आतंकवादियों को नये भारत के जवाब ऑपरेशन सिंदूर से उजागर हुई पाकिस्तान की असलियत
इंट्रो- पहलगाम में भारतीय पर्यटकों और एक स्थानीय युवक पर पाकिस्तान की तरफ़ से आये आतंकियों के बर्बर हमले ने हर भारतीय को गहरे आहत किया। भारतीय सेना और सरकार ने आतंकवादियों का जड़ से ख़ात्मा करने के लिए उचित क़दम उठाया। लेकिन इसमें पाकिस्तान और पाकिस्तानी समर्थक देशों, ख़ासकर चीन ने अपने-अपने हित देखने शुरू कर दिये और युद्ध का बिगुल फूँकने की कोशिश की। लेकिन भारत के करारे जवाब ने उसे न सिर्फ़ डराया, बल्कि अमेरिका को भी बीच में आकर युद्ध-विराम के लिए दोनों देशों से अपील करनी पड़ी। हालाँकि इसमें कई बातें हो रही हैं और सवाल भी उठ रहे हैं। पूरे घटनाक्रम पर ‘तहलका’ के वरिष्ठ पत्रकार रियाज़ वानी की रिपोर्ट :-
22 अप्रैल को जब पहलगाम के बैसरन में 25 पर्यटकों और एक टट्टू संक्रियक (पर्यटकों को टट्टू पर यात्रा कराने वाले) की हत्या हुई, तो यह निश्चित लग रहा था कि यह वीभत्स घटना भारत और पाकिस्तान के बीच एक बड़े गतिरोध का कारण बनेगी। चूँकि निर्दोष पर्यटक निशाना बन रहे थे, इसलिए नई दिल्ली के पास हमलावरों और उनके समर्थकों को जवाब देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इसके तुरंत बाद बिहार में एक सार्वजनिक रैली में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत पहलगाम नरसंहार के अपराधियों का पृथ्वी के अंत तक पीछा करेगा। ठीक 16 दिन बाद भारत ने पाकिस्तान में नौ स्थानों पर आतंकवादी शिविरों पर सटीक हमले किये, जो कि पहली बार किया गया था। सेना ने कहा कि न्याय हुआ है और नई दिल्ली ने कहा कि उसकी कार्रवाई केंद्रित, नपी-तुली तथा बढ़ावा न देने वाली प्रकृति की रही है। अगले दिन भारत ने पड़ोसी देश द्वारा ड्रोन और मिसाइलों से भारत के रक्षा प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने के असफल प्रयास के जवाब में पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया। भारत ने पाकिस्तान के भीतरी इलाक़ों में ड्रोन हमले करके अपनी सैन्य प्रतिक्रिया को भी बढ़ा दिया, लाहौर और कराची में रणनीतिक स्थानों को निशाना बनाया, जिससे संघर्ष में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो पहले नियंत्रण रेखा पर केंद्रित था।

जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाकर ड्रोन हमलों की एक श्रृंखला शुरू कर दी। पाकिस्तानी ड्रोन सेना के शिविरों, संचार केंद्रों और ईंधन भंडारण सुविधाओं पर निशाना साध रहे थे। सतर्क भारतीय वायु रक्षा ने उन्हें तुरंत निष्क्रिय कर दिया। यह सबसे गंभीर है कि सन् 2014 में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के आने के बाद से यह दोनों देशों के बीच तीसरा बड़ा संकट था। और तीनों ही मौक़ों पर संकट कश्मीर में आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ। सितंबर, 2016 में भारत ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाकर सर्जिकल स्ट्राइक की थी। यह ऑपरेशन उरी हमले के जवाब में किया गया था, जिसमें आतंकवादियों ने एक सैन्य अड्डे पर 19 भारतीय सैनिकों को शहीद कर दिया था। यह भारत की आतंकवाद-रोधी रणनीति में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव था, जो रक्षात्मक उपायों से सक्रिय उपायों की ओर अग्रसर हुआ। फिर फरवरी, 2019 में पुलवामा आत्मघाती बम विस्फोट, जिसमें 40 केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान शहीद हो गये; के बाद भारत ने पाकिस्तान की सीमा के काफ़ी अंदर