के. रवि (दादा)
अदालतों की सुनवाई प्रक्रिया में सुधार की बड़ी ज़रूरत है। कई वर्षों तक मुक़दमों का चलते रहना अपराधियों के लिए फ़ायदे का सौदा हो जाता है। इसमें पिस जाता है, तो ईमानदार आदमी। पक्षपात और दबाव से भी अदालतों को निकलना ही चाहिए, नहीं तो फ़ैसलों पर उँगलियाँ उठती हैं। क़ानून को यूँ दिखाया गया है कि आँख पर पट्टी बँधी है, पर हाथ में तराजू है। आँख पर पट्टी इसलिए नहीं बँधी है कि अदालतों में बैठे जजों को कुछ नहीं दिखता, वो इसलिए बँधी है कि अदालत को किसी को पक्षपाती नज़रिये से देखे बिना, उससे जान पहचान निकाले बिना मुक़दमों को कानों से सुनना है, समझना है और न्याय के हक़ में तराजू से तोलने के जैसा नपा-तुला फ़ैसला करना है। लेकिन इसके विपरीत कई जज आँखों पर पट्टी बाँधकर ग़लत फ़ैसले दे जाते हैं, जिसके लिए कई जजों को तो बड़ी अदालतों ने समय-समय पर बर्ख़ास्त भी किया है। फिर सवाल यही सामने आता है कि अदालतों की सुनवाई प्रक्रिया में सुधार कैसे हो और वो सुधार करेगा कौन ?
इसके लिए हम कुछ उदाहरण ऐसे देख सकते हैं, जिनमें कुछ जजों ने बहुत अच्छे काम किये हैं। जैसे कि आजकल हम ख़बरों में सुनते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश निष्पक्षता से फ़ैसले सुना रहे हैं। कोरोना-काल में अदालतों की कार्यवाही लाइव हुई थी। राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों में अदालती कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दे दी थी। ये काम 2018 में भी किया गया था, पर वो सभी अदालतों में नहीं हुआ था। अब ज़्यादातर अदालतों की कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग होने लगी है। 26 अगस्त, 2023 को आम लोगों को सरकारों द्वारा दी जा रही मुफ़्त सुविधाओं के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सुनवाई लाइव दिखायी गयी थी।
अब एक और अच्छा क़दम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में नौ जजों की पीठ ने एक व्हाट्सएप नंबर- 8767687676 जारी कर दिया है। इस व्हाट्सएप नंबर के ज़रिये सुप्रीम कोर्ट में होने वाली फाइलिंग, लिस्टिंग और कॉज लिस्ट वाले मुक़दमों की जानकारी वकीलों को समय-पूर्व ही मिल जाया करेगी। सुप्रीम कोर्ट का यह व्हाट्सएप नंबर जारी करने की पहल सराहनीय और तहे दिल से स्वागत करने वाली है। ये न्याय के इतिहास में पहली बार हुआ है और सुप्रीम कोर्ट में चलने वाले हर मुक़दमे की सुनवाई को आसान बनाने के लिए एक अनोखी पहल है। सुप्रीम कोर्ट व्हाट्सएप मैसेज करके अब उन मुक़दमों की जानकारी कुछ दिन पहले दे देगा, जिस मुक़दमे की तारीख़ आने वाली होगी।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद-39(बी) के तहत एक प्राइवेट प्रॉपर्टी से जुड़े मामले की नौ जजों की पीठ के सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 75वें साल में सुप्रीम कोर्ट ने व्हाट्सएप मैसेज को सुप्रीम कोर्ट की आईटी सेवाओं के साथ जोड़कर न्याय तक पहुँच को मज़बूत करने की पहल शुरू की है। इस व्हाट्सएप के माध्यम से एओआर, पार्टी / पिटीशनर इन पर्सन को मुक़दमे की सुनवाई से सम्बन्धित जानकारी मिला करेगी।
चीफ जस्टिस ने सुप्रीम कोर्ट के व्हाट्सएप नंबर के जारी करने की ख़ुशी में कहा है कि मुक़दमों की सुनवाई में पारदर्शिता बढ़ाने, परिवर्तन लाने और सुधार करने की दिशा में यह भी एक छोटा क़दम है, पर इसका असर बड़ा होगा। इस एक क़दम से सुप्रीम कोर्ट में कागज का इस्तेमाल तो सीमित होगा ही, भविष्य में काग़ज़ी ख़र्चे को ख़त्म करने पेपरलेस मुहिम बनाने में इससे बहुत बड़ी मदद मिलेगी।
विदित हो कि फरवरी, 2023 में अतिरिक्त ज़िला और सत्र न्यायाधीश, 15वीं अदालत, अलीपुर ने सुप्रीम कोर्ट के उस मामले को स्थगित कर दिया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जजों जस्टिस कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया था कि अलीपुर स्थित अतिरिक्त ज़िला और सत्र न्यायाधीश, 15वीं अदालत निष्पादन की कार्यवाही की सुनवाई एक दिन के आधार पर करे। इस मामले में मार्च, 2023 में सुनवाई के समय सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर काफ़ी नाराज़गी व्यक्त की थी। सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने इस मामले पर कहा कि यह देखा गया कि इस मामले में सावधानी बरती जानी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों के माध्यम से जो मंशा व्यक्त की है, उस पर पूर्ण प्रभाव से फ़ैसला दिया जाए। पीठ ने कहा कि जज को ये तय करने में सावधानी बरतनी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को समझने के बाद अनुपालन किया जा रहा है या नहीं। मामले को अतिरिक्त ज़िला और सत्र न्यायाधीश, 15वीं अदालत के सामने निगरानी रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए रखा गया कि निष्पादन की कार्यवाही समाप्त हो जाए, इसलिए नहीं कि अदालत के मामले की सुनवाई कर रहे जज इस मामले को ही स्थगित कर दें।
