के लिए कि आप चिंतित हो.
पेशेवर तौर पर मैं काम नहीं करती इसलिए मुझे पता नहीं कि इसका जवाब किस तरह दिया जाए. एक बार फिर इसे रिकॉर्ड के तौर पर रखते हुए मैं बताना चाहूंगी कि ‘डेली टाइम्स’ में मार्च 2012 से नवंबर 2013 तक मैं ओपेड एडिटर थी. यही एकमात्र नौकरी थी जो मैंने की है और पत्रकारिता से मेरा नाता मात्र इसी से जुड़ा था. हां, मैं 2010 से लगातार लिख रही हूं और यह अभी भी जारी है, क्योंकि लेखन मेरा पहला प्यार है. यह वह चीज है जो मेरे सबसे करीब है और जिससे मेरा वजूद है. जब तक मेरी उंगलियां लैपटॉप के कीबोर्ड पर टाइपिंग करने के लिए समक्ष रहेंगी मैं किसी न किसी रूप में लेखन को जारी रखूंगी. पिछले साल मेरे लेखन में कई आयाम भी जुड़े. मेरे दृष्टिकोण में व्यापक रूप से बदलाव आया है. देर से सही लेकिन मैंने यह महसूस किया है कि मैं अपनी बातचीत में उतनी सहज अब नहीं हूं, जितना पहले कभी होती थी. यह जानना बहुत असुविधाजनक और डरानेवाला है कि मैं जो भी लिखती हूं वह अब इस रुचि के साथ पढ़ा जा रहा है जो हमेशा सकारात्मक नहीं होता.
यह मसला वास्तव में बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन उतना षडयंत्रपूर्ण और भयावह नहीं, जैसा कि कुछ लोग इसे बनाने पर अमादा हैं
सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में चल रही जांच के दौरान आपका नाम चर्चित रहा. आपने इसका सामना कैसे किया?
जैसा कि मैंने पहले कहा, यह नरक की तरह था, जिसका मैंने सामना किया. हर दिन लगातार एक महिला (सुनंदा) जिससे मैं कभी नहीं मिली, एक व्यक्ति (शशि) जिनसे मैं दो बार मिली और अब मैं यहां खड़ी हूं. उनकी कहानी का एक हिस्सा, यह मसला वास्तव में बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन उतना षडयंत्रपूर्ण और भयावह नहीं है, जैसा कि कुछ लोग इसे बनाने पर अमादा हैं. इस मामले में किसी दिन पुलिस जरूर किसी नतीजे पर पहुंच जाएगी. तब शायद इस संबंध में मेरा नाम लिया जाना बंद हो जाएगा. कम से कम मीडिया में तो जरूर. यह जानकर अवास्तविक लगता है कि अजनबी आप पर बहस करते हैं, आपके शब्दों का विश्लेषण करते हैं, जो भी आप बोलते या लिखते हैं उनके अर्थ का अंदाजा लगाते हैं. मुझे उम्मीद है कि समय के साथ यह खत्म हो जाएगा लेकिन एक यथार्थवादी होने के नाते मैं जानती हूं कि यह सब जल्दी नहीं होगा.
इस विवादास्पद मसले को लेकर आपकी कोई इच्छा है या फिर कुछ ऐसा जिसे आपने किया या कहा न हो?
हां, मैं इसे पहले ही कह चुकी हूं और यहां फिर से कहती हूं. अगर मैं इसे फिर से कर सकती जिन ट्वीट्स के साथ मुझे टैग किया गया उनके जवाब में मैंने उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन कोई ट्वीट नहीं किया होता. मुझे चुप रहना चाहिए था. हालांकि मैंने उस तरह से प्रतिक्रिया नहीं दिखाई जैसाकि आमतौर पर लोग गलत तरीके से निशाना बनाए जाने पर करते हैं. लेकिन उन जवाबों ने विवाद को और बढ़ा दिया. ट्विटर पर मैंने कुछ चीजों के बारे में बताया भी था जो मेरे खिलाफ थीं. मुझे इन सब चीजों को ट्विटर से हटा लेना चाहिए. मुझे लगता है यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी, लेकिन दूरदर्शी रूप में देखा जाए तो यह बेवकूफी भरा भी था.
जो कुछ भी हुआ क्या उस पर कभी आप किताब लिखना चाहेंगी? जैसा कि प्रख्यात लेखक पैट्रिक फ्रेंच की ओर से इस मामले को लेकर एक कहानी लिखने की जानकारी मिली है?
नहीं, मैं ऐसे विषय पर कभी कुछ नहीं लिखूंगी जो मेरे लिए काफी निजी है. वे लोग जो मेरे काफी करीबी हैं, जैसे मेरा बेटा, मेरी भतीजी और कुछ दोस्तों को छोड़कर मैं इस बारे में किसी से बात भी नहीं करना चाहती. क्या है और क्या था यह मेरी जिंदगी का बहुत ही निजी हिस्सा है. इसे सनसनीखेज बनते हुए देखना, बिना तथ्यों को जाने इसमें लोगों का जोड़-तोड़ करना और इसका घिनौना अखबारी नाटक बनते हुए देखना मेरे लिए बहुत दुखद था. और इस बारे में ऐसा कुछ भी नहीं कि मैं किसी से कोई बात करना चाहूंगी.