बालाकोट में हवाई हमले किये। सन् 2019 के ऑपरेशन में भारत ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद प्रशिक्षण शिविर को निशाना बनाया। दोनों हमलों ने दो परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच तनाव बढ़ा दिया और सीमा पार आतंकवाद का मज़बूती से जवाब देने की भारत की विकसित होती नीति को रेखांकित किया। पहलगाम हमले के बाद से ही दोनों देशों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ कई ग़ैर-सैन्य क़दम उठाये हैं। पाँच प्रमुख उपायों की घोषणा की गयी- सिंधु जल संधि, जिसे लंबे समय से सीमा पार सहयोग का प्रतीक माना जाता रहा है; को स्थगित कर दिया गया। अटारी भूमि पारगमन को बंद कर दिया गया। पाकिस्तानियों को अब सार्क के तहत वीजा छूट नहीं मिलेगी और दोनों देशों में राजनयिक उपस्थिति को काफ़ी कम कर दिया गया। ये क़दम प्रतीकात्मकता से कहीं आगे हैं और भारत के अपने पश्चिमी पड़ोसी के प्रति दृष्टिकोण पर गहन पुनर्विचार को दर्शाते हैं।
जवाब में पाकिस्तान ने द्विपक्षीय व्यापार पहल को निलंबित कर दिया है और सन् 1972 के शिमला समझौते सहित भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों से हटने की धमकी दी है। शिमला समझौता दोनों देशों के बीच एक ऐतिहासिक शान्ति समझौता है, जिस पर सन् 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के तुरंत बाद हस्ताक्षर किये गये थे। 08 मई को भारत ने अपनी सैन्य प्रतिक्रिया को तेज़ करते हुए पाकिस्तान के काफ़ी अंदर तक ड्रोन हमले किये, जिनमें लाहौर और कराची के रणनीतिक स्थानों को निशाना बनाया गया। भारतीय रक्षा सूत्रों के अनुसार, इन हमलों का उद्देश्य आतंकवादी बुनियादी ढाँचे और प्रमुख सैन्य परिसंपत्तियों को नष्ट करना था, जिससे संघर्ष में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो पहले नियंत्रण रेखा पर केंद्रित था। लाहौर में एक सैन्य एयरबेस के पास और कराची में एक गोला-बारूद डिपो पर विस्फोट की ख़बरें आयीं, जिसके बाद की फुटेज सोशल मीडिया पर सामने आयी। यह हमला भारत द्वारा लाहौर की वायु रक्षा प्रणालियों पर किये गये हवाई हमले के ठीक एक दिन बाद हुआ, जो पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब का हिस्सा था।

जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तानी ड्रोन हमलों को भारत की वायु रक्षा द्वारा रोके जाने की ख़बरें हैं। लेकिन राजौरी और पुंछ के पास नुक़सान की भी पुष्टि हुई है। एक-दूसरे पर आक्रमण करने वाले ड्रोन युद्ध ने युद्ध के और अधिक बढ़ने की आशंकाओं को बढ़ा दिया है और दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर आक्रमण का आरोप लगाते हुए बयान जारी किये हैं, जबकि दोनों पक्षों ने आत्मरक्षा के अपने अधिकार पर ज़ोर दिया है। अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने सुरक्षा स्थिति के तेज़ी से बिगड़ने पर बढ़ती चिन्ता व्यक्त की। 09 अप्रैल की रात को भारत ने शनिवार तड़के तीन प्रमुख पाकिस्तानी एयरबेसों- नूर ख़ान (रावलपिंडी), मुरीद (चकवाल) और रफ़ीक़ी (झंग) पर सटीक हमले किये। पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ ऑपरेशन बुनयान उन मार्सोस शुरू किया, जिसमें जम्मू-कश्मीर और पंजाब में सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया। इस आक्रमण में सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों और युद्ध सामग्री का प्रयोग किया गया। इस ऑपरेशन का नाम क़ुरान की एक आयत से लिया गया है, जिसका अर्थ है- अटूट दीवार। 