सुप्रीम कोर्ट ने 03 फरवरी, 2023 को निष्पादन अदालत को निर्देश दिया कि वह याचिका को दैनिक आधार पर ले, पर याचिकाकर्ता के पेश वकील ने शिकायत की कि जब 03 फरवरी, 2023 की तारीख़ के आदेश को निष्पादन अदालत के संज्ञान में लाया गया, तो उसने विशेष अनुमति याचिका के परिणाम की प्रतीक्षा करते हुए सुनवाई को 31 मार्च, 2023 तक के लिए स्थगित कर दिया। पीठ ने कहा कि हमें नहीं पता कि निचली अदालत के जज सरल आदेशों को क्यों नहीं समझ सकते। हमें क्या कहना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कहा कि पीठ इस बात से परेशान है कि 03 फरवरी, 2023 के आदेश में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि निष्पादन की कार्यवाही नियमित आधार पर होनी है, इसके बाद भी निचली अदालत के जज ने सुनवाई स्थगित कर दी। ये बिलकुल साफ़ है कि अलीपुर की अतिरिक्त ज़िला और सत्र न्यायाधीश, 15वीं अदालत ने 03 फरवरी के आदेश के अर्थ को नोटिस करने के बाद भी नहीं समझा। उस आदेश के संदर्भ में अतिरिक्त ज़िला और सत्र न्यायाधीश, 15वीं अदालत को दिन-प्रतिदिन लेने के बजाय यह बहाना बनाया गया कि मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है। इस मामले के निष्पादन में क़रीब चार साल पहले निष्पादन अवार्ड की पुष्टि की गयी थी, पर निष्पादन याचिका आज तक लंबित है।
पीठ ने कहा कि पिछली तारीख़ पर कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को इस मामले की प्रगति के बारे में ट्रायल जज से रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए बुलाया गया, तो फिर 12 नवंबर, 2018 को शुरू की गयी निष्पादन याचिका साढ़े चार साल सुनवाई चलने के बाद भी लंबित क्यों है? इस पर निचली अदालत ने सुप्रीम कोर्ट को कई तरह की सफ़ाई दे दी। ऐसी फटकार सुप्रीम कोर्ट कई जजों को अब के इतिहास में लगा चुका होगा, पर कई निचली अदालतों ने कई स्तरों पर आज तक सुधार नहीं किया है। अब निचली अदालतों को सुप्रीम कोर्ट के नक़्शेक़दम पर चलकर न्याय व्यवस्था की एक मिसाल पेश करनी चाहिए, जिससे वर्षों से बदनाम भारत की न्याय व्यवस्था दुनिया में एक मिसाल बन सके और दुनिया हम पर न्याय के लिए विश्वास कर सके।
हमारे देश में सुप्रीम अदालत, उच्च अदालतें और ज़िला अदालतें दो तरह के मुक़दमे सुनती हैं, जिन्हें दीवानी और फ़ौजदारी कहते हैं। पर इन अदालतों में चलने वाले मुक़दमों के फ़ैसले आने में इतनी देरी होती है कि कई बार वादी-प्रतिवादी दुनिया से रुख़सत तक हो जाते हैं, पर फ़ैसला नहीं हो पाता। इसके लिए कोई और ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि अदालतें ही ज़िम्मेदार हैं। दिसंबर, 2023 के तीसरे हफ़्ते तक तीनों प्रकार की अदालतों में लंबित पड़े सभी प्रकार के मामलों की संख्या क़रीब पाँच करोड़ से ऊपर हो गयी थी। इन लंबित मामलों में ज़िला अदालतों और उच्च अदालतों में 30 साल से ज़्यादा समय से लंबित मामले 1.69 लाख से अधिक थे। दिसंबर, 2022 तक पाँच करोड़ मामलों में से 4.3 करोड़ से ज़्यादा 85 प्रतिशत मामले ज़िला अदालतों में लंबित हैं। अचंभा तो यह है कि जिन मामलों में सरकार वादी है, वो भी 50 प्रतिशत मामले ऐसे हैं, जो लंबित पड़े हुए हैं। निचली अदालतों में 66 प्रतिशत से ज़्यादा मामले जमीन और संपत्ति विवाद के हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किये गये मामलों में से 25 प्रतिशत भूमि विवाद के मामले हैं, नहीं तो उनमें भूमि विवाद शामिल है।
दिसंबर 2023 तक पिछले साल लाइव टीवी क़ानून और न्याय भारत के तहत सुप्रीम कोर्ट ने 52,191 मामले निपटाये, पर 80 हज़ार मामले अब भी लंबित पड़े हैं। पर 2022 में अदालतें 39,800 मामले ही अदालतें निपटा पायी थीं। इस प्रणाली को 2017 में शुरू किया गया, जिसके चलते 2018 से मामलों को निपटाने की गति तेज़ हुई। अब निचली अदालतों को सुप्रीम कोर्ट के नक़्शेक़दम पर चलते हुए अपने व्हाट्सएप नंबर जारी करने चाहिए। साथ ही हर मुक़दमे की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग करनी चाहिए, ताकि मुक़दमों में फँसे लोगों के सामने जल्द फ़ैसला आ सके और वे लम्बे समय की सुनवाई से बच सकें।