धर्म और सियासत की आग में सुलग रहा महाराष्ट्र

के. रवि (दादा)

महाराष्ट्र में नफ़रत और दंगों की साज़िशें चारों तरफ़ आग की तरह फैली दिख रही हैं। औरंगज़ेब पर बहस से लेकर नागपुर में हुई हिंसा ने हर मराठी मानुष को झकझोर कर रख दिया है। नागपुर से औरंगज़ेब की क़ब्र हटाने की कोशिश हुई, तो हिंसा भड़क गयी। यह हिंसा नागपुर में 17 मार्च, 2025 को विश्व हिन्दू परिषद् के लोगों के द्वारा औरंगज़ेब का पुतला फूँकने पर शुरू हुई। बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ और आगजनी में दज़र्नों लोग घायल हुए। तीन डीसीपी रैंक के पुलिस अधिकारी और 34 पुलिसकर्मी इस हिंसा में घायल हुए और इरफ़ान अंसारी नाम के एक आदमी की मौत हो गयी। मुस्लिम समाज का आरोप है कि विश्व हिन्दू परिषद् के लोगों ने हरी चादर और उनकी धार्मिक किताब को भी जलाया। इस हिंसा में हिंसक भीड़ ने 40 से अधिक कारें और दूसरे चार पहिया वाहन, 20 के क़रीब दोपहिया वाहन और दो क्रेनें जला दीं और सबसे दु:ख की बात है कि कई लोगों के घर जला दिये। पुलिस ने बड़ी मुश्किल से अपनी जान पर खेलकर हिंसा को रोका और नागपुर शहर के अलावा आसपास कर्फ्यू लगा दिया था, जो 23 मार्च 2025 को दिन में 3:00 बजे के बाद हटा लिया था। अब नागपुर में शान्ति है।

पुलिस सुराग ढूँढ रही है कि इस हिंसा के बांग्लादेश से कनेक्शन हैं और क़रीब सवा सौ से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। इससे पहले औरंगज़ेब की क़ब्र को तोड़ने की कोशिश के दौरान पुलिस ने छत्रपति संभाजी राजे शौर्य प्रतिष्ठान के अध्यक्ष बलराजे अवारे पाटिल और उनके कई साथियों को हिरासत में लिया था; लेकिन बाद में उन्हें छोड़ दिया गया। अब मक़बरे पर पुलिस तैनात है। अधिकारी कह रहे हैं कि औरंगज़ेब की क़ब्र एक संरक्षित स्मारक है और राज्य सरकार इसकी सुरक्षा कर रही है। पर सवाल यह है कि धर्म के नाम पर ऐसे विवाद खड़े करने वालों को महाराष्ट्र सरकार क्यों नहीं रोक पा रही है? सुनने में यह भी आया है कि विश्व हिन्दू परिषद् ने गढ़े मुर्दे उखाड़ने की इस सीरीज में हुमायूँ के मक़बरे का भी जाँच अपने नज़रिये से करनी शुरू कर दी है। विश्व हिन्दू परिषद् कह रहा है कि कुछ और मक़बरों की भी जाँच की जाएगी, जिनकी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी। विश्व हिन्दू परिषद् कोई जाँच की सरकारी संस्था नहीं है, पर वो अपने नज़रिये से जाँच में लगी हुई है। हमारे भारत में हिंसा भड़काने और हिंसा करने को अपराध माना जाता है और इसके लिए क़ानून में बाक़ायदा कड़ी सज़ा का प्रावधान है। पर इस तरह की घटनाओं के पीछे जब राजनीतिक लोगों का हाथ हो, तो ऐसे लोगों को सज़ा नहीं मिल पाती और वे हिंसा की आग लगाकर ग़ायब हो जाते हैं।

दूसरी तरफ़ मशहूर कमेडियन कुणाल कामरा को लेकर बवाल मचा हुआ है। एकनाथ शिंदे गुट के शिवसेना नेता संजय निरुपम से लेकर तमाम नेता कुणाल को धमकी दे रहे हैं और अपने कार्यकर्ताओं से उन्हें पीटने का खुला ऐलान कर चुके हैं। दरअसल जैसा कि अक्सर देखा जाता है कि कॉमेडियन, कवि और वेंगचित्रकार भी अपने नेताओं की अक्सर टाँग खिंचाई करते रहते हैं। कुणाल कामरा ने भी महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर मज़ाक़ के मूड में तंज़ कस दिया, जिससे उनके ख़िलाफ़ तीन एफआईआर हुईं। मुंबई पुलिस के सूत्रों से पता चला है कि पुलिस ने कुणाल कामरा से पूछताछ की, तो उन्होंने कहा कि मैंने होशोहवास में बयान दिया है और मुझे इसका कोई पछतावा नहीं है। एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना के कार्यकर्ता कुणाल कामरा पर भड़के गये और उनके सेट पर उन्होंने तोड़फोड़ कर दी। इस घटना के बाद कुणाल कामरा ने दूसरे भाजपा नेताओं पर भी पैरोडी शुरू कर दीं, जो काफ़ी वायरल हो रही हैं। आदमी से लेकर फ़िल्म इंडस्ट्री के बहुत-से लोग उनके बचाव में उतर पड़े हैं। शिवसेना (यूबीटी) के नेता कुणाल कामरा के बचाव में उतर आये हैं। शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने कुणाल की गायी पैरोडी को अपने सोशल मीडिया एकाउंट एक्स पर पोस्ट करके लिखा है- ‘कुणाल की कमाल!’ जय महाराष्ट्र!’

कुणाल कामरा पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से लेकर कई भाजपा के नेता भी भड़के हुए हैं। कोई उन्हें ग़द्दार कह रहा है, तो कोई मुँह काला करके पीटने की खुली धमकी दे रहा है। इस पर भी पुलिस कार्रवाई करे, तो देश में महाराष्ट्र पुलिस की निष्पक्ष कार्रवाई का एक अच्छा संदेश जा सकता है। कुणाल कामरा को भी अपना काम करना चाहिए, उन्हें राजनीति से क्या लेना। इस बारे में सबसे अच्छी बात महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कही है। उन्होंने कहा है कि किसी के बीच वैचारिक मतभेद हो सकते है, पर ऐसा कुछ नहीं करें जिससे पुलिस का काम बढ़ जाए। इसका ध्यान हर किसी को एक ज़िम्मेदार नागरिक की तरह रखना चाहिए और सब कुछ संविधान के दायरे में रहकर करना चाहिए।