10 मई को अचानक हुए घटनाक्रम में दोनों देशों के बीच युद्ध विराम हुआ, जो तत्काल अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का परिणाम था। संभावित परमाणु वृद्धि की चिन्ताओं के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की कि दोनों देश उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस और विदेश मंत्री मार्को रूबियो सहित अमेरिकी अधिकारियों की मध्यस्थता में गहन वार्ता के बाद पूर्ण और तत्काल युद्ध विराम पर सहमत हो गये हैं। युद्ध विराम का अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा स्वागत किया गया और सऊदी अरब और चीन जैसे देशों ने भी मध्यस्थता प्रयासों में सहायक भूमिका निभायी। हालाँकि यह युद्ध विराम समझौता नाज़ुक था; कुछ ही घंटों के भीतर भारत और पाकिस्तान दोनों ने एक-दूसरे पर समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया, और कश्मीर में विस्फोटों और ड्रोन घुसपैठ की ख़बरें आने लगीं। लेकिन इसके बाद चीज़ें स्थिर हो गयीं और अंतत: शान्ति बहाल हो गयी।
पाकिस्तान को दंडित करने की नीति
क्या पाकिस्तान पर ताज़ा हमला कश्मीर में भविष्य में होने वाली हिंसा को रोक पाएगा? यह एक ऐसा प्रश्न है, जो भारत की विदेश नीति की दीर्घकालिक दुविधा रहा है। हालाँकि अतीत से जो बदलाव आया है, वह यह है कि भारत ने अब कश्मीर या अन्यत्र प्रत्येक आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान को दंडित करने की नीति अपना ली है। पहलगाम हमले और उसके बाद हुए सैन्य संघर्ष ने भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों को, जो पहले से ही पिछले कई वर्षों से ख़राब चल रहे थे; और भी बदतर बना दिया है। आतंकवादी शिविरों पर सैन्य हमले और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया ने स्थिति को बिलकुल नये स्तर पर पहुँचा दिया है, जिससे क्षेत्र के चरमराने का ख़तरा पैदा हो गया है। पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी को पिछले हमलों से भी अधिक आक्रामक रुख़ अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ा। और इसके पीछे कारण भी थे- सन् 2016 और सन् 2019 में सेना के जवानों पर हुए आतंकवादी हमले, जो कश्मीर में होता रहा है। पिछले तीन दशकों से जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा ठिकानों पर बड़े हमले निर्बाध रूप से जारी हैं।
पहलगाम हमला निर्दोष पर्यटकों के ख़िलाफ़ था, इसलिए पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोई भी ताज़ा सैन्य कार्रवाई बड़ी और दृश्यमान होनी चाहिए, जिससे नाराज़ जनता संतुष्ट हो सके और पाकिस्तानी सेना पर भी प्रहार हो। हालाँकि जब प्रहार हुआ, तो दोनों देशों के परमाणु हथियारों के इस्तेमाल होने की भी आशंका बढ़ी, जो एक प्रलयकारी युद्ध साबित होता और विश्व के लिए चिन्ता का विषय बनता। लेकिन यह टल गया। हालाँकि फिर भी सबका ध्यान कश्मीर में सीमा पार से लगातार हो रहे आतंकी हमलों पर होना चाहिए। और जब तक भारत और पाकिस्तान के बीच कोई सकारात्मक बातचीत नहीं होगी, आतंकवादी घटनाओं का रुकना संभव नहीं लगता। सन् 2016 के पुलवामा बम विस्फोट ने भारत-पाकिस्तान के बीच दीर्घकालिक वार्ता की किसी भी उम्मीद को करारा झटका दिया। और तबसे भारत पाकिस्तान के साथ किसी भी प्रकार की बातचीत से बचता रहा है। पिछले वर्ष अपने चुनाव अभियान के दौरान एक टेलीविजन चैनल को दिये साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया था कि भारत को पाकिस्तान के बारे में ज़्यादा चिन्ता नहीं करनी चाहिए और न ही इसकी परवाह करनी चाहिए कि वह अपना दृष्टिकोण बदलता है या नहीं। उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों से उन्होंने भारत को चलाने में पाकिस्तान की भूमिका पर रोक लगा रखी थी। उन्होंने पाकिस्तान की ख़स्ता आर्थिक स्थिति की ओर इशारा करते हुए कहा कि पाकिस्तान को दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करने दो। हमें अपना समय बर्बाद करने की ज़रूरत नहीं है।
वास्तव में पहले मामला कश्मीर के शान्तिपूर्ण समाधान पर पहुँच गया था; लेकिन सन् 2008 के मुंबई हमले के बाद से दोनों देश किसी प्रकार की बातचीत पुन: शुरू करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि भारत ने इस प्रयास को पूरी तरह छोड़ दिया है। अब भारत-पाकिस्तान के सम्बन्ध ख़राब होते जा रहे हैं। जबसे भारत के संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के बाद दोनों देशों ने अपने-अपने उच्चायोगों में राजनयिक कर्मचारियों का स्तर घटा दिया, तबसे दोनों देशों के पास संकट के समय भी एक-दूसरे से संवाद करने के लिए कोई राजनयिक साधन नहीं बचा है। लेकिन भारत को भी इस्लामाबाद के साथ बातचीत करने की कोई ज़रूरत महसूस नहीं हुई है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विदेश नीति को पाकिस्तान से पूरी तरह अलग कर लिया है। दोनों देशों के बीच बढ़ती आर्थिक और पारंपरिक सैन्य असमानता के साथ भारत ने पाकिस्तान से अपनी अलग पहचान बनाने में भी सफलता प्राप्त की।
आतंकवादी ठिकानों पर ताज़ा हमलों से भारत को न केवल पाकिस्तान पर कुछ हद तक प्रभुत्व स्थापित करने की उम्मीद है, बल्कि इसकी लागत में अत्यधिक वृद्धि करके सीमा-पार आतंकवाद को रोकने की भी उम्मीद है। हालाँकि इसकी सफलता अभी देखी जानी बाक़ी है और ऐसा होने के लिए कश्मीर में आतंकवाद का अंत होना ज़रूरी है। लेकिन ऐसा कुछ पिछले 35 वर्षों में नहीं हुआ है, भले ही इसमें उतार-चढ़ाव आते रहे हों। इसका कारण घुसपैठ है, जो सीमा के बड़े हिस्से पर बाड़ लगाने के बावजूद जारी है।
स्थानीय आतंकवाद में कमी
यह सच है कि पिछले पाँच वर्षों में स्थिति में भारी बदलाव आया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा हाल ही में बताये गये आँकड़ों के अनुसार, 2004 में जम्मू-कश्मीर में हिंसा की 1,587 घटनाएँ दर्ज की गयीं; लेकिन 2024 में यह संख्या घटकर सिर्फ़ 85 रह गयीं। इसी प्रकार, गृह मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, इसी अवधि में नागरिकों की मृत्यु की संख्या 733 से घटकर 26 हो गयी है और सुरक्षाकर्मियों की मृत्यु की संख्या 331 से घटकर 31 हो गयी है। यह भी स्पष्ट है कि अब पत्थरबाज़ी लगभग समाप्त हो गयी है। हड़तालें, जो कभी असहमति व्यक्त करने का एक नियमित तरीक़ा हुआ करती थीं, अब नहीं होती हैं। अलगाववादी राजनीति सचमुच विलुप्त हो गयी है। इससे भी अधिक आतंकवाद में स्थानीय भर्ती में भी भारी गिरावट आयी है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों की संख्या घटकर 76 रह गयी है। इनमें से लगभग 59 पाकिस्तानी हैं और सिर्फ़ 17 स्थानीय हैं – तीन जम्मू क्षेत्र में और 14 घाटी में। विदेशियों में तीन हिजबुल मुजाहिदीन, 21 जैश-ए-मोहम्मद और 35 लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े बताये गये हैं।
दूसरी ओर आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, युवाओं में बंदूक उठाने की दर में उल्लेखनीय गिरावट आयी है, जो 15 वर्षों में सबसे कम है। 2011-12 के बाद यह पहली बार है, जब सक्रिय स्थानीय आतंकवादियों की संख्या एकल अंक तक गिर गयी है, जो 2023 और 2024 से एक प्रवृत्ति को आगे बढ़ाती है, और 2025 में अब तक केवल एक नयी भर्ती दर्ज की गयी है। हालाँकि आतंकवाद अभी भी पहाड़ी इलाक़ों में मौज़ूद है और इसे कम करने का कोई उपाय नहीं है; क्योंकि घुसपैठ के कारण स्थानीय स्तर पर ताक़त बढ़ती जा रही है। क्या पाकिस्तान में आतंकवादी स्थलों पर हमलों से कश्मीर में आतंकवाद समाप्त हो जाएगा? यह भविष्यवाणी करना मुश्किल है। यानी अगर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट स्ट्राइक के बाद भी आतंकवाद जारी है; यद्यपि इसकी तीव्रता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। क्या आतंकवाद-सम्बन्धी हिंसा में कमी की यह प्रवृत्ति जारी रहेगी? आशा है कि ऐसा होगा। हालाँकि अतीत में ऐसा नहीं हुआ, जिससे कई मौक़े हाथ से निकल गये। उदाहरण के लिए, स्थानीय और विदेशी दोनों प्रकार के आतंकवादियों की संख्या 2011 में कमोबेश उसी स्तर पर आ गयी थी। इससे क्षण भर के लिए शान्तिपूर्ण वातावरण क़ायम हो गया। लेकिन इसके बाद से संख्या में फिर से वृद्धि हुई, विशेष रूप से स्थानीय भर्ती, जिसका केंद्र दक्षिण कश्मीर था। और 2015 तक घाटी में 300 से अधिक स्थानीय आतंकवादी थे। हालाँकि तबसे स्थिति में भारी परिवर्तन आ गया है, और प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि चीज़ें फिर से पहले जैसी नहीं होंगी। लेकिन यह भी सच है कि कश्मीर एक अप्रत्याशित स्थान बना हुआ है।
पर्यटन पर मार
पिछले तीन वर्षों से कश्मीर में पर्यटन लगातार बढ़ रहा है। इतना ही नहीं, यह न केवल प्रचलित सामान्य स्थिति का प्रतीक बन गया, बल्कि इसका आधार भी बन गया। सन् 2024 में 2.95 मिलियन पर्यटक कश्मीर आये, जिनमें से 43,000 विदेशी पर्यटक थे, जो सन् 2023 में 2.71 मिलियन पर्यटकों और 2022 में आये 2.67 मिलियन पर्यटकों से अधिक है। इस वर्ष सरकार को उम्मीद थी कि यह रिकॉर्ड टूट जाएगा; लेकिन पहलगाम हमले के बाद यह आँकड़ा अचानक बहुत कम हो गया है। घाटी में होटल, हाउसबोट और टूर ऑपरेटर, जो कभी ग्रीष्म ऋतु के लिए पूरी तरह बुक हो जाते थे, अब पर्यटकों द्वारा बड़े पैमाने पर बुकिंग रद्द करने के बाद 70 प्रतिशत तक की छूट देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
हाल के वर्षों में हिंसा में कमी के कारण फल-फूल रहे पर्यटन क्षेत्र में अचानक गिरावट बड़ी संख्या में उन लोगों की आजीविका को प्रभावित करने का ख़तरा पैदा करती है, जो कश्मीर की बर्फ़ से ढकी चोटियों, प्राचीन झीलों और हरे-भरे मुग़ल उद्यानों को देखने के लिए आने वाले पर्यटकों पर निर्भर हैं। बुकिंग साइटें भी क़ीमतों में भारी कटौती दिखा रही हैं; लेकिन पर्यटन हितधारकों को इससे कोई ख़ास उम्मीद नहीं है। ‘अगले दो महीनों के लिए हमारी सभी बुकिंग रद्द कर दी गयी हैं। कोई नयी बुकिंग नहीं है। इससे नुक़सान होगा।’ -श्रीनगर के एक गेस्ट हाउस के कर्मचारी उमर अहमद ने कहा। पहलगाम हमले के बाद स्थानीय निवासियों में सबसे बुरा भय व्याप्त हो गया है। उत्तरी राज्यों से पर्यटकों का आगमन रुक गया है; लेकिन दक्षिणी राज्यों से पर्यटकों का आना जारी है, जिससे सुरक्षा सम्बन्धी नयी चिन्ताएँ दूर हो गयी हैं। हालाँकि जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने पहलगाम की अपनी यात्रा के दौरान इनमें से कुछ आगंतुकों के साहस की सराहना की है। उन्होंने उन्हें क्षेत्र की लचीलेपन और आतिथ्य का आश्वासन दिया है। लेकिन ज़ाहिर है कि यह पर्याप्त नहीं है।